जैसलमेर (राजस्थान)। देश के कई राज्यों के साथ ही राजस्थान का एक हिस्सा भीषण बाढ़ का सामना कर चुका है। लेकिन इसी राजस्थान के हिस्से में सूखा पड़ गया है। जैसलमेर में आखिरी बार 15 जुलाई तो बीकानेर में 21 जुलाई को बारिश हुई थी। उसके बाद बूंद नहीं गिरी। मानसून की ये बेरुखी किसानों और ग्रामीणों को डरा रही है।
“हमारे जन्म के पहले ही अकाल ने जन्म लिया और हमारी मृत्यु के साथ ही अब हमारा अकाल से पीछा छूटेगा। हमारी नियति ही अकाल है। बचपन में भीषण अकाल पड़ा था, जिसे छपनिया अकाल कहते हैं। तब खाने को भोजन और पीने को पानी नहीं था। पौधों की छालें गालकर (पीस-उबाल) खानी और पीनी पड़ी। बेर और केर से जीवन बचाया था। इस बार फिर स्थिति बदतर है।” 82 साल के भैरू सिंह आज की स्थिति को देखते हुए अपने पुराने दिनों को याद करते हैं। उनका घर दिल्ली से करीब 800 किलोमीटर दूर राजस्थान में जैसलमेर जिले के सुल्ताना गांव में है।
जैसलमेर में जुलाई महीने में 1-2 बार बारिश हुई उसके बाद बारिश नहीं हुई। जिन किसानों ने जुलाई की बारिश देखकर फसलें बोईं थीं वो बिना पानी के सूख चुकी हैं या सूख रही है। जहां सिंचाई के इंतजाम थे वहां भी हालात बिगड़ रहे हैं।
भैरू सिंह आगे कहते हैं, ‘बरसात नहीं हुई तो फसलें नष्ट हो जायेंगी। मनुष्य तो किसी तरह काम चला लेगा पशुओं पर संकट आ जाएगा। न खाने को चारा रहेगा न पीने का पानी। यहां आमतौर पर इंदिरा गांधी नहर से आपूर्ति होती है लेकिन उसके आसरे नहीं रहा जा सकता क्योंकि कभी पानी आता है कभी बन्द हो जाता है।’
भारतीय मौसम विज्ञान ने राजस्थान को मौसम के अनुरुप दो भांगों में बांटा है। वेस्ट राजस्थान (पश्चिमी राजस्थान) में अगस्त महीने में 49 फीसदी कम बारिश हुई तो जबकि पूर्वी राजस्थान में सामान्य से 28 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। जबकि जून से 23 अगस्त तक की बात करें तो पश्चिमी राजस्थान में 20 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है।
पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर समेत 13 जिले आते हैं। इनमें से कुछ जिले पाकिस्तान तो कुछ गुजरात से सटे हैं। खरीफ के मौसम में इन जिलों में मूंग, मोठ, बाजरा, ग्वार और मूंगफली की खेती होती है। लेकिन बारिश न होने मौसम के सहारे खेती करने वाले किसानों को झटका लगा है।
जैसलमेर से करीब 300 किलोमीटर दूर बीकानेर जिले के पलाना गांव में आशुराम गोदारा का घर है। तमाम मुश्किलों के बावजूद गोदारा अच्छी किसानी करते हैं लेकिन इस बार वो संकट में हैं।
“खेती किसानी की स्थिति इस बार खराब है,सूखा पड़ गया है। हमारे यहां (पलाना- बीकानेर) में आखिरी बार 21 जुलाई को बारिश हुई थी। बिल्कुल बरसात नहीं है। एक बार जब हुई तो गांव के लोगों ने बाजरे आदि की बुवाई की थी लेकिन वो फसलें भी सूख गईं।” आसूराम गोदागा (40 वर्ष) फोन पर बताते हैं।
जिन किसानों के पास ट्यूबवेल की व्वयस्था है, उनकी कुछ फसलें बची हैं लेकिन उत्पादन की उम्मीद कम है।
गोदारा कहते हैं, “मेरे पास करीब 13 एकड़ मूंगफली है लेकिन उत्पादन की गुंजाइश एक चौथाई भी नहीं दिखती है। जुलाई में एक बार जब ठीक बारिश हुई तो बीकानेर से लेकर जैसलमेर तक किसानों ने फसलों की बुवाई की थी। प्रति एकड़ 2000-2500 का खर्च बिजाई में आया होगा लेकिन बिना पानी फसलें सूख गईं।”
राजस्थान के जैसलमेर के पशुपालक विक्रम सिंह तंवर (40) कहते है कि “आषाढ़ की बारिश का सावन में इंतजार रहा लेकिन सावन भी सूखा निकल गया। अगर बरसात नहीं हुई तो सेवण और दूसरे घासें जो पशुशों की खिलाई जाती हैं उनकी दिक्कत हो जाएगी।” बारिश न होने से ग्रामीण फसल, खाने से लेकर पशुओं तक के भविष्य को लेकर आशंकित है।
पश्चिमी राजस्थान एक बार फिर से अकाल की गिरफ्त में जाने को मजबूर
राजस्थान के लिए अकाल कोई नई विपदा नहीं है, क्योंकि यहां लगातार कुछ बरसों के अंतराल से अकाल पड़ता ही रहा है। आजादी के बाद से 1959-60, 1973 से 1977,1994-1995 को छोड़कर हर वर्ष कोई न कोई इलाका अकाल की जद में रहा।
अकाल में पशुपालक अपने पशुओं के साथ पलायन कर जाते हैं और बचे-खुचे लोग अपने जीवन को बचाने का जतन करते है। ऊंटों,गधों और गाड़ियों से दूर दराज के इलाकों से पानी लाया जाता है। हर आने वाले दिन में आशा की किरण संजोए ये लोग कभी कहीं पर अस्थायी पलायन पर नहीं जाते। राजस्थान में चर्चित छप्पनिया अकाल को लेकर एक दोहा प्रचलित है।
