भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार एक अनिवार्य आवश्यकता है। भारतीय भाषाओं में विज्ञान का संचार देश की एक बड़ी आबादी तक वैज्ञानिक चेतना के प्रसार में अहम भूमिका निभा सकता है। इस बात को केंद्र में रखते हुए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार ने ‘भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार, लोकप्रियकरण और विस्तार (SCoPE)’ नाम की एक परियोजना शुरू की है।
इस परियोजना को संक्षिप्त में ‘स्कोप’ और ‘विज्ञान भाषा’ के रूप में भी जाना जाता है। ‘विज्ञान भाषा’ परियोजना की समीक्षा और इससे संबंधित आगामी योजना के लिए नई दिल्ली में बुधवार, 20 अक्टूबर को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में, परियोजना के तहत देशभर में विभिन्न भाषाओं में काम करने वाले विशेषज्ञ प्रतिनिधि शामिल हुए।
हिंदी और अंग्रेजी के अलावा, उर्दू, कश्मीरी, डोगरी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, बंगाली, असमिया, मैथिली और नेपाली के करीब 50 स्कोप प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल हुए। इनमें देशभर के विश्वविद्यालयों, विज्ञान व प्रौद्योगिकी केंद्रों और राज्य के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभागों के प्रतिनिधि शामिल हैं। अब तक इस परियोजना में मुद्रित प्रकाशनों का प्रदर्शन शानदार रहा है, जिसे देश के राज्यों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों से सराहा जा रहा है।
भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार से संबंधित इस परियोजना के सूत्रधार और विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ नकुल पाराशर ने कहा है, “समाज में सभी स्तरों पर विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण के त्वरित और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अपनी भाषा के माध्यम से जुड़ना पहला कदम है। यही कारण है कि हमने सभी मीडिया उत्पादों को भारतीय भाषाओं में डिजाइन और विकसित करने के लिए चुना है।” उन्होंने कहा कि इस राह में कई चुनौतियां हैं, लेकिन प्रभावी प्रक्रिया और विज्ञान संचारकों की समर्पित टीम के साथ इस परियोजना ने बहुत ही कम समय में कई मील के पत्थर पार किए हैं।
डॉ टी.वी. वेंकटेश्वरन, वैज्ञानिक-एफ और ‘स्कोप’ परियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक ने कहा, “डिजिटल मीडिया के आगमन के साथ कुछ लोग मुद्रित शब्दों के अंत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। हालांकि, वाट्सऐप से लेकर ट्विटर तक नये उभरते हुए सोशल मीडिया संचार में लिखित शब्दों का पुनरुद्धार देखा जा रहा है। संदेशों की समझ के लिए मातृभाषा में बातचीत आवश्यक है। ‘स्कोप’ या ‘विज्ञान भाषा’ परियोजना भारतीय भाषाओं में सामग्री विकसित करने के राष्ट्रीय प्रयासों में सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों को एकजुट करने का प्रयास करेगी।
विज्ञान प्रसार द्वारा आयोजित इस विमर्श का मुख्य उद्देश्य विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के साथ-साथ विज्ञान संचार एवं विस्तार गतिविधियों में विभिन्न संगठनों और आंदोलनों की उपलब्धियों को पहचान और क्रियान्यवन का रोडमैप तैयार करना है। इस दौरान विशेषज्ञों ने विज्ञान लोकप्रियकरण, संचार तथा विस्तार गतिविधियों के विश्लेषण तथा भविष्य की गतिविधियों के लिए योजना निर्माण पर जोर दिया है। इसके साथ ही, कोविड संचार के दौरान प्रमुख ‘स्कोप’ गतिविधियों की भूमिका की पड़ताल, विशेष रूप से वैक्सीन लेने में हिचकिचाहट से संबंधित मुद्दों पर चर्चा भी की गई। विशेषज्ञों ने विज्ञान क्लबों की शुरुआत एवं संचालन, व्यावहारिक गतिविधियों तथा शिक्षण किट्स की लॉन्चिंग, कविता एवं अन्य साहित्यिक रूपों, फिल्मों व वृत्तचित्र स्क्रीनिंग के माध्यम से विज्ञान संचार को आवश्यक बताया है।
