चांदमारी बस्ती (पन्ना, मध्य प्रदेश)। अधबुझे चूल्हे पर एक रोटी पक रही है, सामने बैठी करौंदी बाई (28 वर्ष) के घुटनों पर एक बच्चा लिपटा हुआ है। बच्चे के पेट और पीठ के बीच पट्टी बंधी है। बात करते-करते वो कई बार उसकी पीठ पर हाथ फेरती हैं। बच्चे की सेहत को लेकर उनकी चिंता उनके चेहरे और बातों दोनों में झलकती है। और हो भी क्यों ना, पिछले एक पखवाड़े में उनके आसपास के 3 बच्चों की मौत हो चुकी है, गांव में 12 से ज्यादा बच्चे बीमार हैं।
उनसे कुछ दूरी पर ही राजकली बाई (27 वर्ष) अपने मिट्टी के घर बैठ कर अपने बच्चे को दूध पिला रही हैं। पिछले 27 जून को उनकी करीब 3 साल की बेटी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।
“उसे मरे आज 10 दिन हो गए। सर्दी जुकाम, ताप था, कल्लू डॉक्टर (झोलाछाप) को भी दिखाए थे।” भर्राई आवाज़ में वो बताती हैं।
इतना कहकर वो दूध पी रहे बच्चे को देखती हैं, फिर कहती हैं, “बस्ती में सबसे ज्यादा समस्या पानी की है। ये जो तलैया (छोटा तालाब) उसी का पानी लाकर पीते हैं। बच्चों को ये सबसे ज्यादा नुकसान करता है। एक कब्रिस्तान में कुआं है ऊपर वहां से भी पानी लाते हैं।”
दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश में पन्ना जिले की इस आदिवासी बस्ती में चांदमारी में करीब 50 परिवारों के 250 लोग रहते हैं। गांव में पानी के तीन जरिया हैं एक हैंडपंप, जो बहुत कम पानी देता है, बस्ती से दूर कब्रिस्तान में बना एक पुराना कुआं और पहाड़ियों के बीच बना एक छोटा तालाब, जिसे गांव वाले तलैया कहते हैं, जहां गांव के लोगों का नहाना, कपड़े धोना होता है, ग्रामीणों के मुताबिक बहुत सारे लोग इसी तालाब का पानी भी पीते हैं।
27 जून को राजकली देवी की बेटी विनीता (करीब 3 वर्ष) की मौत हो गई थी। 2 जुलाई को इसी बस्ती के 4 वर्ष के शिवा और 3 वर्ष की रश्मि की मौत हो गई। गांव 12 से ज्यादा बच्चे बीमार हैं, जिनमें से 2 कुपोषित बच्चों को जिला अस्पताल के एनआरसी (पोषण पुनर्वास केंद्र) में इलाज चल रहा है।
पन्ना के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरएस पाण्डेय ने गांव कनेक्शन को बताया, “चांदमारी बस्ती में तीन बच्चों की मौत हुई है। सर्दी जुकाम बुखार के लक्षण थे। मौत किन कारणों से हुई इसकी जांच कराई जा रही है। रिपोर्ट आने पर कारण पता चलेगा। बस्ती के अन्य बीमार बच्चों और उनके परिजनों की कोरोना जांच कराई गई थी जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है।”
पन्ना के महिला एवं बाल विकास विभाग जिला कार्यक्रम अधिकारी ऊदल सिंह ने मुताबिक मृतक बच्चा शिवा कुपोषित था और उसका एनआरसी में इलाज में भी चल चुका था बच्चे को टीबी भी हो चुकी थी।
ऊदल सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं, “चांदमारी में फिलहाल बीमार मिले बच्चों में से 2 बच्चे कुपोषित हैं, उन्हें एनआरसी में भर्ती कराया गया है। बस्ती के अन्य बीमार बच्चों को जिला चिकित्सालय की टीम ने बस्ती में ही जाकर दवाइयां दी हैं, जिनकी स्थिति अब बेहतर है।”
आखिर में वो ये भी जोड़ते हैं, “चांदमारी बस्ती में ऐसे कई बच्चे हैं जिन्हें जरूरी पोषण नहीं मिल पा रहा, जिससे वे असामान्य हैं। 7-8 बच्चों की आंखें आड़ी-तिरछी हैं। जिसकी वजह विटामिन ए की कमी भी हो सकती है।
एक हफ्ते में तीन बच्चों की मौत का मामला मीडिया में आने के बाद पानी, कुपोषण को लेकर हंगामा मचा है। चांदमारी बस्ती पन्ना जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत पुरुषोत्तमपुर का मजरा (छोटी बस्ती) है। जहां पर ज्यादातर गौड़ आदिवासी रहते हैं। मध्य प्रदेश के राज्य मानवाधिकार आयोग ने 6 जुलाई को मामले में प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव सहित कलेक्टर, जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।
