आदर्श कटियार महज 33 साल के थे, गांव से एक बारात गई थी, जिसमें वो भी शामिल हुए थे। वापस आने के बाद उनकी तबियत बिगड़ी। परिजन कानपुर के चक्कर लगाते रहे लेकिन भर्ती नहीं करा पाए। वापस घर लाने पर उनकी मौत हो गई।
आदर्श की कोविड जांच नहीं हुई थी। वे उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के दाढ़ापुर गांव के रहने वाले थे, इस गांव में हर घर में 2-3 लोग बीमार हैं। बुखार, खांसी जैसे कोरोना के लक्षण है लेकिन किसी की जांच नहीं हुई। न कोई कराने गया न सरकारी सिस्टम जांच के लिए गांव पहुंचा।
कानपुर देहात से करीब 800 किलोमीटर दूर बीकानेर जिले के पलाना गांव में इस वक्त 70-80 लोग कोविड पॉजिटिव हैं जो घर में रहकर इलाज करा रहे हैं। इसी गांव के किसान आसुराम गोदारा (38 वर्ष) खुद कोरोना संक्रमित हो गए थे फिलहाल उनकी सेहत में सुधार है।
गोदारा फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “सबसे पहले तो गांव में एक दो बारातें आईं फिर 23-24 अप्रैल को यहां आंधी पानी (बारिश) आया था, जिसके बाद लोग ज्यादा बीमार हुए। शुरू में लोगों को लगा मौसमी बुखार है। कुछ लोगों ने बीकानेर जाकर जांच कराई तो 5-6 लोग कोविड मिले, जिसके बाद सरकार की एक वैन आई और जांच किया तो करीब 80 लोग संक्रमित मिले है। इलाज जारी है।”
भारत के ग्रामीण इलाकों में बढ़ते कोरोना संक्रमण के लिए लोग पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव, उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव, कुंभ और शादी-समारोहों को जिम्मेदार बता रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की मतगणना वाले दिन कई मतगणना स्थलों पर प्रत्याशी और एजेंट कोविड पॉजिटिव मिले, जबकि वो इससे पहले भीड़ का हिस्सा थे। मगगणना के बाद यूपी सरकार ने 7 मई तक के लिए लॉकडाउन बढ़ा दिया है साथ ही पांच दिवसीय प्रदेशव्यापी स्क्रीनिंग अभियान शुरू करने के आदेश दिए हैं। संदिग्ध लक्षण वाले लोगों का रैपिड एंटीजन टेस्ट होगा और पॉजिटिव मिलने पर जरूरत के अनुसार अस्पताल, होम आइसोलेशन अथवा क्वारंटीन सेंटर भेजा जाएगा।
कोरोना की दूसरी लहर में देश के अलग-अलग राज्यों से लोगों की मौत और तमाम गांवों से लोगों बीमार होने की खबर आ रही हैं, जिनके लक्षण कोरोना से मिलते-जुलते हैं। शहरों में लॉकडाउन लगा है लेकिन गांवों में शादियां हो रही हैं जिनमें ज्यादातर में कोरोना की गाइडलाइंस का पालन नहीं हो रहा हैं। शादी, बारात, मुंडन, जनेऊ, भोज, मृतक भोज में उमड़ रही भीड़ जागरूक लोगों को डरा रही है।
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“गांव में हर दूसरे दिन किसी के यहां शादी हो रही है, किसी के जनेऊ का भात हो रहा है। बारातों में 150-200 लोग आ रहे है। शहर में लॉकडाउन है लेकिन गांव में सब चल रहा है। कोई पटना से आ रहा है कोई मधुबनी, अगर कोई संक्रमित होगा तो पूरे गांव में संक्रमण होगा। शादी-जनेऊ पर तुरंत प्रतिबंध लगना चाहिए। नहीं तो बिहार में कोरोना बेकाबू हो जाएगा।” कोलकाता यूनिवर्सिटी में बीकॉम द्वितीय वर्ष के छात्र क्षितिज शर्मा चिंता जताते हैं।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के चलते यूनिवर्सिटी बंद होने के बाद वो बिहार के सारन जिले के शीतलपुर में अपनी नानी के यहां रह रहे हैं, लेकिन आसपास के गांवों के हालात देखकर वो डरे हुए हैं। “हमारे यहां से पटना 25-30 किलोमीटर दूर है। पटना में कई साथियों के परिवार वाले कोविड से परेशान हैं। फिर भी लोग नहीं मान रहे, जबकि पटना और बिहार की स्थिति आप जानते ही हैं।” क्षितिज ने 2 दिन पहले गांव कनेक्शन को एक मैसेज भेजकर भी अपने इलाके की स्थिति पर चिंता जताई थी।
भारत के ज्यादातर हिस्सों में अप्रैल-मई के सीजन को सादियों का सीजन या सहालग कहा जाता है, लेकिन ये लगातार दूसरा साल है जब सात फेरों पर कोरोना का साया पड़ा है। उत्तर प्रदेश में 50, राजस्थान में 31, उत्तराखंड में 25 लोगों और बिहार में 100 लोगों के शादी समारोहों में शमिल करने की इजाजत है। लेकिन कोरोना गाइडलाइंस को दरकिनार कर शादी-बारातों में भारी भीड़ उमड़ रही है।
बिहार के पूर्णिया जिले रहने वाले किसान और लेखक गिरींद्र नाथ झा और उनके जैसे कई जागरूक लोगों से शाही समारोहों के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं।
“विवाह,पार्टी श्राद्ध के नाम पर भोज जैसे आयोजनों का बहिष्कार करिए। ना कहना शुरू कीजिए, कार्ड लेकर जो आए, उससे आप खुलकर करिए कि भीड़ जुटाकर आप ठीक नहीं कर रहे हैं। डिजिटल कार्ड भेजे तो खुलकर बोलिए। भले आपको बोलने से कुछ फर्क न पड़े लेकिन बोलिए।” गिरींद्र ने फेसबुक पर लिखा।
