लखनऊ। 2014 के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में अवतरित हुए नरेंद्र मोदी ही इस विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों दलों के बीच सबसे बड़ा अंतर बन चुके हैं। 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए रैलियां शुरू की, तब विरोधियों ने उनके हल्के में लेना शुरू किया था। मगर धीरे धीरे मोदी की रैलियों में भीड़ बढ़ने लगी। जिससे विरोधियों का विरोध भी। यही विरोध धीरे धीरे मोदी की ताकत बनता गया।
मोदी लगातार बयान देकर विरोधियों को उकसाते रहे और अपने ही अखाड़े में सभी को लड़ाते रहे। जिसका नतीजा ये हुआ कि मोदी दिन पर दिन लोकप्रिय होते गए। वाराणसी से चुनाव लड़ कर और वड़ोदरा की सीट छोड़ कर खुद को यूपी का बेटा बनाने की कोशिश की। वर्तमान विधानसभा चुनाव में मोदी ने खुद को उत्तर प्रदेश का गोद लिया हुआ बेटा बताया। मगर इस विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। यहां से जीत और हार 2019 में वे प्रधानमंत्री बनेंगे या फिर उनकी दावेदारी कमजोर होगी, इसका फैसला करेगी।
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“नेता जी, गुजरात बनाने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिये , “मैं नीची जाति से आता हूं” और “मैं रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था” । इन बयानों ने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को बहुत लाभ पहुंचाया था। तब इन बयानों को लेकर जिस तरह से जवाब विपक्षी नेताओं ने दिये थे, फिर भाजपा के मीडिया मैनेजमेंट के बल पर मोदी लहर बनाने में मदद ली थी। कुछ उसी तर्ज पर यूपी इलेक्शन में मोदी विवादित होने वाले बयान देकर विरोधियों को अपने जाल में फंसा रहे हैं।मोदी बोल कर जाते हैं और विरोधी उनका जवाब देते हैं। एक बयान पर दो तीन दिन जम कर चरचा होती है और इसके बाद में अगली जनसभा में वे नया विवादित बयान देकर जनता का ध्यान एक बार फिर से अपनी ओर खींचते हैं।
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सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली में हुई एक जनसभा में बड़ा बयान दिया था। नरेंद्र मोदी ने इस रैली में कहा था कि लोग पूछते हैं कि “मैं क्या करता था। मैं बताता हूं कि मैं क्या करता था। मैं रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था। मेरी मां घरों में झाड़ू पोछा लगाती थी। मैंने चाय बेची है मगर देश नहीं बेचा” प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मंत्री मणिशंकर अय्यर का बयान था कि “अगर उनको चाय ही बेचना है तो वे हमारे अधिवेशन क्षेत्र के पास आ जाएं, हम उनको एक छोटी जगह चाय बेचने के लिए दे देंगे।”अय्यर का ये बयान आत्मघाती साबित हुआ था।
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इसके बाद में बीजेपी ने इसको मुद्दा बनाया और चाय पर चरचा शुरू कर दी। जिससे समाज का गरीब वर्ग को जोड़ने की कोशिश की थी। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने मुलायम सिंह के एक बयान जवाब दिया। मुलायम ने अपनी एक जनसभा में कहा था कि, वे नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश को गुजरात नहीं बनाने देंगे। जिसके जवाब में मोदी ने उनको जवाब देते हुए कहा था कि नेता जी गुजरात बनाने के लिए “छप्पन इंच का सीना चाहिये”नरेंद्र मोदी का ये जवाब अब तक उनका सियासी ट्रेडमार्क बन गया है। नरेंद्र मोदी का तीसरा बयान उनकी 2014 में अमेठी में हुई रैली में सामने आया था। जब उन्होंने कहा कि था कि मैं नीची जाति से आता हूं। उनका ये बयान लोकसभा में उप्र के दलितों और पिछड़े वर्ग के वोटर को खूब भाया था। जिसका नतीजा ये हुआ था कि भाजपा गठबंधन को 80 में 73 सीटों पर कामयाबी मिली थी।
फिर से बयानों से राजनैतिक निशाने साधने का आगाज
नरेंद्र मोदी के ताजा बयानों को लेकर राजनैतिक विशेषज्ञ और पूर्व पीसीएस अधिकारी अष्टभुजा प्रसाद तिवारी का कहना है कि ये सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। तीन चरणों के पूरा होने के बाद अब वे बयानों के जरिये सालों बाद हिंदू मुसलमानों की बातें उठाने लगे हैं। उन्हें मालूम है कि ऐसे बयानों के पलटवार होते ही बात बढ़ेगी और उसके साथ ही बढ़ेगा वोटों का ध्रुवीकरण। जिससे पूर्वांचल का चुनाव आते आते ये ध्रुवीकरण अपने चरम पर होगा। जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा।
2019 के लिए लिटमस टेस्ट 2017
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट 2017 का विधानसभा चुनाव होगा। इसलिए इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में पूरी जान लगा दी । खासतौर पर अपने क्षेत्र वाराणसी में लगाई। जहां उन्होंने तीन दिन दिये। इसके अलावा करीब 25 रैलियां चुनाव के दौरान की। जबकि चुनाव से ठीक पहले 10 परिवर्तन रैलियां कीं। अगर इस चुनाव में भाजपा की जीत होती है तो नरेंद्र मोदी बीजेपी के बड़े नायक बन कर सामने आएंगे। मगर बीजेपी की हार होते ही विरोधियों के सामने 2019 में नोटबंदी मोदी को खलनायक बनाने का एक मौका होगा।
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