क्या आपने कभी कुएं की शादी के बारे में सुना है, जिसका दूल्हा एक बरगद का पेड़ है!

क्या आपने कभी किसी कुएं की शादी बरगद से होते हुए सुना है? बिहार और झारखंड में पूरा गांव मिलकर इस विवाह का आयोजन करता है और प्रकृति से आशीर्वाद प्राप्त करता है। इसके अलावा स्थानीय लोग मिलकर जल स्रोतों को भी साफ करते हैं।
well’s wedding

बिहार और झारखंड में ऐसे दूल्हों की भरमार है जो दिन-रात अपनी दुल्हनों को टकटकी लगाए देखते रहते हैं। हालांकि ये कभी उनसे बातचीत नहीं करते न ही कभी उनके साथ विवाह स्थल से बाहर जा पाते हैं। कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि ऐसा कौन दूल्हा है? तो चलिए आपको बता दें कि ये दूल्हे बरगद की लकड़ी से बने होते हैं जिनकी शादी कुएं से करा दी जाती है।

कुआं विवाह या कुएं से शादी की परंपरा इन राज्यों के दूर-दराज के गांवों के लिए आम बात है। यह एक प्रचलित रिवाज है कि किसी नए घर में जाने से पहले अच्छी तरह से उसकी (कुएं) शादी का आयोजन किया जाना चाहिए जहां कुआं खोदा गया है।

देवघर, झारखंड के रहने वाले पुजारी अशोक कुमार पांडे ने गांव कनेक्शन को बताया,”शादी का आयोजन पानी को शुद्ध करने और उसे पीने योग्य बनाने के लिए किया जाता है। यह हमारा लोकाचार है यानी एक तरीके का रिवाज है जो काफी समय से होता चला आ रहा है। “

बरह अनुमंडल के वार्ड नंबर आठ के विकास नगर के रहने वाले, पंकज कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनके मुहल्ले (इलाके) के एक बुजुर्ग ने कुछ साल पहले जरूरत को देखते हुए इस पहल की शुरूआत की थी। परंपरागत रूप से गांव के निवासी किसी खुशी के मौके से पहले इस पूजा का आयोजन करते हैं जिसे कूप पूजन (जल देवता और कुएं की पूजा) कहा जाता है।

तेनाली रामा की कहानियों में भी इसी तरह की एक शादी का संदर्भ है। कहा जाता है कि राजा कृष्णदेवराय और उनके बुद्धिमान सलाहकार तेनालीराम में एक बार कहासुनी हो गई और तेनालीराम उनसे निराशा होकर दूर चले गए। तब उन्हें ढ़ूंढ़ने के लिए राजा ने कुए की शादी का आयोजन किया था।

कुआं विवाह की परंपरा इन राज्यों के लिए आम बात है। फोटो: पंकज कुमार

कुमार बताते हैं, “हमें अपनी रस्में पूरी करने के लिए दूसरे इलाके के शादीशुदा कुएं के पास जाना पड़ता है, क्योंकि कुंवारे कुएं के पानी का उपयोग करना खराब माना जाता है। देवता को खुश रखने के लिए हमें एक ‘विवाहित’ कुएं से ही पानी लेना होता है।

28 नवंबर, 2019 को बिहार के पटना जिले के विकास नगर में रहने वाले लोगों ने ऐसे ही एक भव्य कुआं विवाह का आयोजन था। शादी की तारीख एक स्थानीय पुजारी के परामर्श से तय की गई थी जैसे किसी मनुष्य के विवाह के लिए की जाती है।

प्रत्येक घर ने 500 रुपए का योगदान दिया था। कुमार बताते हैं, “स्थानीय निवासियों के सहयोग से 55 हजार रुपए की राशि एकत्र की गई थी, जबकि लगभग एक लाख रुपए की शेष राशि संपन्न ग्रामीणों द्वारा भारी दान से आई थी।”

