अरविंद शुक्ला, अभिषेक वर्मा
जुहीखा (औरैया, यूपी)। “मैं लगभग 60 साल का हो रहा हूं। कई बाढ़ झेली हैं लेकिन ऐसी बाढ़ और ऐसा नुकसान कभी नहीं देखा। हमारा गांव पांच नदियों के संगम पर है। इतिहास में भी शायद ऐसी बाढ़ आई हो। सिर्फ जुहीखा ही नहीं पचनदा इलाके के बहुत सारे गांव बुरी तरह प्रभावित हैं।” अपने पीछे दूर-दूर तक फैले मटमैले पानी को देखते हुए वीरेंद्र सेंगर कहते हैं।
वीरेंद्र सेंगर, उत्तर प्रदेश में औरैया जिले के जुहीखा गांव में रहते हैं। ये गांव इटावा और जालौन जिले की सीमा पर पड़ता है। इस गांव में पानी 4-5 अगस्त की रात को आया था। ग्रामीणों के मुताबिक उनके गांव से करीब 500 मीटर आगे पांच नदियों का संगम है। इसे पचनदा कहते हैं। यहां पर यमुना, चंबल, सिंध, पहुंच और कुआरी नदी नदिया आपस में मिलती हैं और आगे वो यमुना कहलाती हैं। सिंध वही नदी है, जिसमें आए सैलाब से मध्य प्रदेश के 7 जिलों में तबाही हुई है।
ग्रामीणों के मुताबिक यहां साल 2019, 2016 और 1996 में भी पानी आया था, लेकिन इस तरह का सैलाब पहली बार आया है। गांव में दर्जनों लोगों के घर गिर गए हैं। लोगों के घरों में रखा राशन, घरेलू सामान या तो बह गया है या फिर भीग कर सड़ गया है। गांव के लोग पिछले 4 दिनों से गांव के बाहर खेतों और टीलों पर पनाह लिए हुए हैं।
जुहीखा से करीब तीन किलोमीटर पहले खोड़न गांव में कई परिवार डेरा डाले हुए हैं। कुछ का सामान ट्रैक्टर पर रखा है तो कुछ पुराने कुएं और पेड़ के नीचे खाना बनाने की तैयारी में हैं। 40 साल की सुनीता इन्हीं महिलाओं में से एक हैं।
बाढ़ के बारे में पूछने पर सुबकने हुए बताती हैं, “घर में कमर तक पानी भरा है। 30 कुंतल अनाज था सब वहीं रह गया। फ्रिज, कूलर सब बर्बाद हो गया। हम एक साड़ी पहन कर किसी तरह निकले हैं, हमारे पास अब इतना भी नहीं बचा कि अपने बच्चों को कुछ खिला सकें।”
खोड़न गांव में ही एक तरफ पानी दिखाई देता है, लेकिन बाढ़ का उतना प्रकोप नहीं है। लेकिन जुहीखा की तरफ जाने वाला मुख्य रास्ता डूबा हुआ है। दूसरा रास्ता घूम कर खेतों से होकर जाता है। जहां गांव से आधा किलोमीटर पहले ही लोग खेतों में बसे नजर आते हैं।
7 अगस्त को गांव कनेक्शन की टीम जब जुहीखा पहुंची थीं, पानी कई फीट नीचे उतर चुका था, गांव के कुछ घरों में पानी भरा था, ज्यादातर कच्चे घरों को नुकसान पहुंचा था, जिन घरों का पानी उतर गया था वहां कीचड़ था। कुछ लोग अपना राशन, रजाई गद्दे, दूसरे सामान कीचड़ से बाहर निकाल रहे थे।
इस सैलाब में 65 साल की विधवा पिरवा देवी के घर के तीन कच्चे कमरे गिर गए तो 50 साल के राजू का वो कच्चा कमरा भी गिर गया, जिसमें वो परचून की दुकान चलाते थे। उनके घर के नीचे कई फीट पानी उस दिन भी भरा था।
सुरेश सिंह (50 वर्ष) का घर नदी के नजदीक वाले हिस्से में है। वो कहते हैं, “जहां आप आज खड़े हो तीन दिन पहले यहां धार (नदी का तेज बहाव) चल रही थी, पूरा गांव खाली हो चुका है। सब बाहर पड़े हैं। अभी तो कुछ घर गिरे दिख रहे हैं, लेकिन असली नुकसान तब पता चलेगा जब पानी पूरा उतर जाएगा।”
बुजुर्ग शिवमोहन सिंह भी उनकी हां में हां मिलाते हैं। “1996 की बाढ़ भीषण थी, लेकिन इतना नुकसान उसमें भी नहीं आ था। कुछ नुकसान अभी दिखाई दे रहा है। कुछ का असर आगे दिखेगा। घर-मकान गिरे हैं, जानवर बह गए हैं। फसलें बर्बाद हुई हैं। लोगों के घरों साल भर का राशन था सब खराब हो गया।” शिवमोहन के मुताबिक गांव के कई पशु बह गए हैं। लेकिन प्रशासन ने जिले में किसी तरह की पशुहानि से अब तक इनकार किया है।
