लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। “कोविड की महामारी में हम लोग ऐसी गर्मी में पीईपी किट पहनकर रोजाना 10-20 लोगों को अस्पताल ले जाते थे, मरीज के अस्पताल में भर्ती नहीं होने पर वहीं भूखे-प्यासे खड़े रहते थे, लोगों को ऑक्सीजन देते थे, महीनों घर नहीं गए। कई बार बेहोश भी हुए। आज हमारे साथ अन्याय हो रहा, कंपनी हमारा शोषण कर रही लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। कोरोना योद्धा पुरस्कार तो दूर नौकरी जा रही है। ” एंबुलेंस कर्मचारी धर्मवीर सिंह अपना दर्द बताते हैं।
धर्मवीर यादव उन हजारों ठेका एंबुलेंस कर्मचारियों में शामिल हैं, जो 26 जुलाई से प्रदेश में हड़ताल पर हैं। लखनऊ में इमरजेंसी मेडिकल टेक्निशियन के पद पर तैनात धर्मवीर सिंह अपने साथियों के साथ लखनऊ के ईको गॉर्डन में पिछले 4 दिनों से आंदोलनरत हैं।
“कोरोना मरीज को घर वाले तक हाथ नहीं लगाते थे, डॉक्टर तक छूते नहीं थे, हम लोग ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचाते थे, ग्लब्स मास्क मिले, नहीं मिले तब भी काम किए। कितने मरीज, विधायक, नेता पुलिस सबको पहुंचाया लेकिन अब हमारे साथ कोई नहीं।” धर्मवीर के बगल में बैठे एंबुलेंस ड्राइवर सुंदर लाल कहते हैं।
उत्तर प्रदेश में तीन तरह की एंबुलेंस सेवा संचालित हैं, जिनमें 108, 102 और एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस (ALS)शामिल हैं। एंबुलेंस कर्मचारियों के मुताबिक प्रदेश में 19000 से ज्यादा कर्मचारी हैं जो ठेका कंपनी (सर्विस प्रोवाइडर) के जरिए काम करते हैं। कर्मचारियों का आरोप इस महंगाई में सैलरी बढ़ने के बजाए नई कंपनी तकनीकी कर्मचारी को 12734 की जगह 10700 रुपए देना चाहती है। एंबुलेंस ड्राइवर को करीब 12200 रुपए सैलरी मिलती है।
अभी तक तीनों तरह की एंबुलेंस का संचालन जीवीके EMRI (Emergency Management and Research Institute) कंपनी द्वारा था, अब एएलएस का टेंडर (संचालन) जिगित्सा हेल्थ केयर को मिला है।
कर्मचारियों का आरोप है कि यूपी में एंबुलेंस संचालन (एलएस) का ठेका लेने वाली नई कंपनी पुराने कर्मचारियों को नौकरी से हटा रही है। जो नौकरी करना चाहते हैं, उन्हें पहले की अपेक्षा कम सैलरी दे रही है और काम के घंटे भी बढ़ा रही है। इसके साथ ही ट्रेनिंग के नाम पर 20 हजार रुपए का ड्राफ्ट मांग रही है,जबकि वो 8-9 साल से यही काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में #Ambulance हड़ताल के चौथे दिन प्रदेश के कई हजार एंबुलेंस कर्मचारी #Lucknow पहुंचे हुए हैं। इन कर्मचारियों का कहना है #COVID में इन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद की,लेकिन जब इनकी नौकरी पर संकट है कोई सुनने वाला नहीं।@AShukkla की रिपोर्ट pic.twitter.com/AYJJsgSiOe
— GaonConnection (@GaonConnection) July 29, 2021
एंबुलेंस पायलट और जौनपुर में कर्मचारियों के संगठन के महामंत्री राम भजन यादव एंबुलेंस संचालन और घालमेल की कहानी समझाते हैं। “अभी तक सभी एंबुलेंस जीवीके EMRI ही चला रही थी लेकिन कुछ महीने पहले एएलएस का टेंडर खत्म हो गया। जिसका ठेका जिगित्सा हेल्थ केयर को मिला। उसने न हम लोगों को कुछ बताया ना हटाया बल्कि नई भर्तियां शुरू कर दीं। जिसका हम लोगों ने विरोध किया।”
एंबुलेंस संघ के सीतापुर अध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह बताते हैं,”नई कंपनी आने के बाद जीवीके ने कुछ कर्मारियों को टर्मिनेट किया था। जब हमारे संगठन की जिगित्सा से बात हुई तो उन्होंने हम पुराने लोगों को रखेंगे लेकिन प्रशिक्षण लेना होगा, जिसके लिए 20 हजार रुपए देने थे। हमें ट्रेनिंग की जरुरत नहीं है, हम 8-9 साल से जनमानस की सेवा कर रहे और हमारी ट्रेनिंग हैदराबाद में पहले ही हो चुकी है। तो हम चाहते वो एएलस कर्मचारी समायोजित हो लेकिन कंपनी तैयार नहीं थी।”
26 जुलाई से शुरू हुए इस आंदोलन (up ambulance strike) चार दिन में कई घटनाक्रम हुए हैं। 2 दिन तक आंदोलनकारियों ने एंबुलेंस का चक्का जामकर समेत जिलों में प्रदर्शन किया, तीसरे और चौथे दिन में प्रशासन सख्ती कर लगभग एंबुलेंस वापस ले ली हैं। एंबुलेंस कर्मचारियों के संगठन के प्रदेश स्तर के 11 पदाधिकारियों पर महामारी एक्ट समेत कई धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई है। 570 से ज्यादा कर्मचारियों पर एस्मा लगाया जा चुका है। इस दौरान कई जिलों में एंबुलेंस न मिलने से मरीज परेशान हुए हैं। हालांकि हड़ताली कर्मचारियों का कहना है उन्होंने आपात सेवाएं कभी नहीं बंद की जनमानस के लिए कुछ एंबुलेंस जारी रही थीं।
