अरविंद शुक्ला/ अभिषेक वर्मा
श्यामपुरा (भिंड, मध्य प्रदेश)। गांव में दर्जनों घर गिरे पड़े हैं। पक्के मकानों में दरारें आ गई हैं। गलियों में घुटनों तक कीचड़ है। लोगों के घरों का सामान दूर तक फैला है। कुछ कपड़े और सामान तो पेड़ों पर लटके हैं तो कुछ मलबे में दबे हैं। घरों में रखा अनाज भीगने के बाद अंकुरित हो चुका है। कई घरों से भीषण बदबू भी आ रही है।
तीन अगस्त की रात को इस गांव में बाढ़ आई थी। पानी लोगों की छतों के ऊपर से बह रहा था। सिंध नदी के सैलाब (flood devastation) में सामने जो आया वो बह गया। 48 साल की शांति देवी ने 2 दिन से कुछ नहीं खाया है, क्योंकि बाढ़ से उनका घर तो गिरा ही, तीन में से 2 भैंस भी सिंध नदी के सैलाब में बह गईं।
शांति देवी की पड़ोसी बाल कुमारी (46 साल) फफक-फफक कर बताती हैं, “डूब में पूरो सामान चलो गयो, मोड़ा-मोड़ी भूखे प्यासे हैं। खाने पीने को कुछ नहीं है। अब हम का करबो।” (बाढ़ में पूरा सामान चला गया। लड़का-लड़की भूखे प्यासे हैं। खाने को कुछ नहीं अब हम आगे क्या करेंगे।”
बाल कुमारी के मुताबिक रात में जब बाढ़ आई वो और बच्चे सो रहे थे, इतनी विकराल बाढ़ आने की आशंका नहीं थी इसलिए कुछ तैयारी नहीं की थी। वो आगे कहती हैं, “हमारे पास कुछ नहीं बचा सिर्फ हाथ पैर हैं। घर का सामान गया, भैंस बह गई और खेत में जो बोया था वो भी चला गया। अब हम और बच्चे सिर्फ रो रहे हैं।”
श्यामपुरा में जितने घर हैं उनकी त्रासदी की कहानियां हैं। राममूर्ति देवी की उम्र करीब 65 वर्ष है, उनके 2 बेटे शहर में मजदूरी करते हैं। घर में बीमार पति, बेटों की बहुएं और उनके बच्चे थे। इसी दौरान बाढ़ आ गई।
उस दिन के वाक्ये को याद कर वो फिर से रोने लगती हैं। अपने आंसुओं को पोछते हुए वो कहती हैं, “हमारे ढोकरा (पति) खटिया पर बीमार धरे हैं। घर में सिर्फ बहुएं और हम थे। घर में कोई आदमी नहीं था तो हम क्या करते। हमारी आंखों के सामने सामान बहने लगा, दो भैंस बाहर बंधी थी वो जाने कहां चली गईं। वो (पति) बोले- रोओ नहीं तुम बची रह जाओगी तो सब हो जाएगा। इंसान बच गया तो गल्ले (अनाज) का इंतजाम हो जाएगा।”
रोते-बिलखते, अपने गिरे-टूटे घरों, मलबे के बीच बचे खुचे सामान को निकालते श्यामपुरा गांव का नजारा देखकर किसी की भी आंखें नम हो जाएं।
भिंड में 50 से ज्यादा तो पूरे एमपी में 1225 से ज्यादा गांव प्रभावित
श्यामपुरा, दिल्ली से करीब 400 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भिंड जिले के खैरा-श्यामपुरा ग्राम पंचायत में आता है। श्यामपुरा, मध्य प्रदेश में 7 जिलों के उन 1225 से ज्यादा गांवों में एक है, जहां 3 अगस्त की रात को आई सिंध नदी की प्रलयकारी बाढ़ से भीषण तबाही हुई है। भिंड जिले के करीब 50 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी समेत कई राज्यों में आए विनाशकारी सैलाब की वजह एकाएक भारी बारिश और बांधों के ओवरफ्लो होना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक एक अगस्त से 9 अगस्त के बीच मध्य प्रदेश में सामान्य से 31 फीसदी और राजस्थान में सामान्य से 110 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी। जिसके सिंध और चंबल समेत कई नदियां उफना गईं। अतिवृष्टि से भिंड के साथ ही दतिया, श्योपुर, ग्वालियर, शिवपुरी, मुरैना और अशोक नगर जिलों में भारी नुकसान हुआ। कई पुल टूट गए, सड़कें और हाईवे को नुकसान पहुंचा है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 4 अगस्त को मीडिया को बताया था कि 7 जिलों में भीषण तबाही हुई है, 1225 से ज्यादा गांव प्रभावित हुए हैं। सेना, एयरफोर्स, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ और पुलिस के साथ मिलकर हजारों लोगों को सुरक्षित निकाला गया है।
लेकिन तमाम ऐसे गांव भी थे जहां न सरकार की चेतावनी पहुंची, बाढ़ आने के बाद स्टीमर और नावें पहुंच पाईं थीं लेकिन अपने सहारे खुद को बचाने में लगे रहे।
संबंधित खबर- यूपी में बाढ़ का कहर: पांच नदियों के संगम पचनदा इलाके से बाढ़ की आंखों देखी रिपोर्ट, “ऐसा सैलाब जीवन में नहीं देखा”
50 साल में नहीं देखी सिंध नदी में ऐसी बाढ़
भिंड में आई तबाही को भिंड के पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा पिछले 50 वर्षों की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा और बाढ़ बताते हैं।
“भिंड विधानसभा सिंध और चंबल नदियों के बीच है। शायद मैं समझता हूं 50 साल बाद ऐसी बाढ़ आई है। निचले गांव हैं वो पूरी तरीके से घिरे थे, बाढ़ भयंकर थी, लोगों का सामान घरों में रह गया। चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी था। नुकसान बहुत बड़ा है। ये प्राकृतिक आपदा है कोई कुछ कर नहीं सकता है। घर गिरे हैं, पशुओं का नुकसान हुआ है, चारा नहीं बचा है। बहुत नुकसान है लेकिन सरकार, हम मिलकर इसकी भरपाई करेंगे।”
खैरा श्यामपुरा पंचायत के सरपंच लाल सिंह बघेल कहते हैं, “पंचायत के दो गांवों (खैरा और श्यामपुरा) में करीब 1800 मतदाता हैं। दोनों गांवों को नुकसान हुआ है। श्यामपुरा में करीब 50-60 परिवार थे, जिनके पास कुछ नहीं बचा है।”
गांव कनेक्शन की टीम मध्य प्रदेश के भिंड जिले के श्यामपुरा गांव में 8 अगस्त को पहुंची थी। भिंड और जालौन मार्ग से करीब ढाई किलोमीटर अंदर सिंध के किनारे बसे इस गांव तक पहुंचने के लिए पैदल कच्चा मार्ग था जो बाढ़ में तबाह हो गया या फिर नदी में डूबा था। तीन-चार दिन खेतों में टीलों में काटने के बाद गांव के ज्यादातर लोग भी 7 और 8 अगस्त को ही गांव पहुंचे थे।
3-4 दिन भरा रहा गांवों में नदियों का पानी
श्यामपुरा में सूखे वाले हिस्से की तरफ जाने पर तीसरा घर अशोक सिंह राजावत (55 वर्ष) का है। घर में दो कमरे पक्के बचे हैं। बाकी सब गिर गया। आंगन में एक बड़ा का गड्डा हो गया है। तीन दिन पानी में रहने के घर रखा गेहूं-बाजरा, सरसों अंकुरित हो गई है। बाजरे में कीड़े भी पड़ गए हैं।
