कोरोना की दूसरी लहर: मास्क मिला न सैनिटाइजर, बिना उचित पारिश्रमिक के आशा कार्यकर्ता कर रहीं ग्रामीणों की देखभाल

दस लाख से अधिक आशा कार्यकर्ता कोरोना महामारी से ग्रामीण भारत को जागरूक कर रहीं हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण से सुरक्षा के लिए फेस मास्क, सैनिटाइजर नहीं दिए गए हैं। 1,000 रुपये प्रति माह का कोरोना-19 ड्यूटी इंसेंटिव भी कई महीनें बाद भी उन तक नहीं पहुंचा है।
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आशा कार्यकर्ता सरोज सिंह को यह याद नहीं होगा कि उन्होंने आखिरी बार एक दिन में कितने घंटे काम किया। कोरोना महामारी को एक साल से अधिक समय हो गया है, अब वह दिन-रात लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए जागरूक करती रहती हैं।

“अपने गांव को बचाना है, यही सोच कर हम ड्यूटी कर रहे हैं।” 42 वर्षीय सरोज सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।

सरोज सिंह मध्य प्रदेश में रीवा जिले के बोरसद गांव में आशा कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत हैं। वह एक लाख से अधिक महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में से एक हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा के रूप में जाना जाता है।

ये फ्रंटलाइन आशा कार्यकर्ता कोरोना महामारी का आगे बढ़कर डटकर सामना कर रहीं हैं, क्योंकि पूरा देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बुरी तरह से प्रभावित है।

इस महामारी में सरोज सिंह जैसी आशा कार्यकर्ताओं को प्रतिदिन गांव का सर्वे करना होता है। लोगों में कोविड-19 के लक्षणों की स्क्रीन करना पड़ता है और उन्हें स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचाने में मदद करना पड़ता है। आशा कार्यकर्ताओं को अपने गांव में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों पर भी नजर रखनी पड़ती है। इसके अलावा उन्हें कोविड-19 टीकाकरण के लिए ग्रामीणों को शिक्षित और प्रेरित करना पड़ता है। यह सब उनके काम की मांगों से ज्यादा है।

पिछले साल जब कोरोना महामारी शुरू हुई तो फ्रंटलाइन वर्कर्स को सरकार ने फेस मास्क और सैनिटाइजर दिया। वहीं, इस साल ग्रामीण स्वास्थ्य वर्कर्स के एक बड़े हिस्सों को कोरोना से बचने के लिए फेस मास्क, सैनिटाइजर जैसी बुनियादी सुरक्षात्मक चीजें नहीं दिए गए, जबकि कोविड-19 के प्रतिदिन मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है और कोरोना वायरस ने ग्रामीण भारत में प्रवेश कर लिया है।

आशा वर्कर लोगों को घर-घर जाकर लोगों को हैंडवाशिंग, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने के फायदों के बारे में बताती हैं। फोटो: नीतू सिंह

बिना मास्क के कोरोना योद्धा

“कुछ दिनों तक मैंने मास्क खरीदा फिर खुद से सिलाई करके मास्क बनाया। हमें हर दिन ग्राउंड में जाना पड़ता है।” मध्य प्रदेश की एक आशा कार्यकर्ता ने गांव कनेक्शन को बताया।आशा कार्यकर्ता भीषण गर्मी में बोरसाद गांव के एक ग्रामीण को स्वास्थ्य केंद्र ले गई, जिसे सर्दी और बुखार था। थका, चिंतित और गुस्सा कर देने वाली आवाजें देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों से भी आ रही हैं।

“हमें पिछले साल मार्च और अप्रैल महीने के दौरान मास्क और सैनिटाइजर मिले थे, लेकिन इस बार हमें कुछ नहीं मिला। हमें सरकार से एक पैसा भी नहीं मिला है।” उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के मिर्जापुर गांव की रहने वाली 40 वर्षीय आशा कार्यकर्ता रेणु देवी ने गांव कनेक्शन को बताया।

रेनू देवी। (फोटो- शिवानी)

संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के अनुसार डबल मास्क (सर्जिकल मास्क के ऊपर एक कपड़ा मास्क या दो कपड़े मास्क पहनना ) पहनने से कोरोनो वायरस का खतरा लगभग 95 प्रतिशत तक कम कर देता है। यह चेहरे पर अच्छे तरह से फिट हो जाता है और बाहर के हवा को रोकने में मदद करता है।लेकिन, भारत में सरोज सिंह और रेणु देवी जैसी कई आशा कार्यकर्ताओं के पास सरकार द्वारा दी जाने वाली एक सर्जिकल मास्क भी नहीं है। यह स्थिति तब है, जब हमारा देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बुरी तरह से परेशान है।

“मुझे इस साल मार्च में केवल एक बार मास्क मिला। मुझे अच्छा वाला (N95) मास्क दिया गया, लेकिन हमें हर दिन ग्राउंड में जाना पड़ता है। हम हर रोज एक ही मास्क नहीं पहन सकते हैं। मैंने उस मास्क को गर्म पानी से धोया, वह केवल दो से तीन दिनों तक ही चल सकता है।” ओडिशा के मलकानगिरी जिले के खैरापाली गांव की 42 वर्षीय आशा कार्यकर्ता अपर्णा सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया।

अपर्णा सरकारने कहा कि पिछले साल मुझे बीस से अधिक मास्क और सैनिटाइजर की दो बोतलें मिलीं थीं। मुझे एक फेस शील्ड भी मिला था। इस साल कोरोना संक्रमण का खतरा है ज्यादा है, फिर भी कुछ नहीं दिया गया। अपर्णा सरकार को डर है कि वह कोरोना वायरस के चपेट में आ सकती हैं, क्योंकि उन्हें हर दिन दस-बीस ग्रामीण परिवारों के यहां जाना पड़ता हैं। अपर्णा सरकार पिछले साल कोरोना वायरस के चपेट में आ गईं थीं।

अपरिचित कोरोना योद्धा

जयपुर में जन स्वास्थ्य अभियान की सदस्य छाया पचौली ने गांव कनेक्शन से कहा, “इन आशाओं को घरेलू सर्वेक्षण और कोरोना के लक्षण वाले ग्रामीणों को दवा वितरण करने की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उनकी सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है।”

उन्होंने कहा कि केवल कुछ गांवों में जहां कोविड-19 के मामले बड़ी संख्या में आए हैं या जहां कोविड-19 से मौतें हुई हैं, वहां की आशा कार्यकर्ताओं को कुछ मास्क और सैनिटाइजर दिए गए हैं। मगर यह पर्याप्त नहीं है। राजस्थान के ज्यादातर क्षेत्रों में इस वर्ष अभी तक आशा कार्यकर्ताओं को मास्क और सैनिटाइजर नहीं दिए गए हैं।

ग्रामीणों के साथ अपर्णा सरकार। (फोटो -अरेंजमेंट)

कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद से ही स्वास्थ्य विशेषज्ञ इन फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर्स की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं।

रायपुर में जन स्वास्थ्य अभियान की राष्ट्रीय सह-संयोजक सुलक्षणा नंदी ने गांव कनेक्शन को बताया कि कोरोना महामारी में आशा कार्यकर्ता लगातार काम कर रही है। वे समुदाय के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी महसूस करती हैं। इन आशा कार्यकर्ताओं ने अवैतनिक रहने के बावजूद भी काम जारी रखा है।

उन्होंने कहा, “केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों ने इन आशा कार्यकर्ता द्वारा किए गए प्रयासों को मान्यता नहीं दिया। सरकार उनका शोषण कर रही है।” ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य अधिकारों के मुद्दों पर काम करता है।

आशा कार्यकर्ताओं के लिए बीमा कवरेज

पिछले साल केंद्र सरकार ने आशा कार्यकर्ता सहित सभी स्वास्थ्य वर्कर के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज बीमा योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत कोरोना वायरस के कारण मौत होने वाले हेल्थ वर्कर को 50 लाख रुपये का जीवन बीमा कवर दिया गया।

इस महामारी में आशा कार्यकर्ताओं को गांव का रोजाना सर्वेक्षण करना पड़ता है। फोटो: नीतू सिंह

यह योजना इस साल 24 मार्च को समाप्त हो गई। काफी आलोचना के बाद इस बीमा योजना को 20 अप्रैल को एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा दिया गया। हालांकि, केंद्र सरकार को अभी भी उन आशा कार्यकर्ताओं के बीमा को स्पष्ट करने की जरूरत है,जिनकी मृत्यु इस वर्ष 25 मार्च से 19 अप्रैल के बीच हुई है।

