पानी के साथ शरीर में घुल रहा है फ्लोराइड का ज़हर

थका देने वाली गर्मी में दूर तक पैदल चलकर पानी लाना महिलाओं के लिए किसी इम्तहान से कम नहीं है। लेकिन उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। पानी का दूषित होना उससे भी बड़ी एक समस्या है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में महिलाएं परिवार के लिए जो पानी ला रही हैं, वह सुरक्षित नहीं है। इस पानी में फ्लोराइड का स्तर इतना ज्यादा है कि उनके परिवार के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है।
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शिवपुरी, मध्य प्रदेश। घसराही गाँव के 60 साल के अशोक कुमार तिवारी दर्द से कराह रहे हैं। बड़ी मुश्किल से कुछ बोल पाते हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा, “मेरी हड्डियों में दर्द होता है। मैं ठीक से खाना नहीं चबा सकता, मेरे दांत गिर गए हैं…, ” उन्होंने कहा कि गाँव के लोगों में जोड़ों के दर्द की समस्या आम है।

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित घसराही गाँव कम से कम 500 ग्रामीणों का घर है। पूरा गांव सिर्फ दो हैंडपंपों पर निर्भर हैं, जिनके पानी में फ्लोराइड का स्तर तय मात्रा से काफी ज्यादा है। सालों से इसी पानी को पीते आ रहे यहां के अधिकांश लोगों के दांत सड़ रहे हैं, जोड़ों में दर्द है और त्वचा फट गई है।

गाँव कनेक्शन की ‘पानी यात्रा’ की सीरीज के दौरान रिपोटर्स और कम्युनिटी जर्नलिस्ट की हमारी राष्ट्रीय टीम ने देश के विभिन्न राज्यों के दूरदराज के गाँवों की यात्रा की। ताकि वे यह पता लगा सके कि गाँवों में रहने वाले लोग किस तरह से भीषण गर्मी में अपनी पानी की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की यह कहानी सीरीज का चौथा भाग है।

यह स्टोरी देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 475 किलोमीटर दक्षिण में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की है। पानी यात्रा सीरीज की यह चौथी स्टोरी है। घसराही गाँव के लोग अपने पानी में धीमे जहर (फ्लोराइड) के बारे में जानते हैं, लेकिन कोई वैकल्पिक सुरक्षित पेयजल स्रोत के अभाव में, वे उच्च फ्लोराइड वाले पानी का इस्तेमाल करते हैं।

अशोक कुमार तिवारी के हाथ और पेट पर गांठ बन गई है। फोटो: यश सचदेव

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“लोग कहते हैं कि यहां के पानी में फ्लोराइड मौजूद है। हैंडपंप से हमें पानी मिलता है। हम इसे पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं और हमारे बच्चे भी इसे पीते हैं, “घासराही गाँव की मिथिलेश ने कहा। 65 वर्षीय ने शिकायत की कि वह एक दशक से अधिक समय से घुटने और एड़ी के दर्द से पीड़ित हैं।

फ्लोराइड की अधिकता की समस्या देश के गिने-चुने गाँवों के निवासियों तक ही सीमित नहीं है। जल शक्ति मंत्रालय के एक दस्तावेज के अनुसार, 18 अगस्त, 2016 तक, देश में 8.5 मिलियन (8,507,634) से अधिक आबादी वाले कम से कम 10,615 बस्तियां उच्च फ्लोराइड वाले पानी से प्रभावित हैं।

13.2 मिलियन से अधिक लोगों वाली अन्य 13,000 बस्तियों के पानी में उच्च आर्सेनिक है, जो कैंसर (आर्सेनिकोसिस) से जुड़ा हुआ है। भारतीय पेयजल मानक के अनुसार, पीने के पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की अनुमेय सीमा क्रमशः 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर (मिलीग्राम/लीटर) और 0.01 मिलीग्राम/लीटर है।

खतरनाक स्तर पर पहुंचा जल प्रदुषण

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत तैयार की गई ग्राउंड वाटर ईयर बुक –मध्य प्रदेश (2020-21) के मुताबिक, पीने के पानी में फ्लोराइड का स्तर कई क्षेत्रों में “बहुत अधिक” पाया गया है, खासकर सिवनी, मंडला, जबलपुर, झाबुआ, ग्वालियर और शिवपुरी जिलों में। यह स्तर अक्सर तय सीमा से अधिक होता है।

जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि छिंदवाड़ा, दतिया, देवास, डिंडोरी, खंडवा, मंदसौर, मुरैना, नीमच, रतलाम, सीहोर, टीकमगढ़ और उमरिया जिलों में 1.5 मिलीग्राम / लीटर की तय की गई सीमा से अधिक फ्लोराइड का पता चला है। छिंदवाड़ा के बोरगांव और उमरिया जिले के निगहारी में पानी में अधिकतम फ्लोराइड का स्तर 1.98 मिलीग्राम/ली था।

उत्तर प्रदेश जल निगम के तहत झांसी बबीना जलापूर्ति अनुरक्षण इकाई द्वारा 2020 में शिवपुरी के घसराही गाँव में फ्लोराइड की मात्रा 2.5 मिलीग्राम/लीटर पाई गई थी, जब इसके पानी का रासायनिक विश्लेषण किया गया था।

इन वर्षों में, अधिकांश ग्रामीणों के शरीर पर गांठें निकल आयी हैं। विशेषज्ञ इसके लिए जल प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराते हैं। फोटो: अरेंजमेंट

सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि फ्लोराइड के संपर्क से अपंग कंकाल फ्लोरोसिस हो सकता है, जो ऑस्टियोस्क्लेरोसिस, टेंडन और लिगामेंट्स के कैल्सीफिकेशन और हड्डियों की विकृति से जुड़ा है।

मिथिलेश के गाँव से करीब पांच किलोमीटर दूर, नरही गाँव में, जहां करीब 1,000 आबादी है, बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं, जो पानी में उच्च फ्लोराइड के कारण होता है। 2020 की जल गुणवत्ता मूल्यांकन रिपोर्ट ने नरही के गाँव में 2.92 मिलीग्राम / लीटर पर फ्लोराइड की उपस्थिति की पुष्टि की, जो 1.5 मिलीग्राम / लीटर की अनुमेय सीमा से लगभग दोगुना अधिक है।

“जब मैं चलती हूं तो मेरे पैरों और घुटनों में दर्द होता है। कभी कभी चटक से जात है लागत है अभी गिर पड़ेंगे, “नरही गाँव के रहने वाली लाली ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“पिछले साल, मैं डॉक्टर के पास गई थी। मैंने इलाज में दो तीन हजार रुपये खर्च किए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली, “लाली ने आगे बताया।

इंडिया नेचुरल रिसोर्स इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट (आईएनआरईएम) फाउंडेशन के साथ काम करने वाले गुजरात के सुंदरराजन कृष्णन ने गाँव कनेक्शन को बताया, “क्योंकि पानी में फ्लोराइड की मात्रा दिखाई नहीं देती है, इसलिए लोग उस पानी को पीते जा रहे हैं।”

2010 से मध्य प्रदेश में जल जनित बीमारियों के प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे है कृष्णन ने कहा “भारत के मध्य भाग यानी मध्य प्रदेश में क्रिस्टलीय ग्रेनाइट का निर्माण होता है। यहां के पानी में काफी ज्यादा फ्लोराइड मिला है। मध्य प्रदेश के लगभग सभी जिले फ्लोराइड प्रभावित हैं, जिनमें से बारह जिलों में विशेष रूप से फ्लोराइड उच्च स्तर पर मिला है।”

पानी के लिए लंबी यात्रा

अप्रैल की भीषण गर्मी में जब पारा 43 डिग्री पर पहुंच गया, तो शिवपुरी की ग्रामीण महिलाएं पथरीले इलाके में पानी खोजने के लिए मीलों पैदल चल पड़ीं। लेकिन वहां जाकर भी उन्हें जो पानी मिलता है वह दूषित होता है।

झांसी (यूपी) स्थित हरितिका गैर-लाभकारी संस्था के साथ काम करने वाली अवनि मोहन सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पानी का दूषित होना और पानी की कमी, दो ऐसी समस्याएं हैं जिनका लोग यहां सामना कर रहे हैं। शिवपुरी जिले में, करेरा ब्लॉक के बीस गाँव (कुल 100 गाँवों में से) का पानी फ्लोराइड की वजह से दूषित हो गया है।”

सिंह ने कहा कि विशेष रूप से पन्ना, छत्रपुर, दमोह, सागर और कटनी जैसे जिलों में पानी की उपलब्धता एक मुद्दा है। पानी यात्रा सीरीज के हिस्से के रूप में, 16 मई को गाँव कनेक्शन ने पन्ना जिले में ग्रामीण महिलाओं के पानी के संकट को लेकर रिपोर्ट की थी। यहां जल जीवन मिशन के तहत सबसे कम 15.56 प्रतिशत नल का पानी कवरेज है।

घसराही गाँव के करीब 500 ग्रामीण के दो हैंडपंपों पर निर्भर हैं। पानी फ्लोराइड से दूषित है। फोटो: शिवानी गुप्ता