पन्ना विकासखंड के ग्राम पुरुषोत्तमपुर की बसाहट चांदमारी में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मुताबिक बस्ती का पानी दूषित नहीं है। परीक्षण के उपरांत दोनों ही स्रोतों का जल निर्धारित मानकों के अनुरूप पीने योग्य पाया गया।
पन्ना विकासखंड के ग्राम पुरुषोत्तमपुर की बसाहट चांदमारी में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अमले ने मौके पर पहुंच कर एक हैंडपंप और एक सार्वजनिक कूप के जल के नमूने लिये। @CollectorPanna @PannaProjs #JansamparkMP pic.twitter.com/NcDwiz8lXO
— Public Health Engineering Department, MP (@minphemp) July 7, 2021
7 जुलाई को इस संबंध में कार्यालय कार्यपालन यंत्री लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी खंड (पन्ना) के सहायक यंत्री गौरव ने डीएम और दूसरे अधिकारियों को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गांव में पेयजल के लिए दो स्त्रोत हैं। कुआं और हैंडपंप के पानी के नमूनों का परीक्षण कराया गया है। जिसमें दोनों का पानी पीने योग्य पाया गया है। पानी दूषित होने की खबरें पूर्णतया असत्य हैं। कुआं और हैंडपंप का क्लोरीनेशन भी कराया गया है।
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य विभागों की टीम के साथ संयुक्त भ्रमण में पाया गया कि चांदमारी में 50 घरों में 250 लोग रहते हैं। उक्त बसावट में एक हैंडपंप स्थित है। जिससे लोग पेयजल पाते हैं। इसके अलावा गांव से लगभग 500 मीटर की दूरी पर कब्रिस्तान के पास सार्वजनिक कूप (कुआं) से शुद्ध पेयजल प्राप्त करते हैं।
“बच्चों की मौत को लेकर सरकारी रिपोर्ट कहती है कि सर्दी खांसी बुखार था, जिससे मौत हो गई। बाकी कारणों की जांच हो रही है। लेकिन सवाल ये है कि बुखार, दस्त लगना मूल कारण थोड़े होंगे। मूल कारण होगा कि पानी की समस्या है, कुपोषण है। अपने लिखा की बच्चे कमजोर थे, तो कमजोर का मतलब कुपोषण है। ये लीपापोती का तरीका है।” मध्य प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक सचिन कुमार जैन कहते हैं।
जैन, मध्य प्रदेश में बच्चों को लेकर लंबे समय से कार कर रही गैर सरकारी संस्था “विकास संवाद” से जुड़े है। इस संस्था से जुड़े कार्यकर्ता चांदमारी भी पहुंचे हैं।
“बच्चों की मौत के मामलों से सबसे जरूरी है कि मौत के मूल कारणों को समझना और उन्हीं पॉलिसी में लाना होगा। क्योंकि लक्षण कारण नहीं है। सर्दी जुकाम बुखार लक्षण हो सकते हैं मौत, कारण नहीं। हमें कारण बता करना होगा।” सचिन जैन आगे जोड़ते हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के अनुसार मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 51 फीसदी और 0-5 वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर 65 फीसदी है। 5 वर्ष से कम आयु के 42 फीसदी बच्चे अविकसित (उम्र के हिसाब से लंबाई नहीं) हैं। जबकि 42.8 फीसदी इसी आयु वर्ग के बच्चों का वजन कम है। जबकि 25.8 फीसदी बच्चों का वजन लंबाई के हिसाब से कम है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्व-4 (2015-16) के अनुसार अगर पन्ना जिले की बात करें तो, जिसके अंतर्गत चांदमारी बस्ती आती हैं। वहां 5 वर्ष से कम उम्र के 43.1 फीसदी बच्चों की लंबाई उसकी उम्र के अनुपात में कम थी। जबकि 43.3 फीसदी बच्चों का वजन उम्र के अनुपात में कम था। इसी सर्वे में 6 माह से 59 माह उम्र तक के 69 फीसदी बच्चे एनिमिक मिले थे।
हाल में एक आरटीआई के जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने जानकारी दी कि पिछले नवंबर तक देश भर में छह महीने से लेकर छह साल तक के 927,606 बच्चों में गंभीर कुपोषण (एसएएम) की पहचान की गई।
कुपोषित बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन्हें दो श्रेणियों -गंभीर कुपोषण (एसएएम) और मध्यम कुपोषण (एमएएम) में वर्गीकृत किया है। गंभीर कुपोषित बच्चों के विपरीत मध्यम कुपोषित बच्चों को पोषक आहार उपलब्ध कराकर, अस्पताल में दाखिल किए बिना भी ठीक किया जा सकता है।
