ये बात तो किसी से छिपी नहीं है कि बच्चे के जन्म के लिए पुरुष के स्पर्म और महिला के एग का मिलन जरूरी होता है। लेकिन ये बात ना जाने क्यों छिपी हुई है कि स्पर्म और एग का मिलन होने के बाद जब महिला गर्भवती होती है, तब भी पुरुष की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती।
मेरी प्रेगनेंसी pregnancy को सामान्य से अलग तरह का अनुभव बनाने में कोरोना लहर covid pandemic भी एक वजह रही। हम नौकरी के चलते अपने परिवार से दूर रहते हैं। कोरोना काल में ये दूरी और बढ़ गई। मुझे प्रेगनेंसी के दौरान अपने करीबी रिश्तों से इतना दूर होना पड़ा कि गर्भावस्था के हर पड़ाव पर मैं और मेरे पति जैसे एकदम अकेले ही खड़े थे।
शुरुआत में मैंने इसे अकेलापन ही माना और डरती रही कि पता नहीं, ऐसे में सब कुछ कैसे होगा। मगर जिस तरह मेरे पति ने इस दौरान साथ दिया, अकेलापन नाम का शब्द ही मेरे दिमाग से गायब हो गया। यहां ये बताना जरूरी है कि पति के साथ को सिर्फ प्यार और मोहब्बत से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान पति का साथ वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित एक बेहद जरूरी चीज है।
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मुझे पांच महीने तक उल्टी और मॉर्निंग सिकनेस (morning sickness) की समस्या लगातार बनी रही। मैं कुछ भी नहीं खा पाती थी। उल्टी इतनी ज्यादा और अचानक आती थी कि बिस्तर से बाथरूम तक का सफर तय करना मुश्किल हो जाता था। कई बार बेड पर ही, कई बार कमरे में ही उल्टी हो गई। उल्टी करने के बाद मुझे जैसे बेहोशी सी आने लगती थी, ऐसे में वो उल्टियां साफ करने से लेकर मुझे साथ और सहारा देने तक हर जिम्मेदारी मेरे पति ने ही निभाई। हालांकि बार-बार उल्टी साफ करने की परेशानी से बचने के लिए मेरे बेड के किनारे ही एक बाल्टी रख दी गई। अब सोचती हूं, तो हंसी आती है, लेकिन इससे हमें काफी मदद मिली।
कोरोना काल में जो दूरी लोगों से बनानी थी उसके चलते हाऊस हेल्प यानी घर में किसी सहायक को भी नहीं रखा जा सकता था। मेरी स्थिति कई बार ऐसी होती थी कि मुझे खाना बनाना ही नहीं, रसोई में दाखिल होना भी दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता था। आटे और रोटी को देखकर मेरा जी घबराने लगता था। ऐसे में खाना कौन बनाए। इस परेशानी को भी मेरे पति ने अपनी सहजता के साथ हल किया। मैं जानती हूं कि एक ऐसा इंसान जो कभी रसोई में दाखिल नहीं होता। जिसे चाय बनाने के अलावा कुछ नहीं आता, उसके लिए ये सब कुछ करना कितना मुश्किल हो सकता है। मगर यहां उन्होंने पति नहीं, जीवनसाथी बनकर सोचा और किचन संभालने लगे। वो मुझे सब्जी काटकर देते, ताकि मैं जब भी हिम्मत हो उठकर सब्जी बना दूं। उन्होंने आटा गूंदना सीखा। बर्तन भी धोए। इस मामले को घर-परिवार में ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि कोरोना काल में बहुत से पतियों के ऐसे वीडियो वायरल हुए, जो घर के काम में हाथ बटा रहे थे। वरना हमारे समाज के कई हिस्सों में आज भी पति का रसोई में जाना भी पाप ही समझा जाता है। खासतौर पर जब वो अपनी पत्नी की मदद करने के लिए रसोई में काम कर रहा हो।
हमारी परिस्थिति जैसी थी, हमने उसके अनुसार हल निकाले। परिवार का साथ होता, तो शायद पति को किचन में ना जाना पड़ता, लेकिन फिर भी पत्नी के प्रति उनकी भावनात्मक जिम्मेदारी खत्म नहीं होती।
उस वक्त मेरी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शंपा झा ने भी कहा था, ”पति का पूरा साथ मिले, तो गर्भावस्था का मुश्किल सफर आसान हो जाता है। इसका असर होने वाले बच्चे की सेहत पर भी पड़ता है। यूनाइटेड नेशन से लेकर डब्ल्यूएचओ (WHO) तक दुनिया भर की स्वास्थय सेवाओं से जुड़ी रिसर्च और संस्थान मां और बच्चे की देखभाल में पति और होने वाले पिता की भूमिका को अहम बता चुके हैं।”
जब मैंने इस तथ्य को खंगालने के लिए इंटरनेट पर रिसर्च कि तब भी यही सामने आया कि होने वाली मां की सेहत और सुरक्षित प्रसव safe delivery में पति और होने वाले पिता की अहम भूमिका होती है। इसका सकारात्मक असर मां और बच्चे दोनों की सेहत पर पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में ये भी देखने में आता है कि जब तक कोई आपात स्थिति नहीं होती, तब तक पुरुष अपनी पत्नी को डॉक्टर के पास भी नहीं ले जाते हैं।
कुछ पुरुष जो अपने पत्नी के साथ डॉक्टर के पास जाते भी हैं, वो सेहत से जुड़ी समस्या को औरतों वाली बात कहकर क्लीनिक के बाहर ही इंतजार करते हैं। ये भी मुख्य वजह हैं कि आदमी अक्सर औरतों की सेहत से जुड़ी तकलीफों और समस्याओं से अनजान ही रहते हैं और उनके फैसलों का आधार पत्नी की सेहत कभी नहीं बन पाती।