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में पिछले 27 सालों से ग्रामीण इलाकों में रह रहे गरीब लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर काम कर रहे सिंह ने कहा, “गर्मियों में महिलाएं और लड़कियां पन्ना जिले में पानी लाने के लिए तीन से पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाती हैं।”

2019 में ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के पानी ढ़ोकर लाने के बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने जल जीवन के तहत हर घर जल योजना शुरू की थी। यह केंद्रीय योजना अगले दो सालों में यानी 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को “नल का पानी कनेक्शन” मुहैया कराने का वादा करती है।

लेकिन घसराही गाँव के 500 निवासी गांव के सिर्फ दो हैंडपंपों पर निर्भर हैं।

जल जीवन मिशन के आंकड़ों से पता चलता है कि 19 मई, 2022 तक 27.59 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास नल के पानी के कनेक्शन थे।

40.35 प्रतिशत के साथ मध्य प्रदेश दस सबसे खराब राज्यों में से एक है, जहां भारत में नल के पानी की आपूर्ति राष्ट्रीय औसत से कम है। जल जीवन मिशन के अनुसार, देश के 49.42 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन हैं।

उत्तर प्रदेश में सबसे कम ग्रामीण नल जल कवरेज 13.6 प्रतिशत है। जबकि गोवा, तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, हरियाणा, पुडुचेरी, दादर और नगर हवेली, दमन और दीव में 100 प्रतिशत नल का पानी है।

कृष्णन ने कहा, “जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं में जल सुरक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि हम इससे बड़े पैमाने पर लोगों तक पानी पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।”

जल क्षेत्र के विशेषज्ञ भी राज्य में जल संकट के लिए भूजल संसाधनों के अत्यधिक दोहन को जिम्मेदार ठहराते हैं।

सिंह ने समझाया, “अन्य क्षेत्रों में जल स्तर के विपरीत, यहां पानी खंडित जलभृतों(एक्व्फिर) में चला जाता है। यहां की चट्टानों का गठन भी अलग तरह का है। उदाहरण के लिए, शिवपुरी में ग्रेनाइट रॉक फॉर्मेशन पाया जाता है जबकि दमोह में बलुआ पत्थर और सेल रॉक हैं। सेल रॉक पानी को अवशोषित करता है और इसलिए सतह पर पानी की उपलब्धता कम होती है।”

आईएनआरईएम के कृष्णन के अनुसार, “जब पानी चट्टान और मिट्टी से होकर बहता है, तो इसकी रासायनिक संरचना बदल जाती है। कैल्शियम जैसे अच्छे खनिज फ्लोराइड के साथ पानी में मिल जाते हैं। लेकिन इसमें सैकड़ों साल लगते हैं।”

उन्होंने कहा, “हालांकि, उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण की वजह से प्रदूषण, मिट्टी में उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से भी लीचिंग में तेजी आती है। इसलिए लीचिंग जो सैकड़ों वर्षों में होनी थी, एक साल में भी हो जाती है।”

कई ग्रामीणों टांगों में बड़ी (वैरिकाज़) नसें थीं, जो आमतौर पर दर्द और बेचैनी का कारण बनती थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा लंबे समय तक खड़े रहने और पेट के निचले हिस्से में दबाव के कारण होता है। फोटो: यश सचदेव

सेहत के लिए खतरनाक है फ्लोराइड

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ के ट्रामा सर्जरी विभाग के प्रमुख संदीप तिवारी ने कहा कि बढ़ी हुई मात्रा में फ्लोराइड का होना सेहत के लिए एक गंभीर खतरा है।

तिवारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पेट में ऐंठन, डेंटल फ्लोरोसिस, कंकाल फ्लोरोसिस, मांसपेशियों में कमजोरी पानी में नियमित रूप से अधिक फ्लोराइड के कारण होती है। हड्डियां और लिगामेंट कमजोर हो जाते हैं और पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर यानी किसी बीमारी की वजह से हड्डियों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी पुरानी बीमारियां जहां हड्डियों के जोड़ पर प्रभाव पड़ा है, उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है।”

तिवारी ने कहा, “दस से बारह साल तक लगातार फ्लोराइड वाला पानी पीने से रीढ़ की हड्डी में भी समस्या आ सकती है। कभी-कभी तो व्यक्ति चल-फिर भी नहीं पाता है।”

तिवारी के अनुसार, ऐसे में अक्सर सर्जरी ही समस्याओं से निपटने का एकमात्र तरीका है। लेकिन, कैल्शियम की खुराक और दूध, दही, छाछ, पनीर और सहजन जैसे डेयरी उत्पादों को बढ़ाकर समस्याओं को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि कैल्शियम, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थ पसीने, मल और मूत्र के जरिए किसी व्यक्ति के शरीर से फ्लोराइड की मात्रा को निकालने में मदद करते हैं।

