दुनिया भर में बड़ी संख्या में देश, कोविड-19 वायरस के डेल्टा संस्करण के कारण मामलों में वृद्धि की रिपोर्ट कर रहे हैं। आने वाले कुछ हफ्तों में भारत में तीसरी लहर आने की आशंका है। ऐसे माहौल में उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्थिति पर देहरादून के एक गैर-लाभकारी एसडीसी फाउंडेशन की हालिया रिपोर्ट एक गंभीर तस्वीर पेश कर रही है।
आरटीआई (सूचना का अधिकार) के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर गैर लाभकारी संस्था द्वारा तैयार रिपोर्ट में पहाड़ी राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी पाई है।
हाल ही में जारी की गई इस रिपोर्ट से पता चलता है कि राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 75 प्रतिशत पद खाली हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों के स्वीकृत कुल 1147 पदों में से केवल 493 पदों पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं। 654 पद खाली पड़े हैं।
‘स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड 2021’ नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के 13 जिलों की एक करोड़ से अधिक आबादी पर केवल 493 विशेष सरकारी डॉक्टर उपलब्ध है। यह स्थिति तब है जब देश कोविड-19 के संकट से जूझ रहा है।
एसडीसी फाउंडेशन के शोधकर्ता और अध्ययन दल के सदस्य विदूश पांडे ने 6 अगस्त को रिपोर्ट का दूसरा भाग जारी करते हुए कहा, “राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टर के लगभग 60 प्रतिशत पद खाली हैं। इस संबंध में राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री (मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी) के साथ-साथ राज्य स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत को प्राथमिकता के आधार पर तत्काल कदम उठाने चाहिए।”
वह आगे कहते हैं, “पर्याप्त विशेषज्ञ डॉक्टर होने से न केवल हमें कोविड-19 जैसी महामारी से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि इससे ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था भी दुरुस्त होगी। जिसकी इस समय बहुत ज्यादा जरुरत है।”
चमेली, हरिद्वार, नैनीताल और चम्पावत में कोई जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं
राज्य के कुल 13 जिलों में से नौ जिले ऐसे हैं जिनमें 50 फीसदी से भी कम विशेषज्ञ डॉक्टर हैं। चमोली, नैनीताल, हरिद्वार और चम्पावत जिलों में तो एक भी सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है। ये खबर तब आई है जब देश तीसरी लहर की तरफ बढ़ रहा है।
इस साल 30 अप्रैल को गैर लाभकारी संस्था ने एक आरटीआई दायर की थी। जिसके जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उत्तराखंड सरकार ने ये आंकड़े साझा किये।
2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के खाली पदों के चलते उत्तराखंड को, स्वास्थ्य के मामलों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले तीन बड़े राज्यों में रखा गया था।
टिहरी सबसे ज्यादा प्रभावित
एसडीसी फाउंडेशन ने दो भागों में रिपोर्ट को जारी किया था। पहला भाग 24 जुलाई को और दूसरा छह अगस्त को जारी किया गया। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि सभी पहाड़ी जिलों में से टिहरी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यहां सिर्फ 13 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर हैं। छह लाख से ज्यादा आबादी वाले इस इलाके में केवल दो स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।
इसके अलावा जिले में केवल एक बाल रोग विशेषज्ञ हैं। टिहरी में सर्जन, ईएनटी (नाक, कान और गला) सर्जन, फोरेंसिक, त्वचा रोग, सूक्ष्म जीव विज्ञान और मनोरोग विशेषज्ञ है ही नहीं।
इन 13 जिलों में टिहरी सबसे अधिक प्रभावित क्यों है? एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल गांव कनेक्शन को बताते हैं, “इसके पीछे कोई खास कारण नहीं है। लेकिन हम देहरादून के आंकड़ों पर एक नजर डाले तो स्थिति साफ हो जाती है। जिले में डॉक्टरों की संख्या ज्यादा है। दरअसल वे देहरादून जैसी जगह पर काम करने में ज्यादा सहज है। यहां उनके पास अधिक सुविधाएं हैं।”
अध्ययन में बताया गया है, “हालांकि टिहरी में कई सरकारी अस्पताल पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) प्रणाली से संचालित किए जा रहे हैं। उत्तराखंड सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि खाली पड़े पद जल्द से जल्द भरें जाए।”
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में जनसंख्या के मामले में सबसे बड़े जिले हरिद्वार में स्थिति बेहद चिंताजनक है। यहां स्वीकृत 105 पदों में से केवल 40 पदों पर विशेषज्ञ चिकित्सक कार्यरत हैं। एसडीसी फाउंडेशन ने पाया कि जिले में 50 हजार से अधिक लोगों के लिए सिर्फ एक विशेषज्ञ है।
अन्य सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में चमोली और पौड़ी हैं। चमोली में 27 प्रतिशत और पौड़ी में 28 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर हैं।
राज्य की राजधानी देहरादून में सबसे अधिक 90 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर हैं। इसके बाद रुद्रप्रयाग का नंबर आता है जहां 63 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर हैं।
स्वास्थ्य पेशेवरों का असमान वितरण
इस बीच विशेषज्ञों ने बताया कि आबादी और चिकित्सा सुविधाएं कम होने के बावजूद नैनीताल और पौड़ी में स्वीकृत पदों की संख्या सबसे अधिक है। रिपोर्ट में नौटियाल के हवाले से बताया गया है, “हमें अपने मानव संसाधनों को समझदारी से आवंटित करना होगा। जिन जगहों पर स्वास्थ्य सुविधाओं पर ज्यादा बोझ है, वहां अधिक डाक्टरों की तैनाती करनी होगी।”