अशोक राजावत बताते हैं, “बाढ़ तो हमेशा यहां आती थी लेकिन गांव में अंदर पानी कभी नहीं घुसता था, कोई 50 साल बाद ऐसी बाढ़ आई होगी। सरकार की तरफ से भी कोई ऐसी सूचना नहीं था, वर्ना कुछ सामान तो बचा ही ले जाते।”
बरामदे में फैले अंकुरित पड़े बाजरे, जिसमें कीड़े बजबजा रहे थे, को दिखाते हुए अशोक कहते हैं, “नुकसान का क्या ही बताएं, कुछ तो बचा ही नहीं, 40 मन गेहूं (16 कुंतल गेहूं), 15 कुंटल बाजरा और सरसों बर्बाद हो गई है। घर गिर गया है। पशुओं का भूसा रसोई में भर गया है। आप इतना जान लीजिए कि जो कपड़े बदन पर हैं वहीं बचे हैं। 6 दिन से तो हम नहाए तक नहीं हैं।” गांव में इंडिया मार्का हैंडपंप में लगे सबमर्सिबल से लोगों के घरों में पानी की सप्लाई होती थी। बिजली कट चुकी है। पाइप लाइट टूट चुकी हैं। लोग गांव से करीब एक किलोमीटर दूर टीले पर लगे हैंडपंप से पानी लाते हैं।
शिवराज ने बनाई टॉस्क फोर्स, जिनके घर टूटे देंगे पीएम आवास
मध्य प्रदेश सरकार में शहरी विकास और आवास राज्य मंत्री और भिंड जिले से बीजेपी विधायक ओपीएस भदौरिया प्रभावित इलाकों का लगातार दौरा कर रहे हैं। खैरा गांव में गांव कनेक्शन टीम से उनकी मुलाकात हुई। जहां उन्होंने न सिर्फ बताया कि त्रासदी किस स्तर की थी बल्कि शिवराज सिंह सरकार द्वारा किए जा रहे राहत कार्यों को भी गिनाया।
राज्यमंत्री भदौरिया ने कहा, “मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 12 विभागों की एक टास्क फोर्स बनाई है। जिनके मकान गिरे हैं उन्हें तत्काल प्रधानमंत्री आवास योजना से घर दिया जाएगा। फिलहाल के लिए एक बार 6000 रुपए मिलेंगे। प्रत्येक परिवार को 50 किलो राशन मिलेगा। एक विशेष पैकेज देने की तैयारी चल रही है। केंद्र की टीम सर्वे के आ रही है। केंद्र से अतिरिक्त राशि की डिमांड की जा रही है। इस विपदा में जनता की मदद के सारे उपाय किए जा रहे हैं।”
कई गांवों तक नहीं पहुंच पाईं नावें और स्टीमर
भदौरिया बताते हैं कि ये आपदा इतनी बड़ी थी कि अकेले भिंड में ही 50 से ज्यादा गांव प्रभावित थे। उन्होंने राहत और बचाव कार्य में लापरवाही और कई जगह मदद न पहुंचने के आरोपों के लिए कांग्रेस को निशाने पर लिया।
“मैं इस बात को स्वीकार करता हूं, कुछ गांव ऐसे थे जहां खाना पहुंचाने का कोई साधन नहीं था, वहां नावें और स्टीमर नहीं पहुंच पा रहे थे हम लोगों ने कई जगह हेलीकॉप्टर से भी खाना भिजवाया है। दूसरे दिन से सभी गांवों में दो वक्त का खाना पहुंच रहा है।”
भिंड का बाढ़ प्रभावित ज्यादातर इलाका बीहड़ है, जहां कहीं ऊंचे टीले हैं तो कहीं गहरे गड्डे। इलाके में ज्यादातर लोगों की कमाई का मुख्य जरिया कृषि और पशुपालन है। यहां रबी के सीजन में गेहूं और सरसों पैदा होती है तो खरीफ में बाजरा और तिल्ली की खेती होती है। बीहड़ में चराने के लिए जमीन है तो लोग गाय-भैंस के साथ बकरी और भेड़ भी पालते हैं। लेकिन बाढ़ में इन सबको नुकसान पहुंचा है।
