खतरनाक साबित हो रही कोविड-19 की दूसरी लहर में ग्रामीण भारत का क्या है हाल?

गाँवों में अब लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी है। उन्हें बुखार और सर्दी-खांसी है, वहीं कई लोगों को सांस लेने में तकलीफ भी हो रही है। ये सभी कोविड-19 के लक्षण हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वहां कोविड परीक्षण और चिकित्सा सहायता की कोई नहीं व्यवस्था है। इसके साथ ही टीकाकरण भी नहीं हो रहा है।
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समाचार चैनलों को ऑन करते ही आप आज के भारत की तस्वीर देख सकते हैं। आप देखेंगे कि शहरों के अस्पतालों में भयंकर भीड़ है। अस्पतालों के बाहर मरीज भर्ती होने का इंतज़ार करते स्ट्रेचर पर पड़े हुए हैं। मरीज के परिजन हताश और परेशान हैं। वे या तो अस्पतालों के बाहर इंतज़ार करते हुए खड़े हैं या फिर ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग दवाईयों के लिए मेडिकल दुकानों के बाहर लंबी-लंबी कतारों में खड़े हुए हैं।

इसी तरह एक बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर भी टहल आइए। आप देखेंगे कि असहाय शहरी लोग मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर, रेमडेसिवीर या किसी अस्पताल में महज एक बिस्तर के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं, और वेरिफाइड लीड की तलाश करते हुए वहां उनके ट्वीट व रीट्वीट तैर रहे हैं।

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने देश को बुरी तरह से प्रभावित किया है। भारत में कल संक्रमण के 357,229 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 3,449 लोगों की मौत हुई है। दो दिन पहले ही दैनिक संक्रमण के मामलों ने चार लाख के आंकड़े को पार किया है।

इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट के समय में उस ग्रामीण भारत की स्थिति कैसी है जहां देश का हर छठा भारतीय रहता है? क्या वायरस हमारे गांवों तक पहुंच गया है? क्या ग्रामीण पीड़ित हैं? अब तक कितने लोगों का टीकाकरण हुआ है? कितने का परीक्षण हो रहा है? इस दूसरी लहर का सामना करने के लिए हमारा ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा कितना तैयार है? ये सब इस समय के कुछ महत्वपूर्ण सवाल हैं।

आरटी-पीसीआर जांच को अधिक भरोसेमंद माना जाता है, जबकि रैपिड एंटीजन रिजल्ट थोड़ी देर में ही आ जाता है। फोटो: अरेंजमेंट

ग्रामीण इलाकों में लोगों में सूचना और जागरूकता का अभाव है।

कुछ रिपोर्टों के मुताबिक गांवों में अब लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी है। उन्हें बुखार और सर्दी-खांसी है, इसके साथ ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ भी हो रही है। ये सभी कोविड-19 के लक्षण हैं। ग्रामीणों का दावा है कि उन्होंने इस तरह की बड़ी बीमारी पहले कभी नहीं देखी थी। पिछले साल महामारी की पहली लहर के दौरान भी हालात इतने बुरे नहीं थे। वास्तव में हम नहीं जानते कि गांवों में कोविड-19 का प्रसार कितना हुआ है क्योंकि वहां लोगों का परीक्षण ही नहीं हो रहा है। अनुमान है कि कई लोगों की मौत कोरोना की वजह से हो रही है लेकिन चूंकि परीक्षण नहीं हो रहे हैं, इसलिए ऐसा दावे के साथ कहना मुश्किल है।

भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण मीडिया प्लेटफ़ॉर्म गाँव कनेक्शन लगभग एक दशक से ग्रामीण भारत की आवाज़ को सरकार व देश के लोगों तक पहुंचाने के लिए लगातार काम कर रहा है।

पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में कोविड-19 के प्रभाव पर एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में 20 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 179 जिलों के 25,371 ग्रामीण उत्तरदाताओं ने हिस्सा लिया था। इस सर्वेक्षण की “द रूरल रिपोर्ट 1” नामक रिपोर्ट को हाल ही में राज्यसभा के अंतिम सत्र में भी उद्धृत किया गया था।

