उन्नाव ( उत्तर प्रदेश)। शिव कुमार सात लोगों के अपने परिवार के साथ राजधानी लखनऊ से 70 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के डकारी गांव में स्थित अपने पुश्तैनी घर को छोड़कर जा रहे हैं।
54 साल के कुमार ने उदास होकर कहा, “मैं इस घर में रहने वाली तीसरी पीढ़ी हूं।” इस घर से उनकी बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं। यहां उनके दादा व पिता ने अपनी अंतिम सांस ली थी।
इस घर को छोड़कर जाने के पीछे की वजह इलाके में दूषित पेयजल का होना है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि वहां के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है जिसकी वजह से उन्हें अपना पुश्तैनी घर छोड़कर जाना पड़ रहा है।
कुमार का गांव उन्नाव जिले के सिकंरदरपुर करण ब्लॉक में स्थित है, जहां यूपी जल निगम की रिपोर्ट के मुताबिक यहां के पेयजल में टोटल डिसॉल्व सॉलिड्स (टीडीएस) का स्तर 4089 मिलीग्राम/लीटर है, जबकि मानक के अनुसार इसका स्तर 500 मिलीग्राम/लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। इसी तरह, पीने के पानी की कुल कठोरता का स्तर 300 मिलीग्राम/लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, पर इस इलाके के पानी की कठोरता 2,072 मिलीग्राम/लीटर पाई गई है।
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गांव कनेक्शन के पास इस साल 28 मई को जारी की गई पानी की गुणवत्ता की रिपोर्ट की एक कॉपी है, जिसमें लिखा है, “टीडीएस, क्लोराइड, कठोरता और क्षारीयता की अधिक मात्रा की वजह से यहां का पानी पीने योग्य नहीं है।”
साफ पेयजल नहीं होने की वजह से पलायन करने वालों में शिवकुमार का परिवार अकेला नहीं है। कई परिवार पहले ही गांव छोड़कर जा चुके हैं। अपना आखिरी सामान ट्रैक्टर पर लादते हुए शिवकुमार ने कहा, “मैं उम्मीद कर रहा था कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।”
उन्नाव में शिव कुमार का डकारी गाँव उत्तर प्रदेश के उन सैकड़ों गाँवों में से एक है, जहां का भूजल दूषित पदार्थों के होने की वजह से पीने योग्य नहीं है। यह लाखों लोगों के लिए पीने के पानी का एकमात्र स्रोत है। (मानचित्र देखें)
भूजल बन गया है जहर
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के कुल 75 जिलों में से 63 जिलों के पानी में निर्धारित सीमा से अधिक फ्लोराइड है और 25 जिले उच्च आर्सेनिक से प्रभावित हैं। राज्य के 18 जिले ऐसे हैं जहां के भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों की मात्रा बहुत ज्यादा है।
भारतीय मानक ब्यूरो’ (बीआईएस) पेयजल मानक आईएस 10500:2012 के मुताबिक पीने के पानी में फ्लोराइड की ‘स्वीकार्य’ सीमा 1 मिलीग्राम/लीटर निर्धारित की गई है, लेकिन एक सुरक्षित जल स्रोत का अभाव होने की स्थिति में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम/लीटर तक हो सकती है।
इसी तरह, पीने के पानी में आर्सेनिक की मात्रा के लिए 0.01 मिलीग्राम/लीटर की सीमा निर्धारित की गई है, लेकिन पेयजल स्रोत के अभाव की स्थिति में इसकी मात्रा भी 0.05 मिलीग्राम/लीटर तक हो सकती है।
लेकिन, उत्तर प्रदेश में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां फ्लोराइड का स्तर निर्धारित सीमा से कहीं ज्यादा है। जल संसाधन मंत्रालय के अतंर्गत केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार ग्राउंड वॉटर ईयर बुक 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार मथुरा जिले के बलदेव ब्लॉक में फ्लोराइड का स्तर 5.9 मिलीग्राम/लीटर तक दर्ज किया गया है।
देश के कई राज्यों में भूजल में फ्लोराइड भी तय सीमा से काफी ज्यादा है। इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक मार्च 2021 की एक रिपोर्ट मुताबिक भारत के 20 राज्यों में फ्लोरोसिस एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
