मध्य प्रदेश के ग्रामीणों को कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने का डर, लोग नहीं करवा रहे टेस्ट

मध्य प्रदेश के गांवों के लोगों में कोविड के लक्षण बढ़ रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट पॉजिटिव आने के डर से ग्रामीण टेस्ट के लिए तैयार नहीं हैं। इसके अलावा ऐसे ग्रामीण जो टेस्ट करवाना चाहते हैं उन्हें इसके लिए काफी दूर जाना पड़ रहा है। धार जिले में कोविड के लगभग 20 फीसदी मामले गांवों से हैं।
COVID19

मध्य प्रदेश के भिंड जिले में निबसाई खेरा गांव के रहने वाले दीपक शर्मा घबराए हुए हैं। उनकी मां और भाई दोनों को ही कोरोना के लक्षण- जैसे बुखार, सर्दी और खांसी की शिकायत है। वे 30 अप्रैल की भरी दुपहरी में अपने बाइक पर सवार होकर मां और भाई को लेकर 50 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जिला अस्पताल भिंड पहुंचे।

उनके गांव के आसपास कोविड टेस्ट की कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए उन्हें परिवार के बीमार सदस्यों के साथ 50 किलोमीटर दूर जाना पड़ा। शर्मा का अपने परिवार के साथ कोविड टेस्ट के लिए जिला अस्पताल पहुंचना, यहां इस लड़ाई का एक हिस्सा भर है। शर्मा बताते हैं कि उन्हें आगे भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

30 वर्षीय शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, “भिंड पहुंचने के बाद मैंने देखा कि सरकारी अस्पताल में भारी भीड़ है। मैं इस भीड़ से बचना चाहता था, इसलिए मैंने एक कर्मचारी को हमारा एंटीजन टेस्ट अलग से करने के लिए कहा।”

कहने को तो सरकार की तरफ से यह मुफ्त है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में शर्मा के 1200 रुपए खर्च हो गए। इसमें कोविड जांच के लिए 300 रुपए प्रति व्यक्ति और एक पूरा दिन शामिल है। बाद में उनका अंदाजा सही निकला। उनकी मां और भाई दोनों ही कोविड पॉजिटिव थे। हालाँकि, उनकी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई थी।

उन्होंने कहा, “हमारे गाँव में लगभग सभी घरों के लोग ठंड और बुखार से पीड़ित हैं, लेकिन कोई भी इसकी जांच करवाने को तैयार नहीं है। गाँव में टेस्ट की कोई सुविधा भी नहीं है। गांव में सब अपने हाल पर हैं।”

मध्य प्रदेश के गांवों में लोग या तो टेस्ट नहीं करवाना चाहते, या जो चाहते भी हैं वे करवा नहीं पा रहे हैं। इसके मुख्य रूप से दो कारण हैं। पहला कारण लोगों में कोविड पॉजिटिव आने का भय है, वहीं दूसरा कारण यह है कि लोगों को टेस्ट  के लिए काफी दूर जाना पड़ता है।

धार जिले में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कोविड अस्पताल में स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। 

कमोबेश यही स्थिति भिंड जिले के दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 660 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिवासी जिला धार की भी है। यहां के ग्रामीणों का भी कहना है कि लगभग हर घर के लोगों को सर्दी और बुखार है, लेकिन कोई भी जांच करवाने को तैयार नहीं है।

धार जिले के चिकलिया गांव के रहने वाले 19 वर्षीय वैभव पाटीदार ने गांव कनेक्शन को बताया, “भले ही हमारा गाँव जिला अस्पताल के पास है, लेकिन फिर भी लोग टेस्ट के लिए तैयार नहीं हैं। ग्रामीणों को डर है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया जाएगा।”

पाटीदार ने आगे बताया, “हाल ही में मेरे गाँव के दो लोग कोविड की वजह से मर गए। उन्होंने इसका परीक्षण करवाने में देर कर दी थी। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।”

पाटीदार ने यह भी बताया कि उनके गाँव को इस साल केवल एक बार ही सैनिटाइज़ किया गया है। पाटीदार ने कहा, “पिछले साल जब गांवों में स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं थी, तब लोग काफी जागरूक थे। जबकि अब स्थिति उलट हो गई है, लोग लापरवाह हो गए हैं। शहरों के आस-पास के गांवों में कोविड के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।”

