बाढ़: सैलाब में किसी की गाय-भैंस बह गई तो कहीं चारे का संकट, हजारों पशुओं के बीमार होने का खतरा

देश के कई राज्यों में बाढ़ से भारी नुकसान हुआ है। घर और सड़कें टूटी हैं तो हजारों एकड़ फसलों का नुकसान हुआ है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में कई जगह लोगों की गाय-भैंसे और बकरियां बह गई हैं तो कई जिलों में चारे का संकट है। पशु जानकारों के मुताबिक बाढ़ जैसी आपदा में पशु भी लोगों की तरह टेंशन का शिकार होते हैं।
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भिंड/इटावा। मध्य प्रदेश में 3 अगस्त की रात सिंध नदी में आई भीषण बाढ़ में श्यामपुरा गांव की बुजुर्ग राममूर्ति देवी की 2 भैंस बह गईं तो इसी गांव की गुड्डी के मुताबिक उनकी तीन भैंस और एक गाय गायब हो गई। लोगों के घरों के ऊपर से पानी बह रहा था तो जो अनाज और पशुओं के भूसा रखा था वो भी बह गया या कई दिन पानी में रहने से सड़ गया। इस गांव के लोगों के साथ समस्या ये है कि जो पशु बच गए हैं उन्हें खिलाने के लिए उनके पास चारा नहीं है।

“यहां अपने खाने का ठिकाना नहीं है। गाय-भैंस को क्या खिलाएंगे। पशु भूखन मर रहे।” एक टीले पर खड़े गजेंद्र सिंह राजावत (43 वर्ष) कहते हैं। राजावत भी श्यामपुर के रहने वाले हैं जहां के लोगों के मुताबिक बाढ़ में उनके पशुओं का भी नुकसान हुआ है।

गांव के तीन तरफ पानी भरा है। नदी के डूब एरिया को दिखाते हुए गजेंद्र सिंह राजावत कहते हैं, “पानी की वजह से कुछ नहीं बचा है। गांव में कई लोगों के पशु बहे हैं। तो कुछ लोगों ने अपने पशु खुला छोड़कर भगा दिया। क्योंकि उन्हें खिलाने को कुछ नहीं बचा है जो घर में रखा भूसा था वो खराब हुआ, तो खेत में लगी फसलें भी चली गई हैं। ऐसे में आगे भी कुछ खिलाने को नहीं होगा।”

यूपी से सटे मध्य प्रदेश के इस इलाके में जमीन ऊबड़-खाबड़ और रेत के टीले वाली है। दूर-दूर गांव हैं और आजीविका के नाम पर खेती और मजदूरी मुख्य जरिया है। बाढ़ के वक्त खेतों में मूंग, बाजरा और मक्का जैसी फसलें थी, जिसका नुकसान हो गया।

यूपी के औरैया जिले में जुहीखा गांव में सड़क पर खाना खाते बाढ़ प्रभावित घरों के बच्चे। ग्रामीणों के मुताबिक जब खुद के खाने का भरोसा न होत तो पशुओं का क्या खिलाएंगे। फोटो- अभिषेक वर्मा

यूपी,एमपी और बिहार समेत देश कई राज्य हैं बाढ़ की चपेट में

मध्य प्रदेश में 7 जिलों में श्यामपुरा जैसे 1250 से ज्यादा गांव प्रभावित हुए हैं। तो यूपी के भी 2 दर्जन से ज्यादा जिले बाढ़ की चपेट में हैं। भिंड जिले से श्यामपुर गांव से करीब 100 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के इटावा में यमुना, चंबल, पहुंज नदी की वजह से 50 से ज्यादा गांव चपेट में थे। यहां पशुओं की जान का उतने नुकसान की तो खबर नहीं है लेकिन पशुओं के सामने चारे और प्रभावित इलाके में पशुओं में बीमारियां पनप रही हैं।