करौंदी बाई (28 वर्ष), जिनके बच्चे की पीठ में फोड़ा हुआ है, उन्होंने एक निजी डॉक्टर से इलाज कराया है, जिसमें जो पैसा खर्च हुआ हो उन्होंने उधार लिया है। करौदीं बाई के पति खदान में ट्रैक्टर चलाते हैं और वो दिहाड़ी मजदूरी करती हैं।
चूल्हे की रोटी उठाकर दिखाते हुए करौंदी बाई कहती है, “हम दोनों मजदूरी करते हैं, नहीं करेंगे तो ये रोटी कहां से आएगी। सरकार से कुछ मिलता नहीं है। मकान (पीएम आवास) के लिए हमारा नाम ही नहीं आया।”
आगे वो कहती हैं, हमारी सबसे बड़ी दिक्कत पानी है। बारहों 12 महीनें हमें कब्रिस्तान के पास के कुएं से पानी लाना पड़ता है।”
चांदमारी बस्ती पन्ना शहर के रानीगंज मोहल्ले से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर है। बस्ती के आसपास खेती योग्य जमीन नहीं है। गांव में रहने वाले ज्यादातर आदिवासी महिला और पुरुष आसपास की पत्थर की खदानों और हीरा खदानों के साथ ही शहरों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं।
“पानी की बहुत दिक्कत है साहब। पानी ले जाने जाते हैं तो कई बार गिर भी जाते हैं। ये तालाब के गंदे पाने में नहाते हैं, वहीं का पानी भी लेते हैं। बच्चे भी वहीं का पानी पीते हैं, जो बहुत नुकसान करता है। 40 साल हो गए हैं। कोई सुविधा नहीं है। बहुत दिक्कत है, लेकिन कहां चले जाएं।” बस्ती में रहने वाली बुजुर्ग श्यामा बाई (55 वर्ष) कहते हैं।
सरकार की रिपोर्ट पानी को लेकर चाहे जो कहे लेकिन गांव के लोग मानते मानने को तैयार नहीं है। बस्ती के बुजुर्ग कृपाल (60 वर्ष) कहते हैं, “हैंडपंप से एक डिब्बा (करीब 20 लीटर वाला) पानी भरने में एक घंटा लगता है। सब लोग सहाबा (कब्रिस्तान) के पास कुआँ से पानी लाते हैं।”
ना रास्ता ना राशन
चांदमारी बस्ती तक भले ही शहर से सिर्फ एक किलोमीटर नजदीक हो लेकिन वहां पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है। बस्ती तक पहुंचने के लिए दोनों तरफ झाड़ियों से घिरा कच्चा मार्ग है, हल्की बारिश होने पर इस मार्ग पर वाहन चलाना तो दूर पैदल चलना तक मुश्किल हो जाता है।
पन्ना और छतरपुर समेत कई जिलों में आदिवासियों और सेहत के मुद्दे पर काम करने वाली संस्था समर्थन के कार्यक्रम प्रबंधक ज्ञानेंद्र तिवारी कहते हैं, “चांदमारी की घटना हम सबको विचार करने के लिये मजबूर दिया है। 2014-15 के आसपास कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने पानी और कुपोषण पर काम किया एवं प्रशासन को बताया था कि कैसे सामुदायिक प्रबंधन से कुपोषण को मुक्त किया जा सकता है। लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। जो बस्ती कब्रिस्तान का पानी पीने को मजबूर है आप अंदाजा लगाइए कि उन परिवारों को क्या मिलता होगा।”
जबकि खाद्य सुरक्षा योजना के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि वंचित समुदाय जिनमें अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लोग शामिल हैं वे अनिवार्य रूप से खाद्य सुरक्षा योजना के हकदार हैं।
बस्ती की आदिवासी महिला राजकली ने बताया कि उन्हें खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। न तो उनका राशन कार्ड बना है न ही राशन मिलता है। आंगनबाड़ी से बच्चों को पोषण आहार भी नियमित रूप से नहीं मिलत
आदिवासियों के मुताबिक बस्ती के ज्यादातर लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के तहत मिलने वाला राशन भी नहीं मिलता। पन्ना में पृथ्वी ट्रस्ट की संचालक समीना यूसुफ गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, “चांदमारी के लोगों के साथ ग्राम पंचायत ही सौतेला व्यवहार करती है। पंचायत का पूरा पैसा पुरुषोत्तमपुर की बड़ी बखरी (गांव) वालों को खुश करने में लगा दिया जाता है।”
वे आगे कहती हैं, “चांदमारी पहले पन्ना नगरपालिका का क्षेत्र था जब यह बस्ती ग्रामीण क्षेत्र की ग्राम पंचायत पुरषोत्तम पुर में शामिल हुई तो इसके बाद लोगों को पेंशन, राशन कार्ड जैसी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता।”