गांवों में कोरोना की दूसरी लहर

आठ मई को मध्यप्रदेश में कोविड संक्रमण के 11,598 नए मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 90 लोगों की मौत हुई है। रिपोर्ट लिखे जाने तक, पिछले 24 घंटों में (8 मई) धार जिले में संक्रमण के 220 नए मामले दर्ज किए हैं, वहीं भिंड जिले में इसकी संख्या 31 है। ये सभी सरकारी आंकड़े हैं।

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कोविड-19 के बढ़ते मामलों के कारण अस्पतालों में मरीजों की तादाद काफी बढ़ी है, इसलिए वहां बहुत अव्यवस्था है। आमतौर पर शहरी इलाकों में कोविड-19 की वजह से मरने वाले लोगों की दिल दहला देने वाली खबरें सोशल मीडिया व न्यूज़ चैनलों में देखने को मिल जाती है। पर गांवों के लोग सोशल मीडिया से दूर हैं, इसके साथ ही वहां मीडिया की पहुंच भी तुलनात्मक रूप से कम ही है। इसलिए गांवों की असल स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है।

हालांकि, अधिकारियों ने माना है कि मध्यप्रदेश के गांव भी कोविड-19 की इस दूसरी लहर के प्रकोप से अछूते नहीं हैं। धार के जिला मजिस्ट्रेट आलोक कुमार सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कोविड के लगभग बीस प्रतिशत मामले गांवों से आ रहे हैं। कई गाँवों ने खुद को सील करते हुए अलग-थलग कर लिया है।”

सिंह ने आगे कहा, “हमारी टीम ग्रामीणों का सर्वेक्षण करने के लिए गांवों का दौरा कर रही है। जिन ग्रामीणों में कोविड के लक्षण हैं उन्हें हम 110 रुपये का किट प्रदान कर रहे हैं, जिसमें भारत सरकार द्वारा निर्धारित छह प्रकार की दवाएं शामिल हैं।”

फाइल फोटो 

सिंह ने बताया कि 26 लाख की आबादी वाले जिले में केवल एक सप्ताह के भीतर लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीणों का सर्वेक्षण किया गया है।

लेकिन, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का दावा है कि यह पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही वे परीक्षण पैटर्न पर भी सवाल उठा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य अधिकारों के लिए काम कर रही गैर-लाभकारी संस्था जन स्वास्थ्य अभियान की सदस्य अमूल्य निधि ने गांव कनेक्शन को बताया, “पिछले साल 30 प्रतिशत परीक्षण एंटीजन थे, जबकि बाकी के 70 प्रतिशत परीक्षण RT-PCR (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन) थे। पहले सरकार का पूरा ध्यान RT-PCR परीक्षणों पर था, जो अब उलट गया है।”

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उन्होंने आगे कहा, “एंटीजन टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद लोग एक बार फिर परीक्षण नहीं करवाना चाहते। RT-PCR परीक्षण का रिपोर्ट आने में कम से कम पांच दिन का वक्त लग जाता है। इतना ही नहीं, इसके लिए ग्रामीणों को जिला अस्पताल या ब्लॉक स्तर के स्वास्थ्य केंद्र तक जाना पड़ता है, जिससे लोग कतराते हैं।

निधि ने यह भी बताया, “पिछले साल सरकार, जिला स्तर पर RT-PCR परीक्षण की सुविधा के साथ ही पूरी तरह कार्यात्मक ऑक्सीजन सुविधा स्थापित नहीं कर पाई थी। इन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।”

टेस्टिंग में आ रही दिक्कत

RT-PCR परीक्षण के विपरीत एंटीजन टेस्ट करवाने पर कुछ ही मिनटों में (घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट किट की तरह) रिपोर्ट मिल जाती है। लेकिन RT-PCR परीक्षण को तुलनात्मक रूप से अधिक विश्वसनीय तरीका माना जाता है।

भले ही रैपिड एंटीजन परीक्षण का परिणाम आरटी-पीसीआर परीक्षणों की तुलना में सटीक नहीं होता है, लेकिन फिर भी इसे प्राथमिक परीक्षण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अपेक्षकृत कम खर्चीला है और कुछ ही मिनटों में परिणाम दे देता है। इसे प्रबंधित करने के लिए विशेषज्ञ कर्मचारियों की भी आवश्यकता नहीं होती है।