“सिर्फ अगस्त महीने में ही मैंने अब तक 100 से ज्यादा गाय-भैंसों को इलाज किया है, उन्हें या तो बुखार था या फिर डायरिया हुआ था। कई पशुओं की टांग टूट गईं थीं, किसी को आंख में चोट लगी थी। संक्रमण के बाद कई गांवों में संक्रमण के बाद बकरियों में तेज बुखार आ रहा है।” राजाराम दोहरे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं। दोहरे इटावा में पशुपालन विभाग में संविदा पर कार्यरत पैरावेट हैं।

राजाराम दोहरे से गांव कनेक्शन से पहली मुलाकात 7 अगस्त को इटावा में बडौरी गांव के पास हुई थी, vi बाढ़ प्रभावित गांवों में बीमार पशुओं का इलाज कर वो अपनी साइकिल पर दवाइयों का झोला लेकर वापस आ रहे थे। उनके मुताबिक बाढ़ में कई जगह पशु झाड़ियों में फंस गए हैं तो कुछ दूषित पानी पीने से बीमार हो रहे हैं।

बढ़ौरी गांव से कुछ दूर पर पालन गांव के बाहर भैंसें चरा रहे सुखवीर सिंह (50 वर्ष) कहते हैं, “पशु पालकों के सामने बड़ा संकट है। खेतों में जो चारा था वो बाढ़ में चला गया। बीहड़ (टीले) और जंगल में घास और पेड़ पौधे थे वो पानी भरा रहने से खराब हो गए हैं। मिट्टी भी इतनी गीली है कि पशुओं के पैर धंसते हैं तो ज्यादा ऊपर ले नहीं जा सकते हैं, एक भैंस की झाड़ियों पर गिरने से एक आंख फूट गई है।”

यूपी के सीतापुर जिले में बाढ़ प्रभावित इलाके का एक किसान पानी के बीच से अपने पशुओं के लिए भूसा लेकर जाते हुए। फोटो- अरविंद शुक्ला

भारत में एक बड़ी आबादी पशुपालन पर निर्भर है। जो किसान हैं वो तो पशु पालते ही हैं जिनके पास खेत नहीं है वो भी गाय, भैंस बकरी भेड़ आदि का पालन कर आजीविका चलाते हैं।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 में देश भर में कुल 19.09 करोड़ पशु थे। 10.87 करोड़ भैंस और दुधारू मवेशियों की संख्या 13.33 करोड़ थी। वहीं 2019 की 20वीं पशुधन गणना में मवेशियों की संख्या बढ़कर 19.25 करोड़ हो गई, भैंसों की संख्या 10.99 करोड़ रही दुधारू पशुओं की संख्या भी बढ़कर 13.64 करोड़ पहुंच गई।

सिंध नदी में बाढ़ के बाद भिंड जिले के श्यामपुरा गांव में एक पशुपालक का घर। 

मानसून से रोग और मच्छर जैसे कीट करते हैं पशुओं को परेशान

बाढ़ का पशुओं पर किस तरह का असर पड़ता है, इस सवाल के जवाब में बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह बताते हैं कि बाढ़ जैसे हालात में पशुपालक तो टेंशन में रहते ही हैं, पशुओं की सेहत पर काफी असर पड़ता है।

वो कहते हैं, “जैसे मानव जीवन की हानि होती है वैसे ही पशु हानि भी होती है। लेकिन प्राकृतिक रूप से पशु अच्छे तैराक होते हैं। लेकिन विस्थापित होने पर इनके सामने सबसे बड़ा संकट चारे का होता है। पशुपालक खुद परेशान होते हैं तो पशुओं को भरपूर पोषण और चारा नहीं दे पाते हैं। दूसरा इस दौरान मच्छर-मक्खी जैसे कीट पतंगे (insect) बढ़ जाते हैं जो पशुओं को टेंशन देते हैं। तीसरा पशु स्थान बदले जाने पर चिंतित होता है। इसके अलावा दूषित पानी भी पशुओं को कई रोग देता है।”

