मिड डे मील और राशन में बाजरा, दालें और सब्जियां उपलब्ध कराने वाला भारत का पहला राज्य बनेगा ओडिशा

ओडिशा सरकार ने अपने सरकारी कल्याण कार्यक्रमों में दाल, बाजरा, तिलहन, फल ​​और सब्जियों को शामिल करने का फैसला किया है। अब आंगनवाड़ी में बांटे जाने वाले खाने और स्कूलों के मिड डे मील में स्थानीय व्यंजनों, बाजरा के लड्डू, अंकुरित चने को जगह दी जाएगी। इस पहल को फसल विविधीकरण और महिला सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है।
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ओडिशा सरकार ने मिड डे मील और सार्वजनिक वितरण प्रणाली(PDS) जैसी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े लोगों को दालें, बाजरा, तिलहन और यहां तक ​​कि फल और सब्जियां उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। भारत भर में अपनी तरह की यह पहली और खास पहल है। ये खाद्य सामग्री राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत दिए जाने वाले चावल के मासिक कोटे के अतिरिक्त दी जाएगी।

ओडिशा सरकार के कृषि और किसान अधिकारिता विभाग में सचिव, सुरेश कुमार वशिष्ठ ने गांव कनेक्शन को बताया, “हर राज्य चावल और गेहूं उपलब्ध करा रहा है, लेकिन हम कुछ अलग देना चाहते हैं। हांलाकि अभी इस योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा, लेकिन इस तरह की पहल की जरूरत थी। ”

सचिव ने कहा, “इस पहल के जरिए हम महिला सशक्तिकरण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।” उम्मीद है कि इस पहल से आदिवासी बहुल राज्य में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया को दूर किया जा सकेगा। साथ ही खाद्य सामग्री को बांटने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों की मदद ली जाएगी जिनसे उन्हें रोजगार भी मिलेगा।

कृषि एवं किसान अधिकारिता विभाग ने 21 मई को एक अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार, राज्य सरकार ने एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस), मिड डे मील और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा, दालें, तिलहन, फल ​​और सब्जियों को शामिल करने के लिए एक तकनीकी समिति का गठन किया है। यह समिति योजना के लिए जरुरी दिशा-निर्देश तैयार करेगी।

ओडिशा देश का पहला राज्य है जिसमें प्री स्कूल के बच्चों के लिए रागी के लड्डू शामिल किए गए हैं।

केंद्र सरकार का आईसीडीएस बच्चों की देखभाल और विकास के लिए काम करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। इसमें 0 से 6 साल तक के 15 करोड़ 80 लाख से ज्यादा बच्चों (2011 की जनगणना के अनुसार) और गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पंजीकृत किया गया है। इस योजना के तहत छह सेवाएं- अतिरिक्त आहार, स्कूल से पहले की गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और परामर्श दिया जाता है। देश के सभी जिलों में 13 लाख 60 हज़ार से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र (जून 2018 तक) हैं जिनके जरिए इन योजनाओं को चलाया जाता है।

मिड डे मील को आमतौर पर शिक्षा मंत्रालय की MDM योजना के रूप में जाना जाता है। जिसमें 11 करोड़ 59 लाख स्कूली बच्चे रजिस्टर हैं। इस योजना में बच्चों को स्कूल में दिन में एक बार ताजा पका हुआ खाना दिया जाता है।

कार्यकर्ताओं ने इस कदम का स्वागत किया

नागरिकों के खाद्य अधिकारों पर काम करने वाली गैर लाभकारी संस्था ‘राइट टू फूड कैंपेन ‘ लंबे समय से दालों को PDS में शामिल करने की मांग कर रहा है। तीन महीने पहले 12 जून को इस गैर-लाभकारी संगठन ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को पत्र लिख था। जिसमें मांग की गई थी कि सरकार PDS योजना में परिवारों को चावल और गेहूं के अलावा मुफ्त दाल और तेल मुहैया कराए। ओडिशा में 3 करोड़ 40 लाख से ज्यादा लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की सार्वजनिक वितरण प्रणाली और राज्य खाद्य सुरक्षा योजनाओं के अंतर्गत आते हैं।