इसके अलावा टेस्टिंग लैब्स पर यह आरोप भी लग रहे हैं कि वे संक्रमित मामलों की संख्या कम दिखाने के लिए जानबूझ कर आंकड़ों में हेराफेरी कर रहे हैं। सतना जिले के 55 साल की एक महिला ने नाम नहीं छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि जब वह 22 अप्रैल को एंटीजन परीक्षण करवाने के लिए गई, तो उनकी रिपोर्ट में यह कहकर निगेटिव लिख दिया गया, कि उन्हें कोविड के काफी हल्के लक्षण हैं। हालांकि, गांव कनेक्शन महिला के इन आरोपों को सत्यापित नहीं करता है।

गांवों में वैक्सीन को लेकर है भ्रांतियां

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, मध्य प्रदेश में 70 लाख (7,060,213) से अधिक लाभार्थियों को कोविड-19 वैक्सीन की पहली खुराक दी गई है। हालांकि, केवल दस लाख (1,162,769) से अधिक लाभार्थियों को ही दूसरी खुराक मिली है।

भिंड जिले के शर्मा ने कहा, “लोग सोचते हैं कि जो भी टीका लगवा रहा है, उसकी तबीयत बिगड़ रही है। यही कारण है कि वे टीका लगवाने से बच रहे हैं। वैक्सीन की पहली खुराक लगाए जाने के 10 दिन बाद ही शर्मा के माँ की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई थी। अब, उनके पिता में भी कोविड के लक्षण दिखने लगे हैं।

निधि ने बताया, “गांवों में लोग टीकाकरण नहीं करवाना चाहते हैं। हाल ही में शहडोल में लगभग 169 लोगों को टीका लगाया गया था। उनमें से लगभग 30 लोगों को टीकाकरण के बाद बुखार हो गया। इसलिए ये लोग डरे हुए हैं।”

पाटीदार कहते हैं कि ग्रामीणों को डर है कि टीकाकरण की वजह से वे मर सकते हैं। अधिकारियों ने बताया कि विज्ञापन और नारों के माध्यम से ग्रामीणों में टीकाकरण को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही हैं।

फाइल फोटो

जिला मजिस्ट्रेट सिंह ने कहा, “चूंकि धार एक आदिवासी जिला है, इसलिए हमें विज्ञापन और नारों के माध्यम से आदिवासी लोगों को कोविड टीकाकरण और परीक्षण के बारे में समझाना होगा। टीकाकरण के बारे में ग्रामीणों के बीच कई तरह के मिथक हैं।” उन्होंने आगे बताया, “हमने ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए गांवों में टीकाकरण के फायदे और नुकसान बताने वाले पोस्टर लगाए हैं।”

इस बीच, टीके की कमी की खबरें भी आ रही हैं। 29 अप्रैल को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राज्य में 1 मई से 18-45 आयु वर्ग का टीकाकरण शुरू नहीं होगा, क्योंकि उनके पास पर्याप्त वैक्सीन की खुराक नहीं है। अब आज यानी 5 मई से टीकाकरण के शुरू होने की उम्मीद है।

निधि कहती हैं, “राज्य के पास वैक्सीन का स्टॉक नहीं है, फिर भी सरकार अठारह से अधिक आयू श्रेणी के लिए टीकाकरण शुरू करने जा रही है। इधर, पहले से ही कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें वैक्सीन की दूसरी खुराक नहीं दी गई है।”

उन्होंने आगे कहा कि सरकार को इस बात का अंदाजा नहीं है कि गांवों में जब कोविड के मामले बढ़ेंगे तब क्या होगा।

निधि कहती हैं, ‘अगर सरकार चाहे तो गांव स्तर पर परीक्षण की सुविधा उपलब्ध करवा सकती है। चुनावों के दौरान, आसानी से ग्रामीण स्तर पर बूथ स्थापित हो जाते हैं। परीक्षण सुविधाओं और टीकाकरण केंद्रों को उतनी ही आसानी से क्यों स्थापित नहीं किया जा सकता है? “

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें- 

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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