महोबा, उत्तर प्रदेश। सुबह छह बजे, लक्ष्मी देवी अपने खेत में आती हैं और सिंचाई के पाइपों को इकट्ठा कर उन्हें अपने ज्वार के खेत में लगा देती हैं। एक बटन दबाते ही उनके खेतों में पानी आने लगता है।
बुंदेलखंड को बार-बार पड़ने वाले सूखे और गाँवों को छोड़कर जाते किसानों के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन अब माहौल कुछ बदला है। इस साल फरवरी के बाद से यहाँ के तिंदौली गाँव में खेतों की सिंचाई के लिए सौर पंप लगाए गए हैं, तब से किसानों ने राहत की सांस ली है।
सूरज की रोशनी से चलने वाले ये पंपसेट ज़मीन से पानी खींचते हैं और फ़सल को भरपूर पानी पहुंचा रहे हैं। किसान अब बारिश पर निर्भर नहीं है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से प्रभावित हो रही है।
लक्ष्मी देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे बस एक बटन दबाना है। मोटर चालू हो जाती है और पाइप से पानी आने लगता है।” वो चारपाई पर बैठी अपनी फ़सल में पानी जाते हुए देख रही थी।
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र में एक सौर क्रांति चल रही है। लक्ष्मी देवी का गाँव उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले में पड़ता है। सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप बारिश की कमी वाले गाँवों में तेज़ी से फैल रहे हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त फ़सल उगाने और समय पर अपने खेतों की सिंचाई करने में मदद मिल रही है।
महोबा में कृषि विभाग के नोडल प्रमुख उप निदेशक कृषि अभय सिंह यादव गाँव कनेक्शन को बताते हैं कि महोबा ज़िले में सोलर पंपों का काफी स्कोप है। उन्होंने कहा, “मैं इस क्षेत्र का दौरा करते हुए किसानों से मिला हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर सौर (पंप) नहीं होते, तो वे अपनी ज़मीन बेच देते।”
अधिकारी का कहना गलत नहीं है। कुछ समय पहले तक इंद्रेश महोबा के चांदपुरा गाँव में अपनी पाँच बीघा (0.7 हेक्टेयर) ज़मीन बेचने से बस एक कदम दूर थे।
इंद्रेश ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह ज़मीन लंबे समय से खाली पड़ी थी। मैंने दूसरे किसान से पानी उधार लिया और उसके पंप में डीज़ल भी भरवाया। मुझे अपनी उपज का आधा हिस्सा बाँटना पड़ा, जिसके बाद मेरे पास कुछ भी नहीं बचा था।” उन्होंने कहा, “मैंने साल भर में लगभग 25,000 रुपये कमाए थे। क्या वह पूरे परिवार के खर्च के लिए काफी रहेंगे।”
किसान ने कहा कि वह 20 क्विंटल गेहूँ उगाने के लिए सिंचाई पर लगभग 10,000 रुपये खर्च करते थे, उसके बावजूद उनकी फसल सूखी रह जाती थी और नतीजा कम उत्पादन के रूप में सामने आता था।
लेकिन इंद्रेश के खेतों में लगे तीन हार्सपावर के सोलर पंप ने काफी कुछ बदल दिया है। इसके लिए उन्हें 2019 में सौर सिंचाई पंप पर 68,400 रुपये का निवेश करना पड़ा था, जिसे आमतौर पर एसआईपी के रूप में जाना जाता है। अब वह न सिर्फ अपने खेत की सिंचाई करने में सक्षम हैं, बल्कि अन्य किसानों की 16 बीघा भूमि को 600 रुपये प्रति की दर से सिंचाई का पानी देकर कमाई भी कर रहे हैं। किसान ने कहा कि वह सालाना मुनाफा के एक लाख रुपये को पार कर जाने की उम्मीद कर रहे हैं।
बुंदेलखंड में सोलर क्रांति
मार्च 2019 में, केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में डीज़ल को खत्म करने, किसानों को पानी और ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने, उनकी आय बढ़ाने और पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान) की शुरुआत की।
