इंसान और हाथियों के संघर्ष को रोकने के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग जंगली हाथियों को खिलाएगा धान

छत्तीसगढ़ के हाथी अब धान खाएंगे और उन्हें धान खिलाने का बीड़ा उठाया है राज्य सरकार के वन विभाग ने। हाथी-मानव द्वंद रोकने के लिए वन विभाग गांवों के बाहर हाथियों के खाने के लिए धान रखेगा। इसके लिए वन विभाग बड़ी मात्रा में खाद्य विभाग से धान की खरीदी कर रहा है। वन विभाग का मानना है कि हाथी धान खाकर संतुष्ट हो जाएंगे और वे मानव आबादी की ओर रुख नहीं करेंगे। लेकिन वन्य जीव विशेषज्ञ सरकार के इस फैसले के पक्ष में नहीं हैं।
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रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों को अब धान खिलाया जाएगा, वन विभाग के अनुसार इससे हाथी-मानव संघर्ष कम होगा, क्योंकि गाँवों के बाहर हाथियों के खाने के लिए धान रखा जाएगा।

राज्य सरकार के प्रवक्ता व वन मंत्री मोहम्मद अकबर बताते हैं, “हाथियों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए वन विभाग ने खुले में हाथियों को खाने के लिए धान रखा था। तीन अलग-अलग वनमंडलों में खुले स्थानों पर धान रखा गया था। इसमें से सूरजपुर वनमंडल के तीन स्थानों पर हाथियों के दल ने 14 क्विंटल धान खाया है।

वन मंत्री के अनुसार, प्रदेश के सूरजपुर, धरमजयगढ़ व बालोद वनमंडल के अलग-अलग स्थानों पर खुले में धान रखा गया था, सूरजपुर वनमंडल के बंशीपुर व टुकुडांड में चार-चार व बगड़ा पी-9 में हाथियों ने 6 क्विंटल धान खाया है।

विपक्ष का सरकार पर आरोप है कि खरीफ सीजन 2019-20 का संग्रहित धान पूरी तरह से सड़ चुका है, जिसे अब हाथियों के नाम पर खरीदी की योजना बनाई गई है। फोटो: विकिपीडिया कॉमन्स

मोहम्मद अकबर ने बताया कि हाथी धान, चावल व महुआ के लालच में गांवों में घुसते हैं और घरों को तोड़ते हैं। हाथी धान के बोरों को बाहर निकालकर अपने दल के साथ खाते हैं। इसलिए अगर धान को पहले ही खुले में रख दिया जाए तो हाथी उसे खाकर संतुष्ट हो जाएंगे और गांवों में घुसकर घरों को क्षतिग्रस्त करने के साथ ही लोगों की जान भी नहीं लेंगे। धान के लालच में हाथी एक ही स्थान पर बार-बार आएंगे और वहीं रहेंगे।इससे राज्यभर में लोगों के घर तोड़ने व मौत की घटनाएं नहीं होंगी।

मंत्री का कहना है कि राज्य में 307 हाथी हैं और राज्य सरकार इतनी कमजोर नहीं है जो इतने हाथियों का पेट न पाल सके।

सरकार के इस फैसले पर क्या है वन्य जीव विशेषज्ञ की राय

हालांकि राज्य सरकार के इस फैसले के पक्ष में न तो वन्य जीव विशेषज्ञ हैं और न ही विपक्ष, दोनों ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाया है। लेकिन सरकार का दावा है कि हाथियों को धान खिलाने का प्रयोग सफल होता भी दिख रहा है।

वन्य जीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता, बिना किसी अध्ययन के इस तरह के राज्य सरकार के फैसले से असहमत हैं। मीतू गुप्ता कहती हैं, “हाथी लगातार धान खाते रहे हों, ऐसा कोई शोध अब तक नहीं हुआ है। जंगल में उपलब्ध भोजन के अभाव में धान खाना अलग मुद्दा है, लेकिन उसे नियमित आहार बना देने के अपने खतरे हो सकते हैं। इसके अलावा वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में किसी भी वन्य जीव को इस तरह से भोजन देना कानूनन अपराध है। मीतू गुप्ता का कहना है कि इस संबंध में अगर कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया हो तो उसके नतीजे सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए।”