तिवारी ने बताया, “इस मामले में सरकारों को आगे आना चाहिए। हैंडपंप के मुंह पर फिल्टर लगाने से समस्या को हल किया जा सकता है। यह पानी से फ्लोराइड की मात्रा निकालने में मदद करता है। हमने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में ऐसे हैंडपंप देखे हैं।”

ग्रामीण निवासियों को साफ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए हर घर जल योजना शुरू की गई थी। केजीएमयू के डॉक्टर ने कहा, जब तक लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता, तब तक लोगों को गहरे बोरिंग पानी से बचना चाहिए।

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे- 5 से पता चला है कि देश में 6-23 महीने की प्रारंभिक उम्र के 89 प्रतिशत बच्चों को “न्यूनतम स्वीकार्य आहार” नहीं मिलता है। मध्य प्रदेश में केवल नौ प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त आहार मिलता है, जो राष्ट्रीय औसत 11 प्रतिशत से कम है।

कृष्णन ने कहा, “इसके लिए जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, एकीकृत बाल विकास सेवा, कृषि और वानिकी सहित सभी विभागों को ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए एक साझा मंच पर आने की जरूरत है।”

कृष्णन ने कहा, “ग्रामीणों को चकोड़ा भाजी (एमपी में आदिवासी लोगों द्वारा पारंपरिक रूप से खाई जाने वाली एक देशी घास), मोरिंगा, तिलचिक्की (तिल), सोया, मूंगफली जैसे खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में बढ़ा देना चाहिए।”

जल क्षेत्र के विशेषज्ञ ने बड़े स्तर पर पानी की नियमित जांच करने का सुझाव दिया। “पानी की जांच करना इन दिनों सस्ता है। लोगों को इसके लिए ट्रेनिंग दी जा सकती है। ऐसा करना हमारे बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी है।”

आगे का रास्ता

एक गैर-लाभकारी संस्था हरीतिका ने 500 लीटर की क्षमता वाले पांच फ्लोराइड हटाने वाले संयंत्र स्थापित किए हैं। इसने सिलारपुर, घसराही, सपनझोरा, ताल का डेरा सहित शिवपुरी जिले में आरओ प्लांट लगाए गए हैं।

हरितिका से जुड़ी अवनि मोहन सिंह ने कहा, “सुरक्षित पानी के वैकल्पिक स्रोत के अभाव में पानी को साफ करने वाली इकाइयां स्थापित की जा सकती हैं। इन सयंत्रों में एक रसायन होता है जो पानी से फ्लोराइड की मात्रा को अवशोषित करता है। ” ऐसे संयंत्र को लगाने में लगभग 200,000 रुपये की लागत आती है। अब तक, घसराही और नराही में ग्रामीणों ने गैर-लाभकारी संस्था द्वारा स्थापित इन फ्लोराइड हटाने वाले संयंत्रों से पानी की सुविधा प्राप्त करने और नल कनेक्शन प्राप्त करने के लिए एकमुश्त भुगतान के रूप में 1,000 रुपये खर्च किए हैं। इन संयत्रों का पानी 5 रुपये प्रति 20 लीटर के हिसाब से बेचा जाता है।

एक गैर-लाभकारी संस्था हरीतिका ने 500 लीटर की क्षमता वाले पांच फ्लोराइड हटाने वाले संयंत्र स्थापित किए हैं। फोटो: यश सचदेव

साफ पानी उपलब्ध कराने के अलावा इन संयत्रों की वजह से ग्रामीण महिलाओं को भी काफी फायदा हुआ है। सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “इन संयत्रों को लगाने के बाद गांव वालों को नलों के जरिए आसानी से पानी उपलब्ध है। महिलाओं और लड़कियों को अब पानी की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ता है। उनके पास अपने काम करने के लिए ज्यादा समय है, अब लड़कियां स्कूल भी जा पाती हैं।”

मध्य प्रदेश में अपने अनुभव के आधार पर, कृष्णन ने कहा कि हड्डी के रोगों से जूझ रहे ग्रामीणों की मदद के लिए फ्लोराइड हटाने वाले संयंत्र लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, “अगर कोई फ्लोरोसिस से प्रभावित है तो ठीक कर पाना संभव नहीं है। लेकिन जब जल स्रोतों को साफ करने के बाद हमने 70 और 80 साल के लोगों की हड्डियों में भी सुधार देखा है। हमें समग्र रूप से कार्य करने की जरूरत है।”

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