केंद्रीय योजना के तहत, लाभार्थी को 60 प्रतिशत सब्सिडी (केंद्र और राज्य सरकार का 30-30 प्रतिशत का योगदान) मिलती है। बाकी बचे 40 प्रतिशत हिस्से के अलावा, किसान को बोरवेल की लागत भी वहन करनी होती है। (तालिका देखें: एसआईपी लागत)।
उत्तर प्रदेश में सरकार ने बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सात ज़िलों – चित्रकूट, बांदा, झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा और ललितपुर पर ध्यान केंद्रित किया। ये ज़िले पानी की भारी कमी के लिए बदनाम हैं, जिसके कारण अक्सर यहां रहने वाले लोगों को आजीविका की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
2019 में पीएम-कुसुम योजना के लॉन्च के बाद से, 30 अप्रैल, 2023 तक भारत में कुल 219,674 सौर सिंचाई पंप स्थापित किए गए हैं। राजस्थान में सबसे अधिक एसआईपी (59,161) हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (51,905) का नंबर आता हैं (मानचित्र देखें: पीएम-कुसुम के तहत स्थापित राज्यवार स्टैंडअलोन सोलर पंप)।
उत्तर प्रदेश में 20,683 एसआईपी लगाए गए हैं, जिनमें से 5.589 अकेले बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले राज्य के सात जिलों में हैं। महोबा जिले में 1,304 सौर सिंचाई पंप हैं (बार ग्राफ देखें: उत्तर प्रदेश में सौर सिंचाई पंप)।
तीसरी फ़सल के लिए मेहनत
फिलहाल मई की महीना चल रहा है। सर्दियों की फसलों की कटाई का समय खत्म हो गया है और ज्यादातर खेत सूखे और सुनहरी रंग की चादर ओढ़े पड़े हैं। उन्हें अगले फसल चक्र के लिए लिए परती छोड़ दिया गया है। लेकिन चाँदपुरा गाँव के इंद्रेश राजपूत जैसे कुछ किसान अपनी जमीन पर सब्जियां उगा रहे हैं। उनके खेतों से हरे पत्ते के बीच से लाल टमाटर निकल कर आ रहे हैं।
सौर सिंचाई पंप किसानों को खरीफ सीजन के बाद फसल उगाने में मदद कर रहे हैं, जिससे पलायन रुक रहा है। इन पंपों का महिला किसानों के जीवन पर भी काफी सकारात्मक असर पड़ा है।
तिंदौली गाँव की लक्ष्मी देवी महोबा के कबरई प्रखंड में अपनी दो बीघे (0.28 हेक्टेयर) जमीन में खेती का ज्यादातर काम संभालती हैं। वह अपनी जमीन पर बीज बोने से लेकर निराई-गुड़ाई और जुताई खुद ही करती हैं, लेकिन खेतों की सिंचाई के लिए अपने पति या देवर पर निर्भर रहना पड़ता था।
उन्होंने बताया, “मेरे लिए डीज़ल पंप चलाना मुश्किल था। यह काम मेरा देवर या पति किया करते थे। और अगर डीज़ल खत्म हो जाए तो मुझे उसके खरीदने के लिए भी इंतजार करना पड़ता था, क्योंकि ये काम भी उन दोनों में एक का होता था।” लेकिन अब और नहीं। अब उन्हें बस एक बटन दबाना होता है और उनकी फसल की सिंचाई होने लगती है।
स्वामी प्रसाद राजपूत ने पाँच हार्सपावर के सोलर मोटर पंप को इस साल मार्च में स्थापित किया था। आज चाँदपुरा गाँव में उनकी 15 बीघा जमीन पर गेंदा और गुलाब के फूल लहलहा रहे हैं।
72 वर्षीय स्वामी ने कहा, “मैं गर्मियों के महीनों में डीज़ल पर 50,000 रुपये खर्च किया करता था। सौर पंप ने बोझ को कम कर दिया है, ”उन्होंने अपने खेत में सौर पंप लगाने के लिए पैसा उधार लिया था।
इसी तरह, परमेश्वरी दयाल की जिंदगी भी पहले आसान नहीं थी। उनके खेतों से पास के तालाब की दूरी 600 मीटर थी और उन्हें वहां से अपने खेत तक पाइप के जरिए पानी लाने में काफी समय लग जाया करता था। चाँदपुरा के 35 वर्षीय किसान ने इस साल फरवरी में सोलर पंप का ओर रुख किया।