वह बताते हैं, ” जहां जरुरत कम है वहां डाक्टर्स के पदों की संख्या ज्यादा है। और जहां जरुरत ज्यादा है वहां पदों और डाक्टर्स की संख्या कम है। इस तरह का चिकित्सा कार्यबल का खराब वितरण कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ने की हमारी कोशिशों को प्रभावित करेगा।”
नौटियाल कहते हैं “मैं सरकारी अधिकारियों से स्थिति का जायजा लेने और राज्य में खाली पड़े विशेषज्ञ डॉक्टरों के पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने का आग्रह करता हूं”
बाल विशेषज्ञों की कमी
राज्य पर तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है, ऐसे में राज्य द्वारा उग्र महामारी को रोकने के लिए उठाए गए की कदमों की तैयारियों पर काम करने और निगरानी के लिए उत्तराखंड में केवल 17 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ व 41 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ हैं।
उत्तराखंड के जिलों में बाल विशेषज्ञ की नियुक्ति से पता चलता है कि टिहरी सबसे अधिक प्रभावित है। क्योंकि इस क्षेत्र में केवल सात प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ हैं। चमोली में 13 प्रतिशत, अल्मोड़ा में 22 प्रतिशत, पौड़ी में 23 प्रतिशत और पिथौड़गढ़ में 25 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ हैं।
राज्य की राजधानी देहरादून में सबसे ज्यादा 120 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ हैं। यहां 18 बाल विशेषज्ञ हैं जबकि पदों की संख्या 15 है।
इसके बाद उत्तरकाशी (57 फीसदी), नैनीताल (52 फीसदी), रुद्रप्रयाग चम्पावत (50 फीसदी), ऊधमसिंह नगर (38 फीसदी), बागेश्वर(40 फीसदी) और हरिद्वार (43 फीसदी) का नंबर आता है।
महिला स्वास्थ्य की अनदेखी
पहाड़ी राज्य जहां कई गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक ले जाने के लिए महंगे वाहनों या फिर चारपाई (लकड़ी की खाट) पर निर्भर होना पड़ता है, वहां स्त्री रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है। एसडीसी फाउंडेशन के अध्ययन से पता चला है कि उत्तराखंड में केवल 36 प्रतिशत स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं जबकि 64 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि राज्य में महिलाओं के स्वास्थ्य पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
लीड रिसर्च एंड कम्यूनिकेशन, एसडीसी फाउंडेशन में ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं, “पहाड़ी इलाकों में महिलाओं के लिए अस्पताल तक जाना पहले से ही एक बड़ी चुनौती है। महिला डॉक्टरों की अनुपलब्धता इस मसले को और बढ़ा देगी। यह संस्थागत प्रसव, प्रसव पूर्व देखभाल, बाल पोषण जैसे मापदंडों पर राज्य के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है।”
11 जिलों में एक भी मनोचिकित्सक नहीं है। जिस कारण हिमालय राज्य में, मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच एक बड़ी चुनौती बन गया है। कोविड-19 महामारी के चलते लोगों में बीमारी और रोजगार को लेकर असुरक्षा, डर और चिंता की भावना बनी हुई है। जिससे उनकी मानसिक परेशानियां बढ़ गई हैं।
प्रशासनिक कार्यों में लगे विशेषज्ञ
एसडीसी फाउंडेशन की रिसर्च स्टडी के सदस्य विदूष पांडेय ने बताया कि प्रदेश में कई विशेषज्ञ चिकित्सकों को प्रशासनिक कार्य में लगाया गया है। वह कहते हैं, “यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है।”
उन्होंने कहा “अभी हमे डॉक्टरों की सेवाओं की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। राज्य को प्रशासनिक कार्यों के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों को तैनात करने की अपनी नीति पर गौर करना चाहिए। डाक्टरों की सेवाओं का उपयोग राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र को अधिक मजबूत बनाने के लिए करना होगा और आम लोगों तक उनकी पहुंच बने इसके लिए भी प्रयास करने होंगे।”
नौटियाल कहते हैं “दुर्भाग्य से कई विशेषज्ञ डॉ प्रशासनिक भूमिका में लगे हुए हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी और स्वास्थ्य निदेशालय व कई स्वास्थ्य विभागों के निदेशकों को प्रशासनिक कार्यों में लगा रखा हैं।”
और सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि देहरादून में 15 स्वीकृत पदों के मुकाबले 18 बाल रोग विशेषज्ञ हैं।
चार साल बाद पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री
गैर लाभकारी संस्था ने बताया कि पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने पर राज्य को चार साल बाद पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री मिला है।
नौटियाल ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम मुख्यमंत्री के इस निर्णय (पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री बनाए जाने पर) का स्वागत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर उत्तराखंड में पिछले चार पांच वर्षों के दौरान पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री होते तो हम बेहतर तरीके से केविड-19 महामारी से निपट सकते थे।
“हम यह नहीं कह सकते कि स्थिति सत प्रतिशत बेहतर होती लेकिन एक प्रतिबद्ध और पूर्ण कालिक स्वास्थ्य मंत्री महामारी से लड़ने के लिए एक बेहतर योजना और प्रबंधन कर सकते थे।”
कुछ दिन पहले अनेक विधायकों (विधानसभा के सदस्य) ने राज्य के नवनिर्वाचित स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से मुलाकात कर उनके समक्ष उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की पर्याप्त तैनाती का मुद्दा उठाया था।