बिहार में कोसी इलाके का उदाहरण देते हुए वो बताते हैं कि वहां कई महीने बाढ़ होने पर ज्यादातर पशु पालक सड़कों के किनारे पशु बांधते हैं लेकिन इन हालातों में कितना पोषण और देखभाल हो पाएगी ये सोचने वाली है।

बाढ़ आने पर राज्य आपदा निधि (एसडीआरएफ) के तहत सरकारें मानव और पशु दोनों के लिए व्यवस्था करने की उत्तरदायी होती हैं। पशु की हानि होने पर मुआवजा का भी प्रावधान है।

उत्तर प्रदेश में पशु चिकित्सा संघ के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार के मुताबिक बाढ़ में जो नुकसान होता है राजस्व विभाग उसका आकलन करता है। और मुआवजा दिया जाता है। वो कहते हैं, “राजस्व, राहत आयुक्त और पशुपालन विभाग की एक रेट लिस्ट है, उसके अनुसार पशुओं की मौत पर मुआवजा, और घायल पशुओं का घर पर इलाज का प्रावधान है। अगर चारे का संकट है तो ग्राम प्रधान उसकी व्यवस्था करता है। अगर वो लिखकर दे उसके पास व्यवस्था नहीं तो राजस्व विभाग उसका पैसा देगी। लेकिन ज्यादातर प्रधान ऐसा करने से पीछे हटते हैं। बाढ़ प्रभावित इलाके में पंचायती राज विभाग या फिर जिला पंचायत स्तर पर भूसे का टेंडर जारी कर उसकी व्यवस्था की जाती है।”

बाढ़ प्रभावित इलाकों में भूसे का इंतजार

यूपी के सीतापुर जिले में सरयू नदी (घाघरा) हर साल की तरह इस वर्ष भी उफनाई है। कई जिलों में तटवर्ती गांवों में पानी घुसा हुआ है। सीतापुर जिले में रामपुरमथुरा ब्लॉक में गोंदहा गांव के तेज बहादुर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “पिछले साल सरकार की तरफ से भूसा आया था लेकिन इस बार कुछ नहीं आया। पालतू पशु के लिए तो लिए तो फिर किसी तरह लोग इंतजाम कर रहे लेकिन छुट्टा गोवंश के लिए कुछ नहीं है।”

वो अपने पीछे दिख रहे एक दर्जन से ज्यादा सांड़ों, बछड़े और गायों को दिखाते हुए कहते हैं, “इन्हें इस साल बांध पर बैठने नहीं दिया जा रहा है, बाकी चारा पानी छोड़ दो।”

बीमार पशुओं तक चिकित्सा और दूसरे इंतजाम पहुंचाने में कई रोड़े भी हैं। पशुपालन विभाग में चिकित्सकों की कमी है। काफी चिकित्सकों को गोवंश आश्रय स्थलों की जिम्मेदारी दी गई है। डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, “प्रदेश में पशु चिकित्सकों के 1984 सरकारी पद है और 1782 डॉक्टर हैं। 2202 पशु चिकित्सालय हैं, जिनमें से 218 पशु चिकित्सालय ऐसे हैं जहां पोस्ट डॉक्टर की पोस्ट ही सृजित नहीं है। प्रदेश में करीब 25000 पैरा वेट भी हैं।”

पशु चिकित्सा संघ के मुताबिक भारत सरकार के मानक के अनुसार एक पशु चिकित्सक के ऊपर 5000 पशु होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में पूरे देश में औसतन 35000 बड़े पशुओं की जिम्मेदारी एक पशु चिकित्सक के कंधे पर हैं। यही वजह है कि पशुओं से संबंधित कई योजनाएं लेटलतीफ चलती हैं। यूपी में मानसून से पहले एफएमडी का टीका लगाना था, लेकिन अगस्त तक कई जगह टीके ही नहीं पहुंचे हैं।

मध्य प्रदेश के भिंड जिले में कीचड़ के बीच चारे के लिए भटकती गाय। फोटो- अभिषेक वर्मा