पहले आओ पहले पाओ का आधार
महोबा जिला मुख्यालय से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जैतपुर ब्लॉक के लमोरा गाँव में 88 स्वीकृत सौर सिंचाई पंप हैं, जो ज़िले में सबसे ज्यादा हैं।
इसका एक कारण गाँव में जन सुविधा केंद्र को संभालने वाले स्वामी प्रसाद की सक्रियता भी है। पीएम-कुसुम के माध्यम से सौर सिंचाई पंप का लाभ उठाने के लिए डॉक्यूमेंटेशन का काम काफी ज्यादा होता है। लेकिन सरकार के पहले आओ, पहले पाओ मॉडल के तहत अधिकतम संख्या में टोकन उत्पन्न करने में स्वामी हमेशा तत्पर रहते हैं।
यह ट्रेन की सीट के लिए तत्काल आरक्षण के समान है, जहां एक निश्चित संख्या में टोकन के साथ एक एप्लिकेशन विंडो खुलती है और फिर उसके बाद उन्हें अलॉट किया जाता है।
लमोरा गाँव में 10 बीघा जमीन के मालिक 32 वर्षीय किसान खूबचंद रायकुँवर के पास पहले से ही तीन हॉर्स पावर का सौर ऊर्जा संचालित पंप है। वह एक और पांच-हार्स पावर के पंप के लिए आवेदन करना चाहते हैं।
खूबचंद ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने पहले ही पैसे बचा लिए हैं। मैं बस स्लॉट खुलने का इंतजार कर रहा हूँ।” उन्होंने कहा कि पंप लगवाने से उन्हें एक साल में 25,000 रुपये तक की बचत हो रही है, अन्यथा इतना पैसा उन्हें डीज़ल पर खर्च करना पड़ता था।
महोबा के कई किसान अपने खेत में एसआईपी लगाने का इंतजार कर रहे हैं। धीरज यादव भी अपनी 20 बीघा ज़मीन की सिंचाई में मदद के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों की तरफ रूख करने का मन बना चुके हैं।
धीरज ने गाँव कनेक्शन को बताया, “बिजली आपूर्ति अनियमित है। मेरे 68 साल के पिता और मुझे बारी-बारी से रात भर जमीन की सिंचाई करनी पड़ती है। सोलर हमारे लिए इसका समाधान कर सकता है।”
भूजल को लेकर चिंता
अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान में जल-ऊर्जा-खाद्य नीति के एक वरिष्ठ शोधकर्ता शिल्प वर्मा ने बताया, “सौर पंपों की प्रकृति ऐसी है कि किसानों को पहले से भारी निवेश करना पड़ता है और फिर चलाने की कोई लागत नहीं होती है। जब किसानों के पास मुफ्त बिजली होती है, तो वो बेतहाशा पानी चलाते हैं।”
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर बड़ी संख्या में सौर पंप स्थापित किए जाते हैं तो इससे भूजल दोहन हो सकता है। लेकिन अभी तक इसके बहुत कम सबूत हैं क्योंकि हम अभी भी एक प्रारंभिक अवस्था में हैं।”
कुसुम योजना का लाभ उठाने के लिए भूजल स्रोत का होना ज़रूरी है। 2022 में, केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने महोबा जिले के कबरई ब्लॉक को भूमिगत जल भंडार के मामले में ‘सेमी-क्रिटिकल’ के रूप में वर्गीकृत किया था।
एक क्षेत्र को उसके भूजल भंडार के अनुसार ‘सेमी-क्रिटिकल’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अगर वार्षिक रूप से निकाला गया भूजल 70 प्रतिशत से अधिक और इसके कुल निकालने योग्य भूजल का 90 प्रतिशत सालाना से कम है, तो ऐसे क्षेत्रों को ‘सेमी-क्रिटिकल’ कैटेगरी में रखा जाता है।
2022 में दर्ज किया गया था कि सालाना निकालने योग्य भूजल के 0.28 बिलियन क्यूबिक मीटर में से, महोबा में 0.26 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) का निष्कर्षण देखा जा रहा है। इसमें से 0.25 बीसीएम को कृषि संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए निकाला जा रहा है। यह कुल उपलब्ध भूजल में से 91.91 प्रतिशत भूजल निकासी है।