रागी (मंडिया लड्डू, रागी (मंडिया) इडली, छोटी बाजरा इडली, छोटी बाजरा खिचड़ी, फॉक्सटेल बाजरा खीर, रागी (मंडी पकोड़ा), कोदो बाजरा एंडुरी पिठा और थोड़ा बाजरा उबला हुआ चावल (भाटा)।

‘राइट टू फूड कैंपेन’ ओडिशा के प्रमुख सदस्य समीत पांडा ने गांव कनेक्शन को बताया, ‘कल्याणकारी योजनाओं में दालें, बाजरा, तिलहन, फल ​​और सब्जियों को शामिल करने का निर्णय स्वागत योग्य कदम है। कम से कम चर्चा तो शुरू हुई। ओडिशा सरकार का इस तरह के कदम उठाने का इतिहास रहा है। “

पांडा ने कहा, “राज्य में कुपोषण का एक मुख्य कारण प्रोटीन की कमी है। इसे दूर करने के लिए आंगनवाड़ी और स्कूल में दिए जाने वाले भोजन में अनाज के अलावा दाल और सब्जियों को शामिल करना महत्वपूर्ण है।” वह आगे बताते हैं कि बच्चों में कई तरह के खनिजों, सूक्ष्म पोषक तत्वों और वसा की कमी होती है। इस कमी को दाल, तेल और फलों व सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार से ही दूर किया जा सकता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4, 2015-16 से पता चलता है कि ओडिशा में 15 से 49 साल की हर दूसरी (51फीसदी) महिला एनीमिक है। इसके अलावा, छह से 59 महीने के बीच के 44.6 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं। पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा (34.1प्रतिशत) अविकसित है। उनकी लंबाई उम्र के हिसाब से काफी कम है।

2011 की जनगणना के अनुसार, 34.64 मिलियन लोगों को – राज्य की आबादी का लगभग 82 प्रतिशत – राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत कवर किया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि कुपोषित आदिवासी आबादी के एक बड़े हिस्से को इस नई पहल से खासा फायदा पहुंचेगा।

फसल विविधीकरण और बाजरा मिशन

चार महीने पहले, 21 मई को, एग्रीकल्चर, ICDS, WASSAN (वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटी नेटवर्क) सहित राज्य सरकार के 11 विभागों की एक तकनीकी समिति को कल्याणकारी योजनाओं में दाल, तिलहन, फल ​​और सब्जियों को शामिल करने के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए कहा गया था।

आधिकारिक सूत्रों ने गांव कनेक्शन को बताया कि दो सरकारी योजनाओं- ओडिशा मिलेट मिशन और फसल विविधीकरण के जरिए नई पहल को लागू किया जाएगा। ये कल्याणकारी योजनाएं फसलों में विविधता लाने और बाजरा व दालों की खपत को बढ़ावा देने में मदद करेंगी।

फसल विविधीकरण कार्यक्रम को 18 जिलों में मेगा लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं के तहत लागू किया जाएगा और ओडिशा मिलेट मिशन को मलकानगिरी, कोरापुट, कालाहांडी, गंजम, मयूरभंज सहित 15 जिलों में आगे बढ़ाया जाएगा।

राज्य तकनीकी समिति के सदस्य दिनेश बालम, ने गांव कनेक्शन को बताया, “ओडिशा सरकार धान से अलग हटकर अन्य फायदेमंद फसलों जैसे बाजरा, दाले, तिलहन, कपास, सब्जियां, आदि की ओर बढ़ने के लिए एक रोडमैप तैयार कर रही है।” WASSAN एक राष्ट्रीय स्तर का संसाधन सहायता संगठन है जो राज्य सरकार के ओडिशा मिलेट्स मिशन के साथ मिलकर खेतों और लोगों की थाली में बाजरा को फिर से वापिस लेकर आने के लिए काम कर रहा है। दिनेश WASSAN के सहयोगी निदेशक हैं।

स्वयं सहायता समूह की महिलाएं रेसिपी प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में छोटे बाजरे से एंडुरीपीठ तैयार करती हैं।

