कोरोना मरीजों को बिना बिजली के ऑक्सीजन की सप्लाई करेगा ‘जीवन वायु’

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ ने एक उपकरण 'जीवन वायु' विकसित किया है जिसे सीपीएपी मशीन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, यह देश का पहला ऐसा उपकरण है जो बिना बिजली के भी काम करता है और अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर व ऑक्सीजन पाइपलाइन जैसी दोनों प्रकार की ऑक्सीजन उत्पादन इकाइयों के लिए अनुकूलित है।
Oxygen crisis

देश में कोविड-19 महामारी की दौरान कोरोना वायरस का सबसे घातक प्रभाव संक्रमितों के फेफड़ों और उनकी श्वसन प्रणाली पर देखने को मिला है। ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा जरूरत हुई, ऐसे में शोधार्थियों ने ‘जीवन वायु’ नाम की एक ऐसी डिवाइस विकसित की है, जिससे के जरिए सिलेंडर या पाइपलाइन से आ रही ऑक्सीजन सप्लाई के लिए बिजली की जरूरत नहीं होगी।

कोरोना वायरस से प्रभावित फेफड़ों में मरीज की रक्त कोशिकाओं तक सांस के द्वारा प्रयुक्त ऑक्सीजन पहुँचाने की क्षमता नहीं रह जाती। ऐसे में, मरीज की प्राण रक्षा के लिए उसको कन्सन्ट्रेटेड ऑक्सीजन (सांद्रित ऑक्सीजन) की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करनी अनिवार्य हो जाती है। अनियमित ऊर्जा-आपूर्ति से ऑक्सीजन के वांछित प्रवाह के प्रभावित होने की आशंका रहती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी, रोपड़ के शोधार्थियों ने ‘जीवन वायु’ नाम की एक ऐसी डिवाइस विकसित की है, जिसके द्वारा सिलेंडर या पाइपलाइन से आ रही ऑक्सीजन के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में, यह उपकरण अनियमित विद्युत-आपूर्ति वाले स्थानों और विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इससे पहले भी आईडी रोपड़ कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान शवों के अंतिम संस्कार की विकराल होती समस्या को लेकर भी एक अनूठे नवाचार के साथ सामने आया था, जिसे काफी प्रशंसा भी मिली थी।

सीपीएपी थेरेपी के लिए जीवन वायु ब्रीदिंग सर्किट 20 सेंटीमीटर H2O तक का सकारात्मक दबाव और 60 एलपीएम तक की त्वरित प्रवाह दर प्रदान करता है

भारत में कई छोटे कस्बे और ग्रामीणइलाके ऐसे हैं, जहां बिजली की निर्बाध आपूर्ति अनिश्चित होती है। ऐसे में बिजली से चलने वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और उन वेंटीलेटर्स जैसे उपकरणों के संचालन को लेकर तमाम संदेह उपजते हैं, जो कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए लगाए जाते हैं। यह प्राणघातक वायरस श्वसन प्रणाली पर घातक प्रहार करता है तो उससे निपटने के लिए ऑक्सीजन के उच्च प्रवाह की आवश्यकता होती है।

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाई फ्लो नेजल ऑक्सीजन (एचएफएनओ), नॉन-इनवेजिव पॉजिटिव प्रेशर वेंटीलेशन (एनआईपीपीवी) और सीपीएपी/बीआईपीएपी कंटीन्यूअस बाय लेवल पॉजिटिव एयर प्रेशर ऑक्सीजन उपचार पद्धतियों की संस्तुति की है। अब यह स्थापित हो चुका है की मौजूदा सीपीएपी मशीनों के उपयोग विशेषकर कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती चरण में उनका इस्तेमाल फेफड़ों को पहुंची क्षति को कम करने और संक्रमण के प्रभावों से उबरने में काफी मददगार सिद्ध होता है।

मेटलर्जिकल एंड मटेरियल्स की सहायक प्रोफेसर डॉ. खुशबू रेखा, जिन्होंने आईआईटी रोपड़ की एडवांस्ड मटेरियल्स एंड डिजाइन लैब में उपकरण विकसित किया है, ने कहा, “मौजूदा कोविड महामारी के दौरान यह मशीन समय की जरूरत थी जब वेंटिलेटर और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसे चिकित्सा उपकरणों के सहारे लोगों के जीवन को बचाने के लिए विद्युत की आपूर्ति प्रमुख चिंता का विषय है।”