जीवनदायिनी 108, 102 और एएलएस एंबुलेंस संघ उत्तर प्रदेश के मीडिया प्रभारी शरद यादव कहते हैं, “हमारी 2 छोटी सी मुख्य मांगे थीं, एएलएस कर्मचारी (संख्या करीब 1200) को नई कंपनी में समायोजित किया जाए और हम लोगों को श्रम विभाग के नियमों के अनुसार सैलरी दी जाए लेकिन ये सब न होकर 570 कर्मचारियों पर एस्मा लगाया दिया गया है। हमारी यूनियन के 11 पदाधिकारियों पर कोरोना महामारी एक्ट, एस्मा सब लगा दिया गया है। हमारे कर्मचारियों को जिलों में थाने में बैठाकर आतंकवादी जैसा व्यवहार किया जा रहा है। हम लोगों पर भी एस्मा लग चुका है।”
वो आगे कहते हैं, “हम मुख्यमंत्री जी से ये कहना चाहते हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए। ये सारे 20 हजार कर्मचारी कोरोना योद्धा हैं, 12000 के मजदूर हैं। कोई आतंकवादी नहीं हैं। अभी तक हमारा कोई समझौता नहीं हुआ। पहले एक दौर की वार्ता हुई थी जो विफल रही थी, हमारी लड़ाई दोनों कंपनियों से है। सरकार हमें न्याय दिलाए।”
मामला सिर्फ एएलएस का था फिर बाकी लोग आंदोलन में कैसे शामिल हुए? इस सवाल के जवाब में राम भजन कहते हैं, “हम सब एंबुलेंस कर्मचारी हैं तो एक ही। आज 1200 की नौकरी संकट में है। नवंबर में बाकी एंबुलेंस (102-108) का टेंडर खत्म हो रहा है तो बाकी कर्मचारियों का भी यही हाल होगा। वैसे ही हम लोग 23 सितंबर 2019 को आंदोलन कर चुके हैं। जिसमें समान काम समान वेतन, वेतन बढ़ाने की मांग,एनआरएचएम के तहत काम, आदि शामिल था।”
राम भजन के मुताबिक उस दिन के धरने के बाद करीब 500 रुपए की सैलरी बढ़ी थी और तय हुआ था कि महंगाई के हिसाब से करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हर साल होगी लेकिन हुई नहीं।
लखनऊ के ईको पॉर्क में आंदोलनरत कर्मचारियों के बीच दोपहर कर 4 बजे प्रदेश अध्यक्ष हनुमान पांडे ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “हमारी लड़ाई जारी रहेगी। हम यहां से जीतकर जाएंगे, भले ही कितनी एफआईआर दर्ज हों या कितने लोग दगा दे जाएं।”
एंबुलेंस कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि प्रशासन और कंपनी ने मिलकर न सिर्फ बहुत सारे कर्मचारियों पर दबाव डाला है बल्कि नौकरी से निकालने की धमकी देकर काम पर लगाया है। हनुमान पांडेय ने लोगों से कहा, “कुछ हमारे ही बीच के लोग दगाबाजी कर काम कर रहे हैं लेकिन हम लोग हार नहीं मानेंगे।”
कन्नौज समेत कई जिलों में जिला प्रशासन ने बुधवार को कहा था कि बहुत सारे पुराने कर्मचारी वापस काम पर लौट आए हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोविड समीक्षा बैठक में कहा था मरीजों को किसी तरह की तकलीफ नहीं होनी चाहिए, लापरवाही होने, मरीजों को दिक्कत होने पर कंपनी के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
जिसके बाद जिला स्तर पर न सिर्फ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन बल्कि स्वास्थ्य विभाग के दूसरे कर्मचारियों के जरिए भी एंबुलेंस का संचालन कराया जा रहा है। वहीं कई जगह नई लोगों को भी काम पर रखा गया है।
लखनऊ आंदोलनरत जीवनदायिनी 108,102 और एएलएस एंबुलेंस संघ के सीतापुर अध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह कहते हैं, “कई जगह पर टेंपो और रिक्शा चालकों से एंबुलेंस चलवाई जा रही हैं सिर्फ इसलिए कि लोगों और सरकार को बताया जा सके कि देखो एंबुलेंस सेवाएं जारी हैं, लेकिन बिना ट्रेंड लोगों से एंबुलेंस चलवाना मरीजों से खिलवाड़ है।”
राम भजन कर्मचारियों की एक और प्रमुख मांग का ध्यान दिलाते हैं, “सरकार ने कहा कि किसी कर्मचारी की कोरोना से मौत होगी तो 50 लाख रुपए मिलेंगे। कोरोना की दोनों लहरों में हमारे 9 लोग की कोविड से मौत हुई। लेकिन किसी को कुछ नहीं मिला, न सरकार ने कुछ दिया कंपनी से कुछ दिलवाया। अब बताइए जब कोरोना में सरकारी कर्मचारी हाथ खड़े कर दिए थे तब हम लोग थे, जो मर गए उनके परिवार तो सड़क पर आ गए।”
इको गार्डन (“मान्यवर श्री कांशीराम जी ग्रीन इको गार्डन) में आंदोलनकारियों के नारेबाजी के बीच एक शख्स ने पीछे से आवाज दी, “मीडिया वाले भइया जो रिकॉर्ड किए हैं पूरा बिना काटे योगी जी-मोदी जी तक तक पहुंचा दीजिएगा, जब वो 2022 में आएंगे और कहेंगे, एंबुलेंस वाले भाइयों-बहनों… तो हम भी बात करेंगे।”