विश्व में प्याज 1,789 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता हैं, जिससे 25,387 हजार मी. टन उत्पादन होता है। भारत में इसे कुल 287 हजार हेक्टर क्षेत्रफल में उगाये जाने पर 2450 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है।
लखनऊ। भारत प्याज उत्पादन में चीन के बाद दूसरे और क्षेत्रफल में पहले स्थान पर है, लेकिन उत्पादकता प्रमुख उत्पादक देशों जैसे चीन, अमेरीका, नीदरलैंड आदि की तुलना में काफी कम है। लेकिन अभी खरीफ प्याज की खेती का मौसम है।
जलवायु एवं भूमि
प्याज की फसल के लिए ऐसी जलवायु की अवश्यकता होती है जो ना बहुत गर्म हो और ना ही ठण्डी। अच्छे कन्द बनने के लिए बड़े दिन तथा कुछ अधिक तापमान होना अच्छा रहता है। आमतौर पर सभी किस्म की भूमि में इसकी खेती की जाती है, लेकिन उपजाऊ दोमट मिट्टी, जिसमे जीवांश खाद प्रचुर मात्रा में हो व जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो, सर्वोत्तम रहती है। भूमि अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए अन्यथा कन्दों की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती है। अगर भूमि में गंधक की कमी हो तो 400 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत की अन्तिम तैयारी के समय कम से कम 15 दिन पूर्व मिलायें।
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खरीफ में बुवाई के लिए उन्नत किस्में
पूसा रेड, पूसा रतनार, एग्रीफाउंड लाइट रेड, एग्रीफाउंड रोज, पूसा व्हाइट राउंड, पूसा व्हाइट फ्लैट
खाद एवं उवर्रक
प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 क्विंटल प्रति हेक्टर खेत की तैयारी के समय भूमि में मिलावें। इसके अलावा 100 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस एवं 100 किलो पोटाश प्रति हेक्टर की दर से आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देवें। नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के एक से डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में देवें।
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बुवाई
प्याज की बुवाई खरीफ मौसम में, यदि बीज द्वारा पौधा बनाकर फसल लेनी हो तो, जून के मध्य तक करते हैं और यदि छोटे कन्दों द्वारा खरीफ में अगेती या हरी प्याज लेनी हो तो कन्दों को अगस्त माह में बोयें। एक हेक्टर में फसल लगाने के लिए 8-10 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। पौधे एवं कन्द तैयार करने के लिए बीज को क्यारियों में बोयें, जो 3×1 मीटर आकर की हो। वर्षाकाल में उचित जल निकास हेतु क्यारियों की ऊँचाई 10-15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। नर्सरी में अच्छी तरह खरपतवार निकालने तथा दवा डालने के लिए बीजों को 5-7 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोना अच्छा रहता है। क्यारियों की मिट्टी को बुवाई से पहले अच्छी तरह भुरभुरी कर लेनी चाहिए।
पौधों के आद्र गलन बीमारी से बचाने के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा विरिडी (4 ग्राम प्रति किग्रा बीज) या थिरम (2 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करके बोना चाहिए। बोने के बाद बीजों को बारीक खाद एवं भुरभुरी मिट्टी व घास से ढक देवें। उसके बाद झारे से पानी देवें, फिर अंकुरण के बाद घास फूस को हटा देवें।
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पौधों की रोपाई
पौध लगभग 7-8 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है। खरीफ फसल के लिए रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अन्तिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक है। रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं।
कन्दों से बुवाई
कन्दों की बुवाई 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेड़ों पर 10 सेंटीमीटर की दूरी पर दोनों तरफ करते हैं। 5 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर व्यास वाले आकर के कन्द ही चुनना चाहिए। एक हेक्टर के लिए 10 क्विंटल कन्द पर्याप्त होते हैं।
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सिंचाई
बुवाई या रोपाई के साथ एवं उसके तीन-चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी नम रहें। बाद में भी हर 8-12 दिन में सिंचाई अवश्य करतें रहें। फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
अंकुरण से पूर्व प्रति हेक्टर 1.5-2 किग्रा एलाक्लोर छिडकें अथवा बुवाई से पूर्व 1.5-2.0 किग्रा फ्लूक्लोरेलिन छिड़ककर भूमि में मिलायें, तत्पश्चात एक गुड़ाई 45 दिन की फसल में करें।