जलवायु परिवर्तन ने भारत और पाकिस्‍तान में 30 गुना बढ़ाया समय से पहले हीटवेव का खतरा: रिपोर्ट

यह अध्ययन मार्च और अप्रैल के दौरान गर्मी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए उत्तर पश्चिमी भारत और दक्षिण पूर्वी पाकिस्तान के औसत अधिकतम दैनिक तापमान पर केंद्रित है।
heat waves

भारत और पाकिस्तान में लंबे समय से चल रही लू (हीटवेव) की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और इसने वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति पर भी असर डाला है। दुनिया के प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक वैश्विक समूह के रैपिड एट्रीब्यूशन विश्लेषण के मुताबिक लोगों की अमानवीय गतिविधियों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी भयंकर गर्मी पड़ने की संभावना करीब 30 गुना बढ़ गई है।

उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में इस साल वक्त से पहले अप्रत्याशित हीटवेव शुरू हो गई। हीटवेव मार्च के पहले सप्ताह से शुरू हुई और अभी तत काफी हद तक बरकरार है। भारत में मार्च का महीना पिछले 122 सालों में सबसे गर्म मार्च का महीना शुमार किया गया। पाकिस्तान में भी तापमान ने इस बार कई रिकॉर्ड तोड़ कर रख दिए। इसके अलावा अप्रैल में भी तापमान और बढ़ गया। 

पाकिस्तान में मानसून पूर्व बारिश में सामान्य से 62 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि भारत में सामान्य से 71 प्रतिशत कम मानसून पूर्व बारिश हुई है। हीट वेव की वजह से कम से कम 90 लोगों की मौत हुई है। अगर मौतों की संख्या ठीक से दर्ज की जाए तो इस संख्या में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी।

हीटवेव के जल्दी आने और मानसून पूर्व बारिश में कमी की वजह से भारत में गेहूं की पैदावार पर बुरा असर पड़ा है। इस की वजह से सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी का ऐलान करना पड़ा, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं के दाम बढ़ गए। भारत ने पहले रिकॉर्ड एक करोड़ टन तक निर्यात की उम्मीद लगाई थी जिससे यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से पैदा हुई गेहूं की किल्लत को दूर करने में मदद मिलती।

पूरी दुनिया में जिस तरह की लू (हीटवेव) चल रही है उसे जलवायु परिवर्तन ने और भी भयानक बना दिया है। जलवायु परिवर्तन ने इसे तीव्र और जल्दी जल्दी आने वाली आपदा में तब्दील कर दिया है। भारत और पाकिस्तान में लंबे वक्त तक अधिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन के असर को नापने के लिए वैज्ञानिकों ने पियर रिव्यूड मेथड का इस्तेमाल करके कंप्यूटर सिमुलेशन और मौसम संबंधी डेटा का विश्लेषण किया ताकि मौजूदा जलवायु की तुलना 19वीं सदी के उत्तरार्ध से 1.2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग पर, पूर्व की जलवायु से की जा सके।

यह अध्ययन मार्च और अप्रैल के दौरान गर्मी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए उत्तर पश्चिमी भारत और दक्षिण पूर्वी पाकिस्तान के औसत अधिकतम दैनिक तापमान पर केंद्रित है। नतीजे से पता चलता है कि लंबे समय से चल रही मौजूदा हीटवेव की संभावना अभी बहुत कम है, यानी कि हर साल इसकी संभावना 1 प्रतिशत ही है मगर मनुष्य की हरकतों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन ने इसकी संभावना को 30 गुना तक बढ़ा दिया है। अगर मनुष्य की अमानवीय हरकतों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो यह भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस के प्रोफेसर कृष्ण अचुता राव ने बताया, “भारत और पाकिस्तान में तापमान का उच्च स्तर पर पहुंच जाना एक सामान्य सी बात है लेकिन इस बार अप्रत्याशित बात यह रही कि यह सिलसिला बहुत जल्दी शुरू हो गया और लंबे वक्त से जारी है। दोनों देशों के ज्यादातर हिस्सों में लोगों को आखिरी के हफ्तों में भीषण गर्मी से कुछ राहत मिली। भीषण गर्मी से खासतौर पर खुले में काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों और मजदूरों को बहुत मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा। हम जानते हैं कि आने वाले वक्त में ऐसी स्थितियां बार-बार पैदा होगी क्योंकि तापमान बढ़ रहा है और हमें इससे निपटने के लिए और बेहतर तैयारी करने की जरूरत है।”