आयो छपनो ओछतो,भमंतो काळ भेराळ ।
गौआं डाकै गवाड़ी, बरकां करैह बाळ
इसका मतलब है कि विक्रम संवत छप्पन में भीषण अकाल के हालात बने। इसमें गायों सहित अन्य पशुओं के पास खाने को कुछ नहीं था वे बस दिन भर रंभाते रहते थे और छोटे बच्चे भूख से त्रस्त होकर बस रोते रहते।
बारिश के वर्तमान हालात है चिंताजनक
बारिश के लिए औसत आंकड़ा खरीफ फसल हेतु 370 एमएम है लेकिन जून,जुलाई और आधे अगस्त तक बारिश महज 103 एमएम हुई है। यह आकंड़े न केवल चिंताजनक है क्योंकि पश्चिमी राजस्थान की अधिकांश जनसंख्या पशुपालन व कृषि क्षेत्र से संबंधित है। ऐसे में इन चेहरों पर चिंता की झुर्रियां लगातार बढ़ती जा रही है।
पूर्व विधायक सांग सिंह भाटी कहते हैं, “यहां पहला काम खेती और दूसरा पशुपालन है। इसके अलावा न तो यहां कोई उद्योग है न सोर्स ऑफ इनकम। पर्यटन व्यवसाय यहां का तीसरा बड़ा सेक्टर है। लेकिन अकाल में कुछ नही होता सिवाय भुखमरी के।”
रेगिस्तान की विपरीत भौगोलिक परिस्थियों में ग्वार की फसल सबसे अनुकूल मानी जाती है क्योंकि इसमें अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। बाड़मेरी बाजरा के लिए प्रसिद्ध बाड़मेर में इस बार बारिश 79 मिलीमीटर ही हुई है जो कि सामान्य से 43.3 मिलीमीटर कम है।
बाडमेर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र गुड़ामालानी के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप पगारिया कहते हैं, “बाजरा की बुवाई का सही समय 15 जुलाई तक होता है। तो बाजरा गया ही अन्य फसलों की उम्मीद बहुत कम है। यहां की खेती बरसाती पानी पर आधारित है। यहां औसतन 200 से 300 मिली. बारिश होती है।”
बारिश नहीं होने के क्या हैं कारण?
मौसम के जानकार कह रहे हैं कि कम दबाव के क्षेत्रों का रूट बदल गया है, जिसके चलते राजस्थान के इस इलाके में बारिश नहीं हुई। भारतीय मौसम विभाग (आईएमएडी) में जलवायु डिजिजन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.डीएस पई कहते हैं, “राजस्थान के इस हिस्से में अमूमन बारिश ही कम होती है। इस बार पश्चिमी मध्य प्रदेश और पूर्वी राजस्थान में काफी बारिश हुई थी, क्योंकि लो प्रेसर सिस्टम (कम दबाव का क्षेत्र) उधर तक आ गया था। लेकिन ये सिस्टम गुजरात और पश्चिम राजस्थान तक पहुंचा ही नहीं। अरब सागर से आने वाले सिस्टम से महाराष्ट्र और उसके आसपास अच्छी बारिश हुई थी। जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, गुजरात के पास से जुड़े क्षेत्रों में कम बारिश हुई है।
वो आगे कहते हैं, “गुजरात में पिछले 2-3 वर्षों में बहुत अच्छी बारिश थी लेकिन इस बार कम है।”
लगातार बढ़ती जा रही है पशुपालकों और किसानों की चिंताएं
औसतन एक दो बारिश के बाद कहीं-कहीं पर बुवाई तो हो गई है लेकिन इसके बाद फसल के लिए पानी नही है। जैसेलमेर में साधा माइनर पर खेती करने वाले मग सिंह (28) कहते है, “एक बारिश बहुत जल्दी हो गई थी हमने फसलों की बुवाई आगत ही कर दी थी लेकिन उसके बाद आशा के अनुरूप बारिश नहीं हुई है। भादों (सितंबर) में अगर बारिश नहीं हुई तो फसलें पानी के अभाव में झुलस जाएंगी।”
बारिश नहीं होने से दुष्प्रभाव
बाड़मेर का प्रसिद्ध बाजरा इस बार ज्यादा मात्र में पक नहीं पायेगा क्योंकि बाजरा की बुवाई 8 लाख 35 हेक्टेयर के मुकाबले साढ़े 2 लाख 45 हेक्टेयर में ही हुई है। इस बात की आशंका है कि अब अगर बारिश होती भी है तो किसान बाजरे में कम ही रुचि दिखाएंगे। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि बारिश की कितनी गंभीर समस्या है।
जैसलमेर जिले के रामगढ़ में रहने वाले प्रदीप गर्ग कहते है, “जैसलमेर में बारिश हमेशा बहुत कम ही होती है। विशेषकर रामगढ तो शायद देश भर में सबसे कम बारिश वाले क्षेत्रों में से एक है। किसान अवश्य ही निराश होंगे पर कुछ हद नहरी क्षेत्र होने से इनकी स्थिति दूसरों से बेहतर है, क्योंकि यह पूर्ण तया बारिश पर निर्भर नहीं है। बाकी किसान से भी ज्यादा पशुपालक निराश है, अपने क्षेत्र में मुख्य व्यवसाय पशुपालन है और उनके लिए घास और पानी की बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है।”