डॉ. रेखा ने विश्वास दिलाया, “इसमें एयर एंटरटेनमेंट छोर पर एक इनबिल्ट वायरल फिल्टर है, जिसकी वायरल प्रभावशीलता 99.99 फीसदी है।” वायरल फिल्टर यह सुनिश्चित करता है कि हवा, वातावरण से बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु को नहीं लाती है। इस उपकरण को 3डी प्रिंटिंग का उपयोग करके बनाया गया है और इसका यांत्रिक परीक्षण भी किया गया।

त्वरित ऑक्सीजन वितरण के लिए डिजाइन किया गया एक सीपीएपी थेरेपी उपकरण ‘जीवन वायु’ का 3डी प्रिंटेड प्रोटोटाइप

सीपीएपी मशीन को चलने के लिए निर्बाध ऊर्जा-आपूर्ति की आवश्यकता होती है। ऐसे में, यह आशंका बनी रहती है कि ऊर्जा आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में सोते हुए मरीजों के फेफड़ों पर दबाव बढ़ सकता है और उन्हें घुटन हो सकती है। इतना ही नहीं, बिजली चले जाने से और भी गंभीर स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें श्वसन संक्रमण गंभीर होकर मरीज की मौत का कारण भी बन सकता है।

इस लिहाज से आईआईटी रोपड़ द्वारा विकसित ‘जीवन-वायु’ एक बड़ी आवश्यकता को पूरा करने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। थ्रीडी प्रिंटेड, पावर फ्री ‘जीवन वायु’ 20 सेमी एचटूओ के निरंतर सकारात्मक दबाव को कायम रखते हुए हाई फ्लो ऑक्सीजन (20-60 एलपीएम) प्रदान करने में सक्षम है। इसीलिए यह न केवल एक किफायती, बल्कि आसानी से पहुंच में आने वाली सीपीएपी उपचार पद्धति भी बन जाता है।

इसके अतिरिक्त इस उपकरण के भीतर 99.99 प्रतिशत तक प्रभावी एक ऐसा वायरल फिल्टर लगा है, जो हवा में बाहर के वातावरण से आने वाले किसी भी हानिकारक तत्व को पहले ही रोक लेता है। इससे ऑक्सीजन सिलेंडर के माध्यम से 60 एलपीएम तक ऑक्सीजन प्रदान की जा सकती है। ‘जीवन-वायु’ को आवश्यकतानुसार कस्टमाइज भी किया जा सकता है।

इसमें आईएन एंड को ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे किसी ऑक्सीजन आपूर्ति स्रोत से एक नोजल एडप्टर के जरिए जोड़ने की आवश्यकता होती है। वही वायरल फिल्टर एयर एंट्रनमेंट विंडो में लगा होता है। जहां तक आउट एंड की बात है तो वह एक 22एमएम सीपीएपी ट्यूब से जुड़ा होना चाहिए, जो आगे सीपीएपी मास्क और पीप वॉल्व से जुड़ा हो। इसमें ऑक्सीजन के प्रवाह और वांछित दबाव को सिलेंडर पर लगे रेगुलेटर और पीप वाल्व के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। अपने परीक्षण में ‘जीवन-वायु’ पूरी तरह खरा साबित हुआहै।

आंकड़ों के अनुसार देशभर में 39000 स्वास्थ्य उपकेंद्र बिना बिजली आपूर्ति के ही संचालित हो रहे हैं। ऐसे में बिना बिजली से चलने वाली जीवन वायु जैसी डिवाइस में जीवन रक्षक उपकरण बनने की पूरी संभावनाएं हैं। इसे सामान्य ऑक्सीजन सिलेंडर या मेन ऑक्सीजन लाइन के जरिए आसानी से संचालित किया जा सकता है, जिसमें बिजली की कोई आवश्यकता नहीं।

इस डिवाइस के विकास एवं परीक्षण का काम मेटालर्जिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. खुशबू रेखा के नेतृत्व में हुआ। वहीं इसकी थ्रीडी प्रिंटिंग के लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में सीमैंस सेटर ऑफ एक्सीलेंस की रैपिड प्रोटोटाइपिंग लैब में फैकल्टी इंचार्ज सुरेश चंद और उनकी टीम का भी सहयोग मिला। फिलहाल यह डिवाइस मेडिकल टेस्टिंग यानी चिकित्सकीय परीक्षणों के लिए तैयार है और इससे जुड़ी हुई टीम इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए औद्योगिक सहयोगियों के साथ बातचीत कर रही है ताकि यह जीवन रक्षक डिवाइस जल्द से जल्द उपयोग के लिएउपलब्ध हो सके।

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