शरदकालीन गन्ने की बुवाई कर सकते हैं शुरु

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लखनऊ। शरदकालीन गन्ने की बुवाई का समय 15 सितंबर से लेकर 15 अक्टूबर तक रहता है, जिसको देखते हुए कृषि विभाग ने गन्ना किसानों को गन्ने की बुवाई करने की सलाह जारी कर दी है।

गन्ना किसान इस साल उन्नत प्रजाति के गन्ने की बुवाई कर सकें इसको लेकर उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर ने गन्ना खेती कैलेंडर और उन्नत प्रजातियां जारी की है। यहां के निदेशक बी.एल. शर्मा ने बताया, ”प्रदेश के गन्ना किसान वैज्ञानिक ढंग से गन्ना की खेती करके अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें इसको लेकर परिषद की तरफ से विकसित प्रजातियों की बुवाई करें। इन प्रजातियों की पहचान और विशेषताएं क्या हैं इसकी जानकारी गन्ना किसानों को दी जा रही है।”

देश-प्रदेश में गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए गन्ना शोध संस्थान ने अभी तक 126 प्रजातियों को विकसित कर चुका है। जिसमें से कई प्रजातियों की पैदावार बहुत ज्यादा है और उसकी लागत भी कम आती है। उन्होंने बताया कि शरदकालीन गन्ने के साथ आलू, लहसुन, मटर, सरसों, राजमा और लता वाली सब्जियों की बुवाई करके किसान अधिक लाभ भी कमा सकते हैं।

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गन्ना विभाग ने प्रदेश के सभी क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली प्रजातियों में कोशा-8436, कोशा-88230, कोशा-95255, कोशा, 96268, कोशा-03234, यूपी-05125, कोशा-98231 और कोशा-08272 की बुवाई करने की सलाह दी है। मध्यमदेर से पकने वाली प्रजातियों में कोशा-767, कोशा-8432, कोशा-97264, कोशा-96275 और कोशा-12232 प्रजाति की बुवाई करने का कहा है।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में गन्ना की बुवाई के लिए विभाग की तरफ से गन्ना की कई प्रजातियों का स्वीकृत किया है। जिसमें कोसे-1235, को-87263, को-87268, को-0232 और कोसे-01421 को किसानों से बुवाई करने की सलाह दी है।

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प्रदेश के मध्यक्षेत्र के लिए कोजा- 64, कोसे-01235, कोलख-9709, केा-0237, को-872 को-0239, को-5009 और कोपीके-05191 की बुवाई करें। पश्चिमी क्षेत्र के लिए कोजा- 64, कोशा-03251, कोलख-9709, को-0237, को-239, को-5009 और कोपीके- 05191 प्रजाजि की बुवाई करने की सलाह जारी की है। उत्तर प्रदेश के जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए यूपी-9530 और कोसा-96436 प्रजाति की बुवाई करने की सलाह जारी की गई है।

गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर की वैज्ञानिक प्रियंका सिंह ने बताया ” गन्ने की अधिक पैदावार के लिए किसान ट्रेंच विधि से भी गन्ने की बुवाई कर सकते हैं। इसमें परंपरागत विधि की तुलना में डेढ़ गुना ज्यादा जमाव होता है। साथ ही 40 से 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है और चीनी परता भी अधिक मिलता है। ”

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