गांवों के लगभग हर घर में कोई न कोई बीमार, लक्षण सारे कोरोना जैसे, लेकिन न कोई जाँच करवा रहा न सरकारों को चिंता

शहरों में कोरोना की स्थिति क्या है, यह तो सबको पता है लेकिन ग्रामीण भारत की स्थिति क्या है? गांव के लगभग हर घर में कोई न कोई बुखार या टायफाइड से पीड़ित है, लक्षण सबमें कोरोना संक्रमण जैसे ही हैं, लेकिन सरकारें इससे बेखबर हैं। पढ़िए रिपोर्ट
COVID19

“हर घर में लोग बीमार हैं। मेरे गांव में 10 से ज्यादा मौते हो चुकी हैं। ये मौतें क्यों हो रही हैं, यह किसी को नहीं पता। पहले गांव से किसी बुजुर्ग या बीमार के मरने की खबर आती थी, लेकिन 30, 40 साल के युवाओं की मौत हो जा रही है। इसके बाद भी गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं है।”

ये बोल हैं मध्य प्रदेश के जिला आगर मालवा के ब्लॉक नलखेड़ा के गांव नरवाल में रहने वाले 22 वर्षीय अक्षर शर्मा के। अक्षर अपने परिवार को लेकर चिंतित हैं। वे कहते हैं कि अभी तो ऐसा माहौल है कि कहीं दूसरी जगह जा भी नहीं सकता।

वे सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहते हैं, “इस महामारी के दौर में सरकार को और ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए तो वह और लापरवाह हो गयी है। हमारी सरकार इंदौर, भोपाल की बात तो कर रही है लेकिन उसे गांवों से कोई मतलब नहीं है।”

जो हाल अक्षर के गांव का है, कुछ वैसा ही हाल देश के ज्यादातर गांवों का है। गांव में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसमें कोई न कोई बीमार हो। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार या फिर झारखण्ड, हमने जिस भी गांव में बात की, सबने अपने गांव का हाल यही बताया।

लोगों ने यह भी बताया कि गांवों में लोगों की अचानक मौत रही है। सब में लक्षण कोरोना संक्रमण जैसे ही ही हैं, लेकिन न कोई जाँच करवा रहा है और न ही स्थानीय प्रशासन इस पर कुछ कर रहा है। हर घर में कोई न कोई सर्दी, खांसी, बुखार और टायफाइड से पीड़ित है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बसे बुंदेलखंड के जिला हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) के गांव भरुवा सुमेरपुर में भी यही हाल है। दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए राहत की आस लिए 15 अप्रैल को अपने गांव पहुंचे प्रेम कुमार अब परेशान हैं।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “गांव में तो स्थिति और भयावह है। शहर में कम से कम इलाज तो संभव था, यहां न इलाज है और न ही कोई पूछने वाला है। मेरे आसपास हर घर में कोई न कोई बीमार है। सबको बुखार, खांसी है। कई लोगों को टायफाइड भी है।”

“मेरे आसपास के गांवों में कई लोगों की आकस्मिक मौत हो चुकी है, लेकिन फिर भी कोई जाँच नहीं करवा रहा। मैं खुद जाँच कराने कोविड सेंटर गया था लेकिन वहां की भीड़ देखकर वापस आ गया। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा। जो बीमार हैं वे उनकी एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट निगेटव आ रही है और जो स्वस्थ्य हैं उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है। आरटीपीसीआर की रिपोर्ट चार-पांच दिन में आ रही है। इसीलिए लोगों को इन जांचों पर विश्वास ही नहीं है।’

भारत में कोरोना की दूसरी लहर भयावह हो गयी है। संक्रमण के नए मामले और मौतों के आंकड़े दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। देश में शनिवार एक मई को आई 24 की रिपोर्ट के अनुसार पहली बार रिकॉर्ड चार लाख से अधिक नए कोरोना मरीज मिले हैं और 3523 की जान चली गई है। भारत से पहले सिर्फ अमेरिका में ही एक दिन में चार लाख से अधिक कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए थे।

उत्तर प्रदेश एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कोविड टेस्ट कराने पहुंचे लोग। 

