ये बिहार है – करीब 200 घर डूब गए या बह गए, सरकार कह रही है दिक्कत नहीं होने देंगे

बिहार के सुपौल जिले में करीब 200 घर नक्शे से गायब हैं, ऐसा बाढ़ की वजह से हुआ है। कोसी नदी में आई बाढ़ से कई लोगों के घर बह गए या डूब गए हैं।
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“हर साल बाढ़ आती है, अब ये जीवन का हिस्सा है; ना नेता आते हैं,ना अधिकारी, एक गाँव के 200 घर कोसी नदी में जा चुके हैं लेकिन कहीं कोई चर्चा नहीं है; कभी-कभी लगता है कि हम कोसी के लोगों के लिए बाढ़ जीवन का एक भाग है, जिसका दंश ज़िंदगी भर झेलना पड़ेगा। ” ये दर्द बिहार के सुपौल जिला स्थित मौजहा पंचायत के वार्ड नंबर 4 के विपुल कुमार का है जिसे उन्होंने गाँव कनेक्शन से साझा किया।

इसी पंचायत से कुछ ही दूरी पर महादेव का एक मंदिर भी था जो कोसी नदी में आई बाढ़ की भेंट चढ़ गया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है।

बिहार में बाढ़ से तबाही नई बात नहीं है। सरकार हर साल इस मुसीबत से निपटने के लिए बड़ी बड़ी योजना बनाती है। 18 जून को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि “राज्य के खजाने पर पहला अधिकार आपदा पीड़ितों का है। राज्य सरकार बाढ़ और सुखाड़ की स्थिति में प्रभावितों को हरसंभव मदद करती है, इसे ध्यान में रखते हुए सभी संबद्ध विभाग और अधिकारी सतर्क रहें।” लेकिन इस बार कम बारिश में भी हालत ख़राब है। गाँव कनेक्शन की टीम जब बाढ़ प्रभावित हिस्से में पहुँची तो लोग सरकारी इंजाम से नाखुश दिखे।

बरैया पंचायत स्थित मुंगरार गाँव के सहदेव यादव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस पूरे इलाके में लगभग महीने भर से कटाव जारी है, लेकिन सरकारी बाबू की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई; गाँव के लोग निजी नाव वाले को डेढ़ हज़ार से तीन हज़ार रुपये देकर अपना थोड़ा बहुत बचा सामान निकाल कर बाँध पर ले जा रहे हैं, जो मुसीबत हमारे पूर्वजों ने झेला है, वही हमें भी झेलना पड़ रहा है।”

बेघर हैं अब भी गाँव के कई परिवार

मुंगरार गाँव के ही पूर्वी टोला के रहने वाले मुकेश उत्तम जो पेशे से शिक्षक हैं बताते हैं, “गाँव के करीब 150 से ज्यादा घर बाढ़ से कट चुके हैं, जिसमें 30 से 35 लोगों को सरकार की तरफ से पुनर्वास योजना के तहत घर दिया गया लेकिन बाकी लोग सड़क पर रहने को मजबूर हैं।”

बलवा पंचायत के मुखिया संतोष यादव ने सरकारी अफसरों को नदी में कटे घरों की लिस्ट दे दी है।

सड़क पर रह रहें मुंगरार गाँव के परमेश्वर कुमार बताते हैं, “हम सरकार से बस इतना चाहते हैं कि हमें कोसी तटबंध के बाहर ज़मीन दे दी जाए ताकि हमारा परिवार सुरक्षित रह सके।”

“टोला में सबका घर गया है, जिसका बचा हुआ हैं, वो सब घर तोड़कर नई जगह पर जा रहे हैं, घर-आँगन में जहरीले साँप का आना शुरू हो गया है, हम लोग तो किसी तरह रह जाएँगे, दिक्कत मवेशियों को हो रही है; उनके लिए तो कोई सरकारी व्यवस्था भी नहीं है,” मुंगरार गाँव के ही देवेंद्र यादव ने गाँव कनेक्शन से बताया।

अभी सरकारी स्तर पर मध्य विद्यालय मुंगरार में राहत शिविर का इंतज़ाम किया गया है, जहाँ दिन और रात का खाना पीड़ितों को दिया जाता है। सुपौल सदर एसडीओ इंद्रवीर कुमार ने बताया कि “सरकारी कर्मचारियों को कटाव स्थल वाले गाँव में भेजा गया था, लिस्ट तैयार की जा रही है, जो भी सरकारी सहायता है वो दी जा रही है; हमारी तरफ से नाव की भी व्यवस्था की गई है अगर कटाव स्थल पर नाव नहीं है तो उसकी जाँच कराई जाएगी।”

जिस घर में सिर्फ महिलाएँ हैं वहाँ ज़्यादा ख़राब है हालात

बिहार के कोसी इलाका को मजदूरों का गढ़ कहा जाता है। यहाँ के अधिकांश लोग मजदूरी करने देश के दूसरे हिस्सों में जाते हैं, ऐसे में गाँव के अधिकांश घरों में सिर्फ महिलाएँ रहती हैं।

