दक्षिण-पश्चिम मानसून मौसम के केवल छह हफ्ते बचे हैं। लेकिन राज्य में सूखे का डर सताने लगा है। ओडिशा के कुल 30 जिलों में से 27 जिले में सामान्य से ‘कम’ वर्षा दर्ज की गई है। आधिकारिक तौर पर ‘सामान्य’ वर्षा की श्रेणी में आने वाले तीन जिलों में भी काफी कम बारिश हुई है।
जाहिर है, इसे लेकर पूर्वी राज्य के किसान चिंतित हैं। उनकी नजर में आने वाले साल मुश्किलों भरा हो सकता है और उन्हें भारी नुकसान का अंदेशा है।
सरोज मोहंती ने गांव कनेक्शन को बताया, “सब सूख गया। जमीन फट गया है। (फसलें सूख गई हैं और जमीन में दरारे पड़ गई हैं)। अगस्त के महीने में बारिश नहीं हुई थी। किसान तालाबों से पानी भी नहीं ले सकते, क्योंकि वे भी सूख चुके हैं।” सरोज मोहंती एक किसान नेता हैं और राज्य में किसानों के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था पश्चिम ओडिशा कृषक संगठन समन्वय समिति के प्रवक्ता भी हैं।
मोहंती कहते हैं, “अगर सितंबर के पहले सप्ताह में बारिश नहीं हुई, तो फसल पूरी तरह से बरबाद हो जाएगी। किसान अपने मवेशियों को भी खो देंगें।” किसान नेता ने आगे कहा, “भले ही कुछ जल निकायों में पानी है, लेकिन अधिकांश छोटे और सीमांत किसानों के पास इतने पैसे नहीं है कि वे अपने खेतों की सिंचाई के लिए पंपसेट किराए पर ले सकें और डीजल का खर्चा उठा सकें।”
राज्य में कम बारिश की स्थिति को देखते हुए 23 अगस्त को, ओडिशा के मुख्य सचिव सुरेश कुमार महापात्रा ने सभी 30 जिलों के जिला अधिकारियों के साथ बारिश, फसल कवरेज और फसल की स्थिति की समीक्षा की। एक आपातकालीन कार्य योजना (एक्शन प्लान) भी तैयार की जा रही है।
Chief Secretary, Sri Suresh Kumar Mahapatra, IAS reviewed the rainfall, crop coverage, crop conditions with the District Collectors of 30 districts in view of deficient rainfall situation through VC. pic.twitter.com/lP45YELGRC
— Krushibibhaga_Odisha (@krushibibhag) August 23, 2021
मानसून के मौसम में कम बारिश
एक जून से 23 अगस्त के बीच, मॉनसून के मौसम की शुरुआत के बाद से जाजपुर और भद्रक जिलों में सबसे अधिक बारिश हुई है। जाजपुर जिले में 55 फीसदी और भद्रक जिले में 51 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है।
कई अन्य जिलों जैसे बलांगीर (44 फीसदी कम), अंगुल (40 फीसदी कम), केंदुझार (43 फीसदी कम), कालाहांडी (39 फीसदी कम), आदि में इस मॉनसून में भी काफी कम बारिश दर्ज की गई है। इस कम बारिश का सीधा असर राज्य की खेती और रोजगार पर पड़ेगा।
इस बीच नौपराहा (19 फीसदी कम), कोरापुट (14 फीसदी कम) और मलकानगिरी (13 फीसदी कम) जैसे जिले, जिन्हें इस मॉनसून के मौसम में अब तक ‘सामान्य’ वर्षा के रूप में वर्गीकृत किया गया है, वे भी सीमा रेखा पर हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, माइनस 19 फीसदी(-19%) से 19 फीसदी(+19%) के बीच की बारिश को ‘सामान्य’ की श्रेणी में रखा गया है। माइनस 20 फीसदी(-20%) और माइनस 59 फीसदी(-59%) के बीच की बारिश को ‘कम वर्षा’ रूप में परिभाषित किया गया है।
राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में काफी कम बारिश हुई है। यह समय खरीफ की फसल का है। और इससे खेती और खेती से जुड़े कामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। राज्य में लगभग 74 प्रतिशत खेती बारिश पर निर्भर है। ओडिशा एग्रीकल्चर स्टेटिस्टक्स, 2018-19 के अनुसार, राज्य के लगभग 60 प्रतिशत यानी 4 करोड़ 60 लाख लोगों की आमदनी का एकमात्र जरिया खेती और उससे जुड़े काम हैं।
क्या ओडिशा सूखे के साल की ओर बढ़ रहा है?
