भारतीय वैज्ञानिकों ने चाय और केले के कचरे के उपयोग से गैर-विषैले सक्रिय कार्बन बनाने के लिए एक तकनीक विकसित की है। उनका कहना है कि इस गैर-विषैले सक्रिय कार्बन का उपयोग औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण, जल शोधन, खाद्य तथा पेय प्रसंस्करण और गंध निवारण जैसे उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। इस नई विकसित प्रक्रिया के उपयोग से सक्रिय कार्बन का संश्लेषण करने के लिए किसी भी विषैले कारक के उपयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जिससे किफायती और गैर-विषाक्त उत्पाद बनाये जा सकते हैं।
सक्रिय कार्बन, जिसे सक्रिय चारकोल भी कहा जाता है, कार्बन का एक रूप है, जिसमें छोटे, कम मात्रा वाले छिद्र होते हैं, जो अवशोषण या रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए उपलब्ध सतह क्षेत्र को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। सक्रिय कार्बन का उपयोग मीथेन और हाइड्रोजन भंडारण, वायु शोधन, विलायकों की रिकवरी, डिकैफ़िनेशन (कॉफी बीन्स, कोको, चाय पत्ती और अन्य कैफीन युक्त सामग्री से कैफीन को हटाना), स्वर्ण शोधन, धातु निष्कर्षण, जल शोधन, दवा, सीवेज उपचार, श्वासयंत्र में एयर फिल्टर, संपीड़ित हवा में फिल्टर, दांतों को सफेद करने, हाइड्रोजन क्लोराइड के उत्पादन में किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने चाय के कचरे से सक्रिय कार्बन तैयार करने के लिए एक वैकल्पिक सक्रिय एजेंट के रूप में केले के पौधे के अर्क का इस्तेमाल किया है। उनका कहना है कि चाय के प्रसंस्करण से आमतौर पर चाय की धूल के रूप में ढेर सारा कचरा निकलता है। इसे उपयोगी वस्तुओं में बदला जा सकता है। चाय की संरचना उच्च गुणवत्ता वाले सक्रिय कार्बन में परिवर्तन के लिए लाभदायक है। हालांकि, सक्रिय कार्बन के परिवर्तन में महत्वपूर्ण एसिड और आधार संरचना का उपयोग शामिल है, जिससे उत्पाद विषाक्त हो जाता है। इसीलिए, अधिकांश अनुप्रयोगों के लिए यह अनुपयुक्त हो जाता है। इस चुनौती से निपटने के लिए एक गैर-विषैली प्रक्रिया की आवश्यकता थी।
यह अध्ययन भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी एक वक्तव्य में बताया गया है कि केले के पौधे के अर्क में मौजूद ऑक्सीजन के साथ मिलने वाला पोटेशियम यौगिक चाय के कचरे से तैयार कार्बन को सक्रिय करने में मदद करता है।
इस प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले केले के पौधे का अर्क पारंपरिक तरीके से तैयार किया गया है, जिसे खार के नाम से जाना जाता है। यह जले हुए सूखे केले के छिलके की राख से प्राप्त एक क्षारीय अर्क होता है। इसके लिए सबसे पसंदीदा केले को असमी भाषा में ‘भीम कोल’ कहा जाता है। भीम कोल केले की एक स्वदेशी किस्म है, जो केवल असम और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।
खार बनाने के लिए सबसे पहले केले का छिलका सुखाया जाता है और फिर राख बनाने के लिए उसे जला दिया जाता है। फिर राख को चूर-चूर करके एक महीन पाउडर बना लिया जाता है। इसके बाद एक साफ सूती कपड़े से राख के चूर्ण से पानी को छान लिया जाता है और अंत में जो घोल मिलता है, उसे खार कहते हैं। केले से निकलने वाले प्राकृतिक खार को ‘कोल खार’ या ‘कोला खार’ कहा जाता है। इस अर्क का उपयोग सक्रिय करने वाले एजेंट के रूप में किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में आईएएसएसटी पूर्व निदेशक डॉ एन.सी. तालुकदार और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवाशीष चौधरी शामिल हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि “सक्रिय कार्बन के संश्लेषण के लिए चाय के उपयोग का कारण यह है कि इसकी संरचना में, कार्बन के कण संयुग्म होते हैं और उनमें पॉलीफेनोल्स बॉन्ड होता है। यह अन्य कार्बन अग्रगामियों की तुलना में सक्रिय कार्बन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।”
इस प्रक्रिया का मुख्य लाभ यह है कि प्रारंभिक सामग्री, साथ ही सक्रिय करने वाले एजेंट, दोनों ही कचरा हैं। इस नई विकसित प्रक्रिया में सक्रिय कार्बन को संश्लेषित करने के लिए किसी भी विषैले सक्रिय करने वाले एजेंट (विषैले एसिड और बेस) के उपयोग से बचा जा सकता है। इस प्रकार यह एक हरित प्रक्रिया है, जिसमें पौधों की सामग्री को सक्रिय करने वाले एजेंट के रूप में उपयोग किया गया है। इसके लिए हाल ही में एक भारतीय पेटेंट दिया गया है। (इंडिया साइंस वायर)