भारत ने भगवान बुद्ध की सीख को अपनी विकास यात्रा का हिस्सा बनाया है- प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मन्दिर परिसर में अभिधम्म दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि भगवान बुद्ध आज भी भारत के संविधान की प्रेरणा हैं, बुद्ध का धर्मचक्र भारत के तिरंगे पर विराजमान होकर हमें गति दे रहा।
#narendra modi

कुशीनगर (यूपी)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मन्दिर परिसर में अभिधम्म दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध आज भी भारत के संविधान की प्रेरणा हैं। बुद्ध का धर्मचक्र भारत के तिरंगे पर विराजमान होकर हमें गति दे रहा है। आज भी संसद में कोई जाता है तो ‘धर्म चक्र प्रवर्तनाय’ मंत्र पर उसकी नजर जरूर पर पड़ती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हजारों साल पहले भगवान बुद्ध जब इस धरती पर थे, तो आज जैसी व्यवस्थाएं नहीं थीं, लेकिन फिर भी बुद्ध विश्व के करोड़ों लोगों तक पहुँच गए, उनके अन्तर्मन से जुड़ गए।

प्रधानमंत्री ने अलग-अलग देशों में, बौद्ध धर्म से जुड़े मंदिरों, विहारों में मिले व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुए कहा कि कैंडी से क्योटो तक, हनोई से हंबनटोटा तक, भगवान बुद्ध अपने विचारों के जरिए, मठों, अवशेषों और संस्कृति के जरिए, हर जगह मौजूद हैं। अलग अलग देश, अलग अलग परिवेश, लेकिन मानवता की आत्मा में बसे बुद्ध सबको जोड़ रहे हैं। भारत ने भगवान बुद्ध की इस सीख को अपनी विकास यात्रा का हिस्सा बनाया है, उसे अंगीकार किया है। अहिंसा, दया, करुणा जैसे मानवीय मूल्य आज भी भारत के अन्तर्मन में रचे-बसे हैं।

प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जिले में कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के उद्घाटन के बाद महापरिनिर्वाण मन्दिर परिसर पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि इस एयरपोर्ट के जरिए पूरी दुनिया से करोड़ों बौद्ध अनुयायियों को यहाँ आने का अवसर मिलेगा, उनकी यात्रा आसान होगी।

प्रधानमंत्री ने धम्म के निर्देश “यथापि रुचिरं पुप्फं, वण्णवन्तं सुगन्धकं। एवं सुभासिता वाचा, सफलाहोति कुब्बतो॥” का उल्लेख करते हुए कहा कि अच्छी वाणी और अच्छे विचारों का अगर उतनी ही निष्ठा से आचरण भी किया जाए, तो उसका परिणाम वैसा ही होता है जैसा सुगंध के साथ फूल! क्योंकि बिना आचरण के अच्छी से अच्छी बात, बिना सुगंध के फूल की तरह ही होती है।

उन्होंने कहा दुनिया में जहां-जहां बुद्ध के विचारों को सही मायने में आत्मसात किया गया है, वहां कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी प्रगति के रास्ते बने हैं। बुद्ध इसीलिए ही वैश्विक हैं, क्योंकि बुद्ध अपने भीतर से शुरुआत करने के लिए कहते हैं। भगवान बुद्ध का बुद्धत्व है- सेंस ऑफ अल्टीमेट रिस्पांसिबिलिटी अर्थात-हमारे आसपास, हमारे ब्रह्मांड में जो कुछ भी हो रहा है, हम उसे खुद से जोड़कर देखते हैं, उसकी जिम्मेदारी खुद लेते हैं, जो घटित हो रहा है उसमें अगर हम अपना सकारात्मक प्रयास जोड़ेंगे, तो हम सृजन को गति देंगे।

उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया पर्यावरण संरक्षण की बात करती है, क्लाइमेट चेंज की चिंता जाहिर करती है, तो उसके साथ अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं। लेकिन, अगर हम बुद्ध के सन्देश को अपना लेते हैं तो ‘किसको करना है’, इसकी जगह ‘क्या करना है’, इसका मार्ग अपने आप दिखने लगता है।