डॉ पाराशर ने कहा कि अनौपचारिक शिक्षण स्थान जैसे- विज्ञान क्लब, लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकें, समाचार पत्रों में विज्ञान समाचार, सोशल मीडिया संदेश किसी सीखने वाले समाज को पोषित करने का अवसर प्रदान करते हैं। विज्ञान प्रसार पूरी तरह से सभी भौतिक और मल्टीमीडिया टच-प्वाइंट का उपयोग करके लोगों के बीच विज्ञान में रुचि जगाने के उद्देश्य से बनाया गया है। क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान प्रसार की वर्तमान गतिविधियों के बारे में जनता की प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही है, जिसके और आगे बढ़ने की संभावना है।
विज्ञान प्रसार की योजना क्षेत्र स्तरीय गतिविधियों के साथ हर जिला मुख्यालय तक पहुँचने की है। विभिन्न सरकारी, गैर-सरकारी, मीडिया और शैक्षणिक संस्थानों के स्वयंसेवी कार्यकर्ता इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे, जो विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन पहलों की सहायता के लिए आगे आए हैं। आने वाले वर्षों में, चरण-II में जनजातीय बोलियों सहित अन्य भाषाओं में गतिविधियों का विस्तार किया जाएगा। इस परियोजना के तहत विज्ञान प्रसार पथ-प्रदर्शक के रूप में संबंधित जिलों में संसाधन व्यक्ति और स्थानीय सहयोग के साथ विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की ओर अग्रसर है।
विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत 32 वर्ष से संचालित स्वायत्त संगठन है। यह राष्ट्रीय विज्ञान संचार, लोकप्रियकरण और विस्तार संस्थान भी है। विज्ञान प्रसार ने अपने विज्ञान आउटरीच कार्यक्रमों को बढ़ाने के अपने पहले चरण में कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, बंगाली, असमिया, नेपाली, मैथिली के अलावा हिंदी और अंग्रेजी को चुना है। मासिक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं से लेकर नवीनतम विकास और अत्याधुनिक शोध पर नियमित व्याख्यान तक; लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकों के प्रकाशन से लेकर युवाओं की कल्पना को पकड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने तक; टेलीविजन कार्यक्रमों के निर्माण से लेकर नवीनतम विज्ञान समाचारों तक, परियोजना भाषा पहल ने पिछले दो वर्षों में इन भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार, लोकप्रियता और विस्तार को बढ़ावा दिया है।
‘विज्ञान भाषा’ परियोजना के तहत आयोजित किये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में से एक ‘रामानुजन यात्रा’ उत्सव एक सफल और व्यापक प्रयास रहा है। ‘रामानुजन यात्रा’; गणितज्ञ रामानुजन के संघर्ष और गौरवशाली उपलब्धि को संप्रेषित करने के लिए आयोजित एक राष्ट्रव्यापी लोकप्रियकरण प्रयास था। इसमें उन्नत गणित के विभिन्न पहलुओं को आकर्षक और सुगम तरीके से प्रस्तुत करके गणित के भय को दूर करने की पहल भी शामिल थी।
भाषा परियोजना के तहत, मीडिया और पत्रकारिता के छात्रों के साथ-साथ पत्रकार और मीडिया पेशेवरों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें यह बताया जाता है कि आम जनता को विज्ञान की विषयवस्तु कैसे संप्रेषित की जाए। इन कौशल विकास कार्यक्रमों को व्यापक प्रशंसा मिली है और इनकी माँग बढ़ी है।
डॉ नकुल पाराशर ने कहा कि विज्ञान प्रसार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े विभिन्न विषयों पर भारतीय भाषाओं में विज्ञान पुस्तकों का प्रकाशन कर रहा है। हालाँकि, कोविड महामारी से इसका विकास बाधित हुआ है। लेकिन, जल्द ही, विज्ञान प्रसार विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रकाशन लाएगा और ऑनलाइन बिक्री सहित पुस्तक मेलों, और पुस्तक विक्रेताओं के माध्यम से नियमित बिक्री के माध्यम से प्रकाशनों का प्रसार करने का प्रयास करेगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं में अपनी पहुँच का विस्तार करना अब विज्ञान प्रसार का एक प्रमुख प्रयास है। भारत जैसे भाषाई विविधता वाले देश में, जिसकी आबादी में युवाओं की संख्या अधिक है, क्षेत्रीय भाषाओं में वैज्ञानिक अवधारणाओं को सीखने के लिए अनौपचारिक साधनों के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। (इंडिया साइंस वायर)