कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और उसके बाद के लॉकडाउन ने ग्रामीण ओडिशा में आबादी के एक बड़े हिस्से की खाद्य और आय सुरक्षा को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस दौरान लोगों की आय में कमी हुई है और इस वजह से उन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिल पा रहा है।
बढ़ती गरीबी, आय में कमी, खाद्य संकट, और ग्रामीण ओडिशा में कल्याणकारी योजनाओं की कमी के मुद्दे को लेकर राइट टू फूड अभियान के तहत काम करने वाले संगठनों और व्यक्तियों ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को 12 जून को एक पत्र लिखा था।
संगठनों की कई मांगों में एक मांग यह भी थी कि राज्य के खाद्य विभाग द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत परिवारों को दिए जाने वाले चावल और गेहूं में मुफ्त दाल और तेल को भी शामिल किया जाए।
ओडिशा के राइट टू फूड अभियान के प्रमुख सदस्य समीत पांडा ने गांव कनेक्शन को बताया, “ओडिशा सरकार ने महामारी की वजह से होने वाले स्वास्थ्य संकट को दूर करने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन भोजन और आय संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठाया गया है। हमने तत्काल हस्तक्षेप के लिए मुख्यमंत्री को लिखा है।”
उन्होंने आगे कहा, “भोजन और आय का संकट बढ़ गया है। स्थिति पिछले साल से भी बदतर हो गई है।”
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान एक बार फिर राज्य के अधिकांश जगहों पर आंशिक पाबंदिया व लॉकडाउन लगाया गया। इसके कारण बड़ी संख्या में गरीब श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी आजीविका खो दी। इसका सीधा असर उनके खान-पान पर पड़ा है।
17 मई को गांव कनेक्शन ने एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे ग्रामीण भारत में लोगों के खानपान में गिरावट आई है और कई लोग सब्जी व दाल के बिना ही काम चला रहे हैं।
पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना
इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीबों को मुफ्त अनाज (चावल या गेहूं) देने की घोषणा की थी। यह आवंटन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए) के तहत प्रत्येक लाभार्थी को प्रति माह पांच किलोग्राम खाद्यान्न दिए जाने के अतिरिक्त है।
पिछले साल, प्रत्येक राशन कार्ड धारक परिवार को 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न (चावल या गेहूं) के अलावा एक किलो दाल भी दी गई थी। लेकिन इस साल इसमें दालों को शामिल नहीं किया गया है।
वहीं, गैर राशनकार्ड धारक परिवारों को सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला है। पिछली गर्मियों में, गांव कनेक्शन ने अपने सर्वेक्षण में पाया था कि ग्रामीण भारत में 17 प्रतिशत परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं हैं।
पोषण स्तर में गिरावट होने की आशंका
ग्रामीणों को खाद्य सुरक्षा से बाहर किए जाने के साथ ही विशेषज्ञों को इस बात का डर है कि ओडिशा के पहले से ही खराब पोषण स्तर में और गिरावट हो सकती है। खासकर महिलाओं और बच्चों की पोषण स्थिति के खराब होने की आशंका जताई जा रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, ओडिशा में 15 से 49 वर्ष की आयु की हर दूसरी (51 प्रतिशत) महिला एनीमिया से पीड़ित है। वहीं, छह से 59 महीने के बीच के 44.6 प्रतिशत बच्चों को एनीमिया है। इसके साथ ही रिपोर्ट के मुताबिक 5 वर्ष से कम आयु के हर तीसरे (34.1 प्रतिशत) बच्चे का उम्र के अनुसार (उम्र के अनुसार ऊंचाई का कम होना) विकास नहीं हो पाया है।
सामुदायिक रसोई की व्यवस्था करे सरकार
महामारी की वजह से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए, खाद्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार से भूखे और जरूरतमंदों को खाना खिलाने के लिए सामुदायिक रसोई शुरू करने की मांग की है।
ओडिशा के खाद्य अधिकार अभियान के संयोजक विद्युत मोहंती और पांडा द्वारा हस्ताक्षर किए गए इस पत्र में लिखा है, “महामारी की दूसरी लहर ने ग्रामीणों की आय और अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे राज्य में भुखमरी की स्थिति बन रही है। हम आपसे आग्रह करते हैं कि तत्काल सामुदायिक रसोई की शुरुआत करते हुए आपातकालीन भोजन कार्यक्रम के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों में सामुदायिक रसोई स्थापित किया जाए।
