विशेषज्ञों ने प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बजाय पुनर्चक्रण पर दिया जोर 

Mumbai

मुंबई (भाषा)। पैकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों ने पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए देश में निर्मित प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बजाय उसके पुनर्चक्रण या नियमन किए जाने की जरुरत पर जोर दिया है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की विशेष सचिव आर आर रश्मि ने कल यहां आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में कहा, ‘‘यह जरुरी है कि हम (उद्योग और उपभोक्ता) प्लास्टिक का इस्तेमाल पर्यावरणीय लिहाज से टिकाऊ तरीके से करें। इसलिए निर्माता स्तर पर और उपभोक्ता स्तर पर प्लास्टिक कचरे का नियमन महत्वपूर्ण है।” सम्मेलन का आयोजन भारतीय पैकेजिंग संस्थान (आईआईपी) ने किया था। यह केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाला स्वायत्त संस्थान है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों ही के लिए एक व्यवस्था बनाई है। इस समय उपभोक्ता पर प्रयोगकर्ता शुल्क लगाने का प्रावधान है। यदि आप किसी शॉपिंग मॉल जाते हैं तो वे तब तक आपको थैला नहीं देंगे, जब तक आप उसके लिए पैसा नहीं देते। इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि उपभोक्ताओं को इसका इस्तेमाल न करने के प्रति सचेत होना चाहिए।”

आर आर रश्मि ने कहा, ‘‘कचरे का प्रबंधन बहुत जरुरी है। निकाय स्तर पर हम अब भी कचरा प्रबंधन के बारे में अनभिज्ञ हैं। समस्या इरादे से ज्यादा वित्त और अवसंरचना की है।” उन्होंने कहा, ‘‘अमृत योजना में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत कचरा निस्तारण स्थलों (लैंड फिल) को दुरुस्त करने की, इन स्थलों पर पृथक्करण सुविधाएं स्थापित करने की, कचरे के निस्तारण के लिए भट्टियों की स्थापना करने की विशेष योजना है ताकि लैंडफिल की जरुरत ही न पडे।”

रश्मि ने कहा कि वर्ष 2030 तक कचरा प्रबंधन नियमों के अंतर्गत हमें (सरकार को) सभी लैंडफिल खत्म कर देने हैं। हम अमृत योजना के जरिए लैंडफिल के पृथक्करण के माध्यम से स्थानीय इकाइयों को सहयोग देंगे।

पर्यावरण मंत्रालय के सचिव ने कहा कि नियमन अपने आप में कोई अंतिम हल नहीं है. नियमन दरअसल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रोजाना बनने वाले प्लास्टिक के 60 प्रतिशत हिस्से का पुनर्चक्रण होता है। हालांकि सरकार का उद्देश्य शेष 40 प्रतिशत को संतुलित करने का है ताकि हम देश में बनने वाले लगभग सभी प्लास्टिक का पुनर्चक्रण कर सकें।”

आईआईपी के निदेशक डॉ एन सी साहा ने कहा, ‘‘प्लास्टिक को प्रतिबंधित करना कोई हल नहीं है क्योंकि हमारे पास उसका कोई विकल्प नहीं है। इसका नियमन ही समाधान होगा। सरकार इसके नियमन की कोशिश कर रही है। केंद्र ने पूर्व में भी कहा था कि बेहद कम माइक्रॉन की मोटाई वाले प्लास्टिक के थैलों की तुलना में 50 माइक्रॉन जितने पतले प्लास्टिक के थैले इस्तेमाल किए जाने चाहिए।” उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर, सामान ले जाने वाले जिन थैलों की मोटाई पहले 20 माइक्रॉन होती थी, अब उसे 50 माइक्रॉन कर दिया गया है।

डॉ साहा ने कहा कि केंद्र ने कचरा संग्रहण, पृथक्करण और निस्तारण से जुडे नियम बना दिए हैं लेकिन उन्हें लागू करना सरकारों पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अकेले इसे नहीं कर सकते। यह उपभोक्ता और ब्रांड मालिकों की साझा जिम्मेदारी है। सम्मेलन का आयोजन अखिल भारतीय प्लास्टिक निर्माता संघ की ओर से आयोजित ‘10वें प्लास्टिविजन भारत 2017′ नामक पांच दिवसीय (19-23 जनवरी) अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक प्रदर्शनी के अवसर पर किया गया था।

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