“मेरे घर में मेरे अलावा मेरे बूढ़े ससुर और मेरी एक बेटा और एक बेटी हैं, गाँव में जब घर कट रहा था, तब सब अपने घर के समान को लेकर भाग रहे थे, आप मेरी स्थिति समझ सकते हैं, घर में मर्द नहीं हो तो बहुत दिक्कत होती है; प्रशासन की तरफ से कोई नाव की भी सुविधा नहीं थी।” किशनपुर प्रखंड के मौजहा पंचायत की ललिता देवी ने गाँव कनेक्शन से अपनी परेशानी साझा की।

मौजहा पंचायत के वार्ड नंबर 4 में नदी के कटान के चलते लगभग 30 घर के लोग नई जगह चले गए हैं। जो कुछ बचा है उस घर को तोड़कर लोग अपने आशियाने को बचाने में जुटे हैं।

कोसी इलाका के रहने वाले विक्की मिश्रा अपने पूरे परिवार के साथ पुणे में प्राइवेट नौकरी करते हैं। उन्होंने बाढ़ की स्थिति को देखते ही सुपौल छोड़ दिया था। विक्की गाँव कनेक्शन से बताते हैं,, “यहाँ के अधिकांश लोग बाहर जाकर मेहनत करते हुए किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं और अपना आशियाना बनाते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता कि यह आशियाना पल भर में कोसी नदी लील लेगी; यहाँ के लिए यह कहानी नई नहीं है, इसलिए पलायन काफी हो रही है, लोग दूसरे देश प्रदेश में जाकर बस रहे है।”

कम बारिश में ही हाल बेहाल

मौसम विभाग के मुताबिक 1 जून से 27 जुलाई के बीच बिहार में 32% कम बारिश हुई है। सुपौल की बात करें तो वहाँ भी 42% कम बारिश हुई है। सुपौल में 321.5 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जबकि 551.5 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए। जिले में सामान्य वर्षा से कम बारिश होने के बावजूद लगभग 300 से ज्यादा घर कोसी नदी में समा गए हैं, जबकि अभी नदी में पूरा पानी भी नहीं उतरा है। 6 जुलाई 2024 को कोसी बराज के सभी गेट खुलते ही 3 लाख 94 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जिसके बाद कोसी नदी का जलस्तर बढ़ गया है। जानकारी के मुताबिक पिछले 44 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था।

तटबंध के भीतर बसे ग्रामीणों के मुताबिक पहले की तुलना में अब कम बारिश होते ही कोसी नदी अपना कहर दिखाना शुरू कर देती है। पानी ज्यादा हो या कम हो, कटाव पहले की तुलना में ज्यादा हो रहा है। सरकार के आदमी ज्यादा से ज्यादा कटाव वाले जमीन के पास कुछ गिट्टी का बोरा रख कर चले जाते हैं। दशकों से बाढ़ झेल रहे गाँव के अधिकांश लोग अब बाढ़ के साथ जीना सीख चुके हैं। बाढ़ के निपटने के तमाम इंतजाम जैसे नाव की व्यवस्था और सड़क पर घर बनाने का काम ये लोग खुद ही करते हैं और इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहते।

बेहतर स्थिति के लिए लड़ रहा ‘कोसी नवनिर्माण मंच’

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने जब कोसी नदी के दोनों किनारों पर तटबंध बनाने का प्रस्ताव रखा था, तो उन्होंने वादा किया था कि स्थानीय लोगों का ध्यान रखा जाएगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। ऐसी स्थिति में कोसी में बाढ़ और कटाव को अपनी किस्मत मान चुके ग्रामीणों के लिए कोसी नवनिर्माण मंच उम्मीद की एक किरण है। जो लगातार सरकार से इस स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लड़ रही है। फरवरी 2024 में ही कोसी नवनिर्माण मंच के बैनर तले कम से कम 100 लोग 12 दिनों में सुपौल से पटना की 250 किलोमीटर पैदल यात्रा किए थे।

कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव बताते हैं, “कोसी नवनिर्माण मंच कोसी में बाढ़ घोषित कर, राहत बचाव का काम तेज करने और कटाव पीड़ितों को सरकारी ज़मीन पर बसाने के लिए डीएम सहित वरिष्ठ लोगों को 15 सूत्रीय ज्ञापन दिया है, कटाव की बदतर स्थिति जो देख रहे हैं, अगर प्रशासन और सरकार हमारी बात सुनती तो ये दिन नहीं देखना पड़ता।

कोसी के आसपास रहने वाले कहते हैं कि बाढ़ पहले आ गई, लेकिन सरकार के इंतजाम बहुत पीछे हैं। बिहार में सैलाब से तबाही की कहानी पुरानी है लेकिन इस त्रासदी से निपटने का स्थायी इंतज़ाम अबतक नहीं किया जा सका है।

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