वार्ड नंबर 8 की विकास मित्र, शर्मिला कुमारी ने कहा, “कुएं की शादी 150,000 रुपए की लागत से आयोजित की गई थी। पांच गांवों के लोगों ने शादी में भाग लिया। 26 नवंबर को एक अखंड पाठ (मंत्रों का निरंतर जाप) के साथ ये शुरू हुआ। इसके अलावा हल्दी समारोह भी रखा गया था। शादी में लगभग 100 लोग शामिल थे मतलब प्रत्येक पक्ष से 50 (कुआं दुल्हन और दूल्हा बरगद का पेड़)।

“बारात अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज, बरह से शुरू हुई और देर शाम विकास नगर पहुंची। इस तरह बरगद की लकड़ी के दूल्हे की शादी दुल्हन बने कुएं से हो गई। माता-पिता की भूमिका में गांव के ही ग्रामीण लोग थे जिसमें दिवंगत बच्चन पासवान (दुल्हन के पिता) और राम पासवान (दूल्हे के पिता) शामिल थे। गांव के निवासियों ने एक भव्य आयोजन का आनंद लिया और डीजे ने मेहमानों और मेजबानों का मनोरंजन किया।” कुमारी ने गांव कनेक्शन को आगे बताया। 

शर्मीला कुमारी तस्वीर- पंकज कुमार

शादी के कुछ यादगार पल

मुंबई की रहने वाली सोनाली कुमार की आंखों में अचानक एक चमक सी जाग उठती है जब भी वो अपने माता-पिता के घर बने हुए कुएं की भव्य शादी के बारे में सोचती हैं। सोनाली उस समय को याद करती हैं जब अस्सी के दशक के दौरान राज्य की उस समय की कोयला राजधानी, धनबाद (वर्तमान में झारखंड) में उन्होंने अपने नए घर में अपने और अपने भाई-बहनों के साथ इस तरह की शादी का आयोजन किया था।

सोनाली ने बताया, “कुएं और बरगद की शादी हमारे नए घर के गृह-प्रवेश के समय हुई थी। हम उस अनुष्ठान के पूरा होने के बाद ही घर के अंदर प्रवेश कर सकते थे। मुझे याद है कि मैं अपनी दादी से बार-बार सवाल कर रही थी कि कुआं दूल्हा है या दुल्हन? कुएं की शादी किससे हो रही है? क्या वो शादी के बाद दूर चला जाएगा? “

Also Read:ये हैं बुंदेलखंड के दशरथ मांझी, जिसने अकेले दम पर खोद दिया कुआं

शादी के पीछे एक पर्यावरणीय कारण भी है। पूर्वी भारत में जल संकट के मुद्दों पर काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन मेघ, पायन अभियान के मेनेजिंग ट्रस्टी, एकलव्य प्रसाद ने कारणों को स्पष्ट करते हुए कहा,”एक कुएं की शादी का आयोजन करने के पीछे का उद्देश्य जल स्रोत के अस्तित्व पर खुशी मनाना है। हमें इसकी रक्षा की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। साथ ही और लोगों को भी इसके प्रति जिम्मेदार बनाना चाहिए ताकि जल स्रोत की निरंतरता बनी रहे।”

झारखंड के पुजारी अशोक कुमार पांडे कहते हैं, “शादी का आयोजन पानी को शुद्ध करने और इसे पीने योग्य बनाने के लिए किया जाता है। ” तस्वीर- पंकज कुमार

धनबाद के ही रहने वाले एक अन्य पुजारी एकानंद पांडे ने कहा, यह शादी जल देवता वरुण और अन्य देवताओं को खुश करने और एक नई शुरुआत के लिए आशीर्वाद लेने का एक तरीका है। उन्होंने कहा, “बरगद का पेड़ त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करता है – ब्रह्मांडीय सृष्टि, संरक्षण और विनाश के तीन भगवान जिनके नाम भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव हैं”।