शिव मोहन की चिंता जायज है। यमुना, चंबल, सिंध, पहुंच और कुआरी नदी में आई बाढ़ से उत्तर प्रदेश में औरैया जिले के 2 ब्लॉक (औरैया और अजीतमल), इटावा के तीन और जालौन जिले के 4 ब्लॉक के सैकड़ों गांव प्रभावित हैं। ग्रामीणों के मुताबिक औरैया के 50 तो सरकारी बयान में जिले के 24 गांवों के प्रभावित होने की खबर है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार (9 अगस्त) को औरैया और इटावा जिले का हवाई सर्वेक्षण किया और अधिकारियों के साथ आपात बैठक कर पीड़ितों को हर संभव मदद करने के निर्देश दिए। औरैया के बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद मुख्यमंत्री ने कलेक्ट्रेट सभागार में बाढ़ पीड़ितों से मुलाकात की। समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में भारी बारिश होने के कारण जनपद औरैया के 13 राजस्व ग्रामों के लोग प्रभावित हुए हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में 2 मंत्री निगरानी कर रहे हैं। आपदा से जनहानि पर प्रत्येक व्यक्ति को 4-4 लाख रुपए और मकान पूर्ण रुप से गिरने पर पात्रता के आधार पर मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिया जाएगा।
उन्होंने अधिकारियों से कहा, जिन गांवों में हर साल बाढ़ की संभावना रहती है, वहां के निवासियों को ऊंचे स्थानों पर बसाने की व्यवस्था की जाए। उन्होंने ग्राम पंचायत या जमीन की व्यवस्था कर उनका पुनर्वास किया जाए। सीएम मंगलवार ( 10 जुलाई) बुंदेलखंड के जालौन और हमीरपुर जिलों का हवाई सर्वेक्षण करेंगे। बुंदेलखंड के कई इलाकों में बाढ़ की आपदा को देखते हुए सेना की भी मदद ली गई है।
इससे एक दिन पहले मुख्यमंत्री ने लखनऊ में बाढ़ प्रभावित पीड़ित इलाकों में स्थिति की समीक्षा की थी उस दौरान अधिकारियों ने बैठक में बताया था कि प्रदेश के 15 जिलों के 257 गांव बाढ़ से काफी प्रभावित हैं। जहां पर राहत और बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी हैं। प्रभावित इलाकों में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पीएएसी की 39 टीमें प्रदेश के 22 जिलों मैं तैनात की गई हैं। इसके अलावा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 828 बाढ़ शरणालय, 976 बाढ़ चौकियां, स्थापित की गई हैं और लोगों को रेस्क्यू करने के लिए 1133 नावें चलाई जा रही हैं। इसके साथ ही बाढ़ पीड़ितों को 8 अगस्त तक कुल 7015 राशन किट और 28028 लंच पैकेट वितरित किए गए हैं।
आज माननीय मुख्यमंत्री महोदय, उत्तर प्रदेश द्वारा जनपद औरैया में बाढ़ ग्रस्त गांवों का हवाई सर्वेक्षण किया गया।@CMOfficeUP @UPGovt @InfoDeptUP @ShishirGoUP @auraiyapolice @CommissionerKnp @navneetsehgal3 @PMOIndia @myogioffice @ChiefSecyUP pic.twitter.com/pw0eAz1PdD
— DM Auraiya (@DMAuraiya) August 9, 2021
अतिवृष्टि से आया सैलाब, एमपी-राजस्थान में सामान्य ज्यादा बारिश
उत्तर प्रदेश के अलावा इन दिनों मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कई हिस्से बाढ़ की चपेट में हैं। इन सबकी वजह रही है, एक साथ ज्यादा बारिश का होना। भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 29 जुलाई से 4 अगस्त तक यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सामान्य से ज्यादा हुई है। यूपी में सामान्य से 36 फीसदी, मध्य प्रदेश में 52 फीसदी और राजस्थान में इस दौरान 168 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। वहीं अगर एक अगस्त से 9 अगस्त तक के आंकड़े देखें तो यूपी में भले बारिश कम हुई हो लेकिन मध्य प्रदेश में 31 और राजस्थान 110 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा नुकसान सिंध नदी से हुआ है। यहां के यूपी से लगे 7 जिलों भिंड, दतिया, श्योपुर, ग्वालियर, शिवपुरी, मुरैना में भारी नुकसान हुआ है।