संसद के एक प्रश्न के लिखित उत्तर (18 मार्च, 2021) में, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि 2017 में देश में आर्सेनिक/फ्लोराइड की अधिकता वाली 27,544 ऐसी बस्तियां हैं जहां सरकार पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है।
केंद्रीय मंत्री के जवाब के अनुसार, “इन सभी बस्तियों में से 1,386 बस्तियों को छोड़कर बाकी जगहों पर पीने योग्य पानी उपलब्ध है।”
उच्च फ्लोराइड वाले पानी के सेवन से फ्लोरोसिस (दांत ख़राब होना और हाथों व पैरों की हड्डियों का टेढ़ा हो जाना) सहित कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इसी तरह अधिक आर्सेनिक वाले पानी से आर्सेनिकोसिस (कैंसर से जुड़ा हुआ) जैसी खतरनाक बीमारियां होती हैं।
उन्नाव जिला अस्पताल के चिकित्सक आलोक पांडे ने गांव कनेक्शन को बताया, “उच्च फ्लोराइड वाला पानी दांतों और मसूड़ों को नुकसान पहुंचाता है, त्वचा संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और हड्डियों को भी प्रभावित करता है।”
पांडे ने यह भी कहा कि उच्च फ्लोराइड किसी व्यक्ति की दृष्टि क्षमता को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि जल स्रोतों में फ्लोराइड की अधिकता का बच्चों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है और इससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
दूषित पाने के चलते डकारी से पलायन कर रहे हैं लोग
जानकारी के अनुसार उन्नाव जिले की 1,445 ग्राम पंचायतों के 4,355 गांवों में लगभग 257,672 लोग रहते हैं। राज्य के टेस्टिंग लैब के अनुसार उनमें से 1,427 गांवों के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 2.20 मिलीग्राम/लीटर और 4.20 मिलीग्राम/लीटर के बीच पाई गई है, जो कि निर्धारित सीमा से अधिक है।
609 लोगों की आबादी वाले डकारी गांव के शिव कुमार ने कहा, ‘हैंडपंप से जहर निकलता है, पानी नहीं।”
डाकरी के रहने वाले राघवेंद्र सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “पास के चमड़ा उद्योगों से रसायन युक्त पानी निकलता है। इसकी वजह से हर दिन हमारे गांव के पानी में प्रदूषण बढ़ रहा है।” उन्होंने बताया कि पानी में कुछ ऐसे रसायन हैं जिसकी वजह से हैंडपंप और नल के लोहे के पाइप तक गल जा रहे हैं।
डकारी निवासियों की इस बदहाली से जिला प्रशासन अनजान नहीं है। करीब दो दशक पहले सरकार ने डकारी से करीब पांच किलोमीटर दूर पोनी गांव तक पाइपलाइन बिछाई थी। इससे गांव में साफ पानी की आपूर्ति होती है।
राघवेंद्र ने शिकायती लहज़े में कहा, “लेकिन पुराने और जंग लगे पाइपों के कारण, पानी मुश्किल से डकारी में सार्वजनिक जगहों पर केवल एक या दो नलों तक ही पहुँच पाती है। पानी की आपूर्ति दिन में सिर्फ एक बार सुबह छह बजे होती है। नल केवल एक घंटे के लिए खुलता है, जिससे हम केवल आठ से दस लीटर पानी ही भर पाते हैं।” ग्रामीणों की पानी की अन्य जरूरतें दूषित भूजल से पूरी होती है।
एक हैंडपंप के पास बर्तन साफ करने बैठी शांति देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम मजबूर हैं। ये जानते हुए कि यह पानी हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है, हमें यही पीना पड़ता है।”
शांति देवी ने कहा कि अगर पानी की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ तो उनके परिवार के पास भी गांव छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। उन्होंने शिकायत करते हुए कहा, “पानी पीले रंग का होता है और इसकी वजह से हम जो कपड़े धोते हैं, उनका रंग फीका पड़ जाता है, बर्तन काले हो जाते हैं और घर के फर्श भी गंदे हो जाते हैं।”
जिनके पास पैसे हैं, वे इन गांवों को छोड़कर जा रहे हैं, लेकिन गाँव की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीब है, उनके पास नए घर बनवाने के लिए पैसे नहीं हैं, वे अपना घर छोड़कर कहां जाएंगे?”
