कृपुसिंधु सोरेन को दो वक्त की रोटी की उतनी चिंता नहीं है, जितना कि पीने के पानी को लेकर है। उन्होंने बताया, “ट्यूबवेल बेकार हो गए हैं क्योंकि खारा पानी जमीन के अंदर चला गया है।
26 साल के सोरेन ने गांव कनेक्शन से कहा, “यह गर्मी का समय है। एक व्यक्ति दिन में एक बार भोजन करके गुज़ारा कर सकता है, लेकिन उसे पानी की कई बार जरूरत पड़ती है।” सोरेन का एस्बेस्टस-छत वाला घर क्षतिग्रस्त हो गया है, लेकिन उनके पास इसे ठीक करने के लिए समय नहीं है। उनका सारा दिन 10 सदस्यों वाले उनके परिवार के लिए पेयजल की व्यवस्था करने में खर्च हो जाता है।
ओडिशा में बालेश्वर (जिसे बालासोर के नाम से भी जाना जाता है) जिले के पारखी गांव के निवासी, सोरेन उन लाखों लोगों में से एक हैं, जिन्हें 26 मई को बालेश्वर और भद्रक जिलों के तट पर आए भीषण चक्रवाती तुफान यास की वजह से भारी नुकसान का हुआ है।
इस भयावह घटना को अब एक सप्ताह से अधिक का वक्त गया है। चक्रवात चला गया है, और चक्रवात के साथ ही पत्रकार भी प्रभावित जगहों से चले गए हैं। लेकिन भारत के पूर्वी तट के गरीब परिवार, विशेष रूप से ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और उनका जीवन अभी भी संघर्ष से भरा हुआ है।
यहां रहने वाले लोगों के लिए यह सब नया नहीं है। वे इसी तरह हर साल चक्रवातों की चपेट में आते हैं। यह समस्या अब बढ़ती ही जा रही है। सोरेन का गांव बंगाल की खाड़ी के तट से करीब 50 मीटर दूर स्थित है और वे चक्रवात की वजह से पैदा होने वाली परेशानियों से भलीभांति परिचित हैं।
पारखी गांव के खेत चक्रवात यास द्वारा लहरों और तेज हवाओं के साथ लाए गए खारे पानी से अब भी भरे हुए हैं। सोरेन ने बताया, “हमारे गांव की मिट्टी कम से कम अगले दो से तीन फसल चक्रों के लिए खेती के हिसाब से ठीक नहीं है। इसकी वजह से इलाके में भुखमरी बढ़ सकती है।” फिलहाल कई गैर-लाभकारी संस्थाएं सामुदायिक रसोई चलाकर चक्रवात प्रभावित लोगों को खाना खिला रही हैं। इलाके में पानी के टैंकर के ज़रिए पेयजल की आपूर्ति की जा रही है।
ओडिशा सरकार द्वारा 2 जून को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भीषण चक्रवाती तुफान यास की वजह से 19 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक केवल एक व्यक्ति की मौत हुई है, जबकि 219,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फसलों को नुकसान पहुंचा है।
इसी तरह पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी यास चक्रवात की वजह से भारी तबाही हुई है। जानकारी के अनुसार यहां 20 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है, इसके साथ ही 221,000 हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक की फसलों को नुकसान हुआ है।
खत्म हो गया आजीविका का स्रोत
बालेश्वर में सोरेन के गांव से 200 किलोमीटर पूर्व में सुंदरबन के सागर द्वीप में किसानों के धान के खेत खारे पानी से भरे हुए हैं। मीठे पानी के सभी तालाब भी खारे हो गए हैं। तालाबों की मछलियां मर गई हैं, जो कि देश के कुछ सबसे गरीब लोगों की आजीविका का स्रोत है।
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा में काम करने वाले एक पर्यावरण कार्यकर्ता तापस मंडल ने गांव कनेक्शन को बताया कि चक्रवात के आने के दौरान तेज लहरों के कारण द्वीपों की रक्षा के लिए बनाए गए कई तटबंध टूट गए।
मंडल ने आगे कहा, “इस वजह से इन द्वीपों के गांवों में खारा पानी घुस गया। स्थानीय लोग मछली पालन करते हैं। इस आपदा में उनकी मछलियां मर गईं। लोगों के घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और उनके खेतों के मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो गई है। अब जमीन को खेती के लायक बनने में दो से तीन साल का वक्त लगेगा।”
यह पहली बार नहीं है जब सुंदरबन के निवासियों ने किसी तूफान का सामना किया है। ऐसे कई तुफान यहां आते रहे हैं, जिसने स्थानीय लोगों का जीवन तबाह कर दिया और उनकी आजीविका को नष्ट कर दिया। ये लोग लगभग हर साल एक तूफान की चपेट में आते हैं।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने गांव कनेक्शन से कहा, “यह एक मुक्केबाजी मैच की तरह है, आपको एक पंच लगता है और आप नीचे गिर जाते हैं, फिर आप एक और पंच के लिए खड़े होते हैं। इस खेल में कोई रेफरी नहीं है!”