रागी से बने लड्डू से बाजरे की खपत बढ़ाना

ओडिशा के जनजातीय इलाकों में बाजरा उनकी फसल प्रणाली और आहार का एक बड़ा हिस्सा रहा है। बाजरा को और बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने 2017 में ओडिशा मिलेट्स मिशन की शुरुआत की थी। इस प्रमुख कार्यक्रम के जरिए राज्य सरकार 3 से 6 साल के बच्चों के लिए जिला खनिज फाउंडेशन फंड के समर्थन से, आईसीडीएस योजना में रागी से बने लड्डू को शामिल करने वाला देश का पहला राज्य होने का दावा करती है।

बलम ने कहा, “ओडिशा मिलेट्स मिशन में, दो जिलों (क्योंझर और सुंदरगढ़) में रागी के लड्डू को शामिल किया गया है। यह साल 2020 से CSIR-CFTRI(केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान) के तकनीकी मार्गदर्शन में शुरु किया गया था। पिछले एक साल में लगभग एक लाख 20 हजार बच्चों को ये लड्डू बांटें गए हैं। ”

WASSAN के सहयोगी निदेशक ने बताया, “ICDS के तहत रागी के लड्डू बांटे जाते हैं। एक लड्डु 20 ग्राम का है। इस योजना को चरणबद्ध तरीके से 15 OMM जिलों में बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, ICDS, MDM और कल्याण छात्रावासों में रागी आधारित टीएचआर (1 किलो प्रतिमाह) और छोटे बाजरा से बनी खिचड़ी को शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।”

आंगनबाडी केंद्र में प्री-स्कूल के बच्चों के लिए रागी के लड्डू मिक्स पैकेट दिए जाते हैं।

वह आगे कहते हैं, “लेकिन इसके लिए हमें बहुत अधिक क्षमता निर्माण की जरूरत है क्योंकि राज्य भर में हजारों आंगनवाड़ी हैं।”

ओडिशा में, 72,587 आंगनवाड़ी केंद्र हैं। इन केंद्रों में छह महीने से तीन साल की उम्र के लगभग 18 लाख, तीन साल से छह साल के बीच के 16 लाख प्रीस्कूल बच्चे और सात लाख से अधिक गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं पंजीकृत हैं।

राज्य के 15 जिलों में 50 लाख से अधिक लोग ओडिशा मिलेट्स मिशन मॉडल का हिस्सा हैं। WASSAN की स्टेट कॉर्डिनेटर आशिमा चौधरी ने गांव कनेक्शन से कहा “इस साल, हमारे पास कम से कम एक लाख 17 हजार किसान हैं, जो बाजरा की पैदावार कर रहे हैं और लाभ कमा रहे हैं। PDS के जरिए इससे पचास लाख (15 जिलों में) लोगों को जोड़ा गया है। “

जाहिर है, राष्ट्रीय स्तर पर भी ओडिशा सरकार के बाजरा मॉडल की सराहना की जा रही है। 15 सितंबर को ओडिशा को ‘सर्वश्रेष्ठ बाजरा प्रोत्साहन राज्य’ घोषित किया गया था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (IIMR) और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने ‘पोषक अनाज पुरस्कार’ के तहत ओडिशा को यह पुरस्कार दिया गया है।

केंद्र सरकार ने देश भर के सभी राज्यों से बाजरा, दालों और तिलहन को बढ़ावा देने के लिए ओडिशा मिलेट मिशन मॉडल अपनाने को कहा है।

आदिवासी महिलाओं और किसानों को सशक्त बनाना

तकनीकी समिति ने सरकारी योजनाओं में उपलब्ध कराए जाने वाले अंकुरित हरे चने और रागी आधारित अल्पाहार जैसे विकल्पों पर विचार किया है। साथ ही यह भी विचार किया गया कि इन उत्पादों को महिला स्वयं सहायता समूह और किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से किसानों से सीधे खरीदा जाएगा। इन्हें खाद्य योजनाओं में शामिल करने से लेकर लोगों तक पहुंचाने का काम स्वयं सहायता समूहों के जरिए ही किया जाएगा।