हर बूंद में बीमारी
65 वर्षीय इंद्राना करीब 40 साल पहले उन्नाव के रघुनाथ खेड़ा गांव में शादी के बाद आई थी। तब उन्हें नहीं पता था कि गांव में इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
इंद्राना ने गांव कनेक्शन को बताया, “उस समय पानी ठीक था और इसलिए मेरा स्वास्थ्य भी ठीक था। पानी की गुणवत्ता पिछले दस वर्षों में खराब हुई है। इसकी वजह से मेरे पीठ की तकलीफ बढ़ गई है।” जब वह मवेशियों के लिए बने पानी के गड्डे के पास खड़ी हुईं, तब हमने देखा कि उनकी कमर काफी झुक गई है।
इंद्राना के अनुसार, डकारी गांव से करीब 10 किलोमीटर दूर रघुनाथ खेड़ा गांव (1,200 आबादी) में सिर्फ वह ही नहीं हैं, जिन्हें इस तरह की तकलीफ है। कई अन्य पुरुष और महिलाएं भी हैं जिनकी हड्डियां टेढ़ी हो गई हैं।
इंद्राना की तरह 38 वर्षीय मंजू देवी ने भी कहा कि 20 साल पहले शादी के बाद जब वह रघुनाथ खेड़ा आई थीं, तो पानी की कोई समस्या नहीं थी। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, “लगता है कि अगर मैं पानी से अपना मुंह कुल्ला कर लूं, तो मुझे उल्टी हो जाएगी।” उन्होंने उदास होकर कहा कि मुझे याद नहीं आता कि मैंने आखिरी बार मीठा पानी कब पिया था।
मंजू देवी कहती हैं, “मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती। मैं घुटने और पीठ में दर्द की वजह से फर्श पर झाड़ू भी नहीं लगा पाती हूं।”
उनके परिवार को खाना पकाने और पीने के लिए एक आरओ (रिवर्स ऑस्मोसिस) संयंत्र से पानी खरीदना पड़ता है। चाहे कितनी भी सफाई कर लें लेकिन उनके घर का फर्श गंदा ही रहता है और उनका हैंडपंप पूरी तरह से खराब हो गया है।
इस बीच रघुनाथ खेड़ा के शिशुपाल यादव ने शिकायत की रिश्तेदारों और अन्य लोगों ने उनके गांव आना बंद कर दिया है और अगर कोई आता भी है तो अपने साथ पानी लेकर आता है।
यादव ने गांव कनेक्शन को बताया कि गांव के लोगों को 15 से 20 लीटर पानी लाने के लिए दूसरे गांवों में जाना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा, “पानी के लिए बीस रुपये देने पड़ते हैं और पानी लाने में भी करीब 20 रुपए का पेट्रोल खर्च हो जाता है।”
भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक क्यों है?
उन्नाव के जल बोर्ड के कार्यकारी इंजीनियर मोहित चक ने गांव कनेक्शन को बताया, “भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने का एक कारण भूमि की भौगोलिक स्थिति भी है।”
जब गांव कनेक्शन ने हैंडपंपों के खराब गुणवत्ता वाले पानी के बारे में पूछताछ की, तो चक ने कहा कि सबसे ऊपर की परतें जहां से हैंडपंप अपना पानी खींचते हैं, सबसे ज्यादा प्रदूषित होती हैं। उन्होंने कहा कि 300 मीटर की गहराई के नीचे से लिया गया पानी पीने योग्य होता है।
लेकिन, उन्होंने स्वीकार किया कि जिले में चमड़ा उद्योगों से निकलने वाले जहरीले अपशिष्टों की वजह से आसपास के इलाकों का भूजल दूषित हो रहा है।
इसके कुछ अन्य कारण भी हैं। इंजीनियर ने बताया कि लगभग 25 साल पहले जिले में 71 पेयजल योजनाएं प्रारंभ की गई थीं। ये ऐसी योजनाएं थीं जिन्हें 15 साल से अधिक समय तक नहीं चलने के हिसाब से बनाया गया था। इसलिए इनमें से अधिकांश योजनाएं बंद हो गई हैं, या ठीक से नहीं चल रही हैं।
ग्रामीणों की शिकायत है कि उन्हें हैंडपंप की पानी की गुणवत्ता के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो कि पीने के पानी के लिए उनका एकमात्र स्रोत है। रघुनाथ खेड़ा के शिशुपाल यादव ने गांव कनेक्शन को बताया, “कई बार पानी की गुणवत्ता की जांच करने वाले लोगों ने गांव के पानी के नमूने लिए हैं। लेकिन कोई भी हमें यह बताने के लिए वापस नहीं आया कि उन्होंने इस जांच में क्या पाया।”
चक ने इसका जवाब देते हुए कहा, “जांच के परिणाम ई-जलशक्ति (e-jalshakti) पोर्टल पर अपलोड किए गए हैं और कोई भी इसे देख सकत है।”
केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजना
चक ने गांव कनेक्शन को बताया कि केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजना पुरानी पेयजल योजनाओं को फिर से सक्रिय करेगी। जल शक्ति मंत्रालय की इस योजना में साल 2024 तक भारत के हर घर में पाइप से पानी पहुंचाने का वादा किया गया है।
चक ने आश्वासन देते हुए कहा, “उन्नाव जिले में हर घर में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने का काम जल्द शुरू होगा।” उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत लगाए जाने वाले नए ट्यूबवेल 300 मीटर की गहराई से पानी खींचेंगे।”
लेकिन, ऐसा होने तक शिशुपाल यादव जैसे ग्रामीणों को साफ पानी की समस्या से जूझते रहना पड़ेगा। यादव कहते हैं, “लोग अपनी बेटियों की शादी हमारे लड़कों से करने में हिचकिचाते हैं। वे अपनी लड़कियों को ऐसे गाँव में नहीं भेजना चाहते जहाँ का पानी दूषित हो उसकी वजह से लोगों को कई तरह की बीमारियों का खतरा हो।”