नंदी ने कहा, “मेरी जानकारी में छत्तीसगढ़ में इस वर्ष (मार्च 25-अप्रैल 19) में पांच आशाओं हुई है। क्या उन्हें कोई बीमा कवरेज मिलेगा? केंद्र सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।”उन्होंने कहा, “आशाओं की मौत का आंकड़ा भी केंद्र सरकार ने नहीं रखा है।”

आशा कार्यकर्ताओं को नहीं मिले बीमा

आदमी जब जिंदा रहता है तब एक रूपया भी नहीं मिलता है, अब पता नहीं 50 लाख मरने के बाद भी मिलेगा या नहीं। उत्तर प्रदेश की आशा कार्यकर्ता देवी ने आश्चर्यचकित होकर बोला।

उन्होंने दावा किया, “कई आशा कार्यकर्ताओं को कोरोना ड्यूटी करने के लिए प्रतिमाह 1,000 रुपये अभी तक नहीं मिले है। इसलिए 50 लाख रुपये मौत के बाद मिलने की उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।”

आशा कार्यकर्ताओं को 1,000 रुपये प्रति माह प्रोत्साहन

कोविड-19 पैकेज के तहत प्रति माह आशा कार्यकर्ताओं को 1,000 रुपये प्रोत्साहन दिया जाता है। इस साल 2 फरवरी को जारी स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रेस बयान के अनुसार, “नवंबर, 2020 तक, 9,53,445 आशा और 36,716 आशा सहायकों को कोविड-19 प्रोत्साहन राशि का भुगतान कर दिया गया है।” ऐसी किसी देरी की सूचना नहीं मिली है।

हालांकि, बड़ी संख्या में आशाओं की शिकायत है कि उन्हें पिछले साल जून या जुलाई तक 1,000 रुपये प्रति माह प्रोत्साहन राशि मिली। इसके बाद उन्हें कुछ नहीं मिला, भले ही उन्होंने पिछले एक साल के दौरान कोरोना ड्यूटी जारी रखा हो।

“पिछले साल हमें केवल दो महीने के लिए पैसा (1,000 रूपये प्रति माह) मिला था। हमें बताया गया था कि हमें इस साल पैसा मिलेगा, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं मिला है।” सरोज सिंह ने कहा, जो पिछले 10-12 सालों से आशा के रूप में कार्यत हैं।

ओडिशा की आशा कार्यकर्ता अपर्णा सरकार ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार से पिछले साल केवल सात महीने के लिए 1,000 रुपये का प्रोत्साहन मिला था। इस साल उन्हें कुछ नहीं मिला है।

नंदी ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनके अनुसार सरकारों को आशा कार्यकर्ताओं के लिए पारिश्रमिक तय करना चाहिए था। महामारी के कारण नियमित टीकाकरण और प्रसव सहित अन्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई है। आशाओं को भी नियमित प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। वैसे उन्हें प्रोत्साहन राशि कम मिल रहा है और अब उन्हें कोविड ड्यूटी के लिए प्रति माह 1 हजार रुपये भी नहीं मिल रहे हैं, जिसकी घोषणा सरकार द्वारा की गई थी।

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में आशा को कोविड ड्यूटी के लिए चौदह महीने में केवल दो महीने के लिए 1,000 रुपये मिले हैं।

उत्तराखंड में आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें हर महीने 1,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, खासकर महामारी में जब कोई ड्यूटी करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहा हो।

एक हजार रूपये में क्या होता है? इतने में घर क्या चलता है? उत्तराखंड में अल्मोड़ा के बदरेश्वर गांव में आशा कार्यकर्ता हेमा गुरानी ने गांव कनेक्शन से पूछा। उन्होंने हर महीने 1,000 रुपये प्रति माह कोविड-19 प्रोत्साहन प्राप्त करने की पुष्टि की।

इस पूरे मामले को लेकर गांव कनेक्शन मध्य प्रदेश के रीवा जिले के जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के जिलाधिकारी से मिलने की कोशिश की, लेकिन दोनों बाहर राउंड पर थे, उनसे संबंधित कार्यालयों ने हमें यह सूचना दी। उनकी प्रतिक्रिया आने के बाद हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे।

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद– आनंद कुमार

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