शादी के बाद पीडीएस सिस्टम से क्यों बाहर हुईं ओडिशा की 10 लाख से अधिक महिलाएं?

ओडिशा में बड़ी संख्या में गरीब महिलाएं पीडीएस के तहत खाद्यान्न का उपयोग करने में असमर्थ हैं क्योंकि उनके नाम उनके माता-पिता के राशन कार्ड से हटा दिए गए हैं। इसके अलावा उनके पति के राशन कार्ड में भी उनका नाम अभी तक नहीं जोड़ा गया है। ऐसे में इस कोरोना महामारी ने उनकी इस पीड़ा को और बढ़ा दिया है।
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लगभग तीन साल का समय गुजर चुका है, जब 25 वर्षीय उमा कुंभार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन मिला था। स्थानीय राशन की दुकान पर कई बार जाने के बावजूद उन्हें भारत सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर रखा गया है। कारण? उनकी शादी।

ओडिशा के बलांगीर जिले के कंसापाल गांव की निवासी उमा ने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरी शादी तीन साल पहले हुई थी। उसके छह महीने बाद मेरे पिता के राशन कार्ड से मेरा नाम हटा दिया गया। कई प्रयासों के बावजूद मेरा नाम मेरे पति के राशन कार्ड में भी शामिल नहीं किया गया। मुझे इन तीन वर्षों में एक बार भी राशन नहीं मिला है।”

कुंभार इकलौती ऐसी महिला नहीं हैं, जिनके साथ ऐसा हो रहा है।

ओडिशा में बड़ी संख्या में विवाहित महिलाएं पीडीएस सिस्टम के तहत अपने हिस्से के खाद्यान्न का उपयोग नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उनका नाम उनके माता-पिता के राशन कार्ड से हटा दिया गया है और उनके पति के राशन कार्ड में नहीं जोड़ा गया है।

ओडिशा में खाद्य अधिकारों पर काम करने वाले संगठनों और व्यक्तियों के एक नेटवर्क के एक कैंपेन ‘राइट टू फूड’ में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 18 से 29 आयु वर्ग की कम से कम एक लाख विवाहित महिलाओं को उनकी शादी के बाद पीडीएस सिस्टम से बाहर कर दिया गया है। ऐसा करना 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का हनन है। इस केंद्रीय अधिनियम के तहत प्राथमिकता वाले घरों में प्रति माह पांच किलोग्राम (चावल, गेहूं, या दोनों का संयोजन) प्रत्येक व्यक्ति को एक रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से लेने का अधिकार है।

राइट टू फूड के प्रमुख सदस्य समीत पांडा ने गांव कनेक्शन को बताया, “इन महिलाओं के नाम, उनके माता-पिता के राशन कार्ड से आसानी से हटा दिए जाते हैं और पति के राशन कार्ड में उनका नाम शामिल कराना किसी टास्क से कम नहीं है।”

पांडा ने दावा किया कि कई बार इसका खामियाजा विवाहित महिलाओं के बच्चों को भी उठाना पड़ता है। उदाहरण देते हुए उमा कुंभार ने कहा, “जैसे मान लीजिए मेरी बेटी का नाम ही परिवार के राशन कार्ड में शामिल नहीं है। वह और उसकी 15 महीने की बेटी दोनों हर महीने पांच किलो सब्सिडी वाले चावल के हकदार हैं, लेकिन वे इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इस तरह से हमें हर महीने लगभग दस किलो राशन का नुकसान हो रहा है।”

बच्चे भी हैं इससे प्रभावित, फोटो: यूनिसेफ / फ़्लिकर

इसलिए तीन सदस्यों के परिवार को केवल एक सदस्य की पीडीएस आपूर्ति पर जीवित रहना पड़ रहा है, जो कुम्भार के पति हैं। कुम्भार ने दुख जताते हुए कहा, “मेरे पति को हर महीने पांच किलो चावल मिलता है, लेकिन क्या इतना काफी है? हमें अपने परिवार का भरण-पोषण करना है तो हम किसी तरह बाहर से चावल खरीदने का प्रबंधन करते हैं। इसके अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।”

नबरंगपुर जिले के कमोरा गांव के निवासी बाईस वर्षीय हली बिसोई और कालाहांडी जिले के जोरापाड़ा गांव के 22 वर्षीय दीपा बाग भी ऐसी ही स्थिति का सामना कर रही हैं। बाग की शादी को अब एक साल हो चुका है लेकिन अभी तक उन्हें पीडीएस के तहत अनाज का हिस्सा नहीं मिल पा रहा है।