टेंशन में कम दूध देते हैं पशु, होते हैं कई दूसरे असर

यूपी में बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक महेश चंद्रा गांव कनेक्शन को बाढ़ का पशुधन पर होने वाले व्यापक असर को समझाते हैं, “भारत में फोडर (चारे) की कमी है। देश में पशु चारे की फसल उगाने का चलन नहीं है। देश में मुश्किल से 4 से 5 फीसदी हिस्से पर ही पशु चारा उगाया जाता है। ज्यादातर किसान अनाज वाली फसलों के अवशेष पशुओं को खिलाते हैं। बाढ़ में इन फसलों का नुकसान होता है, दूसरे इलाकों से भूसा आता है लेकिन पशुओं का इसका कुछ न कुछ खामियाजा कम पोषण के रूप में भुगतना पड़ता है।”

वो आगे कहते हैं, “मॉनसून आने से पहले पशुओं को फुट एंड माउथ डिजीज (खुरपका-मुंहपका) समेत तीन टीके लगने चाहिए। ये राज्य की जिम्मेदारी होते हैं, लेकिन कई राज्यों में ये लग नहीं पाते। कम पोषण, दूषित पानी, टेंशन आदि से पशु की इम्युनिटी कम होने से उनके बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है। एक बार पशु बीमार हुआ या कुपोषित हुआ तो उसका पूरा चक्र बिगड़ता है वो कम दूध देगा, समय पर बच्चे को जन्म नहीं देना समते कई समस्याएं सामने आती हैं।” वो ऐसे इलाकों में महाराष्ट्र की तरह फोडर बैंक बनाने की सलाह देते हैं।

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पशुओं के क्षेत्र आंकड़े और तकनीकी को शामिल करने की जरुरत

पशुधन के मामले में मुआवजे में भी कई पेंच फसते हैं। यूपी से लेकर एमपी, बिहार तक पशु धन के नुकसान पर मुआवजा लेने में लंबी प्रक्रिया है।

बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह के मुताबिक जानवरों का रजिस्ट्रेशन नहीं होना, ईयर टैग नहीं लगे होने से आपदा के दौरान कागज पर सबूत नहीं मिलने से किसान को दिक्कतें का सामना करना पड़ता है।

वो कहते हैं, “देश में पशुओं को लेकर अभी डेटा पर काफी काम करने की जरूरत है। बाढ़ आने पर कोई कहता है उसका एक पशु मरा तो कोई कहता है उसके 10 मरे, ऐसे में सबूत की कमी खलती है। दूसरा जानवर की कीमत तय होती है उसकी दूध देनी की क्षमता से, अब 2 लीटर दूध देने वाली गाय और 10 लीटर दूध देने वाली गाय-भैंस के रेट में जमीन आसमान का अंतर होता है। कई यूनिवर्सिटी और एजेंसी दूध उत्पादन की वैद्यता का सर्टिफिकेट देती हैं, अगर किसान ऐसा करवा ले तो न सिर्फ उसके पास रिकॉर्ड रहता है बल्कि उनके बच्चे की भी अच्छी कीमत मिलती है।”

लेकिन तमाम सरकारी योजनाओं, विभागों की कार्रवाई से दूर भिंड जिले में श्यामपुरा गांव की गुड्डी की कहानी में भारत के आम पशु पालक का दर्द छिपा है।

गुड्डी के तीन बेटियां और दो बेटे हैं। घर में कई कुंतल गेहूं रखा था वो इस बार एक बेटी की शादी करने वाली थी, उन्होंने सोचा था कि भैंस बेचकर शादी करेंगे लेकिन उससे पहले बाढ़ आ गई।

वो कहती हैं, “हमारी तीन भैंसे बह गईं। एक-एक लाख की भैंसे थीं, इस बार बेटी की शादी करने वाले थे, लेकिन अब तो खाने को कुछ नहीं बचा।”

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