बलराम बघेल (35 वर्ष) नोएडा में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। गांव में बाढ़ की तबाही के बारे में सुनकर वो दो दिन पहले अपने गांव पहुंचे थे। बलराम इलाके की समस्याओं को गिनाते हैं।
“हमारा गांव भिंड (जिला मुख्यालय) से करीब 26 किलोमीटर दूर है लेकिन यहां आज तक सड़क नहीं है। कोई बीमार होता है तो चारपाई पर उठाकर ले जाना पड़ता है। खेती और मजदूरी लोगों का मुख्य व्यवसाय है। घरों के युवक बड़े शहरों में काम करते हैं। सरकार ने इस इलाके के वादे तो बहुत किए लेकिन जमीन पर पूरे कुछ नहीं हुए।”
बेटी की शादी की थी तैयारियां अब दो वक्त रोटी का जुगाड़ नहीं
श्यामपुरा की गुड्डी के तीन बेटियां और दो बेटे हैं। घर में कई कुंतल गेहूं रखा था वो इस बार एक बेटी की शादी करने वाली थी लेकिन उससे पहले तबाही आ गई। “हमारी तीन भैंसे बह गईं। एक एक लाख की भैंसे थीं, इस बार बेटी की शादी करने वाले थे, लेकिन अब तो खाने को कुछ नहीं बचा।”
बाढ़ का पानी लौटने के बाद लोग अपने घरों को लौट रहे हैं, लेकिन उन्हें यहां पहुंच कर सिर्फ हताशा हाथ लग रही है। उन्हें जल्दी भी है कि जो कुछ बचा है या निकाला जा सकता है उसे निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा सके।
घर के आंगनबाड़ी के सामने लगे एक बबूल के पेड़ को फंसे कुछ कपड़ों को दिखाते हुए सतपाल राजावत (50 वर्ष) कहते हैं, “वो कपड़ा देख रहे हैं इसके ऊपर पानी बह रहा था, समस्या ये कि सिंध नदी में पानी फिर बढ़ रहा है। जो बचा है समटेना पड़ेगा। क्योंकि सरकार जब तक यहां आएगी पता नहीं कुछ बचेगा या नहीं।”
गांव के लोग बाढ़ का स्थायी समाधान चाहते हैं। पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा कहते हैं, “गांव के लोग चाहते हैं कि तराई में जहां अक्सर बाढ़ आती है ऐसे लोगों को निकालकर कहीं शासकीय जमीन पर कहीं विस्थापित किया जाए। हमारी सरकार भी इस दिशा में सोच रही है।”
सिंध का पानी चढ़ा तो फिर उतर जाएगा। केंद्र की टीम दौरा भी करेगी। संभव है जिनके घर गिरे हैं उन्हें पक्के घर मिलें, फसल और पशु का मुआवजा भी मिल जाए। लेकिन तब तक इनके सामने खाने का संकट है।
46 साल की माया गांव कनेक्शन की टीम को दिल्ली से आये अधिकारी समझकर हाथ जोड़कर कहती हैं, “हमारा कुछ सामान नहीं बचा है। हमें कुछ सामान दिला दो। किसी को भेजो कुछ मदद करो हमारी, कुछ नहीं दोगे तो हम मर जाएंगे।”
यूपी में भी सैलाब- यमुना-गंगा में उफान
नोट- मध्य प्रदेश से आने वाली सिंध और चंबल नदियां यूपी के जालौन, इटावा और औरैया जिले के बॉर्डर पर यमुना, पहुंज और कुआरी नदियों से मिलते हैं। इस जगह पचनदा कहा जाता है। आगे इन नदियों को यमुना ही कहा जाता है, जो प्रयागराज में जाकर गंगा में मिलती है। इसे संगम कहा जाता है। यूपी, एमपी, राजस्थान और उत्तराखंड में अतिवृष्टि से कई नदियां उफनाई हैं, जिससे यूपी के 2 दर्जन जिले बाढ़ की चपेट मे हैं। संबंधित खबर