डॉक्टर से जानिए सिजेरियन या फिर नॉर्मल डिलीवरी, कौन सा तरीका होता है ज़्यादा बेहतर

माँ बनने से पहले महिलाओं के मन में कई तरह के सवाल होते हैं, जैसे कि नॉर्मल डिलीवरी बेहतर होती है या फिर सिजेरियन? सिजेरियन डिलीवरी के बाद क्या किसी तरह की दिक्कत आती है?
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आप बच्चा प्लान कर रहीं हैं, लेकिन मन में सवाल है कि सिजेरियन या फिर नॉर्मल, कौन सा तरीका बेहतर होता है ?

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की डॉ अंजू अग्रवाल गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “बिना वजह सिजेरियन से महिलाओं को बचना चाहिए; क्योंकि इसके बाद महिलाओं को कई तरह की दिक्कत हो सकती हैं, जैसे डिलीवरी के समय एनेस्थीसिया भी दे रहे हैं, सर्जरी भी कर रहे हैं जहाँ पर माँ का पेट खोला जाता है; इंफेक्शन होने का डर रहता है, कितनी भी सावधानियाँ बरतें, रिस्क अधिक रहता है।”

वो आगे कहती हैं, “केवल रिस्क वहीं पर ख़त्म नहीं हो जाता है, उस समय ब्लड लॉस भी अधिक होता है; नॉर्मल डिलीवरी में आधा लीटर तक ब्लड लॉस होता है, जबकि सिजेरियन में एक लीटर तक ब्लड लॉस होता है।”

लेकिन ऐसा नहीं है कि पहली बार सिजेरियन डिलीवरी और आगे की मुश्किलें कम हो जाएँगी। डॉ अंजू कहती हैं, “रिस्क केवल इस प्रेगनेंसी से ख़त्म नहीं हो जाता है; आजकल कई महिलाएँ आ रहीं हैं, जिनमें जहाँ ऑपेरशन हुआ है, वहीं पर ओवल बनने लगता है और टाँकों के अंदर घुसने लगता है और नतीजन जल्दी डिलीवरी करनी पड़ती है, उन्हें बहुत अधिक ब्लीडिंग होती है और काफी प्रतिशत महिलाओं की बच्चा दानी भी निकालनी पड़ जाती है और उन्हें वेंटीलेटर पर भी रखना पड़ सकता है; और कभी कभी मौत भी हो जाती है, जब इतने कम्प्लीकेशन होतें है तो आगे की प्रेगनेंसी के लिए भी रिस्क बढ़ जाता है। ” उन्होंने आगे कहा।

यही नहीं रिस्क गर्भावस्था के साथ ही होने वाले बच्चे के साथ भी रहता है।

बच्चे को साँस लेने में परेशानी हो सकती है, अस्थमा तक होने का ख़तरा रहता है। आगे चलकर डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और मोटापा होने की संभावना भी रहती है।

ऐसा कहा जाता है , जब नार्मल डिलीवरी से बच्चा पैदा होता है तो वो भी उसके स्ट्रेस को झेलता है, जिससे उसके साँस लेने की क्षमता अच्छे से पनप जाती है, जबकि सिजेरियन से पैदा हुए बच्चे में ये क्षमता कम पनप पाती है।

डॉ अंजू सलाह देते हुए कहती हैं, “हम लोग कोशिश तो बहुत करते हैं कि नार्मल डिलीवरी हो जाए; लेकिन कुछ जो कारण है जिससे हमें सिजेरियन करना ही करना है, जैसे अगर ओवल ही नीचे है, तो आवल ही पहले निकालेंगे और बच्चा बाद में निकलेगा तो उसमें तो ब्लीडिंग होने का इतना डर है की हम सिजेरियन ही करते हैं।”

डॉ अंजू गाँव कनेक्शन से कहती हैं, “अगर बच्चा उल्टा है या बेड़ा है तब भी सिजेरियन करना पड़ता है, अगर बच्चे की दिल की धड़कन गड़बड़ हो रही है, तब भी हमें सिजेरियन करना पड़ता है; बच्चे की सेफ्टी के लिए या फिर दर्द आने के बावजूद बच्चे दानी का मुँह नहीं खुल रहा है तब भी सिजेरियन करना पड़ता है।”

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