60 साल से पुल के लिए तरस रहे सहरसा निवासी, 16 दिन से चल रहा आमरण अनशन

Bihar

लखनऊ। बिहार के सहरसा जिले में कोसी नदी पर पुल बनाने की मांग के साथ स्थानीय निवासी पिछले कई दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। अनशनकारियों की हालत नाजुक होती जा रही है, लेकिन प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है।

जिले के सलखुआ प्रखंड में कोसी नदी के डेंगराही घाट पर पुल बनाने की मांग आज़ादी के समय से ही चल रही है, लेकिन राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार कोई भी स्थानीय लोगों की मांग की तरफ ध्यान नहीं दिया है। बुनियादी ज़रूरतों भी पूरी नहीं होती है। मजबूर होकर स्थानीय निवासियों ने अनशन शुरू किया है।

अनशन करने वाले लोगों की स्थिति नाज़ुक बनती जा रही हैं, कुछ अनशनकारियों को स्लाइन चढ़ाया जा रहा है, लेकिन फिर भी वो अपनी मांग से हटने को तैयार नहीं है। अनशन में पुरुषों से ज़्यादा महिलाएं शामिल हैं। सलखुआ स्थित पीएचसी के प्रभारी अनिल कुमार सिन्हा ने बताते हैं कि सभी अनशनकारियों को स्लाइन चढ़ाया जा रहा है। कई अनशनकारियों को अस्पताल भेजने की ज़रूरत है।

पुल नहीं होने से क्या परेशानी

बिहार का अभिशाप कही जाने वाली कोसी नदी के पूर्वी तट के पास स्थित चानन पंचायत में रहने वाले निवासियों के यहाँ पुल नहीं होने के कारण कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। सालों से इन्हें शहर आने का लिए नदी को पार करने के बाद कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। यहां न सड़कें ठीक हैं और न बिजली आती है। बच्चों के पढ़ाई के लिए भी स्कूल नहीं है।

स्थानीय लोगों के अनुसार अगर डेंगराही घाट पर पुल का निर्माण हो जाता है तो जिला मुख्यालय आने जाने में दिक्कत नहीं होगी। रोजगार करने शहर जाने और आने में भी परेशानियों का सामना नहीं करना होगा। बीमार होने पर इलाज कराने में दिक्कत नहीं होगी।

प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार और रेडियो कोसी उपन्यास के लेखक पुष्य मित्र इस क्षेत्र के बारे में लिखते हैं की ‘‘इसी हिंदुस्तान के नक़्शे में एक इलाका है फरकिया। यह इलाका बिहार के नक़्शे के बीच में होते हुए भी सदियों से फरक है। इसे नदियों का मायका कहते हैं, क्योंकि इस छोटे से इलाके से होकर सात छोटी बड़ी नदियां बहती हैं। अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल जब पूरे भारत के जमीन की पैमाइश कर रहे थे तो यहां भी आए। मगर यहां की नदियों के चंचल स्वभाव की वजह से वे यहाँ भू पैमाइश का काम पूरा नहीं कर पाए। नक़्शे पर इस इलाके को उन्होंने लाल स्याही से घेर दिया और लिख दिया फरक-किया, यानी अलग किया। यही फरक-किया बाद में फरकिया हो गया। तब से यह इलाका फरक ही है।’’

अनशन का नेतृत्व कर रहे बाबू लाल शौर्य कहते हैं कि जब तक डेंगराही घाट पर पुल बनाने के लिए सरकार द्वारा ठोस निर्णय नहीं मिलता तब तक आमरण अनशन जारी रहेगा।

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