25 वर्षीय मुकेश बाग गांव कनेक्शन को बताते हैं, “हमारी शादी के तीन महीने बाद मेरी पत्नी दीपा का नाम उसके पिता के राशन कार्ड से बाहर कर दिया गया था। पिछले साल अप्रैल में मैंने अपने राशन कार्ड में उसका नाम शामिल करने के लिए पंचायत में एक आवेदन दिया। अब जब भी मैं राशन की दुकान पर आवेदन के बारे में पूछताछ करने जाता हूं तो हमें बताया जाता है कि हमारे आवेदन में कोई प्रगति ही नहीं हुई है।”

ओडिशा में आदिवासी समुदायों में चावल मुख्य भोजन है। फोटो: जयंती बरुदा

खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता कल्याण विभाग, ओडिशा के संयुक्त सचिव एमएस हक ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमारी प्रक्रिया जांच पर आधारित है। यदि उनका दावा सही है तो इन महिलाओं को उनका हक जरूर मिलेगा।”

हक कहते हैं, “राज्य में 3.5 करोड़ महिलाओं में से हम नहीं जान सकते कि कौन शादी कर रहा है, कौन तलाक ले रहा है या कौन अपने गांव से बाहर जा रहा है। सरकार ने नामों को एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान की है। अगर ये महिलाएं इसके लिए आवेदन नहीं करती हैं, तो ऐसी महिलाओं की संख्या एक लाख है या दस लाख, इसका हमारे पास कोई डेटा नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “वे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से राशन कार्ड के लिए आवेदन कर सकती हैं। अगर वे अनपढ़ हैं, तो वे अपने ब्लॉक पर जाकर आपूर्ति निरीक्षक से मदद ले सकती हैं।” हालांकि, महिलाओं का कहना है कि पंचायत और ब्लॉक कार्यालयों के कई चक्कर लगाने के बावजूद उनके नाम जोड़े नहीं गए हैं।

कोविड-19 की वजह से साल 2020 विशेष रूप से कठिन रहा। इस दौरान कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी, वहीं कई परिवार भूखमरी के कगार पर पहुंच गए। ऐसे में पीडीएस के तहत खाद्यान्न ना मिलना उनकी स्थिति को और बदतर बना देता है।

पिछली गर्मियों में ग्रामीण भारत पर COVID19 के प्रभाव के बारे में गांव कनेक्शन द्वारा किए गए सर्वे में भी पाया गया कि बिना राशन कार्ड के केवल 27 प्रतिशत परिवारों को ही महामारी के दौरान सरकार से खाद्यान्न प्राप्त हुआ। वहीं बात अगर गरीब परिवारों की करें तो 10 में से 7 परिवारों को सरकारी राशन नहीं मिला।

ग्राफ साभार- गांव कनेक्शन सर्वे

मुकेश ने पिछले साल लगे लॉकडाउन के दैरान अपनी नौकरी खो दी थी। मुकेश अब एक एकड़ से भी कम भूमि पर खेती करते हैं। गांव कनेक्शन से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, “मैं अपने गांव से चालीस किलोमीटर दूर एक राइस मिल में काम करता था। कोरोना के कारण मैंने अपनी नौकरी खो दी। इस दौरान ऐसा समय भी आया, जब हमारे पास खाने के लिए चावल भी नहीं थे। ऐसे समय में अगर मेरी पत्नी को राशन का हिस्सा मिल जाता तो हमारी बहुत मदद हो जाती।”

दांव पर पोषण

महिलाओं और बच्चों को पीडीएस से बाहर करने की वजह से विशेषज्ञों को डर है कि राज्य के पहले से ही खराब पोषण की स्थिति में और गिरावट हो सकती है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4, 2015-16 के अनुसार ओडिशा में 15 से 49 साल की हर दूसरी (51 फीसदी) महिला एनेमिक (खून की कमी) है। इसके अलावा छह से 59 महीने के बीच के 44.6 प्रतिशत बच्चे एनेमिक हैं। वहीं हर 5 में तीन बच्चे (34.1 प्रतिशत) छोटे कद के हैं।