बलम ने कहा, ” इससे फसल विविधीकरण का सीधा लाभ किसानों और महिलाओं को मिलेगा। मूल्यवर्धन, प्रसंस्करण और आपूर्ति का सारा काम महिला समूह ही करेगा। इससे महिला सशक्तिकरण और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी, ” ओडिशा मिलेट मिशन के हिस्से के रूप में अब तक 262 स्वयं सहायता समूह बाजरा के उपभोग और मूल्यवर्धन में कार्यरत हैं।

उन्होंने कहा , “प्रायोगिक आधार पर एक प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। इससे जैसे भी परिणाम मिलेंगे उसी के आधार पर इसे और आगे बढ़ाया जा सकता है। ”

विभिन्न सरकारी खाद्य योजनाओं में दालों और बाजरा को शामिल करने की पायलट परियोजना इस साल नवंबर-दिसंबर से शुरू होने की उम्मीद है।

फसल विविधीकरण कार्यक्रम के बारे में बात करते हुए WASSAN के स्टेट कॉर्डिनेटर चौधरी ने कहा ”यह कार्यक्रम इसी साल शुरू हो जाएगा। हालांकि, अभी सरकार दालों के उत्पादन वाले हिस्से पर काम कर रही है। इसे वास्तव में कल्याणकारी योजनाओं में शामिल करने में एक या दो साल लग सकते हैं। लेकिन यह एक राजनीतिक स्तर का फैसला है जिसे सरकार पहले ही ले चुकी है।”

ओडिशा के दक्षिणी हिस्सों जैसे मलकानगिरी में ज्यादातर आदिवासी समुदाय काला और हरा चना खाते हैं। रायगडा और कोरापुट जैसे कुछ जिलों में लाल चने की खपत ज्यादा है। सूत्रों ने बताया कि क्षेत्रीय व्यंजनों को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जाएगा।

योजना के लिए दिशा-निर्देश

छह सितंबर को राज्य सरकार के कृषि एवं खाद्य उत्पादन विभाग के निदेशक की अध्यक्षता में तकनीकी समिति की एक बैठक हुई थी। जिसमें कुछ निर्णय लिए गए-:

• बाजरे से बनी चीजों और अंकुरित हरे चने को प्रायोगिक आधार पर कल्याण छात्रावासों में शामिल करना।

• अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित जनजाति विकास) निदेशालय जिला/प्रखंडवार कल्याण छात्रावासों में बच्चों की जानकारी, कल्याण छात्रावासों में दिया जाने वाला मेनू और खाने पर किए गए खर्च यानी लागत मानदंड को प्रस्तुत करेगा।

• गैर-धान फसलों को सरकारी खाद्य सुरक्षा योजनाओं में शामिल करने के लिए सभी संबंधित निदेशालयों से नोडल अधिकारी नामित किए जाएंगे।

• आदिवासी छात्रावासों के लिए जिला खनिज निधि (DMF)/ओडिशा खनिज असर क्षेत्र विकास निगम (OMBADC) के माध्यम से बाजरा व्यंजनों को स्नैक और गैर-रागी बाजरा को पूर्ण भोजन के रूप में शामिल करने पर मसौदा प्रस्ताव समीक्षा के लिए ST निदेशालय को प्रस्तुत किया जाएगा।

• बाजरे से बनी चीजों को सरकारी योजनाओं में शामिल करने की मंजूरी के लिए CSIR-CFTRI के साथ बैठक बुलाई जाए।

राज्य सरकार राज्य के पारंपरिक या स्थानीय व्यंजनों को भी योजना में शामिल करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस पहल को तिल, नाइजर जैसे छोटे तिलहनों के फिर से लाने के अवसर के रूप में भी देखा जाता है। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे ओडिशा के परिदृश्य से गायब होने के कगार पर हैं। राज्य सरकार की अधिसूचना में कहा गया है, “ओडिशा के संदर्भ में, बाजरा से ज्यादा नुकसान इनका हुआ है।”

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

अनुवाद : संघप्रिया मौर्या

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