बीते कुछ महीनों में अलग-अलग राज्य बोर्ड के रिजल्ट निकले थे। इनमें से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) का परिणाम 13 मई को आया था। परिणाम निकलने के बाद जहाँ कुछ अभिभावकों के भीतर खुशी की लहर थी; क्योंकि उनके बच्चों ने अच्छे नंबर से अपनी बोर्ड की परीक्षा पास की थी, वहीं कुछ के चेहरे उतरे नजर आए क्योंकि जिन अंकों की कल्पना अभिभावकों ने की थी, उनके बच्चे उतने अंक नहीं ला पाए।
औरैया जिले के अजीतमल के जगन्नाथपुर गाँव में रहने वाले सक्षम भदौरिया ने इस बार कक्षा 12 की परीक्षा अच्छे नंबर्स से पास की। गाँव कनेक्शन से बताया, “मैं अपने रिजल्ट से बहुत खुश हूँ; अपनी कोचिंग में मेरे सबसे अच्छे नंबर आए हैं, लेकिन स्कूल में मेरा दसवाँ स्थान है।”
सक्षम ने आगे कहा कि जब मैंने अपने नंबर देखे तो मैं बहुत खुश हुआ और तब मेरे माता-पिता भी बहुत खुश थे। लेकिन जैसे ही उनके पिता को उनके साथ के बच्चों के रिजल्ट का पता चला, तब उनके चेहरे उतर गए और परिणाम वाले दिन उन्होंने सक्षम से उस उत्साह से बात नहीं की जैसे वे किया करते थे।
जब गाँव कनेक्शन ने सक्षम की माँ से बात की और उनसे पूछा कि आप अपने बेटे के रिजल्ट से खुश हैं तो उनका जवाब था कि “हाँ, नंबर तो ठीक ही हैं उनके नंबर इससे ज़्यादा आए हैं; लेकिन गलती हमारी है, हम ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाए (बच्चे का नाम और जगह का नाम बदल दिया गया है)।”
यह मामला सिर्फ एक घर तक सीमित नहीं है। अंकों के इस खेल में कई बच्चे आगे नहीं निकल पाते और कई बार उनके अपने माता-पिता का व्यवहार उन पर दबाव डालता है। कई बार यह दबाव इतना ज़्यादा होता है कि यह मानसिक प्रताड़ना का रूप ले लेता है। कुछ बच्चे तो इसे झेल जाते हैं लेकिन कुछ इस मानसिक तनाव के चलते अपना दम तोड़ देते हैं।
NCRB के आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में भारत में कुल 13,044 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर अपने जीवन का अंत कर दिया। इनमें 6,930 लड़के और 6,113 लड़कियाँ शामिल हैं। वहीं, इस आंकड़े में 18 वर्ष से कम आयु के 548 लड़के और 575 लड़कियाँ शामिल हैं। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन सच हैं। सोचिए, वह मानसिक दबाव कितना ज़्यादा होगा जिसके सामने अपना जीवन समाप्त करना बच्चों को आसान लगा।
ऐसे समय पर जब समाज आपके बच्चों को अंकों की कसौटी पर तौल रहा है, लोगों ने जब उनका साथ छोड़ दिया है, तब पेरेंटिंग एक ऐसे हौसले का काम करती है जो इस मुश्किल दौर में आपके बच्चे को मजबूती दे सकती है। अच्छी परवरिश और मुश्किल वक्त में अपने बच्चों के साथ खड़े रहना बच्चों के लिए एक जादुई दवा की तरह काम करती है।
डॉ. नेहा आनंद जो कि एक मनोवैज्ञानिक हैं, उन्होंने गाँव कनेक्शन से बताया, “बच्चे फूलों की तरह होते हैं, हर फूल की अपनी अलग खुशबू और अलग रंग होता है। जैसे फूल चाहते हैं कि उनकी खासियत बरकरार रहे, वैसे ही हर बच्चा चाहता है कि उसकी खासियत बरकरार रहे।”
डॉ. नेहा ने अच्छी पैरेंटिंग के कुछ तरीके बताए हैं:
1. जो भी व्यवहार आप बच्चे में देखना चाहते हैं, उसे सराहें। यदि आप उस व्यवहार को बार-बार सराहते हैं तो वह व्यवहार दुबारा स्थापित हो जाता है और आपका बच्चा अपने में खासियत, यानी ताकत ढूँढने लगता है। जैसे ही बच्चा प्रेरित होता है, वह बार-बार आपके स्वीकृति के लिए वह अच्छा व्यवहार दिखाता है।
2. अपने बच्चे के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताएँ। वर्किंग पेरेंट्स के लिए यह थोड़ा मुश्किल है, पर आप इसे कर सकते हैं। बच्चे के साथ समय बिताना उतना ही जरूरी है जितना कि बच्चे के लिए पोषण। अगर आप बच्चे के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताते हैं, तो कोई भी दूसरी चीज आपके समय और प्यार को बदल नहीं सकती है। बच्चों के सबसे पहले रोल मॉडल उनके पेरेंट्स होते हैं, तो हमेशा याद रखें कि आपके बच्चे हमेशा आपको देख रहे हैं। अगर आप गुस्सा करते हैं, तो आपके बच्चे वही व्यवहार दोहराते हैं।
3. हमेशा ध्यान रखें कि कभी भी यदि आप गुस्से में हैं, तो अपने बच्चे के सामने बहुत गुस्सा न दिखाएँ। यह उनके लिए आक्रामकता के दरवाजे खोल रहा है। ध्यान रखें, सतर्क रहें, और जागरूक पेरेंटिंग के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप अपने व्यवहार, आवाज और शब्दों पर विचार करें। सबसे अहम टिप यह है कि आपके बच्चे से आपका संवाद कितना अच्छा है। कई बार हम पेरेंट्स को लगता है कि यह तो समझ में आ जाएगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। आपकी क्या अपेक्षाएँ हैं, बच्चे से क्या उम्मीदें हैं, कौन से ऐसे व्यवहार हैं जो आप बच्चे से नहीं चाहते, यह सब बच्चे के साथ बैठकर संवाद करें। उसे बताएं कि यह व्यवहार क्यों सही नहीं है और इसका तर्क क्या है।
4. बच्चों को अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिए प्रोत्साहित करें। आप पूछ सकते हैं कि इतने छोटे बच्चे अपनी समस्याएँ कैसे सुलझाएँगे। विश्वास करें, इसे जल्दी शुरू करें। अगर आप बचपन से ही बच्चों से सवाल करेंगे कि आपके हिसाब से इस समस्या का समाधान क्या होना चाहिए, तो बच्चों में आप रचनात्मक सोच भी विकसित कर रहे हैं। बच्चे बचपन से ही समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश करेंगे। आजमाकर देखें।
5. आप बच्चों के सामने जितना ज़्यादा खुश रहेंगे, मुस्कुराएँगे, बच्चे आपकी ऊर्जा पर प्रतिक्रिया देंगे। यदि आप दुखी रहते हैं, तो आपके बच्चे भी वही भावनाएँ और ऊर्जा दोहराते हैं।
ये सुझाव आपके बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। जब समाज और शिक्षा प्रणाली बच्चों पर दबाव डाल रही हो, तो माता-पिता का समर्थन और सकारात्मक पेरेंटिंग ही उन्हें मजबूत बना सकती है।