लेकिन भारत के गांवों में क्या स्थिति है? वहां क्या चल रहा है, यह ख़बरों से दूर है। चाहे केंद्र सरकार हो प्रदेश की, ग्रामीण भारत की स्थिति को लेकर अभी तक किसी ने बात नहीं की है। 

उत्तर प्रदेश के जिला अंबडेकर नगर के तहसील अकबरपुर के गांव शहजादपुर में रहने वाले 21 वर्षीय मत्स्येन्द्र यादव भी गांव की मौजूदा स्थिति को लेकर परेशान हैं।

वे कहते हैं कि हर घर में कोई न कोई बीमार है, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं है। “जब एक, दो आदमी बीमार हो तो समझ में आता है, लेकिन जब गांवों में हर घर में कोई न कोई बीमार है तो सरकार और जिला प्रशासन को इसके बारे में सोचना चाहिए। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।”

उत्तर प्रदेश के जिला भदोही के गांव बनकट सर्रोई के 85 वर्षीय बुजुर्ग विनय धर जो खुद लगभग एक हफ्ते बीमार रहे और अब स्वस्थ्य हैं, वे भी हैरानी व्यक्त करते हुए कहते हैं, “मेरी जानकारी में ऐसा कभी नहीं हुआ कि पूरे गांव में सब एक साथ एक जैसी बीमारी से ही पीड़ित हो जाएं। हर घर में सबको बुखार है। सबको खांसी है, ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं।”

सबको बुखार है तो सरकार क्या कर रही है? उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में गांव कनेक्शन के कम्युनिटी जर्नलिस्ट ने बताया कि उनके जिले में भी हर घर में कोई न कोई बीमार है। इस विषय पर उन्होंने बाराबंकी के ब्लॉक सूरतगंज के चीबा प्राइमरी हेल्थ सेंटर में पदस्थ डॉ संतोष सिंह से बात की, वे कहते हैं, “स्वास्थ्यकर्मी हर उस व्यक्ति पर नजर रखे हुए हैं जिनमें कोविड के लक्षण दिख रहे हैं। हम उन्हें होम क्वारंटीन सलाह देकर दवाएं भी देते हैं।” वे आगे यह भी कहते हैं कि मौसमी बुखार है। गांवों में कोरोना का संक्रमण शहरों जैसा नहीं है। 

राजस्थान के जिला नागौर के ब्लॉक सुजानगढ़ के गांव यशवंत नगर में रहने वाले इरशाद खान (21) छात्र हैं और उनकी टीम महामारी के इस दौर में गांवों में जरूरतमंदों की मदद कर रहे है। इनकी टीम दिनभर कई गांवों में जाती है। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “हमारी टीम रोज कम से कम 15 से 20 गांवों में जाती है। आप विश्वास नहीं करेंगे कि शायद ही कोई ऐसा घर हो जहाँ लोग बीमार ना हो। कई लोगों को हमने तो ऑक्सीजन भी पहुँचाया जबकि उन्हें कोरोना है या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है।”

“गांवों में जाँच की स्थिति बहुत ख़राब है। लोग बीमार हैं फिर भी जाँच कराने इसलिए नहीं जा रहे क्योंकि जाँच केंद्रों पर ठीक व्यवस्था नहीं होती। एंटीजन टेस्ट पर तो किसी को विश्वास ही नहीं है। आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट जल्दी आती नहीं। टेस्ट न कराने का एक कारण यह भी है कि लोगों को लगता है कि गांव में सब कोरोना के बारे में जान जायेंगे तो बदनामी होगी।”

गुजरात के जिला कच्छ के तालुका मुंद्रा के गांव देशलपर में रहने वाले महेश माहेश्वरी (27) भी यही कहते हैं। “गांव में लोगों के डर है कि कहीं कोरोना हुआ और यह सब लोग जान गए तो समाज में बदनामी होगी। जबकि सच तो यह है कि गांवों के हर घर में कोई न कोई बीमार है। कई लोगों की आकस्मिक मौत भी हो चुकी है। लेकिन कोई टेस्ट करा ही नहीं रहा है। और सबसे बड़ी बात तो सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है। गांवों में स्थिति बहुत ख़राब है।”