एसआईपी के लिए आवेदन करने के लिए जिला स्तर के भूजल विभाग से भूजल की उपस्थिति को प्रमाणित करने के लिए एनओसी की आवश्यकता होती है, लेकिन यहां पानी की गहराई से कोई लेना-देना नहीं है।
झांसी में भूजल विभाग में हाइड्रोलॉजिस्ट अक्षय कुमार ने कहा, “हम उस भूमि का सर्वेक्षण करते हैं जिसके लिए किसान को प्रमाण पत्र की जरूरत होती है। अगर पानी मौजूद है, तो एनओसी उपलब्ध कराया जाएगा, चाहे पानी की गहराई कितनी भी हो। ”
रख रखाव एक मुद्दा बना
महोबा में कृषि विभाग के नोडल प्रमुख अभय सिंह यादव ने कहा, बेशक, सोलर पंप किसानों की मदद कर रहे हैं लेकिन उन्हें लेकर चुनौतियां भी कम नहीं हैं।
यादव ने कहा, “स्थानीय स्तर पर रख रखाव का अभाव और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ सौर पैनलों के बीमा की कमी एक बड़ी चुनौती है।”
कबरई प्रखंड के चिकेहरा गाँव के भगत सिंह राजपूत दो हेक्टेयर जमीन के मालिक हैं और उनके पास चार सौर पंप हैं। लेकिन जब तूफान ने सौर पैनलों को उड़ा दिया, तो उन्हें एक गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा था।
वह बताते हैं, “तूफान के कारण मेरे तीन सौर पैनल उड़ गए। मैंने टोल-फ्री नंबर (रखरखाव के लिए) पर बात की और घटना के बारे में बताया, लेकिन उन्होंने कहा कि वे किसी भी प्राकृतिक आपदा के लिए पैनलों की वारंटी नहीं देते हैं।”
भगत सिंह ने शिकायत की कि उन्हें 50,000 रुपये का नुकसान हुआ क्योंकि पैनल खराब हो गए थे, और समाधान खोजने के लिए इधर-उधर दौड़ने में 10,000 रुपये अलग से लग गए।
चरखारी प्रखंड के सूपा गाँव में बद्री प्रसाद तिवारी, जिनके पास आठ बीघा जमीन है, अपने सोलर पंप से बहुत खुश नहीं हैं।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं 2018 में इसे स्थापित करने वाला पहला व्यक्ति था। इसने दो साल तक अच्छा काम किया। रात में अचानक एक प्लेट में आग लग गई। मुझे वादा किया गया था कि पाँच साल के भीतर कुछ भी गलत होने पर उन्हें बदल दिया जाएगा।”
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 72 वर्षीय किसान मायूस हैं। 2021 में उनकी फसलों की समय पर सिंचाई नहीं हुई, जिससे एक लाख से अधिक का नुकसान हुआ।
किसान ने कहा, “मैं गाँव में सौर पंप के लिए पंजीकरण कराने वाले लोगों से ऐसा करने से मना कर रहा हूं। मैं अपनी प्लेट बेचकर कुछ पैसे वसूल करने की योजना बना रहा हूं।”
संपर्क किए जाने पर कृषि विभाग के यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने 11 जुलाई, 2022 को महोबा में एसआईपी स्थापित करने के लिए जिम्मेदार कंपनी को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया था। पिछले साल 31 अगस्त को उन्होंने फिर शिकायत की। लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
यादव ने 14 सितंबर को कृषि विभाग में पीएम कुसुम योजना के नोडल अधिकारी को किसानों को हो रही असुविधा और निजी सोलर इंस्टॉलेशन कंपनी प्रीमियर एनर्जीज लिमिटेड के गैर-जिम्मेदार व्यवहार के बारे में विस्तार से लिखा। आठ माह बाद भी कोई जवाब नहीं आया है।
गाँव कनेक्शन ने टिप्पणी के लिए ईमेल और फोन के जरिए प्रीमियर एनर्जीज लिमिटेड से संपर्क किया था, लेकिन अभी तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
यह स्टोरी इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से तैयार की गई है और तीन-भागों की सीरीज में यह पहला लेख है।