मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश)। राम प्रकाश 28 मई की सुबह अपने गांव रहकला से छह और लोगों के साथ बोलेरो गाड़ी में बैठकर रजुआ पहुंचे। रजुआ गांव मिर्जापुर की तहसील मरिहन में पड़ता है। यह गाड़ी उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग की थी, जो दूरदराज के गांवों में जा रही थी और लोगों से अपने पास के टीकाकरण शिविर में जाकर टीका लगवाने के लिए कह रही थी।
प्रकाश एक खेतिहर मजदूर हैं। उनका संबंध कोल आदिवासी समुदाय से है और वह खुद को 55 से 58 साल के आयु वर्ग के बीच बताते हैं। वह लगभग 25 किलोमीटर का सफर तय करके विकासखंड पटेहरा के आदर्श इंटर कॉलेज में पहुंचे, जहां कल, 28 मई को टीकाकरण शिविर लगाया गया था। उन्होंने कोविड टीके की पहली डोज ली। उनके साथ 42 अन्य ग्रामीणों ने भी टीका लगवाया।
मणिहान तहसील और उसके आसपास के क्षेत्र आदिवासी समुदाय बाहुल इलाका हैं। लेकिन टीके को लेकर डर, उसके कारगर होने को लेकर फैली अफवाहों और टीका लगवाने के बाद भी लोगों के मर जाने की कहानियों के चलते ज्यादातर लोग देहाती इलाकों में राज्य सरकार की तरफ से आयोजित किए गए टीकाकरण शिविरों में जाने से घबरा रहे हैं।
गांव कनेक्शन लगातार इस बारे में रिपोर्ट करता रहा है कि कैसे ग्रामीण भारत में टीके को लेकर झिझक है और इस मुद्दे पर ध्यान देने की कितनी ज्यादा जरूरत है।
ग्रामीण भारत में वैक्सीन से डर क्यों?
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टीका लगवाने के बाद राम प्रकाश ने गांव कनेक्शन को बताया, “शुरू में थोड़ा सा डर था। लेकिन हमने पहले भी तो कई टीके लगवाए हैं और हम जानते हैं कि यह हमारी मदद करने के लिए ही है, न कि हमें नुकसान पहुंचाने के लिए।”
जिला प्रशासन, स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं जैसे आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और एएनएम (सहायक नर्स दाई) के निरंतर प्रयासों से आदिवासी समुदाय के लोग कोविड19 से बचने के लिए टीकाकरण करवाने के लिए आगे आ रहे हैं। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत तबाही मचाई है।
कुछ मामलों में टीकाकरण शिविर तक पहुंचने में होने वाली मुश्किलों के कारण भी लोग टीका लगवाने से कदम पीछे खींच रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ, इससे भी बड़ा कारण यह डर था कि टीकारण के बाद उन्हें ना जाने क्या हो जाए.
गांवों में टीकाकरण शिविर
27 मई की दोपहर के आसपास, आदर्श इंटर कॉलेज के लक्ष्मण हॉल में लोगों को टीका लगाया जा रहा था। लगभग 15 लोग लाइन में खड़े हैं जिनमें अधिकांश बुजुर्ग थे और जिले की आदिवासी बस्तियों से आए थे।
आवाजों से गूंज रहे लक्ष्मण हॉल में स्वास्थ्यकर्मी एक मेज के चारों तरफ बैठे थे, जिस पर वैक्सीन की शीशी रखी हुई थीं। एक व्यक्ति लिस्ट से नाम पुकार रहा था और एक-एक करके महिला और पुरुष टीका लगवाने आ रहे थे।
टीका लगवाने वालों को पहले प्लास्टिक की बड़ी सी बोतलों से सेनेटाइजर दिया जाता था, उसके बाद मास्क और दस्ताने पहने हुए स्वास्थ्यकर्मी उन्हें टीका लगाते थे। वे टीका लगाने से पहले उनसे पूछते थे कि क्या वे किसी तरह की दवाएं खा रहे हैं। फिर टीकाकरण के बाद उनसे कहा गया कि आधा घंटा यहीं इंतजार करें और उसके बाद घर जाएं।
राम नाथ ने भी वहीं पर टीका लगवाया। उनका संबंध भी कोल समुदाय से है और वह भी राम प्रकाश के गांव रहकला में ही रहते हैं।
राम नाथ कहते हैं, “हल्ला गुल्ला मचा रखा है कोरोना ने।” उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने भी वायरस और टीकाकरण से संबंधित सांस फूलने, सर्दी, खांसी बुखार से जुड़ी कहानियां सुनी हैं. लेकिन वह इनसे परेशान नहीं हुए।
