हिमाचल प्रदेश की मंडियों में 15-20 दिन पहले प्रीमियम क्वालिटी का जो सेब थोक में 100-150 रुपए प्रति किलो से ऊपर बिक रहा था वो इन दिनों 30 से 70 रुपए किलो आ गया है। सामान्य, बी और सी ग्रेड सेब के दाम भी तेजी से गिरे हैं। किसानों के मुताबिक रेट में इतनी गिरावट के पीछे कई वजह हैं, जिसमें एक वजह अदानी (Adani Group) कंपनी द्वारा घोषित सेब के रेट भी हैं।
हिमाचल प्रदेश में ये सेब का पीक सीजन है। लेकिन सेब के कारोबार से जुड़ी अदानी एग्री फ्रेश ने इस सीजन में जो रेट घोषित किए हैं बावान उससे नाखुश हो गए हैं। अदानी की कंपनी ने सुप्रीम क्वालिटी सेब का रेट 72 रुपए प्रति किलो तो छोटे सेब (under Size) का 12 रुपए किलो रेट तय किया है। सुप्रीम क्वालिटी सेब का रेट पिछले साल के 88 रुपए प्रति किलो से 16 रुपए किलो कम है। किसानों का कहना है कि अदानी के कम रेट घोषित करने से मार्केट के सेंटिमेंट्स पर असर पड़ा है और सेब के दाम तेजी से गिरे हैं।
“अडानी जो प्रीमियम एपल (सेब) खरीदता है। उसका रेट 72 रुपए है लेकिन सामान्य सेब का रेट तो 52 रुपए ही है। इससे किसानों को कोई फायदा नहीं है बल्कि मार्केट और गिर गई है। अगर अडानी थोड़ा अच्छा रेट खोलता तो किसानों को फायदा होता।” लोकेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं। बिष्ट हिमाचल प्रदेश में सेब बागान मालिकों के संगठन प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिशएन (PGA) इंडिया के प्रेसिडेंट हैं।
लोकेंद्र सिंह बिष्ट फोन पर गांव कनेक्शन को सेब की मौजूदा मार्केट, किसान के हालात और अदानी एग्री फेश द्वार खोले गए रेट का असर समझाते हैं। उनके मुताबिक अगर कोई किसान 1000 पेटी सेब पैदा करता है तो उसमें 300 पेटी सेब प्रीमियम होता है बाकि 400-500 अच्छी क्वालिटी का और सेब कटाफटा बोरी में बेचने वाला होता है।
बिष्ट कहते हैं, “सबसे अच्छी क्वालिटी का रेट 72 रुपए और सबसे निचले (under size) सेब का रेट तो सिर्फ 12 रुपए किलो ही है। बाग में तो हर तरह का सेब निकलता है। तो किसान अपनी पूरी फसल का औसत रेट 30-50 रुपए किलो का बैठता है।”
वो आगे कहते हैं, “किसान से 50 रुपए औसत में खरीदा गए इसी सेब को अदानी 3-4 महीने बाद 150 से 200 रुपए में बेचता है। अगर प्रति किलो पर कोल्ड स्टोरेज का 20-25 रुपए किलो का खर्च भी मान ले तो कंपनी को दोगुना-तिगुना मुनाफा होता है। अडानी की कंपनी अगर सेब की खरीद के वक्त 4-5 रुपए का अच्छा रेट दे देती तो उसके मुनाफे पर फर्क नहीं पड़ता लेकिन किसान के लिए ये रकम बड़ी हो जाती। क्योंकि इस साल खर्च बहुत बढ़ गए हैं।”
अड़ानी एग्री फ्रेश (Adani Agri Fresh) ने 24 अगस्त से लेकर 29 अगस्त तक के लिए रेट घोषित किए हैं। इस रेट पर बागानों से माल खरीदकर अड़ानी के कोल्ड स्टोरेज (सीए) में रखा जाता है। जो ऑफ सीजन (मार्च के बाद) निकालकर बेचा जाता है। अडाणी के रेवाली, सैंज (कुल्लू), रोहरू में कोल्ड स्टोरेज हैं। अदानी के अलावा कई और कंपनियां और बढ़े आढती भी पीक सीजन में माल स्टोर करके ऑफ सीजन में बेचते हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रेट को लेकर जारी बयान में अदानी एग्री फ्रेश ने कहा, जो किसान हमें सेब देते हैं हमने उसने चर्चा के बाद ये रेट तय किए हैं। जबसे रेट की घोषणा हुई हुई किसी किसान कोई शिकायत नहीं मिली है। जो लोग हमें सेब नहीं देते वही विरोध कर रहे। गांव कनेक्शन इस संबंध में कंपनी से बात करने की कोशिश में बात होते ही खबर अपडेट की जाएगी।
हिमाचल प्रदेश में इस साल करीब 4 करोड़ पेटी सेब होने का अनुमान है। पिछले साल यहां तीन करोड़ से सवा तीन करोड़ पेटी सेब हुआ था। इस वर्ष पैदावार ठीक है लेकिन मौसम की मार के बाद किसानों को मार्केट में एकाएक आई गिरावट से जोर का झटका लगा है।