जानकारों ने कहा, गांव को बचाना होगा

ऐसे में जब हम घर में कोई न कोई बीमार है तो होना क्या चाहिए? इस बारे में हमने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आईएमएस के न्यूरोलॉजिस्ट और सरसुंदर लाल चिकित्सालय के पूर्व मेडिकल सुपरिंटेंडेट डॉ विजय नाथ मिश्र से बात की।

वे कहते हैं, “यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए कोई भी देश ऑक्सीजन उपलब्ध करा सके। हमारी मेडिकल व्यवस्थाएं पहले से ही ठीक नहीं रही हैं। और अभी गांवों की स्थिति चिंताजनक है। गांवों में हर घर में लोग बीमार हैं और उनमे लक्षण भी कोरोना के हैं। ऐसे में लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह गांव-गांव डुगडुगी पिटवाकर लोगों को जागरूक करे। लोगों को बताएं कि अगर आप में यह लक्षण है तो तुरंत जाँच कराइये। विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम हो जाँच रिपोर्ट आने से पहले से ही लक्षण के आधार में इलाज शुरू कर दें।”

“गांवों में लोगों का प्राथमिक इलाज उनके घरों में ही शुरू करना पड़ेगा और बीमारी के पहले सप्ताह ही शुरू करना पड़ेगा। ताकि को गंभीर अवस्था में पहुँचने से पहले से ही ख़त्म किया जा सके क्योंकि सबके लिए बेड उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। सरकार को गांवों की स्थिति के बारे में बहुत जल्द सोचना होगा। ग्रामीण भारत की स्थिति सच में ठीक नहीं है और इस ओर कोई ध्यान देने वाला भी नहीं है। अब इसे प्राथमिकता देने की जरूरत है।”

डॉ विजय नाथ मिश्र और प्रख्यात कलाकार श्री अष्टभुजा मिश्र ने लोगों को जागरूक करने लिए यह वीडियो भी बनाया है-

जन स्वास्थ्य अभियान मध्य प्रदेश से जुड़े और स्वास्थ्य अधिकार पर लंबे समय से काम कर रहे अमूल्य निधि इस समय अपने गृह नगर बिहार के जिला हाजीपुर के ब्लॉक तरिया के गांव माधोपुर में हैं। गांव की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए वे कहते हैं, “गांवों में यहां लगातार मौतें हो रही हैं। अभी कल ही बगल के गांव में तीन मौतें हो गयी। किसी को फर्क नहीं पड़ रहा। सरकार बस प्रदेश की राजधानी और उसके आसपास के कुछ जिलों पर ध्यान दे रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बहुत ख़राब है। एंटीजन टेस्ट की जाँच सही नहीं आ रही और आरटीपीसीआर की व्यवस्था नहीं है।”

अपनी बात जारी रखते हुए अमूल्य कहते हैं कि यह मौसम सामान्य बुखार और टायफाइड का भी है और ये लक्षण कोरोना के भी हैं। यही वजह है ग्रामीण कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं। जिसको जो समझ आ रहा वही दवा खा रहा।

ऐसी स्थिति में होना क्या चाहिए, इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, “सरकार को तुरंत एमबीबीएस और नर्सिंग के छात्रों को पीपीई किट के साथ गांवों में भेजना चाहिए। पिछले साल हमने पहचान के लिए गांव-गांव सर्वे किया था, लेकिन इस साल ऐसी कोई व्यवस्था की ही नहीं। इसे तत्काल तुरंत शुरू करना चाहिए ताकि रोग और मरीजों की पहचान कर उन्हें सही इलाज मिल सके।”

गांवों में रोगियों की पहचान करना बहुत जरूरी है, नहीं तो अभी की जो स्थिति वह बहुत भयावह रूप लेगी। सरकार को तुरंत मास्टर प्लान बनाकर गांवों के लिए टीम बनानी होगी। अभी भी वक्त है, गांवों को तबाही से बचाया जा सकता है। अमूल्य आगे कहते हैं।

नोट- उत्तर प्रदेश के गांवों में फैली बीमारी को लेकर अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद से बात करने की कोशिश, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं, जवाब मिलते ही खबर अपडेट होगी। 

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