लोगों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत महोत्सव में हम अपने भविष्य के लिए, मानवता के भविष्य के लिए संकल्प ले रहे हैं। हमारे इन अमृत संकल्पों के केंद्र में भगवान बुद्ध का वो सन्देश है जो कहता है ‘अप्पमादो अमतपदं, पमादो मच्चुनो पदं। अप्पमत्ता न मीयन्ति, ये पमत्ता यथा मता।’ अर्थात, प्रमाद न करना अमृत पद है, और प्रमाद ही मृत्यु है। इसलिए, आज भारत नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है, पूरे विश्व को साथ लेकर आगे चल रहा है।

प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध के सन्देश ‘अप्पो दीपो भव’ का उल्लेख करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपना दीपक स्वयं बनना चाहिए। जब व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है तो वह संसार को भी प्रकाश देता है, यह भारत के लिए आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा है। यही वो प्रेरणा है जो हमें दुनिया के हर देश की प्रगति में सहभागी बनने की ताकत देता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आम तौर पर यह भी धारणा रहती है कि बौद्ध धर्म का प्रभाव, भारत में मुख्य रूप से पूरब में ही ज्यादा रहा। लेकिन इतिहास को बारीकी से देखें, तो हम पाते हैं कि बुद्ध ने जितना पूरब को प्रभावित किया है, उतना ही पश्चिम और दक्षिण पर भी उनका प्रभाव है। प्रधानमंत्री जी ने कहा कि गुजरात की धरती पर जन्मे महात्मा गांधी तो बुद्ध के सत्य और अहिंसा के संदेशों के आधुनिक सम्वाहक रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज एक और महत्वपूर्ण अवसर है-भगवान बुद्ध के तुषिता से वापस धरती पर आने का! इसीलिए, आश्विन पूर्णिमा को आज हमारे भिक्षुगण अपने तीन महीने का ‘वर्षावास’ भी पूरा करते हैं। वर्षावास पूरा करने के उपरांत भिक्षुओं को चीवर दान किया जाता है। भगवान बुद्ध का यह बोध अद्भुत है, जिसने ऐसी परम्पराओं को जन्म दिया! बरसात के महीनों में हमारी प्रकृति, हमारे आस पास के पेड़-पौधे, नया जीवन ले रहे होते हैं। जीव-मात्र के प्रति अहिंसा का संकल्प और पौधों में भी परमात्मा देखने का भाव, बुद्ध का ये संदेश इतना जीवंत है कि आज भी हमारे भिक्षु उसे वैसे ही जी रहे हैं। ये वर्षावास न केवल बाहर की प्रकृति को प्रस्फुटित करता है, बल्कि हमारे अंदर की प्रकृति को भी संशोधित करने का अवसर देता है।

इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  ने कहा कि कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भगवान बुद्ध की मैत्री और करुणा का संदेश देता रहा है। आज एयर कनेक्टिविटी के माध्यम से श्रीलंका से पहुंची पहली अंतर्राष्ट्रीय उड़ान ने भगवान बुद्ध की मैत्री और करुणा के महत्व को अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पुनः स्थापित करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने नये संकल्पों के साथ आगे बढ़ाने का कार्य किया है। मुख्यमंत्री ने इस पहल के लिए प्रदेशवासियों की तरफ से प्रधानमंत्री  का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा की ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन संकिसा में भगवान बुद्ध का विशेष अवतरण हुआ था। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जी, केन्द्र सरकार के मंत्रिगण, श्रीलंका सरकार में कैबिनेट मंत्री नमल राजपक्षा, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, थाइलैंड, लाओस, भूटान, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, मंगोलिया, जापान, सिंगापुर तथा नेपाल सहित कई देशों के वरिष्ठ राजनयिक एवं विशिष्ट अतिथिगण मौजूद थे

Recent Posts



More Posts

popular Posts