कोरोना की इस दूसरी लहर में भी गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर और सामुदायिक पत्रकार फील्ड पर हैं। वे इस महामारी का ग्रामीण भारत पर पड़ने वाले प्रभावों को रिपोर्टिंग के माध्यम से लोगों के बीच लेकर आ रहे हैं।

इस दौरान गाँव कनेक्शन के संस्थापक नीलेश मिसरा द्वारा किए गए 2 मई के एक ट्वीट से यह पता चला कि गाँवों की वर्तमान स्थिति कितनी चिंताजनक है। ट्वीट के कई जवाब ऐसे हैं जिनसे समझा जा सकता है कि दूसरी लहर से ग्रामीण भारत कितना प्रभावित हुआ है।

मैसेज के जरिए ग्रामीण भारत के लोगों ने बताया कि कैसे दूसरी लहर बड़े पैमाने पर बीमारी का कारण बन रही है और लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ रहे हैं। कई मर भी रहे हैं। कहीं परीक्षण नहीं हो रहा है। टीकाकरण अभी भी बाकी है। इस तरह ग्रामीण भारत इस वक्त डरा और सहमा हुआ है।

मिसरा के ट्वीट के एक जवाब में, राजस्थान में बाड़मेर की सिणधरी तहसील के सड़ा धनजी गांव के ठाकरा राम ने कहा कि उनके गाँव में कोई कोविड परीक्षण नहीं हो रहा है। ग्रामीणों को परीक्षण के लिए कम से कम 30 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। ग्रामीणों में डर है कि अगर वे वायरस से संक्रमित होते हैं, तो उन्हें कुछ बड़े अस्पतालों में ले जाया जाएगा जहां वे मर भी सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि गाँवों में शादियाँ जोरों से चल रही हैं और फेस मास्क या शारीरिक दूरी जैसे कोविड नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।

इसी तरह, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के पतारा खुर्द गाँव के तरुण मिश्रा ने कहा कि उनके गाँव में कोविड से किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन अब तक गांव में कोविड परीक्षण भी नहीं किया जा रहा है। 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के अंतर्गत गाँव की आबादी के केवल 50 प्रतिशत लोगों का ही टीकाकरण किया गया है। उन्होंने दावा किया कि कमलापुर के पड़ोसी गांव में कई लोगों की मौत कोविड से हुई है। हालांकि, वहां भी सभी का परीक्षण नहीं किया गया है।

लोगों ने बताया कि गाँव में लोग टीका लगवाने से भी डर रहे हैं। फोटो: अरेंजमेंट

बिहार के औरंगाबाद के बरौली गाँव के सौरभ कुमार ने कहा कि कोरोनावायरस उनके गाँव में अब तक नहीं पहुँचा है, लेकिन गाँव में कोई भी कोविड परीक्षण की व्यवस्था नहीं है।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी की शानिया ने कहा कि स्थिति बेहद चिंताजनक है। उन्होंने बताया, “अस्पताल मरीजों को भर्ती नहीं ले रहे हैं और परीक्षण की कोई व्यवस्था भी नहीं है। गाँवों में कई परिवार मर रहे हैं, लेकिन इसके बारे में लोगों में कोई जागरूकता नहीं है।”

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के पूरे भगवत गाँव के ऋषभ द्विवेदी ने बताया कि उनके गाँव और आसपास के अन्य गाँवों के लोगों में कोविड-19 के लक्षण हैं, और लोग मर भी रहे हैं, लेकिन प्रशासन न तो लोगों का परीक्षण कर रहा है और ना ही होम क्वारंटीन पर रहने वाले मरीजों के लिए परीक्षण किट की व्यवस्था की गई है।

ट्वीट पर जवाब देने वाले लोगों के मुताबिक ग्रामीण भारत में हर दूसरे गाँव की यही कहानी है। यहां केवल गांव, जिले और राज्य के नाम ही बदल रहे हैं पर सभी गांवों की कहानी लगभग एक जैसी ही है। इस वक्त ग्रामीण भारत खुद को असहाय महसूस कर रहा है।

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