विदेशों से दाल आने से उपभोक्ता, निर्यातक, किसान और दाल मिल, किसे फायदा किसे नुकसान?

देश में दाल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 15 मई को विदेश से आने वाली दाल को कर मुक्त कर दिया था। इससे उपभोक्ताओं को सीधा फायदा तो हुआ लेकिन दालों के मामले में आत्मनिर्भर होने की योजना को झटका लग सकता है। किसानों को आशंका है कि विदेश से दाल आने से उनकी फसल के दाम पर असर पड़ेगा।
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फरवरी से लेकर अप्रैल तक अरहर की जो दाल फुटकर में 140 रुपए प्रति किलो के ऊपर बिकने लगी थी, वह जून में वापस 100-125 के रेट में आ गई है। महंगाई कम करने के लिए केंद्र सरकार ने 15 मई को आयात में छूट देने का ऐलान किया था। इसके अलावा कई राज्यों में लॉकडाउन खुलना और मिलों, व्यापारियों द्वारा स्टॉक की घोषणा अनिवार्य किए जाने के नियमों से दाल के रेट में नरमी आई है।

कोरोना की मार के बीच दलहन के दाम कम होने से उपभोक्ताओं को तो राहत मिली है, लेकिन इऩ्हें उगाने वाले किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं। किसानों को डर है कि जब विदेशों से सस्ती दाल आ जाएगी तो उनकी अरहर, उड़द और मूंग की किस तरह का बाजार में भाव मिलेगा?

महाराष्ट्र में लातूर जिले के किसान महारुद्र शेट्टी ने इस साल अपनी 8 क्विंटल अरहर (तुअर) 6,400 रुपए प्रति कुंतल (क्विंटल) में बेची है। इससे पहले साल 2019-20 में उन्हें 5,700 का रेट मिला थाए जबकि 2018-19 में उन्हें 4,700 रुपए का भाव मिला था। वे फिर अरहर बोने की तैयारी में हैं लेकिन उन्हें इस साल अच्छे रेट मिलेंगे कि नहीं, इसकी चिंता है।

“दो साल से तुअर का रेट ठीक मिलने लगा था, लेकिन इस साल सरकार ने फिर विदेश से दाल मंगा ली है, जब बाहर से सस्ती दाल आ जाएगी तो किसानों को रेट कैसे मिलेगा?” महारुद्र शेट्टी कहते हैं।

शेट्टी का गांव उस्तरी लातूर जिले के निलंगा तालुका (तहसील) में पड़ता है। महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के कई जिलें लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड और कर्नाटक के कलबुर्गी जिला देश की सबसे बड़ी तुअर की बेल्ट है।

महारुद्र शेट्टी तुअर (अरहर), अदरक सोयाबीन की खेती करते हैं। इस बार भी वो 15 जून के बाद 2 एकड़ अरहर बोने की तैयारी में हैं। पिछले साल भी उनके पास 2 एकड़ फसल थी।

सरकार के इस फैसले का असर ये होगा किसानों को जो रेट मिल रहा है वो नहीं मिलेगा। इसका फायदा होगा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, विदेश से माल मंगाने वाले एजेंट को होगा।- सुरेश अग्रवाल, अध्यक्ष, ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन

केंद्र सरकार ने देश में दालों की मांग को पूरा करने और महंगाई को काबू करने के लिए 15 मई को मूंग, उड़द और तूर (अरहर) को आयात से मुक्त कर दिया था। तीनों दालों 31 अक्टूबर 2021 तक के लिए प्रतिबंधित से हटाकर निशुल्क की श्रेणी में डाल दिया गया है। सरकार की दलील है कि इस लचीली नीति से दालों का निर्बाध और समय पर आयात हो सकेगा।

“सरकार के इस फैसले का असर ये होगा किसानों को जो रेट मिल रहा है वो नहीं मिलेगा। इसका फायदा होगा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, विदेश से माल मंगाने वाले एजेंट और उन कंपनियों के जिनके दफ्तर म्यामार और जिम्बाबे में हैं। भारत में 8,000 से ज्यादा दाल मिल और इंडस्ट्री हैं उन्हें भी नुकसान होगा।” सुरेश अग्रवाल, अध्यक्ष, ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन, इंदौर से गांव कनेक्शन को बताते हैं।