कृषि विभाग हर साल खेतों में फसल काटने के आधार पर सूखा घोषित करता है।
संबलपुर के एक पर्यावरण संगठन से जुड़े रंजन पांडा ने गांव कनेक्शन को बताया, “फसल काटने के आधार पर सूखा घोषित किया जाता है। यह एक और समस्या है। फसल पकने और उसकी कटाई के समय सूखे की पूरी संभावना है। कितनी फसल का उत्पादन हुआ और उसमें आई कमी के आधार पर सूखे की घोषणा की जाती है।”
“अधिकांश किसान, जो अपने खेत की सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं, पहले से ही परेशान हैं। लगभग एक महीना हो गया है लेकिन बारिश नहीं हुई है। असली सूखा तो अभी पड़ रहा है।” पांडा आगे कहते हैं, “फसलों सूखी पड़ी हैं, जड़ों में पानी नहीं है। कीट आसानी से पौधों को जड़ से खत्म कर देंगे।”
ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, ओडिशा में हर पांच साल में एक बार सूखा पड़ता है। राज्य में सूखा आमतौर पर खरीफ की फसल के दौरान होता है और धान की फसल के लिए खासतौर पर नुकसानदायक है। 47 ब्लॉक वाले बोलांगीर, बरगढ़, नुआपाड़ा, कालाहांडी और फूलबनी जैसे जिलों की पहचान राज्य के सूखा क्षेत्रों के रूप में की गई है।
राज्य में पिछला सूखा 2018 में पड़ा था। राज्य सरकार ने राज्य के नौ जिलों बारागढ़, बोलनगीर, देवगढ़, झारसुगुड़ा, कालाहांडी, नबरंगपुर, नुआपाड़ा, संबलपुर, सुंदरगढ़ को सूखाग्रस्त घोषित किया था। खेती की कुल 233,173.8 हेक्टेयर जमीन को सूखा प्रभावित घोषित किया था।
फसल खराब होने पर किसानों को, केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा दिया जाता है।
किसान नेता मोहंती बताते हैं, “अगर सूखा पड़ता है तो किसान को चार हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा दिया जाता है। लेकिन यह मुआवजा उन्हीं किसानों को मिलता है जिन्होंने अपनी फसल का बीमा कराया होता है। और इसकी गणना पिछले सात सालों में सबसे खराब रहे तीन सालों के औसत के आधार पर की जाती है। यदि वर्तमान फसल का नुकसान औसत से कम है, तो ही मुआवजा दिया जाएगा। आम तौर पर बहुत से किसानों को ये मुआवजा मिल ही नहीं पाता है।”
जलवायु परिवर्तन, फसल का नुकसान और किसानों की आत्महत्या
हाल ही में, संबलपुर जिले में एक किसान ने फसल खराब होने के कारण कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली।
पिछले साल, ओडिशा के कृषि और किसान कल्याण मंत्री अरुण साहू ने राज्य विधानसभा को जानकारी दी कि साल 2016 और 2019 के बीच राज्य में 38 किसानों ने आत्महत्या की थी।
पांडा कहते हैं, ” किसानों की आत्महत्या का बड़ा कारण, फसल का खराब होना और कर्ज का बोझ है। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी फसल खराब होने वाली है और वे कर्ज नहीं चुका सकते तो साहूकारों का डर उन्हें सताने लगता है। और फिर उनके पास आत्महत्या के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता।”
संबलपुर के जल कार्यकर्ता बताते हैं, “समय पर बारिश न होने और जलवायु परिवर्तन के कारण खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। ज्यादातर किसान या तो खेती से दूर जा रहे हैं या फिर आत्महत्या कर रहे हैं। उन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी है। नई पीढ़ी को खेती में कोई दिलचस्पी नहीं है।”
ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र असुरक्षित होता जा रहा है।
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, सूखे के कारण कृषि उत्पादन और कृषि आय में तो तेजी से गिरावट आई ही है साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों भी सिमट गए हैं। किसानों, खेतीहर मजदूरों, ग्रामीण कारीगरों और छोटे स्तर पर व्यवसाय चला रहे ग्रामीणों की आय भी कम हुई है।
सरकार की प्रतिक्रिया
मुख्य सचिव ने सभी जिला अधिकारियों को सिंचाई के स्रोतों को मजबूत करने और पंचायत स्तर पर पानी (जल) के लिए खाका तैयार करने के निर्देश दिए हैं। ताकि खेती औऱ उससे जुड़े कार्यों को फिर से जीवंत किया सके।
इस बीच, राज्य के कृषि सचिव सुरेश वशिष्ठ ने कहा कि “खेतीहर मजदूरों को मनरेगा और सरकार की चल रही अन्य योजनाओं में रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएंगे।”
ओडिशा सरकार ने पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में लिफ्ट सिंचाई को सक्रिय करने की योजना बनाई है। सभी पानी पंचायतों में अन्य सिंचाई सुविधाएं भी चालू की जाएंगी। जल संसाधन विभाग को सभी जलाशयों से पानी छोड़ने के लिए कहा गया है और अगले दस दिनों में बारिश की स्थिति के आधार पर राज्य भर में एक आपातकालीन कार्य योजना लागू की जानी है।
इस बीच, चिंतित किसान मॉनसून के बादलों पर अपनी उम्मीदें टिकाए बैठे हैं। मोहंती कहते हैं, “हमें नहीं पता कि अगले दस से पंद्रह दिनों में क्या होने वाला है। कब बरिश आएगी। निगाह लगा के रखे हैं। (किसान आसमान में बादलों की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं और सोच रहे हैं कि कब बारिश होगी)”
अनुवाद: सुरभि शुक्ला