राम नाथ को कोविड से जुड़े नियमों, मास्क और सामाजिक दूरी जैसी बातों के बारे में अच्छी तरह पता था। उन्होंने कहा, “मैंने सुना है कि लोगों को कोरोनावायरस के कारण बहुत तकलीफ हुई, लेकिन मैंने खुद इस तरह का कुछ नहीं झेला।” ग्रामीण इलाकों में और भी कई अफवाहें चल रही हैं।
अफवाहें और हिचकिचाहट
पाटेहरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) स्वाति देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, “जनता अभी भी बड़े पैमाने पर टीकाकरण करवाने को लेकर हिचकिचा रही है। आशा कार्यकर्ताओं के बार-बार उनके पास जाने और टीका लगवाने का आग्रह करने के बावजूद आदिवासी समुदायों के लोग ज्यादा उत्साहित नहीं नजर आ रहे हैं।”
स्वाति ने यह भी कहा कि मौत का डर और वैक्सीन से जुड़ी अफवाहें लोगों को टीकाकरण से दूर कर रही हैं। लोगों को लगता है कि सरकार स्थानीय वैक्सीन लगा रही है जिससे कोरोना वायरस से बचाव नहीं होता।
सीएचओ के अनुसार, कल (28 मई) को आदर्श इंटर कॉलेज में कुल 43 लोगों ने टीका लगवाया।
चूंकि यह वायरस ग्रामीण इलाकों तक फैल चुका है, इसीलिए सरकार गांवों में और उनके आसपास मुफ्त टीकाकरण शिविर लगा रही है. लेकिन लोगों को इसके लिए तैयार करना एक कठिन काम है।
बढ़ते कदम
जब गांव कनेक्शन ने टीकाकरण शिविर में आई गुल पत्ति से उनकी उम्र पूछी तो उन्होंने इस सवाल को टालते हुए कहा, “अब मुझे इसकी जानकारी लेने के लिए कहां जाना होगा?” यह बूढ़ी महिला खंतरा गांव से आई थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने भी टीका लगने के बाद, बीमार पड़ने जैसी अफवाहें सुनी है, फिर भी उन्होंने टीका लगवा लिया। उन्होंने कहा, “मैं तो बिल्कुल ठीक हूं.”
खंतरा गांव की ही राम स्वामी ने बताया, “मुझे सुई लगने से बिल्कुल दर्द महसूस नहीं हुआ है।” उन्होंने बताया कि टीका लगने के बाद लोगों को बुखार आने या तबियत खराब होने के बारे में उन्होंने भी सुना था, लेकिन उन्होंने आगे बढ़कर टीका लगवाने का फैसला किया।
आदर्श इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल बेचन सिंह पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरे कॉलेज के ही नहीं, बल्कि अन्य इंटर कॉलेजों के भी सभी अध्यापकों और उनके परिवार वालों को यहीं टीका लग रहा है।” आदर्श इंटर कॉलेज में ही कल टीकाकरण शिविर लगाया गया।
पटेल ने बताया, “यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है और आदिवासी टीका लगवाने से डर रहे हैं।” उनका सुझाव है, “हमें आदिवासियों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना होगा, उनसे आग्रह करना होगा। अगर उनसे कहा जाए कि भविष्य मेंउन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का फायदा तभी मिलेगा, जब वे टीका लगवाएंगे, तो वे इसके लिए आगे आ सकते हैं।”
पटेल ने यह भी कहा कि शायद बारिश के मौसम की वजह से भी कुछ लोग नहीं आ पा रहे हैं। लेकिन बारिश धीरे- धीरे तेज होने लगी और लोग भीगने से बचने के लिए इधर-उधर जगह ढूंढने लगे. टीका लगने के बाद रवि शंकर शुक्ला भी तेज कदमों से लक्ष्मण हॉल से बाहर निकले।
45 वर्षीय लक्ष्मण शुक्ला ने कहा, “मैंने अपनी पहली डोज ले ली है और यह उसका सबूत है।” उन्होंने तुरंत गांव कनेक्शन को एक पर्ची दिखाई जिस पर उनके बारे में विवरण था। उन्होंने कहा, “मैंने आधे घंटे तक इंतजार किया और अब मैं बिल्कुल ठीक महसूस कर रहा हूँ और घर जा रहा हूँ।”
इसी बीच 28 मई को एक प्रेस वार्ता में अतिरिक्त मुख्य स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को टीका लगना शुरू होगा। उन्होंने कहा, “हमने कम आबादी वाले जिले में हर दिन कम से कम 1,000 नागरिकों को टीका लगाने का फैसला किया है।”
उसी दिन एक अन्य प्रेस वार्ता में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने भी कहा कि भारत इस दिसंबर के अंत तक सभी का टीकाकरण कर देगा।
अनुवाद: संघप्रिया मौर्य