“15-30 दिन पहले तक सेब की पेटी (25 से 28 किलो) का मंडी में भाव 2500-4000 रुपए था। कुछ माल मैंने खुद इसी रेट पर बेचा था। लेकिन एका-एक रेट काफी डाउन चला गया है। आज उसका रेट 1000-1500 रुपए प्रति पेटी हो गया है। सीजन पर हर साल रेट गिरते हैं लेकिन इतने ज्यादा कभी नहीं गिरते हैं। इससे ज्यादा उत्पादन तो 2010 में हुआ था तब रेट इस अनुपात में नहीं गिरे थे।” शिमला के युवा बागान मालिक प्रशांत सेहटा गांव कनेक्शन को बताते हैं। वो यंग एंड यूनाइटेड ग्रोवर एसोसिएशन, (YUGA) हिमाचल प्रदेश के महासचिव हैं।
वो आगे कहते हैं, “डीजल से लेकर पैकेजिंग मैटेरियल की कीमत काफी बढ़ गई है जबकि अडानी की कंपनी जो रेट दे रही है वो पिछसे साल से कम है। हमसे 50 से 70 रुपए में रेट खरीदकर यही सेब आगे कुछ महीने बाद 150 से 400 रुपए में बेचा जाता है। इसीलिए किसानों में असंतोष है।”
प्रशांत का गांव हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले की तहसील जुब्बल (Jubbal) के अंतर्गत भोलाड़ गांव में है। यहां पर उनका 3 हेक्टेयर (8-9 एकड़) से ज्यादा सेब का बगीचा है। प्रशांत के मुताबिक उनके पास करीब 2000 पेटी सेब होता है। वर्तमान रेट के हिसाब से उन्हें प्रति पेटी 500-800 रुपए का नुकसान है।
प्रशांत बताते हैं, “हमने जो असेसमेंट (गुणा भाग) किए हैं उसके मुताबिक सेब तोड़ने, पैकिंग और मंडी तक पहुंचाने में प्रति पेटी 500-600 रुपए की लागत आती है। इसमें सेब बागान के रख रखाव, कटिंग, कीटनाशक, उर्वरक का खर्च शामिल नहीं है। अगर कोई किसान 1000 पेटी सेब पैदा करता है तो उसमें 1.5 लाख रुपए करीब पैदा करने की लागत होती है। 2 लाख से 3 लाख मंडी तक पहुंचाने में खर्च हो जाते हैं। अगर ऐसे में उसे पूरे साल में 10 लाख मिले तो आधी से ज्यादा लागत निकल गई तो उसे बचा क्या, पूरा साल परिवार पालना है।”
बाग मालिकों के अनुसार डीजल और पेस्टीसाइड ही नहीं। पिछले साल की अपेक्षा पैकिंग मैटेरियल 30 फीसदी तक महंगा हो गया है।
प्रशात कहते हैं, “पिछले साल जो कर्टन 52-55 रुपए का प्रति पड़ता वो 70 के आसपास पहुंच गया है। वहीं कर्टन में लगाई जाने वाली एपल ट्रे 4 रुपए 50 पैसे की जगह 5 से 6 रुपए में मिलने लगी है। यहां तक सामान्य गत्ता भी 10 रुपए महंगा हो गया है।
लोग कह रहे है कि ये कृषि कानूनों का असर भी है?
इस सवाल के जवाब में प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिशएन (PGA) इंडिया के प्रेसिडेंट लोकेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं, “सीधे तौर पर हमारे ऊपर कोई असर नहीं है। लेकिन आप चौतरफा देंखेंगे तो असर समझ आएगा। अडानी ने 72 रुपए का रेट खोला है अगर वो 62 रुपए रखता तो हम क्या कर लेते। जब सिर्फ कॉरपोरेट होंगे तो मिनियम प्राइज नहीं होगा। संरक्षण की लागत नहीं हो होती तो वो मनमानी करेंगे ही।”
खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा सेब के रेट घटाए जाने पर लिखते हैं, “26 अगस्त से शुरू हुए सेब विपणन सीजन के लिए अदानी एग्री फ्रेश कंपनी ने सेब के खरीद मूल्य में औसतन 16 रुपये प्रति किलो की कटौती की है। यही कारण है कि किसान केंद्रीय कानूनों का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि वे एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाने की मांग करते हैं।”
“जम्मू-कश्मीर की तरह हिमाचल में भी केंद्र करे खरीद”
हिमाचल प्रदेश सरकार सेब की खरीद करती है। लेकिन वो सी ग्रेट (कटा-फटा) सेब खरीदती है। बिष्ट के मुताबिक इस बार ऐसे सेब के लिए हिमाचल सरकार (HPMC के जरिए) ने 50 पैसे प्रति किलो बढ़ाकर 9.50 रुपए का रेट तय किया है। लेकिन प्रदेश सरकार की अपनी लिमिटेशन हैं, वो फूड प्रोसेसिंग के लिए जो खरीद रही है वो किसानों के लिए बहुत बड़ा सपोर्ट है लेकिन हमें असली जरुरत है कि जम्मू-कश्मीर की तरह केंद्र सरकार भी सपोर्ट करें।”