सुरेश अग्रवाल आगे कहते हैं,” थोक में दालों के दाम कभी ज्यादा नहीं बढ़े थे। 10-15 फीसदी का अंतर था, आज भी बढ़िया दाल 95 रुपए किलो है। अगर सरकार ने ये फैसला महंगाई कम करने के लिए लिया है तो महंगाई दाल में नहीं पेट्रोल-डीजल और सरसों के तेल में है, सरकार को उधर कुछ करना चाहिए था।”

इससे पहले 2016 में घरेलू बाजार में दलहन महंगा होने पर सरकार ने अफ्रीकी देश मोजांबिक से दाल आयात के लिए दीर्घअवधि (लंबे समय के लिए) समझौता किया था, जिसके चलते अगले साल घरेलू बाजार में दलहनी फसलों के दाम गिर गए थे।

दाल प्रोट्रीन का बड़ा जरिया और देश की एक बड़ी आबादी का भोजन है। अरहर, उड़द, चना, मूंग, मटरी, मंसूर समेत कई तरह की दालें भारत में उगाई जाती हैं, लेकिन सबसे ज्यादा खपत उत्पादन और सस्ता होने के चलते चने की होती है।

दलहन के आयात में छूट का फैसला सिर्फ उपभोक्ताओं को खुश करने का जरिया है, या इसके पीछे की और कई वजहें? आगे बढ़ने से एक नजर भारत दालों के उत्पादन और आयात पर डालते हैं।

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25 मई को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने बताया कि सरकार, वैज्ञानिक और किसानों के अथक प्रयासों के चलते साल 2020-21 के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक खाद्यान का रिकॉर्ड उत्पादन 30.544 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो 2019-20 मुकाबले 79.4 लाख टन ज्यादा है। कुल खाद्यान में दलहन की बात करें तो तुअर (अरहर) 0.414 करोड़ टन, चना रिकॉर्ड 1.261 करोड़ टन और सभी दालों का उत्पादन 2.558 करोड़ टन रहने का अनुमान है।

लेकिन 2016-17 के 23.13 मिलियन टन और 2017-18 के 25.42 के मुकाबले साल 2018-19 (22.08) औऱ 2019-20 (23.03 मिलियन टन) में उत्पादन काफी कम हुआ है।

एपीडा की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-14 में भारत ने 3.4 मिलियन टन दालों का आयात किया था। वर्ष 2014-15 में इसमें बढ़ोतरी हुई और कुल आयात 4.4 मिलियन टन हुआ। वर्ष 2015-16 में 5.6 मिलियन टन, 2016-17 में 6.3 मिलियन टन दाल आयात हुआ। फिर वर्ष 2017-18 में इसमें थोड़ी कमी आई और यह 5.4 मिलियन टन पर आ गया। वर्ष 2018-19 में दालों का आयात पिछले साल की अपेक्षा आधी हो गई और यह 2.4 मिलियन टन पर आ गया। लेकिन अब एक बार फिर मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा आयात की जरुरत है।

सुरेश अग्रवाल के मुताबिक भारत की सालाना दलहन की मांग करीब 250 लाख मीट्रिक टन है जबकि हमारा उत्पादन औसतन 215 लाख मीट्रिक टन होता है। बाकी मंगाना पड़ता है।

पिछले साल तुअर और उड़द दोनों की पैदावार में कमी आई थी क्योंकि सितंबर-अक्टूबर में भारी बारिश हुई थी। ऐसे में रेट बढ़ने ही थे, जिसमें उपभोक्ता का नुकसान था। दूसरा अभी देश में उड़द और अरहर दोनों की फसल आने में काफी टाइम है। ऐसे में महंगाई और बढ़ सकती थी।-प्रदीप घोरपड़े, सीईओ, भारत दलहन और अनाज संघ

इंडियन प्लसेज एंड ग्रेन एसोसिशिएन (भारत दलहन और अनाज संघ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रदीप घोरपड़े मुंबई से गांव कनेक्शऩ को फोन पर मांग, उत्पादन और आयात का गणित समझाते हैं।

प्रदीप कहते हैं, “पिछले साल तुअर और उड़द दोनों की पैदावार में कमी आई थी क्योंकि सितंबर-अक्टूबर में भारी बारिश हुई थी। ऐसे में रेट बढ़ने ही थे, जिसमें उपभोक्ता का नुकसान था। दूसरा अभी देश में उड़द और अरहर दोनों की फसल आने में काफी टाइम है। ऐसे में महंगाई और बढ़ सकती थी।”