मातृ स्वास्थ्य (maternal health) और सुरक्षित प्रसव के सामने ये भी एक बड़ी बाधा है। बीते कई सालों से दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में बतौर आशा दीदी काम करने वाली अनीता बताती हैं, “प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रमों में पुरुषों की भागीदारी की मांग उठती रहती है, लेकिन इसका असर बहुत कम ही नजर आता है। खासतौर पर गांवों में आदमी अगर इन बातों में जानकारी लेना भी चाहे, तो उसका मजाक उड़ाया जाता है।’
वहीं रिपोर्ट्स बताती हैं कि गर्भावस्था, लेबर और डिलीवरी के समय पति का साथ महिला को भावनात्मक सहयोग देता है। इसका असर सेहत पर भी होता है।
साल 2011 वॉशिगंटन में हुई नेशनल हेल्दी स्टार्ट एसोसिएशन कॉन्फ्रेंस में सामने आए नतीजों की मानें, तो होने वाले बच्चे का पिता जब गर्भावास्था के दौरान पत्नी को हर तरह से सहयोग देता है, तब मां की सेहत से जुड़ी परेशानियां कम हो जाती हैं और असमय जन्म, जन्म के समय कम वजन या बच्चे के विकास से जुड़ी समस्याओं की आशंका भी घट जाती है।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIMS) से जुड़े हरकिरन नारंग और सीमा सिंघल की रिसर्च रिपोर्ट भी इस तथ्य की तरफ ध्यान आकर्षित करती है। रिपोर्ट के मुताबिक पुरुषों को महिलाओं की सेहत, परिवार नियोजन (Family planning), गर्भावस्था, और बच्चे के जन्म के बाद पत्नी की खास देखभाल से जुड़े मुद्दों को लेकर जागरुक करने की जरूरत है। पुरुषों की ऐसी भागीदारी महिलाओं की सेहत और उनके जीवन को ज्यादा सहज और सरल बनाती है।
इस रिपोर्ट का हैरान करने वाला तथ्य ये भी है कि कई ग्रामीण महिलाओं को भी ये अहसास और जानकारी नहीं होती है कि उनकी गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के दौरान उनके पति कितनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में वह अपनी समस्या अपने पति के साथ साझा नहीं करतीं हैं।
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सिर्फ गर्भावस्था ही नहीं मां बनने के बाद भी पति के साथ का महत्व कम नहीं होता। नई-नई मां को अक्सर मूड स्विंग्स mood swings होते हैं। वह कभी दुखी और उदास महसूस करती हैं। कभी बेचैनी और अवसाद। इसे बेबी ब्लूज (baby blues) भी कहा जाता है। अगर ये समस्या कुछ वक्त बाद तक ठीक नहीं होतीं, तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन (postpartum depression) कहा जाता है। पति के लिए ये बहुत जरूरी है कि वह इस दौरान अपनी पत्नी की स्थिति को समझे और उसका साथ दे। शोध बताते हैं कि जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान और उसके बाद पति का पूरा सहयोग मिलता है, उनमें पोस्टनेटल डिप्रेशन के मामले कम सामने आते हैं।
अगर आप अब भी उसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, तो चैनल बदलने का समय आ गया है। एक सेहतमंद और सफल औऱत के पीछे भी एक आदमी का हाथ होता है, होना चाहिए और कई मामलों में ये हो भी रहा है।
क्या आप वो आदमी बनना चाहेंगे?
– अगर हां, तो गर्भावस्था से जुड़े हर पड़ाव को समझें। ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाएं। औरतों वाली बात कहकर, किसी भी समस्या से दूर रहने की कोशिश या हिचक महसूस ना करें।
– अपनी पत्नी से उसके शरीर में हो रहे बदलावों और वो कैसा महसूस कर रही है, इस बारे में खुलकर बात करें।
– जितना संभव हो डॉक्टर विजिट पर पत्नी के साथ जाएं।
– उनकी दवाइयों, सप्लीमेंट्स और डाइट सभी चीजों का ख्याल रखें।
– हर रोज अपने शेड्यूल में कुछ समय सिर्फ पत्नी के लिए निकालें।
– गर्भावस्था में अचानक उल्टी आने से लेकर कपड़ों में ही पेशाब निकल जाने तक कई ऐसी परेशानियां सामने आती हैं, जिन्हें लेकर कोई भी महिला सहज महसूस नहीं कर पाती, ऐसे में ये पति की जिम्मेदारी बनती है कि पत्नी को सहज महसूस कराए।
– गर्भावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को लेकर खासतौर पर मोटापे को भी कुछ महिलाएं सहजता से नहीं लेतीं। उन्हें लगता है कि मोटापा उनकी शारीरिक खूबसूरती को खराब कर रहा है। ऐसे में जीवनसाथी का उन पर भरोसा और प्यार इस नकारात्मक सोच से मुक्ति दिला सकता है।
– प्रेगनेंसी में पत्नी की फूड क्रेविंग्स का ध्यान रखना भी जरूरी है। इससे सिर्फ पत्नी को ही नहीं, आपके होने वाले बच्चे को भी खुशी मिलती है।