एमपी, उत्तराखंड और दूसरे राज्यों से आने वाली नदियां यूपी में यमुना, गंगा, चंबल, बेतवा आदि में मिलती हैं। पचनदा में पांच नदियां मिलती हैं, जो आगे यमुना बनकर बहती हैं। यमुना प्रयागराज में गंगा से मिलती है। पीछे से आ रहे पानी के चलते गंगा भी उफनाई हुई है। कानपुर और फर्रुखाबाद से लेकर मिर्जापुर वाराणसी और पटना तक गंगा के किनारे गांवों में बाढ़ का पानी घुसा है तो प्रयागराज में निचले इलाके जलमग्न हैं।
औरैया में जहां पांच नदियां मिलती हैं वहां जालौन और औरैया को जोड़ने वाला पुल है, जिसमें 6 अगस्त को पैंटून पुल के 52 पीपे आकर टकराए थे, ग्रामीणों के मुताबिक ये पुल 16 किलोमीटर पीछे से बहकर आया था। लेकिन किस्मत अच्छी रही कि उसने जुहीखा पुल को नुकसान नहीं पहुंचा।
वीरेंद्र सेंगर कहते हैं, “यूपी में ये तबाही मध्य प्रदेश के पानी से हुई है। यमुना, चंबल और सिंध का पानी पहाड़ से आता है। मध्य प्रदेश से आने वाली सिंध नदी अपने साथ तबाही लेकर आई हैं। 6 की रात को जब ये पैंटून पुल जुहीखा पुल टकराया था तो बहुत दूर तक तेज आवाज गई थी, सिंध नदी मध्य प्रदेश में 6-7 बड़े पुल तोड़ चुकी है। अगर ये पुल टूट जाता तो बड़ी तबाही होती। लेकिन गनीमत रही।”
सरकार और प्रशासन का दावा है कि राहत और बचाव कार्य जारी है। लेकिन बहुत सारे लोगों का राहत का इंतजार है। वीरेंद्र सेंगर कहते हैं, “प्रशासन गांव में देखने नहीं आ रहा है। मेरे ही गांव कोई नहीं आया सब सूखे से लौटे जा रहे हैं।” गांव कनेक्शन की टीम जब औरैया में थी जो स्वास्थ्य विभाग की टीम खोड़न गांव में क्लोरीन की टेबलेट, फंगस से बचने के लिए कुछ दवाएं, कुछ बुखार की दवाएं लोगों के देकर वापस चली गई जबकि ज्यादातर ग्रामीण खेतों में पनाह लिए हुए थे।
जुहीखा गांव के जय नारायण (55 वर्ष) गांव से करीब 1 किलोमीटर पहले बबूल के पेड़ों के नीचे 30 से ज्यादा बच्चों को पूड़ी सब्जी परोस रहे थे। वो कहते हैं, ” गांव की आबादी करीब 1500 है, और 99 फीसदी गांव प्रभावित है। 500 लोग तो यहीं डेरा डाले हैं। हमसे जो बन पर रहा है कर रहे हैं, प्रशासन की क्या बात करें, आपको कहीं नजर तो आ हो तो बताइए।” जय नारायण की पत्नी गांव की प्रधान हैं।
गांव कनेक्शन की टीम जब गांव से लौट रही थी उस वक्त कुछ लाल बत्ती वाली गाड़ियां उस जगह पहुंच गई थी जहां लोगों को खाना खिलाया जा रहा है। ग्रामीणों के मुताबिक स्थानीय विधायक गांव का जायजा लेने पहुंचे हैं।
तबाही के जख्म भरने में लंबा समय लगेगा
65 साल की केशकली को इस गांव में आए करीब 46 साल हो गए हैं। उन्होंने ऐसी तबाही नहीं देखी, वो कहती हैं, किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। लोगों को लगता था पहले की तरह पानी गांव में उतना नहीं आएगा लेकिन.. हम लोग रात को किसी तरह भागे। गल्ला (राशन), बर्तन, सब बह गया।”
गांव वालों की मुसीबत ये है कि 6 अगस्त को पानी कम होने के बाद 7 अगस्त को नदियों का जलस्तर एक बार फिर पढ़ने लगा था। गांव में लोग खेतों और दूसरे रास्तों से होकर जाकर सुबह शाम अपना घर और सामान देख आते हैं। उनका कहना है अगर पानी उतरने के बाद फिर बारिश हुई तो जो मकान मिट्टी के हैं या जिन पक्के मकानों में दरारें आईं है उनका भी नुकसान हो जाएगा। कुछ लोगों बाढ़ से पहले अपना छोड़ा बहुत सामान सूखे तक ले जा पाए थे लेकिन ज्यादातर लोगों का अंदर था। जो बाढ़ की भेंट चढ़ गया।
जुहीखा गांव से बाहर निकलते वक्त यमुना की बाढ़ का शोर कम हो गया था लेकिन सुनीता देवी के शब्द कानों में गूंज रहे थे, “बच्चों को बचाते या फिर सामान, जिस तरह से नुकसान हुआ है अगर सरकार ने मदद नहीं की तो क्या खाएंगे, क्या पहनेंगे कुछ नहीं पता। भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।”