केंद्र सरकार जम्म-कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड-NAFED) के जरिए सेब की खरीद करती है। हिमाचल प्रदेश के किसान चाहते हैं, उसी तर्ज पर केंद्र सरकार वहां भी खरीद करे।
बिष्ट कहते हैं, “जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार ए, बी और सी तीनों ग्रेड के रेट तय करती है। जो 24 से लेकर 64 रुपए तक होते हैं। तो कोई सरकारी मशीनरी शामिल होती है तो मार्केट सपोर्ट करता है। किसान को भरोसा रहता है।”
हिमाचल में एक बड़ी आबादी बागवानी और सीधे तौर पर सेब पर निर्भर है। ऊपरी हिमाचल के बड़े हिस्से में पर्यटन और सेब कमाई के दो ही मुख्य जरिया हैं। सेब की कीमत क्वालिटी, रंग, सेप और साइज पर निर्भर करती है। बेहतरीन क्वालिटी का सेब हिमाचल में सबसे ऊंचाई पर होता है।
हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग में शिमला जिले में बागवानी विभाग अधिकारी (रोहडू) डॉ. कुशाल सिंह मेहता के मुताबिक प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर में सेब के बागान हैं और करीब 4 करोड़ पेटी का उत्पादन अनुमानित है, सेब से जुड़ा सालाना कारोबार 6000 करोड़ का है। कोल्ड स्टोरेज वाली कंपनियां (अदानी भी) प्रदेश में 20 लाख पेटी भी माल नहीं खरीदती हैं।
डॉ. मेहता कहते हैं, “सेब किसान मुश्किल में है। 20 लाख पेटी के चक्कर में 4 करोड़ पेटी पर भी संकट लग रहा है। लेकिन ये पहली बार नहीं है कि रेट गिरे हैं। हम 20 वर्षों से देख रहे हैं इस पीक सीजन (15 अगस्त से 15 सितंबर) में रेट घटता है। सिक्के के दूसरे पहलू देखना होगा। 15 अगस्त के बाद रेट डाउन होते थे लेकिन 5-6 साल से देख रहे हैं कि बहुत तेजी से डाउन होते हैं। क्योंकि सीए स्टोर वालों की खरीद को लेकर ये बहुत अच्छा समय होता है। पिछले 10 वर्षों से औसतन मैं देख रहा हूं कि ये औसतन 50 रुपए किलो का रेट ही लेते हैं।”
वो आगे कहते हैं, “हिमाचल प्रदेश के बागान सेब उगाना जानते हैं, क्वालिटी सेब उगाना भी सीख गए हैं लेकिन उन्हें कोल्ड स्टोरेज बनाना और अपने पास रखना भी सीखना होगा। वर्ना मुनाफा कोई और ले जाएगा।”
डॉ.कुशाल सिंह मेहता के मुताबिक उद्यान विभाग प्रदेश में सेब बागानों के लिए कई योजनाएं चला रहा है। जिसमें बेहतरीन पौध से लेकर कोल्ड स्टोरेज पर सब्सिडी भी शामिल हैं।
वो कहते हैं, “2015 से बागवानी विभाग सघन बागवानी की योजना चला रहा है। अच्छी क्वालिटी, कम समय में फल देने वाली किस्मों की पौध दी जाती है। जिन लोगों ने ये पौधे लगाए थे उन्होंने इस वर्ष भी 1 जुलाई से 30 जुलाई तक 150 से 230 रुपए किलो में अपना सेब बेचा है। दूसरा विभाग काम विभाग ये कर रहा है कि कोल्ड स्टोरेज को 30 फीसदी की सब्सिडी दे रहा है।”
डॉ. मेहता के मुताबिक हिमाचल में अदानी की कंपनी 2006 से काम कर रही है और उन्होंने यहां के किसानों को काफी कुछ सिखाया है, जिसमें क्वालिटी कंट्रोल, एमआरपी तय करना आदि शामिल हैं। शुरूआत में सारे काम अच्छे चल रहे थे सबको फायदा था।
विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने नाम लिखने की शर्त पर कहा, “दिल्ली से लेकर मुंबई लखनऊ तक किसी शहर में जाइए अच्छा सेब 150 रुपए किलो में बिक रहा है। जबकि बागवान से खरीदा 50 में जा रहा है। आज की बागवान से 50 में खरीदा आज ही तीन गुना रहा है। ऐसा किसी धंधे में नहीं होता है। छोटी सी माचिस में भी बिक्री तक का मुनाफा जुड़ा होता है लेकिन खेती में ऐसा कुछ नहीं है।”
प्रशांत कहते हैं, “हिमाचल के सेब और बागानों की वजह से ये इलाका पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी चल रही है। सरकार को चाहिए सब पर नजर रखे। यहां मंडियां ऐसे ही हैं आढ़ती मनमानी करते हैं। किसान तो कर्ज लेकर खेती करता है उसे तो पैसा चाहिए ये सब मिलकर उसका फायदा उठाते हैं।”