मीतू गुप्ता के मुताबिक, हाथी धान नहीं खाते। उन्हें जब कुछ नहीं मिलता तो थोड़ा-बहुत धान खा सकते हैं, लेकिन धान उनका मुख्य भोजन नहीं है और न ही वे धान के लालच में घरों में जाते हैं और उसे क्षतिग्रस्त करते हैं। हाथियों का मुख्य भोजन पेड़ों की छाल व पत्ते हैं। हाथी एक बार में 100 से 150 किलो खाना खाता है। हाथियों के दल को इतना भोजन एक जंगल में नहीं मिल पाता। इसलिए भोजन की तलाश में वह जंगल से बाहर निकलता है। हाथी लॉन्ग रेंज एनिमल है। हाथी वही घर तोड़ते हैं, जो उनके रास्ते में आते हैं। दस में से कोई एकाध मामला होता है, जब हाथी घर तोड़ने के बाद धान निकालकर खाते हैं।

मीतू गुप्ता के अनुसार, हाथी धान नहीं खाते। उन्हें जब कुछ नहीं मिलता तो थोड़ा-बहुत धान खा सकते हैं, लेकिन धान उनका मुख्य भोजन नहीं है और न ही वे धान के लालच में घरों में जाते हैं और उसे क्षतिग्रस्त करते हैं। हाथियों का मुख्य भोजन पेड़ों की छाल व पत्ते हैं। हाथी एक बार में 100 से 150 किलो खाना खाता है। (Photo: Linda De Volder/Flickr)

मीतू गुप्ता का कहना है कि बिना गहन शोध और अध्ययन के यह फैसला कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है. वे उदाहरण देते हुए कहती हैं कि अगर किसी जगह चार क्विंटल धान हाथियों के खाने के लिए डाला गया है, हाथियों ने उसमें से दो क्विंटल धान खा लिया, बाकी धान वहीं पड़ा रह गया, जिसे अन्य दूसरे जानवर खाएंगे. इससे न केवल हाथियों का बल्कि दूसरे जीवों को फूड हैबिट बदल जाएगा। साथ ही जानवरों के बीच कॉन्फ्लिक्ट का खतरा भी बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं, खुले में पड़ा धान सड़ेगा, उसमें कीड़े पडेंगे, जंगल में बीमारियां फैलने की आशंका भी बनी रहेगी.

मीतू कहती हैं, “हाथियों को धान खाने की आदत डाली जा रही है तो एक वक्त के बाद वह हर उस घर पर आक्रमण करेगा, जहां से उसे धान की खुशबू आएगी। यहां तक कि धान का परिवहन भी ग्रामीण इलाकों में मुश्किल हो जाएगा। वन्यजीव के व्यवहार को बदलने के घातक परिणाम हो सकते हैं।”

हालांकि हाथियों के धान खाने को लेकर किसी प्रकार की साइंटिफिक स्टडी की जरूरत से राज्य के प्रधान वन संरक्षक (वन्यप्राणी) पीवी नरसिंह राव साफ इंकार करते हैं। वे कहते हैं, “आदमी क्या खाएगा इसके लिए कोई साइंटिफिक स्टडी चाहिए क्या? और कौन कहता है कि धान हाथियों के फूड हैबिट का हिस्सा नहीं है? हाथी धान खाते हैं, इसलिए उन्हें धान खिलाया जा रहा है।”

विपक्ष ने लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

हाथियों को धान खिलाने के मामले का कड़ा विरोध करते हुए राज्य के विपक्षी दल भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार का तरीका बताया है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा, “प्रदेश की सरकार धान खरीदी के बाद हुए भ्रष्टाचार से बचने के लिए अब भ्रष्टाचार की नई बिसात बिछा रही है। हाथियों के नाम पर मार्कफेड से अंकुरित व सड़े हुए धान को 2095.83 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जा रहा है। राज्य सरकार ने 1300-1400 क्विंटल की दर से धान की नीलामी की है, वहीं पुराने धान को वन विभाग अतिरिक्त कीमत देकर खरीद रहा है।