भारत अपनी घरेलू दलहन की मांग को पूरा करने के लिए म्यामार, कुछ अफ्रीकी देशों, कनाडा से दालों का आयात करता है, लेकिन ये आयात 15 मई के पहले कुछ अलग नियमों के तहत होता था। व्यापारी और मिल मालिक लाइसेंस के आधार पर एक निश्चित मात्रा में आयात कर सकते थे, उस पर भी सरकार का टैक्स लगता था लेकिन अब 31 अक्टूबर 2021 तक उड़द, मूंग और तुअर कर मुक्त हैं।

प्रदीप कहते हैं, ” पिछले साल सरकार ने 4 लाख टन तुअर, 4 लाख टन उड़द और 1.5 लाख टन मूंग आयात के लिए निर्धारत किया था। ये माल पूरा पहले 31 दिसंबर तक पहुंचना था फिर सरकार ने इसकी मियाद बढ़ाकर 15 मई किया था। तो देश में पैदावार कम हुई है, आयात का कोटा पूरा चुका था, नई फसल आऩे में समय है, इसलिए सरकार को नियमों में बदलाकर आयात में छूट देनी पड़ी।”

भारत दलहन और अनाज संघ के मुताबिक विदेश में तुअर अभी उपलब्ध है। म्यामार में ही करीब 1.5 लाख टन से 2 लाख टन तुअर होने का अनुमान है। भारत के अलावा तुअर म्यामार और ईस्ट अफ्रीका के कुछ देशों (जिम्बांबो, मोजांबिक, केन्या) में ही पैदा होती है। जबकि उड़द, भारत के अलावा सिर्फ म्यामार में पैदा होता है।

प्रदीप घोरपड़े कहते हैं, “पाबंदियां हटने का फायदा ये होका कि जब म्यामार और अफ्रीकी देशों में फसल आएगा आसानी से आयात किया जा सकेगा। इऩ देशों में अरहर अक्टूबर से पहले तैयार होती है जबकि भारत में दिसंबर। हमारे यहां जून के बाद अरहर की बुवाई शुरू हो जाएगी तो ये पता रहेगा कि कितना घरेलू उत्पादन और कितना बाहर से मंगाना है। आखिरी समय पर आयात करने से विदेशी निर्यातक और उत्पादक देश रेट भी बढ़ा देते हैं अब वो ऐसा नहीं कर पाएंगे।”

भारत में तुअर की खेती खरीफ सीजन में होती है। ये लंबी अवधि यानि 6-7 महीने की फसल है। जबकि उड़द की खेती साल में दो बार (रबी और खरीफ) होती है। खरीफ की फसल जो जून-जुलाई में बोई जाएगी सितंबर अक्टूबर में तैयार होगी। दलहन का उत्पादन पूरी तरह बारिश पर निर्भर करता है। साल 2015-16 से लेकर 2018 तक अच्छी बारिश रही थी जिसका नतीजा दलहल में अच्छा उत्पादन रहा था।

“सरकार ने तर्क दिया है कि विदेश से जो दाल आएगी वो देश में किसान की फसल पैदा होने के एक-डेढ़ महीना पहले आ चुकी होगी, इसलिए किसानों को नुकसान नहीं होगा लेकिन दलहन ऐसी फसल तो है नहीं कि आएगी और तुरंत खत्म हो जाएगी। तो किसानों पर तो असर पड़ेगा ही। ” देश में कमोडिटी बाजार पर नजर रखने वाले बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार के कृषि संपादक संजीब मुखर्जी कहते हैं।

एक तरफ आप दहलन उत्पादन में आत्मनिर्भर होना चाहते हैं, दूसरी विदेश से दाल मंगवा रहे हैं। हमारे देश में किसान की मेहनत और घाटा किसी को नहीं दिखता है लेकिन किसान को दो पैसे मिलने लगते हैं तो वो सबकी नजर में आ जाते हैं क्योंकि हमारी नीतियों में ही किसान नहीं है।- देविंदर शर्मा, खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ

देश में दालों की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार इसी सीजन में 300 करोड़ रुपए की दलहन और तिलहन के बीज की मिनी किट 13.51 लाख किसानों को देगी।

खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं,” एक तरफ आप दहलन उत्पादन में आत्मनिर्भर होना चाहते हैं, दूसरी विदेश से दाल मंगवा रहे हैं। पिछले इस वर्ष दलहन-तिहलन का किसानों को कुछ ठीक रेट मिलने लगा था, जिसे सरकार और कुछ लोग महंगाई समझ रहे हैं।”

वो आगे कहते हैं,” हमारे देश में किसान की मेहनत और घाटा किसी को नहीं दिखता है लेकिन किसान को दो पैसे मिलने लगते हैं तो वो सबकी नजर में आ जाते हैं क्योंकि हमारी नीतियों में ही किसान नहीं है।”

प्रदीप कहते हैं, “हर साल करीब 10 लाख मीट्रिक टन की मांग बढ़ती जा रही है।”

भारत की दाल आयात नीति का कई देश विरोध भी करते हैं। विश्व व्यापार संगठन में इसकी लगातार शिकायत होती है। भारत सिर्फ दाल का आयात ही नहीं करता बल्कि कई देशों को निर्यात भी करता है।

कृषि मंत्रालय की जून, 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी व्यापार समझौते के तहत भारत, आसियान और साफ्टा देशों के बीच मूंग, उड़द, मसूर, अरहर व चने के आयात-निर्यात पर कोई शुल्क नहीं है। लेकिन बीते 3-4 वर्षों में घरेलू दालों का उत्पादन काफी बढ़ा है। जिसके चलते सरकार ने कुछ दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाया था तो कुछ में आयात ड्यूटी बढ़ाई थी। हालांकि इन कदमों को कई देश विरोध भी करते हैं। डब्ल्यूटीओ की कृषि मामलों की समिति की बैठक में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका समेत कई देश राह में रोड़े लगाने और प्रतिबंध लगाने के अवसर तलासते रहते हैं।

भारत की दाल नीति पर ऑस्ट्रेलिया का सवाल।

दाल कारोबारी प्रदीप खंडेलवाल भी सरकार की पॉलिसी पर सवाल उठाते हैं। “सरकार चाहती हैं किसानों को सही भाव भी मिल जाए और उपभोक्ता को सस्ती भी मिले, लेकिन ये कैसे हो सकता है। अगर उपभोक्ता को सस्ते में खिलाना है तो ल सरकार को चाहिए कि गेहूं-चावल (पीडीएस) की तरह खरीदकर लोगों को सस्ते में, किसानों क्यों घाटा उठाएं।”

सरकार के आयात निर्यात के गुणा भाग और नीतियों से दूर राजस्थान में बीकानेर जिले के किसान आसुराम गोदारा को वही चिंता है महाराष्ट्र के महारुद्र शेट्टी को है,

गोदारा फोन पर बताते हैं, “2017 में चने की कीमतों को लेकर किसानों ने राजस्थान में आंदोलन किया था, उस वक्त एमएसपी करीब 4200 रुपए थी जबकि किसानों का चना बाजार में 3000-3200 में जा रहा था। 2020-21 वो साल है जब चने का बाजार भाव भी एमएसपी (5100) के 100-200 कम और ज्यादा में चल रहा है, अब विदेश से दाल आ जाएगी तो हमें फिर रेट कैसे मिलेगा।”

अग्रवाल कहते हैं, ” उत्पादन बढ़ाने आसान तरीका है कि किसानों को अच्छा मूल्य दिया जाए। किसानों को अरहर और उड़द का समर्थन मूल्य बढ़ाकर कम से कम 8000 रुपए क्विंटल किया जाना चाहिए।”

स्टॉक निगरानी पर रोक लगाने की मांग 

दालों के आयात में छूट के अलावा सरकार ने दाल मिलों, निर्यातकों, व्यापारियों आदि से रोज का स्टॉक भी मांगा था। दालों के स्टॉक की घोषणा करने के लिए मिलों, व्यापारियों, आयातकों आदि द्वारा दी गई जानकारी को राज्य / केंद्रशासित प्रदेश सरकारों द्वारा भी सत्यापित किया जा सकता है।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल सरकार ने इस नियम में छूट देने की मांग की है। उन्होंन कहा, झारखंड और गुजरात में सरकार रोज स्टॉक के आंकड़े मांग रही है, ये रोज संभव नहीं सरकार को इस पर विचार कर तीन महीने करना चाहिए।”

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