To ease rural income timely procurement of Ravi crop be ensured in local #mandi and procurement of NTFP must be ensured which has almost stopped @spreadkoraput @VasundharaO help vegetable farmer for smooth transport or their produce @stscdev @Food_Odisha @rajaaswain
— Right to Food Campaign, Odisha (@OrissaRtf) June 14, 2021
पिछले साल, महामारी की पहली लहर के दौरान, ओडिशा सरकार ने राज्य के सभी पंचायतों में सामुदायिक रसोई की स्थापना की थी। इसके तहत लगभग एक पंचायत के अंतर्गत 100 लोगों को रोज़ाना पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाता था।
इस साल बिहार सरकार ने अपने सभी प्रखंडों में ऐसे ही सामुदायिक रसोई घरों की स्थापना की है। इसके ज़रिए, पिछले महीने मई में राज्यव्यापी लॉकडाउन के बीच रोज़ाना सैकड़ों हजार लोगों को खाना खिलाया गया।
सामुदायिक रसोई की मांग के अलावा गैर-लाभकारी संगठनों ने राज्य सरकार से सभी लंबित आवेदकों को राशन कार्ड जारी करने का आग्रह भी किया है। इसके साथ ही राशन कार्ड धारक परिवारों, स्ट्रीट वेंडरों और निर्माण श्रमिकों को नकद सहायता प्रदान करने की मांग भी की गई है।
पांडा कहते हैं, “पिछले साल, एक साथ तीन महीने का राशन, चार महीने के लिए पेंशन और परिवारों को 1,000 रुपये की नकद सहायता राशि दी गई थी। इसके अलावा, स्ट्रीट वेंडर्स को 3,000 रुपये और निर्माण श्रमिकों को 1,200 रुपये नकद दिए गए थे। लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों को गरीबों की बिल्कुल भी चिंता नहीं है।”
आशा कार्यकर्ताओं के लंबित वेतन का किया जाए भुगतान
खाद्य अधिकार अभियान ने अपने पत्र में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जिन्हें आमतौर पर आशा कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है, की मांगों को भी शामिल किया है। उन्होंने लिखा है कि आशा कार्यकर्ताओं को लंबित कोविड-19 वेतन का भुगतान जल्द से जल्द किया जाना चाहिए। इसके साथ ही महामारी का ध्यान रखते हुए उन्हें सुरक्षा उपकरण भी प्रदान किया जाए।
इसकी पुष्टि करते हुए मलकानगिरी जिले के खैरापाली गांव की आशा कार्यकर्ता अपर्णा सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुझे इस साल अप्रैल और मई महीनों के लिए कोई कोविड ड्यूटी प्रोत्साहन राशि नहीं मिला है।” पिछले साल, केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 1,000 रुपये प्रति माह कोविड प्रोत्साहन राशि की घोषणा की थी। कई लोगों का दावा है कि उन्हें इस साल यह नहीं मिला है।
अपर्णा ने बताया कि ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में भी महामारी की दूसरी लहर के दौरान आशा कार्यकर्ताओं को जरूरी सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराए गए। दो हफ्ते पहले ही राज्य सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को सुरक्षा उपकरण खरीदने के लिए 10,000 रुपये दिया है। अपर्णा ने बताया कि तीन दिन पहले उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। पिछले साल भी वह संक्रमित हो गई थीं।
मनरेगा के तहत नहीं हो रहा कोई काम
खाद्य अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि एक तरफ महामारी की दूसरी लहर की वजह से लोगों के सामने आजीविका का संकट है, वहीं दूसरी ओर लोगों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम या मनरेगा के तहत काम भी नहीं मिल रहा है। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को कम से कम 100 दिनों के रोजगार का वादा किया गया है।
पांडा ने कहा, “इस साल अप्रैल महीने से मनरेगा का काम बंद है। ये सभी लोग बिना काम और आय के बेकार बैठे हैं। ” गैर-लाभकारी संगठन ने मुख्यमंत्री से राज्य में मनरेगा के काम को फिर से शुरू करने का आग्रह किया है। इसके साथ ही लोगों को मांग के अनुसार काम देने और समय पर मजदूरी का भुगतान करने की मांग भी की गई है।