सामूहिक जिम्मेदारी

गांव का कुआं या तालाब एक अत्यधिक पूजनीय स्थान है। प्रसाद ने कहा, “सामान्य पूल स्रोतों जैसे जल निकायों तालाब (पोखर) और कुएं का निरंतर उपयोग सामूहिक संचालन और साझा रखरखाव प्रोटोकॉल और प्रथाओं के माध्यम से सुनिश्चित किया गया था। वे मुख्य रूप से धार्मिक, सांस्कृतिक और यहां तक ​​कि पारिस्थितिक मूल्य प्रणालियों द्वारा नियंत्रित थे। “

उत्सव या त्योहार के रूप में जल स्रोतों के रखरखाव को सुनिश्चित करना एक गेम-चेंजर साबित हुआ है। प्रसाद के संगठन ने 2007 में बिहार में जल महोत्सव के माध्यम से जल उत्सव मनाने की प्रथा शुरू की थी।

सुपौल (ग्राम्यशील), सहरसा (कोसी सेवा सदन), खगड़िया (समता), मधुबनी (घोघरडीहा प्रकाशखंड स्वराज्य विकास संघ) और पश्चिम चंपारण (सवेरा और वाटर एक्शन) के रूप में स्थानीय संगठनों के सहयोग से जल महोत्सव का आयोजन किया गया। ये सभी पंचायत स्तर पर पानी के विषय में और पानी पर बातचीत करने के लिए अग्रदूत साबित हुए। प्रसाद ने कहा, “बातचीत को सुविधाजनक बनाने में उत्सव बेहद मददगार थे।”

यह प्रथागत है

जबकि कुआं विवाह गृह-प्रवेश के लिए आवश्यक है। कुआं या कूप पूजन उत्तर भारत में एक लड़के के जन्म के समय मनाया जाता है। वहीं कुआं झोताई की परंपरा उत्तर प्रदेश के मेरठ के ग्रामीण इलाकों में एक लड़के की शादी से पहले की जाती है।Well, it is time for a well’s wedding. And the groom is … a banyan tree!

गाजियाबाद की रहने वाले 60 वर्षीय राजेश्वरी सिंह अपने दोनों बेटों के जन्म के 11 वें दिन आयोजित किए गए कुआं पूजन को याद करती हैं। “मवाना तहसील के बहलोलपुर में स्थित हमारे पैतृक गांव में सभी को निमंत्रण भेजा गया था। वहां इसकी बहुत धूम थी। कुआं झोताई जोकि लड़के की शादी से पहले किया जाता है इस दौरान दूल्हे की मां ये कहते हुए कुएं पर जाती है कि ‘मैं अंदर कूद जाऊंगी, अगर तुम दुल्हन को घर नहीं लाएं’, और इस दौरान उसका बेटा उसे वापस घर चलने के लिए मनाता है। यह ग्रामीण आबादी का एक मजेदार रिवाज है।” इस दौरान महिलाएं पारंपरिक लोक गीत भी गाती हैं।

आगरा के एक पौराणिक कथाकार प्रतुल विशेरा ने कहा कि इन सभी कार्यों का करने के पीछे का कारण यही है कि पानी एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना रहा नहीं जा सकता। विशेरा आगे कहते हैं, “किसी भी अच्छे काम को करने से पहले पानी की पूजा करने पर व्यक्ति जल देवता का आह्वान करता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है। पानी के बिना कोई घर नहीं चल सकता है।”

विशेरा बताते हैं कि कुछ मामलों में एक व्यक्ति जिसे मांगलिक माना जाता है, उसकी शादी भी एक कुएं से की जाती है। “राजस्थान के कुछ स्थान इस रिवाज का पालन करते हैं।”

दुख जताते हुए प्रसाद कहते है आधुनिकता की दौड़ में इन रीति-रिवाजों की भावना खत्म हो रही है। “उपयोगकर्ताओं और स्थानीय जल स्रोतों के बीच दूरी बढ़नी शुरू हो गई है। मुझे डर है कि यह दोनों जल्द ही खत्म हो जाएंगे। उन्होंने कहा, एक स्वस्थ भविष्य के लिए वर्तमान में अतीत को संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है।”

अनुवाद-सुरभि शुक्ला

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

Recent Posts



More Posts

popular Posts