25 अप्रैल को उन्होंने समस्तीपुर की एक घटना का जिक्र किया जिसमें एक महिला की मौत होने के बाद आयोजित भोज में दिल्ली से एक रिस्तेदार शामिल होने पर पहुंचे, वो लोगों से मिलते जुलते रहे और बाद में उनकी तबीयत बिगड़ी और भर्ती कराना पड़ा। साथ ही 10 और लोग कोविड़ पॉजिटिव मिले, इसलिए भीड़ से बचिए।
वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “पिछले साल बिहार कोरोना से बच गया था लेकिन इस साल हालात मुश्किल हैं। मैंने 20 दिनों से खुद को घर मैं बंद कर रखा है। क्योंकि यही एक तरीका है संक्रमण से बचने का। मेरे आसपास लोग रोज शादियां हो रही, डीजे बज रहे। लोगों को फर्क नहीं पड़ रहा। रिश्तेदार रुठे रूठने तो, रिश्ता टूटे तो टूटने दो लेकिन इस वक्त सबसे जरूरी है कि ऐसी जगहों से जाने से बचे, जान रहेगी तो फिर सब होगा जाएगा”
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बिहार के मधुमनी में रहने वाले वाले सामाजिक कार्यकर्ता राज झा (55 वर्ष) भी लगातार अपने कम्युनिटी रेडियो ‘रेडियो मधुबनी’ के जरिए लोगों से कोरोना गाइडलाइंस मानने के लिए जागरूक कर रहे हैं। साथ ही लोगों से शादी बारातों से दूर रहने, समारोह टालने की व्यक्तिगत अपील भी कर रहे हैं
वे फोन पर बताते हैं, “गांवों के हालत खराब हैं लेकिन ये पता कैसे चलेगा कि कोरोना है जांच हो रहीं नहीं होगी तो रिपोर्ट या तो तब जाएगी जब वो ठीक हो जाएगा या कहो मरने के बाद। ऐसे में सबसे जरूरी है एतहियात बरता जाए। लोग मानते नहीं कि उन्हें लगता है सर्दी जुखाम तो हर साल होता है। जागरुकता की कमी है,हमारे पास एक वैन जो दिनभर लाउडस्पीकर के जरिए भी लोगों को जागरुक करती है। शादी डीजे पर के लिए लोग मान नहीं रहे।”
सोमवार तीन मई को 3.68 लाख से ज्यादा नए कोरोना मरीज मिले हैं और 3,417 लोगों की मौत हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में संक्रमित मरीजों की कुल संख्या बढ़कर 1,99,25,604 हो गई है। वहीं बीते 24 घंटों में 3,417 लोगों की कोरोना से जान चली गई। इसके साथ कोविड से मरने वालों की संख्या 2,18,959 पहुंच गई।
राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में बिगड़ते हालातों को देखते हुए 1 मई को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लोगों से शादियां टालने की अपील की है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “कोरोना की इस भयावह दूसरी लहर के दौरान जिन लोगों की शादियां हैं उनसे अपील है कि वो फिलहाल टाल दें। अभी शादियों में खुशियों से ज्यादा कोविड की चिंता रहने लगी है। इस महामारी पर विजय पाने के लिए कोविड संक्रमण को तोडना जरुरी है, जो शादी में आने वाली भीड़ से संभव नहीं होगा।”
अशोक गहलोत के इसी मैसेज के नीचे एक ट्वीटर यूजर परमेश्वर सुमन ने लिखा, “सर अपील से कुछ नहीं होगा, आपसे निवेदन है कि इस संबंध में जल्द ऑर्डर निकाले, और इन शादियों पर रोक लगाएं गांव में बहुत बुरा हाल होने वाला है, शादियों से कम्यनिटी स्प्रेड कभी भी हो सकता है।”
राजस्थान में सरकार ने 17 मई तक शादियों में शामिल होने के लिए 31 लोगों को छूट दी है। लेकिन यहां कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरुक लोगों ने शादियों पर पूरी तरह रोक की मांग शुरु की है।
राजस्थान के झुंझनू जिले की तहसील सूरतगढ़ के झाझडियां की ढाणी में रहने वाले उमेश झाझडिया के सवां, सौ घरों वाले गांव में फिलहाल कोई कोविड का केस नहीं है लेकिन बीमार कई घरों में लोग हैं।
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उमेश कहते हैं, “झुंझनू के लोग नौकरी में ज्यादा भरोसा करते हैं। दिल्ली, नोएडा या महाराष्ट्र में नौकरी करती हैं। अप्रैल के पहले हफ्तों में ये खबरें, अफवाहें आने शुरू हो गई थीं कि लॉकडाउन लगेगा, इसके लिए वो लोग भी गांवों में शादी समारोह कर रहे जो शहर में करने वाले थे। पिछले 6-7 दिनों में हमारे जिले में तेजी से केस बढ़े हैं। कई गांवों को सील किया गया है।”
उमेश के मुताबिक देश के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों की तरह उनके यहां भी लोग कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वो कहते हैं, “जब मैं ट्वीटर पर बड़े बड़े लोगों को एक एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए तरसते हुए देखता हूं तो अंदाजा लगाता हूं कि गांव में ऐसा कुछ होता तो क्या होगा, ये बात दूसरे लोगों को भी समझाता हूं। हालांकि राजस्थान के गांवों में काम अच्छा हो रहा है लेकिन अगर कोरोना गांव में फैल गया तो संभालना मुश्किल होगा क्योंकि शहर इतने संसाधन होने के बाद हालात बेकाबू हैं।”