वर्ष 2022 के लिए मार्च-अप्रैल औसत दैनिक अधिकतम तापमान जैसा कि सीपीसी डेटासेट में देखा गया है। हरे बहुभुज द्वारा अध्ययन क्षेत्र को हाइलाइट किया गया है। (बी) के समान (ए) विसंगतियों के लिए wrt 1979-2022।

जब तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई जाएगी तब तक वैश्विक तापमान इसी तरह बढ़ता रहेगा। और इससे संबंधित चरम मौसमी घटनाएं और भी जल्दी जल्दी होती रहेंगी। वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो ऐसी हीटवेव की संभावना हर 5 साल में एक बार होगी। यहां तक कि प्रदूषण में कमी लाने की धीमी प्रक्रिया की वजह से भी ऐसी हीटवेव की संभावनाएं बरकरार रह सकती है।

आईआईटी मुंबई के सिविल इंजीनियरिंग और क्लाइमेट स्टडीज में प्रोफेसर अर्पिता मोंडल ने बताया, “हीटवेव में जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ाने की क्षमता है। यहां तक कि इससे सूखा भी उत्पन्न हो सकता है। क्षेत्र के हजारों लोग, जिनका ग्लोबल वार्मिंग में बहुत थोड़ा सा योगदान है, वे अब इसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। अगर वैश्विक स्तर पर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कटौती नहीं की गई तो यह आपदा जारी रहेगी।”

हो सकता है कि इस शोध के नतीजे इस बात को कम करके बताएं कि अब ऐसी हीटवेव कितनी आम बात है और अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो यह हीटवेव कितना जल्दी जल्दी उतपन्न होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौसम से संबंधित डाटा रिकॉर्ड उतने विस्तृत रूप में उपलब्ध नहीं है कि शोधकर्ता उनका सांख्यिकीय विश्लेषण कर सकें।

पाकिस्तान के इस्लामाबाद से क्लाइमेट एनालिटिक्स के लिए काम कर रहे जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर फहद सईद ने बताया, ”सबसे अफसोस की बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के मौजूदा स्तर पर क्षेत्र की एक बड़ी गरीब आबादी के लिए अनुकूलन की सीमा का उल्लंघन किया जा रहा है। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि 2 डिग्री सेल्सियस में वृद्धि दुनिया के लिए भी यह कितना बुरा होगा। एक मजबूत अनुकूलन और शमन वाली कार्रवाई के अभाव में डेढ़ डिग्री सेल्सियस से अधिक की कोई भी वार्मिंग कमजोर आबादी के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकती है।”

इस अध्ययन को 29 शोधकर्ताओं ने वर्ल्ड वेदर अटरीब्यूशन ग्रुप के तहत किया है। इस ग्रुप में भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों और मौसम विज्ञान की एजेंसियों से जुड़े वैज्ञानिक शामिल हैं।

इसी क्रम में इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रंथम इंस्टीट्यूट के डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने बताया, “जिन देशों का डाटा हमारे पास उपलब्ध है, वहां हीटवेव सबसे जानलेवा चरम मौसमी घटना है। साथ ही साथ तेजी से गर्म होती धरती में यह हीटवेव सबसे मजबूती से बढ़ रही मौसमी घटना भी है। जब तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहेगा तब तक ऐसी मौसमी आपदाएं और भी ज्यादा आम मुसीबत बनती जाएंगी।”

अपने विचार रखते हुए डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपनहेगन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के डॉक्टर इमैनुएल राजू ने बताते हैं, “हीटवेव को आपदा कहे जाने पर जोर देना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो इनके प्रभावों में योगदान देने वाले अनेक कारकों को नजरअंदाज किया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि क्षतिपूर्ति और राहत प्रणालियों पर आपदाओं के गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।”

सरबोने यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट पियरे सिमोन लाप्लास सीएनआरएस के प्रोफेसर रॉबर्ट वाटार्ड कहते हैं, ”जलवायु परिवर्तन से खाद पानी पाई हीटवेव की वजह से खाद्य पदार्थों के दामों में प्रत्यक्ष बढ़ोतरी हो रही है। भारत ने इस साल गेहूं का रिकॉर्ड निर्यात करने की योजना बनाई थी ताकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई किल्लत को दूर करने में मदद मिल सके। मगर अब जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ी हीटवेव के चलते गेहूं का ज्यादातर निर्यात रद्द कर दिया गया है, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं के दामों में इजाफा हुआ है और पूरी दुनिया में भुखमरी बढ़ी है।”

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