दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला की कहानी, मोतियाबिंद के बाद चारा कटर मनीराम बने बुढ़ापे की लाठी

मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का दावा है कि उनकी हथिनी वत्सला दुनिया की सबसे उम्रदराज हाथिनी है। इससे पहले ये खिताब ताइवान के हाथी लिन वांग के नाम था, जिसकी 86 की उम्र में मौत हो गई थी। इस उम्र में कई मेडिकल समस्याओं का सामना कर रही वत्सला को कुछ वर्षों से न के बराबर दिखाई देता है।
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पन्ना (मध्यप्रदेश)। पन्ना टाइगर रिजर्व में वैसे तो हजारों पशु पक्षी हैं लेकिन इस वक्त अगर सबसे ज्यादा किसी की देखभाल हो रही है तो वो वत्सला है। पन्ना के अधिकारियों के मुताबिक वत्सला दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी है, जिसकी उम्र करीब 105 साल बताई जाती है। इसीलिए वत्सला की सेहत को लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व के डॉक्टर से लेकर महावत और चारा कटर सभी फिक्रमंद रहते हैं।

दुनिया के सबसे अधिक उम्र के हाथी का नाम लिन वांग था, जिसकी ताइवान के चिड़ियाघर में 2003 में 86 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी। वत्सला ने लिन वांग के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था, हालांकि पीटीआर कार्यालय में वत्सला के जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के चलते वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।

पिछले दो दशक से भी अधिक समय से वत्सला की सेहत पर नजर रखने के साथ-साथ उसे हर मुसीबत से बाहर निकालने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता के मुताबिक हाथियों की उम्र उनके दांतों की घिसावट से पता चलती है और वत्सला के दांत 1990 के आसपास पूरी तरह गिर गए थे।

जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की उम्र तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। वत्सला की उम्र 100 वर्ष से अधिक हो चुकी है, जिसका असर शरीर के अंगों पर पड़ने लगा है। उसे कम दिखता है। पाचन तंत्र भी कमजोर हो गया है। — डॉ. संजीव कुमार गुप्ता, वन्य प्राणी चिकित्सक

अब कुछ ऐसी दिखती है बुजुर्ग वत्सला। फाइल फोटो

 1971 में केरल से लाई गई थी वत्सला

डॉ, गुप्ता गांव कनेक्शन को बताते हैं, “वत्सला केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। वत्सला ने अपना प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मण्डल (केरल) में वनोंपज परिवहन में व्यतीत किया। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) लाया गया। उस समय वत्सला की आयु 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह यहां की शोभा बढ़ा रही है।”

वत्सला जब होशंगाबाद से पन्ना आई थी तो महावत रमजान खान और चारा कटर मनीराम भी उसको साथ आए थे जो आज भी उसकी सेवा कर रहे हैं।

महावत रमजान खान (60 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, “वत्सला की अधिक उम्र और सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य से मुक्त कर दिया गया था। रिटायरमेंट के बाद से वत्सला के ऊपर कभी भी होदा नहीं कसा गया, न ही किसी कार्य में उपयोग किया गया। मौजूदा समय वत्सला की दोनों आंखों में सफेदी आ जाने के कारण कम दिखता है। चारा कटर हथिनी का डंडा बनकर उसे जंगल घुमाने के लिए ले जाता है।”

चारा कटर मनीराम अब वत्सला के बुढ़ापे की लाठी हैं। उनका काम सिर्फ चारा के इंतजाम करना ही नहीं बल्कि उसे घुमाना भी है। होशंगाबाद के मूल निवासी मनीराम बताते हैं, “हथिनी का पाचन तंत्र कमजोर हो चुका है, इसलिए उसे घास व गन्ना काट-काट कर खिलाता हूँ। हथिनी की सूंड या कान पकड़कर रोज उसे जंगल में भ्रमण कराता हूं। क्योंकि हथिनी बिना सहारे के ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते हैं।”

साल 2003 में नर हाथी के हमले में पेट फटने के बाद वत्सला को लगे थे 200 टांके। फाइल फोटो- अरुण सिंह

कुछ वाक्यों के छोड़कर पन्ना में वत्सला की जीवन सुखमय बीता है। नर हाथी ने वत्सला पर दो बार हमला कर उसे काफी नुकसान पहुंचाया था, दोनों बार डॉ. गुप्ता ने उसकी जान बचाई।

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (42 वर्ष) ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। उस दौरान 200 टांके लगे थे।

“200 टांके लगाने में करीब 6 घंटे लगे थे और 9 महीने तक गहन इलाज चला था। जिसके बाद अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।” वो आगे बताते हैं।

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शांत और संवेदनशील वत्सला कभी बन जाती है दादी तो कभी कुशल दाई

बेहद शांत और संवेदनशील है वत्सला हथिनी अत्यधिक शांत और संवेदनशीलहै। पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के कुनबे में बच्चों की देखभाल दादी मां की भांति करती है। कुनबे में जब कोई हथिनी बच्चे को जन्म देती है, तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका भी निभाती है।

डॉ. गुप्ता बताते हैं, “उपलब्ध जानकारी के अनुसार हथिनी वत्सला ने पन्ना एवं होशंगाबाद में किसी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया। जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की उम्र तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। वत्सला की उम्र 100 वर्ष से अधिक हो चुकी है, जिसका असर शरीर के अंगों पर पड़ने लगा है। उसकी आंखों में मोतियाबिंद हो चुका है, जिससे उसे कम दिखता है। पाचन तंत्र भी कमजोर हो गया है फलस्वरूप उसको सुगमता से पचने वाला विशेष आहार दिया जाता है।”

वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने का है इंतजार

पन्ना टाइगर रिजर्व की शान तथा देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र उम्रदराज हथिनी वत्सला भले ही दुनिया में सबसे अधिक उम्र की है, लेकिन अभी तक उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुआ।

इसकी मुख्य वजह पीटीआर (पन्ना टाइगर रिजर्व) कार्यालय में वत्सला का जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होना है। इस दिशा में वर्ष 2007 में पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक शहवाज अहमद की पहल से वत्सला के जन्म का रिकॉर्ड नीलांबुर फारेस्ट डिवीजन से प्राप्त करने के लिए पत्राचार किया गया था। बाद में अगस्त 2018 में जब शहवाज अहमद प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी के पद पर रहते हुए पन्ना दौरे पर आए, उस समय भी वत्सला का जन्म रिकॉर्ड नीलांबुर से मंगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन अहमद के सेवानिवृत्त होने के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया। टाइगर रिजर्व अधिकारी और कर्मचारी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को इस मामले दखल देना चाहिए ताकि वत्सला को जीवित रहते दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी होने का सम्मान अधिकृत रूप से मिल सके।

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