वशिष्ठ ने आगे कहा, “तटीय क्षेत्रों में मछली पालन और कृषि पर निर्भर लोग इन चक्रवातों से होने वाले नुकसान के कारण गरीबी में अपना जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। इसकी वजह से लोग कर्ज के जाल में फंस रहे हैं और मानव तस्करी जैसे अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है।”
मंडल ने बताया, “इन सभी समस्याओं के चलते [प्राकृतिक आपदा] यहां के लोग कर्ज के जाल में फंस जाते हैं। यहां के अधिकांश लोग अपने क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत के लिए ऋण लेते हैं। हर साल तट पर आने वाले चक्रवातों की वजह से यहां रहने वाले लोगों को एक ही तरह की समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है।
चक्रवात से उबरने में लगते हैं एक या दो साल
कर्ज के इस जाल को सोरेन और उनके तटीय गांव के 2,000 अन्य निवासी बेहतर समझते हैं। उनके अनुसार, चक्रवात के नुकसान से उबरने में उन्हें कम से कम एक या दो साल लगेंगे। उन्होंने बताया कि घरों की मरम्मत में करीब 30,000 रुपए से 40,000 रुपए का खर्च आता है।
26 वर्षीय सोरेन ने गांव कनेक्शन को अपनी बेबसी बताते हुए कहा, “लेकिन, तब तक हम एक और चक्रवात की चपेट में आ जाएंगे। यहाँ का जीवन ऐसा ही है। क्या कर सकते हैं, चक्रवात को तो नहीं रोक सकते।”
सोरेन कल्पना करते हुए पूछते हैं कि क्या पूरे गांव को ऐसी जगह पर स्थानांतरित किया जा सकता है जो खारे पानी से प्रभावित न हो और गर्मी के मौसम में भी वहां पानी की कोई समस्या ना रहे।
इसके साथ ही वे अपने गांव के मवेशियों को लेकर भी चिंतित हैं। उन्होंने कहा, “गांव में अब मवेशी धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे। हमारे पास पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है, ऐसे में गायों और बकरियों का क्या होगा।”
एक बड़ी आपदा है चक्रवात
कई लोगों को लगता है कि चक्रवात के कुछ घंटों बाद ही स्थिति सामान्य हो जाती है, पर ऐसा नहीं है। इसका प्रभाव अक्सर महीनों या सालों तक बना रहता है।
“सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (SEEDS) के सह-संस्थापक अंशु शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुख्यधारा की मीडिया में चक्रवातों को ज्यादातर बड़े मौसमी घटनाओं के रूप में दिखाया जाता है। इसमें चक्रवात का बनना, भूस्खलन, हवा की गति और इससे होने वाले विनाश को दिखाया जाता है। लेकिन चक्रवात का प्रभाव केवल इतने तक ही सीमित नहीं है।” SEEDS आपदाओं से प्रभावित लोगों के जीवन और आजीविका को बचाने के लिए काम करता है।
शर्मा ने कहा, “साल 2019 के फानी चक्रवात में, पुरी (ओडिशा) में एक पूरा पावर स्टेशन क्षतिग्रस्त हो गया था। एक पूरे शहर को एक महीने तक बिना बिजली के रहना पड़ा। कल्पना कीजिए कि यह एक शहर को कितनी बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। यहां वाटर पंपिंग स्टेशन ठप हो गए थे। एक माह हो गए, नल से पानी नहीं आया। इसकी वजह से बीमारियों का भी खतरा है।
उष्णकटिबंधीय तूफानों की बढ़ती घटनाओं के कारण तट के आसपास रहने वाले लोगों का जीवन दूभर हो गया है।
मजबूत हो रहे हैं चक्रवात
