नई दिल्ली। देशभर में शौचालयों, किसानों के लिए फंड जुटाने के लिए लगने वाले उपकर का 1.3 लाख करोड़ रुपये का उपयोग तक नहीं हो पाया।
रेस्टोरेंट, टेलीफोन और क्लब के बिलों पर दिखने वाला शब्द “एसबीसी” (स्वच्छ भारत सेस), यह उन 10 उपकरों में से एक है जो सीधे केंद्र के पास जाता हे, और यह वित्तीय वर्ष, 2016-17 में 1.65 लाख करोड़ रुपये ($25.3 अरब) पर पहुंचने का अनुमान है।
बजट डेटा के विश्लेषण के अनुसार, 1.65 लाख करोड़ रुपये का उपकर जुटाने के बाद 2015-16 से 22% की बढ़ोत्तरी है, और यह 2014-15 में 83,000 करोड़ रुपये ($12.7 अरब) से दोगुना है।
विशेष करों के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी पिछले दशक में आई है, सरकार के ऑडिटर की इस रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 1.3 लाख करोड़ रुपये ($26 अरब), या उपकर का 41% एकत्र हुआ लेकिन इस्तेमाल नहीं हुआ।
भारत का कर राजस्व 8.7% बढ़ने की उम्मीद है, 2015-16 में 18 लाख करोड़ रुपये ($277 अरब) से 2016-17 में 19.6 लाख करोड़ रुपये ($301 अरब) तो उपकर संग्रह में तेजी आने की संभावना है।
सरकार के ऑडिटर, नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अनुसार, पिछले दो दशकों के दौरान, चार उपकरों से एकत्र किए गए 3.1 लाख करोड़ रुपये ($62 अरब) का 41% से अधिक इस्तेमाल नहीं किया गया।
सीएजी ने हाल ही में केंद्र सरकार-कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए, के साथ ही भाजपा के नेतृत्व वाले राजग-की पिछले दो दशकों में एकत्र किए गए उपकरों का कम इस्तेमाल करने के लिए निंदा की थी।
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है, “वित्त अधिनियम में दिए गए उद्देश्यों से अलग फंड के इस्तेमाल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।”
पिछले बजट में चुनिंदा सेवाओं पर 0.5% कृषि कल्याण (किसानों का लाभ) उपकर लगाकर, सेवा कर को भी 14.5% से बढ़ाकर 15% कर दिया गया है, जिसे सरकार ने कृषि पर खर्च करने का वादा किया है।
क्रिसिल के जोशी कहते हैं, “उपकर का इस्तेमाल अस्थायी और एक विशेष उद्देश्य के साथ होना चाहिए। अगर यह कर मॉडल में स्थायी रूप से शामिल हो जाएगा, तो यह और कुछ नहीं बल्कि कर की एक ऊंची दर के बराबर है।”
केंद्र ने उपकर बढ़ाए, जो वह साझा नहीं करता
चौदहवें वित्त आयोग ने केंद्र से राज्यों को कर राजस्व के 42% के हस्तांतरण की सिफारिश की थी, जो पहले 32% थी, इससे केंद्र का कुछ राजस्व कम हुआ। इसकी भरपाई के लिए, केंद्र ने उपकर बढ़ा दिए, जो इसे राज्यों के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं है। रेटिंग्स एजेंसी, क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री, धर्मकीर्ति जोशी के अनुसार, “जब राज्यों को अधिक पैसा दिया जाता है, तो केंद्र सरकार के पास राजस्व की कमी हो जाएगी, और वह विशेष उद्देश्यों पर लक्षित खर्च को प्राप्त करने के लिए आवश्यक धन उपकर जैसे कर के साधनों से हासिल कर सकती है।” एक उपकर एक कर होता है, जिसके लिए एक नए कानून या अधिनियम-और संसदीय अनुमति-की आवश्यकता नहीं होती और यह वित्त अधिनियम में सम्मिलित होता है, जिसका अर्थ है, बजट के जरिए। सड़कों और सफाई के लिए उपकर बहुत हद तक कारगर रहे हैं, लेकिन माध्यमिक शिक्षा, दूरसंचार, और शोध एवं विकास के लिए ये उपयोगी नहीं रहे।
सड़क उपकर हुआ तीन गुना
2014-15 में सड़क उपकर से रिकॉर्ड 73,000 करोड़ रुपये ($11.2 अरब) मिले, जो 2014-15 में 25,121 करोड़ रुपये ($3.9 अरब) से 190% की बढ़ोत्तरी है। सड़क उपकर का तिगुना होना- जो पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क के रूप में दिखता है- का कारण तेल की वैश्विक कीमतों में 75% की कमी है, जिसके लाभ सरकार से राजस्व से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए अपने पास रखे हैं।
रिपोर्टर – अभिषेक वाघमारे