चुनाव में शिक्षकों की मौत का मुद्दा: शिक्षा मंत्री बोले 3 की मौत, संघ का दावा 1621 की गई जान, प्रियंका-अखिलेश का हमला

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना से शिक्षकों की मौत का आंकड़ा तूल पकड़ता जा रहा है। शिक्षा विभाग का कहना है कि सिर्फ तीन मौतें हुई हैं जबकि शिक्षक संघ ने 1621 का दावा करते हुए मुआवजे की मांग की है। शिक्षकों की मौत को लेकर सियासत भी शुरु हो हो गई। जानिए क्या है पूरा मामला
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“मेरी पूरी दुनिया ही उजड़ गई, हम अनाथ हो गए।” दो बच्चों की मां 37 वर्षीय पूजा शर्मा ने गांव कनेक्शन से फोन पर कहा। पूजा 42 वर्षीय अरुण कुमार शर्मा की पत्नी हैं। अरुण कुमार की जिनकी पिछले महीने 25 अप्रैल को कोरोना से मौत हो गई थी। वह उत्तर प्रदेश के कन्नौज के हसेरन गांव में एक सरकारी स्कूल में टीचर थे।

उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के संगठन ‘उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ’ के मुताबिक अरुण शर्मा की तरह चुनाव के दौरान कोरोना के संक्रमण के चलते 1621 शिक्षकों की मौत हुई है वहीं उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र दुबे ने आंकड़ों को भ्रामक और निराधार बताया है। एक प्रेस नोट में शिक्षामंत्री ने कहा कि “कुछ शिक्षक संगठन के पदाधिकारी पंचायत चुनाव की ड्यूटी के दौरान बेसिक शिक्षा के शिक्षकों की मौत का आंकड़ा 1621 बता रहे हैं, जो पूर्णता गलत, निराधार व भ्रामक है और इस पर विपक्ष के नेतागण ओछी राजनीति कर रहे हैं। केवल 3 की ही मौत हुई है। सरकार उनके परिवारों को 30 लाख की अनुग्रह राशि और सरकारी नौकरी एवं अन्य देय का भुगतान प्राथमिकता के आधार पर करेगी।”

शिक्षकों की मौत को लेकर सियासत भी शुरु हो गई है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेश की राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रदेश सरकार पर हमला बोला है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, ” उप्र की निष्ठुर भाजपा सरकार मुआवज़ा देने से बचने के लिए अब ये झूठ बोल रही है कि चुनावी ड्यूटी में केवल 3 शिक्षकों की मौत हुई है, जबकि शिक्षक संघ का दिया आंकड़ा 1000 से अधिक है। भाजपा सरकार ‘महा झूठ का विश्व रिकॉर्ड’ बना रही है। परिवारवालों का दुख, ये हृदयहीन भाजपाई क्या जानें।”

तो वहीं प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी ट्वीट कर कहा, ” पंचायत चुनाव में ड्यूटी करते हुए मारे गए 1621 शिक्षकों की उप्र शिक्षक संघ द्वारा जारी लिस्ट को संवेदनहीन यूपी सरकार झूठ कहकर मृत शिक्षकों की संख्या मात्र 3 बता रही है। शिक्षकों को जीते जी उचित सुरक्षा उपकरण और इलाज नहीं मिला और अब मृत्यु के बाद सरकार उनका सम्मान भी छीन रही है।”

इससे पहले उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने 16 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजे एक पत्र में उन शिक्षकों और श्रमिकों का विवरण दिया है, जिनकी पिछले डेढ़ महीने में कोरोना के कारण मौत हुई है।

शिक्षक संघ के अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा के अनुसार, महामारी की दूसरी लहर और चुनाव शुरू होने के बाद मौतों का सिलसिला शुरू हुआ। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरे संघ के 1600 सदस्यों की मौत हुई है। जब मैं उनके परिवारों से बात करता हूं तो वे रोते रहते हैं, उनके परिवार अनाथ हो गए हैं।”

दबी आवाज में पूजा शर्मा ने बताया, “19 अप्रैल की तड़के मेरे पति अपनी पोल ड्यूटी से लौटे और उन्हें तेज बुखार था। जब उनकी तबीयत बिगड़ी तो हम उन्हें 23 अप्रैल को कन्नौज से लगभग 90 किलोमीटर दूर कानपुर के एक निजी अस्पताल में ले गए। तब तक उनका ऑक्सीजन लेवल गिरकर 75 हो गया था।”

अरुण शर्मा को अभी भी तेज बुखार था और अगले दिन (24 अप्रैल) उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उनकी पत्नी की शिकायत है, “उन पर निजी अस्पताल से डिस्चार्ज लेने और एक कोविड अस्पताल में भर्ती कराने के लिए दबाव बनाया गया। हालांकि 25 अप्रैल को कार में ही उनकी मौत हो गई क्योंकि हमें उन्हें कोविड अस्पताल में बेड नहीं मिला। “