धरमलाल कौशिक का कहना है कि खरीफ सीजन 2019-20 का संग्रहित धान पूरी तरह से सड़ चुका है, जिसे अब हाथियों के नाम पर खरीदी की योजना बनाई गई है। प्रदेश सरकार के पास धान खरीदी को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। धान खरीदी को लेकर भारी भ्रष्टाचार हुआ है और उस पर पर्दा डालने के लिए हाथियों का सहारा लिया जा रहा है। सरकार को हाथियों के भोजन और रहवास की चिंता है तो लेमरू हाथी रिजर्व पर शीघ्र कार्य करते हुए हाथियों के बसाहट को लेकर ठोस पहल करना चाहिए, ताकि हाथी-मानव द्वंद कर अंकुश लगाया जा सके. हाथियों के लिए धान खरीदी के पीछे कोई गोपनीय प्रस्ताव है तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा, रायगढ़, कोरबा, सूरजपुर, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, बालोद, बलरामपुर और कांकेर जैसे जिलों में यह समस्या सबसे गंभीर है। फोटो: विकिपीडिया कॉमन्स

इधर, वन मंत्री मोहम्मद अकबर का कहना है कि धान की खरीदी नहीं हो रही है, बल्कि इसे केवल एक विभाग से दूसरे विभाग को ट्रांसफर किया जा रहा है। वन विभाग जितने धान की मांग करेगा, खाद्य विभाग नजदीकी संग्रहण केंद्र से उतना धान उपलब्ध करा देगा और खाद्य विभाग जितने भुगतान का कागज भेजेगा, वन विभाग भुगतान कर देगा। सरकार का पैसा सरकार के पास ही रहेगा. इसमें किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है और हाथियों के धान खाने पर भी किसी को दिक्कत नहीं होना चाहिए।

कहीं धान का अधिक खरीद तो नहीं है समस्या

छत्तीसगढ़ देश में धान का प्रमुख उत्पादक राज्य है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में सालाना 12.7 मिलियन मीट्रिक टन धान उगाया जाता है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में राज्य सरकार ने रिकॉर्ड 9.2 मिलियन मीट्रिक टन धान की खरीदा गया। राज्य सरकार के अधिकारियों की शिकायत है कि राज्य के अन्न भंडारों में लाखों रुपये का अनाज अनुपयोगी पड़ा है और सड़ रहा है।

छत्तीसगढ़ में पहली बार हाथियों को खिलाने के लिए धान की खरीदी की जा रही है। खाद्य विभाग के अफसरों का दावा है कि हाथी प्रबंधन के लिए वन विभाग ने खाद्य विभाग से धान की मांग की थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ यानी मार्कफेड ने 2095.83 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वन विभाग को धान उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है।

छत्तीसगढ़ देश में धान का प्रमुख उत्पादक राज्य है। फोटो: दिवेंद्र सिंह 

छत्तीसगढ़ में 2500 रुपए के समर्थन मूल्य पर खरीदा गया लाखों टन धान अब राज्य सरकार के लिए मुश्किल का सबब बना हुआ है। खरीदे गये धान के उपयोग को लेकर राज्य सरकार को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। राज्य में करोड़ों रुपए का लाखों मीट्रिक टन धान खुले में सड़ रहा है, वहीं चावल से एथेनॉल बनाने का मामला भी अटक गया है। ऐसे में राज्य सरकार ने अब राज्य के जंगली हाथियों को धान खिलाने का फैसला किया है।

तीन साल में 204 व्यक्ति व 45 हाथियों की मौत

छत्तीसगढ़ के सरगुजा, रायगढ़, कोरबा, सूरजपुर, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, बालोद, बलरामपुर और कांकेर जैसे जिलों में यह समस्या सबसे गंभीर है। विधानसभा के बीते मानसून सत्र में राज्य सरकार ने जानकारी दी है कि छत्तीसगढ़ में 2018, 2019 और 2020 में हाथी-मानव द्वंद में 204 लोग और 45 हाथी मारे गए हैं। इस दौरान हाथियों द्वारा फसलों को नष्ट करने के 66,582, घरों को नुकसान के 5,047 और अन्य संपत्तियों को नष्ट करने के 3,151 मामले भी सामने आए हैं।

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