भारत की समुद्री तट रेखा लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी है। पूर्वी तट और पश्चिमी तट दोनों ही नियमित रूप से चक्रवातों से प्रभावित होते रहते हैं।
पिछले साल, उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में कुल पांच चक्रवात बने थे, जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल हैं। इन चक्रवातों में सुपर चक्रवाती तुफान अम्फान, बहुत गंभीर चक्रवाती तुफान निवार और गति, गंभीर चक्रवाती तुफान निसर्ग और चक्रवाती तुफान बुरेवी शामिल थे।
इनमें से निसर्ग और गति अरब सागर के ऊपर बने थे जबकि शेष तीन चक्रवातों का निर्माण बंगाल की खाड़ी के ऊपर हुआ था।
इस साल, अब तक मई के महीने में भारत में दो चक्रवात आ चुके हैं- अरब सागर में चक्रवात तौकते और बंगाल की खाड़ी में चक्रवात यास। चक्रवाती गतिविधियों के मामले में खाड़ी को अरब सागर की तुलना में अधिक ‘सक्रिय’ माना जाता है।
वशिष्ठ ने गांव कनेक्शन को बताया, “गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी कई बड़ी नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इन नदियों का पानी समुद्र के पानी की तुलना में थोड़ा गर्म होता है। गर्म महासागर चक्रवाती गतिविधियों के लिए अनुकूल होते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब अरब सागर भी अस्थिर हो रहा है और वहां भी अधिक चक्रवात देखे जा रहे हैं।”
आपदा प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण की जरूरत
आपदा प्रबंधन पर काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि चक्रवातों से होने वाले दीर्घकालिक संकट से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण का अभाव है। शर्मा ने कहा, “यह केवल तीन या चार दिनों की चक्रवाती गतिविधि नहीं है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर समुदाय को प्रभावित करता है।”
वशिष्ठ के अनुसार, हम आपदा प्रतिक्रिया के तंत्र को मजबूत करने के लिए इसे व्यक्तियों और बाजारों पर नहीं छोड़ सकते। उन्होंने कहा, “वर्तमान में जो किया जा रहा है वह एक ‘प्राथमिक दृष्टिकोण’ है। हम घरों की मरम्मत केवल इसलिए करवाते हैं ताकि अगले चक्रवात में वह फिर से क्षतिग्रस्त हो जाए।” उन्होंने आगे कहा, “चक्रवात संभावित क्षेत्रों में घरों और तटबंधों के निर्माण पर एक स्पष्ट दिशा-निर्देश की आवश्यकता है।”
सुंदरबन में काम करने वाले मंडल ने कहा कि लोगों की सबसे बड़ी मांग मजबूत तटबंधों का निर्माण है जो चक्रवात के दौरान बढ़ते पानी का सामना कर सकते हैं।
एक जून को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बताया कि राज्य में क्षतिग्रस्त हुए 329 में से 305 तटबंधों की मरम्मत का काम शुरू कर दिया गया है।
इन चक्रवातों की वजह से हुई तबाही से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक उपायों के बारे में बात करते हुए वशिष्ठ ने कहा कि निचले इलाकों में आजीविका का विविधीकरण जरूरी है।
इस बीच, सोरेन को एक बार फिर अपने परिवार के लिए पीने के पानी की तलाश में जाना पड़ रहा है। इस दौरान, उनके परिवार के अन्य सदस्य बिना छत वाले घर के अंदर सोरेन की प्रतीक्षा करते हैं।,
अनुवाद- शुभम ठाकुर