वंदना प्रसाद एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, जो नोएडा में रहती हैं। वंदना ओडिशा में आदिवासी समुदायों के साथ काम करती हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “पीडीएस राशन के हिस्से के रूप में लाभार्थियों को केवल चावल दिया जाता है। स्वास्थ्य और पोषण के मामले से देखा जाए तो मनुष्य के शरीर को इससे कहीं अधिक पोषण की आवश्यकता होती है, जो कि केवल चावल से पूरी नहीं की जा सकती। यहां इन्हें इससे भी वंचित रखा जाता है।”

उन्होंने कहा, “यह महिलाओं और बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन है। किसी ने शादी कर ली और एक घर से दूसरे घर चली गई तो इसका मतलब ये नहीं कि उसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाएगा।”

जटिल सिस्टम

पिछले साल 22 अक्टूबर को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक ऑनलाइन प्रणाली शुरू की थी, जिसके माध्यम से लोग राशन कार्ड के लिए आवेदन कर सकते थे।

साभार- एनएफएचएस-4

पांडा सवाल करते हुए कहते हैं, “राज्य सरकार दावा करती है कि पंजीकरण की प्रक्रिया डिजिटल है। अगर ऐसा है तो फिर देरी क्यों हो रही है? इस डिजिटलीकरण का फिर क्या उपयोग है? “

इस महीने की शुरुआत में 5 मार्च को ‘खाद्य अधिकार अभियान’ संस्था ने ओडिशा के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सूचित किया था कि भले ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह से डिजिटल कर दिया गया हो, लेकिन नामों को पोर्ट करने की कोई डिजिटल प्रणाली मौजूद नहीं है।

पांडा समझाते हुए कहते हैं, “ब्लॉक स्तर पर राशन कार्ड प्रबंधन प्रणाली के लिए एक पोर्टल है, जो राज्य सरकार द्वारा संचालित होती है। सरकारी अधिकारियों की उस तक पहुंच है और डेटा एंट्री ऑपरेटर उनके साथ ब्लॉक स्तर पर काम करते हैं, इसलिए नामों को जोड़ना या बाहर करना उनके पूरे नियंत्रण में है। “

महिलाओं को पीडीएस से बाहर करने से विशेषज्ञों को डर है कि राज्य की पहले से ही खराब पोषण स्थिति में और गिरावट हो सकती है। फोटो: विंसेट पॉलीनेट

कोंगरा गांव के नाबरंगपुर जिले की तंटुलिखुन्ती तहसील निवासी 48 वर्षीय राशन वितरक बैद्यनाथ माधी ने गांव कनेक्शन से कहा, “इन महिलाओं के नाम को हटाने के लिए पोर्टल हमेशा खुला है। लेकिन पोर्टल जिसमें हम लाभार्थियों के नाम जोड़ सकते हैं वह हर समय खुला नहीं रहता है। पोर्टल पिछले साल दिसंबर से बंद है।”

राज्य के प्रत्येक गांव में पीडीएस लाभार्थियों के लिए एक निश्चित लक्ष्य है लेकिन अक्सर इस लक्ष्य में पूरी आबादी शामिल नहीं होती है।

संयुक्त सचिव, हक ने गांव कनेक्शन को बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के लिए पीडीएस लक्ष्य 34.64 मिलियन (3,46,41,000) तय किया गया है जिसके तहत राज्य की लगभग 82 प्रतिशत आबादी को खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत कवर किया गया है। नया लक्ष्य अगली जनगणना के अनुसार तय किया जाएगा।

राशन वितरक माधी ने बताया कि कुछ महिला लाभार्थियों के नाम उनके पति के राशन कार्ड में इसलिए नहीं जोड़े गए क्योंकि गांव का पीडीएस लक्ष्य पहले ही प्राप्त हो चुका था।

हालांकि हक ने आश्वासन दिया कि, “लक्ष्य बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यदि कोई नाम एक स्थान से हटा दिया जाता है, तो यह स्वचालित रूप से दूसरे में जुड़ जाएगा।”

हक कहते हैं, “हर दिन मौतें दर्ज की जाती हैं। हमें पहले राशन कार्ड से मृतकों के नाम हटाने होंगे, लेकिन लोग स्वेच्छा से इसके लिए आगे नहीं आते हैं। “

इस नौकरशाही सिस्टम में कुंभार जैसी हजारों महिलाएं हैं जिनकी खाद्य आपूर्ति अभी भी निश्चित नहीं है। क्या उनका ये इंतजार कभी खत्म हो पाएगा?

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद- सुरभि शुक्ला

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