सरकार पर निशाना साधते हुए पूजा ने कहा, “सरकार की वजह से मेरे पति को चुनाव ड्यूटी पर जाना पड़ा और उनकी मौत हो गई। मैं अपने दो बच्चों की परवरिश कैसे करूंगी ? अब तक मुझे अपने पति की मौत का कोई मुआवजा नहीं मिला है।” उनके बच्चों की उम्र 13 और 10 साल है।

दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि या तो सच्चाई (पोल ड्यूटी के दौरान COVID के कारण शिक्षकों की मौत की जानकारी) सरकार तक नहीं पहुंचती है या वह इसे स्वीकार करने से हिचकिचाती है। उन्होंने कहा, “मृतकों में से 80 प्रतिशत से अधिक के पास RT-PCR रिपोर्ट है। 20 प्रतिशत से अधिक में कोविड के लक्षण थे। कई शिक्षकों की मौत हार्ट अटैक से हो चुकी है। इन मौतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। “

आलोचनाओं के घिरा रहा पंचायत चुनाव

कोरोना की दूसरी लहर के बीच भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए। 15 से 29 अप्रैल के बीच चार चरणों में ये चुनाव हुए थे और नतीजे 2 मई को घोषित किए गए थे।

इन पंचायत चुनाव को इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित लगभग सभी तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसमें मतदान के दौरान कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने पर यूपी राज्य चुनाव आयोग की खिंचाई भी शामिल है।

27 अप्रैल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य चुनाव आयोग को एक स्पष्टीकरण की मांग करते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया। क्योंकि कई आरोप थे कि न तो पुलिस और न ही चुनाव आयोग ने इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कुछ किया।

इससे पहले 25 अप्रैल को राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को पंचायत चुनाव कराने के लिए मजबूर करने के लिए दोषी ठहराया था। प्रेस को जारी बयान में राज्य सरकार ने कहा: “हाई कोर्ट के आदेश पर पंचायत चुनाव कराने के निर्णय को योगी सरकार का निर्णय बताकर इसका गलत प्रचार किया गया।”

वहीं 29 अप्रैल को मुख्यमंत्री और राज्य चुनाव आयोग को भेजे गए एक अन्य पत्र में एसोसिएशन ने बताया था कि अप्रैल में प्रशिक्षण और पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान कथित तौर पर कोरोना संक्रमण से राज्य में कम से कम 706 शिक्षकों / श्रमिकों की मौत हो गई थी। कई राज्य-स्तरीय संघों ने शिक्षकों और कार्यकर्ताओं की मौत के कारण 2 मई को होने वाली मतगणना का बहिष्कार करने की भी धमकी दी थी। 

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा तैयार की गई नई लिस्ट में अब मरने वालों की संख्या 1,621 है और संघ सरकार से मुआवजे की मांग कर रहा है।

ये भी पढ़े – शिक्षक संघ ने दी वोटों की गिनती के लिए होने वाले अभ्यास सत्र के बहिष्कार की चेतावनी

एसोसिएशन ने की एक-एक करोड़ मुआवजे की मांग

एसोसिएशन ने मृतकों के परिवारों को एक-एक करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है। इसके अलावा अन्य मांगों में मृतक को ‘कोरोना योद्धा’ घोषित करना, परिजनों को सरकारी नौकरी, मृतक के परिवारों को पेंशन, ठीक हुए शिक्षकों के चिकित्सा खर्च देना, कोविड कंट्रोल रूम में लगे टीचरों को वहां से मुक्त करना शामिल है।

एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा, “अभी तक हमारी मांगों के संबंध में राज्य सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर सरकार अभी भी जवाब नहीं देती है तो हम हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे।”

12 मई को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को प्रत्येक मृतक के परिवारों को कम से कम 1 करोड़ रुपये का मुआवजा देने के लिए कहा है। इससे पहले 7 मई को राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि सरकार ने कोविड-19 से मरने वाले मतदान अधिकारियों के परिवारों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देने का फैसला किया है।

एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा, “सरकार के नियमों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घर से चुनाव ड्यूटी के लिए निकलता है और ड्यूटी से वापस आता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तो केवल मृतक को ही मुआवजा मिलना चाहिए, लेकिन अगर कोई वायरस के संपर्क में आता है उसमें लक्षण दिखते हैं और 10 से 15 दिनों के बाद उसकी मौत हो जाती है तो कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। क्या अधिकारी ऐसी उम्मीत करते हैं कि व्यक्ति तुरंत मर जाएगा? “

अंग्रेजी में पढ़ें- Only 3 teachers died on panchayat poll duty, says Basic Education Dept, UP. Teachers’ assocn to step up protest

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