मार्च-अप्रैल के महीने में खेती से लेकर पशुपालन के इन ज़रूरी कामों को निपटा लें किसान

इस बार मार्च-अप्रैल महीने में तापमान बढ़ने से कई रबी की फसलों पर असर पड़ रहा है, साथ ही ज़ायद फसलों की बुवाई पर भी असर पड़ने वाला है, ऐसे में उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने किसानों के लिए ज़रूरी सलाह जारी की है।
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मार्च-अप्रैल महीने में किसान ज़ायद फसलों की तैयारी शुरू कर देते हैं। रबी की फसलें तैयार हो चुकी हैं, ऐसे में किसानों को खेती से लेकर पशुपालन तक कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने किसानों के लिए ज़रूरी सलाह जारी की है।

मौसम के संदर्भ में फसल प्रबंधन किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होती है। इस चुनौती का सामना करने और बेहतर उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए किसानों को मौसम के अनुसार अपनी फसल की देखभाल करनी चाहिए। यहां कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए जा रहे हैं, जो मौसम के अनुसार फसल प्रबंधन में मददगार हो सकते हैं:

आग से बचाव:

गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, खासकर जब फसल पकने की स्थिति में हो। इसलिए, गेहूं और जौ की कटाई के बाद फसल के गट्ठरों को बिजली के तारों के नीचे न रखें। यह कदम आग से सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि बिजली के तारों में शॉर्ट सर्किट या अन्य कारणों से आग लग सकती है, जिससे फसल बर्बाद हो सकती है।

पोषण और सिंचाई:

तापमान बढ़ने की संभावना को ध्यान में रखते हुए, देर से बोई गई गेहूं की फसल में 0.5 से 1 प्रतिशत पोटैशियम नाइट्रेट का पर्णीय छिड़काव पुष्पावस्था और दाना भरने की अवस्था में करें। यह फसल को बढ़ते तापमान से होने वाले नुकसान से बचाएगा और दाना भरने की प्रक्रिया में मदद करेगा। इसके अलावा, खेत में नमी बनाए रखने के लिए 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें ताकि फसल को पानी की कमी न हो।

जायद मक्का की देखभाल:

जायद मक्का की फसल के लिए 5 से 6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। इसलिए, 10 से 12 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। इसके साथ ही, खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें ताकि फसल की वृद्धि में बाधा न हो। मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का उपयोग करें। अगर मृदा परीक्षण नहीं हुआ है, तो 80:40:40 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा दें। इससे फसल को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे और उत्पादन बेहतर होगा।

फसल की बुवाई और देखभाल:

जायद फसलों की बुवाई लाइन में करें ताकि अंतः शस्य क्रियाएं आसानी से की जा सकें। इससे खेत की देखभाल करना आसान होता है और फसल की बढ़वार भी सही ढंग से होती है। गेहूं की फसल पकने की स्थिति में है, इसलिए कटाई और मड़ाई के बाद अनाज को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें। भंडारण से पहले अनाज में नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनाज भंडारण योग्य है या नहीं, इसे दांतों से दबाकर देखें। अगर कट की आवाज आए तो अनाज को भंडारण के लिए तैयार माना जा सकता है।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली और उड़द की देखभाल:

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई के बाद पहली सिंचाई जमाव के पूर्ण होने पर करें और बुवाई के 15 से 20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। उड़द में थ्रिप्स कीट की निगरानी करें और इसकी रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशक नीम ऑयल का छिड़काव करें। यह प्राकृतिक उपाय फसल को नुकसान से बचाने में सहायक होगा।

उत्तम किस्मों का चयन:

मूंग की अधिक उपज देने वाली और पीला मोजैक अवरोधी संस्तुत किस्मों जैसे के.एम.-2195 (स्वाती), आई.पी.एम.-205-7 (विराट), आई.पी.एम.-410-3 (शिखा), कनिका, वर्षा, आजाद मूंग-1, आई.पी.एम.-312-20, वसुधा आदि का चयन करें और शीघ्र बुवाई समाप्त करें। इससे उत्पादन में वृद्धि होगी और बीमारियों से फसल सुरक्षित रहेगी।

सूरजमुखी और गन्ने की देखभाल:

जायद में सूरजमुखी की फसल का विरलीकरण कर पौधों के बीच की दूरी 15 से 20 सेमी. सुनिश्चित करें। गन्ने में काले चिकटे कीट का प्रकोप होने पर 5 लीटर क्लोरपाइरीफॉस को 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह कीटनाशक कीटों को नियंत्रित करने में मददगार होगा।

सुनिश्चित सिंचाई और आम की देखभाल:

सुनिश्चित सिंचाई की दशा में सूरन, बंडा और अरबी की बुवाई करें। आम के भुनुगा कीट की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड और प्रोफेनोफॉस का छिड़काव करें। इसके अलावा, आम के पाउड्री मिल्ड्यू रोग की रोकथाम के लिए डाइनोकैप (कैराथीन) का छिड़काव करें।

पशुपालन में टीकाकरण:

पशुओं में खुरपका और मुंहपका (एफ.एम.डी.) की बीमारी का टीकाकरण पशुपालन विभाग द्वारा निःशुल्क किया जा रहा है। इसके अलावा, बकरियों में पी.पी.आर. का टीकाकरण भी मुफ्त में उपलब्ध है। समय पर टीकाकरण करवाकर अपने पशुओं को सुरक्षित रखें।

उपरोक्त सुझावों का पालन करके किसान मौसम के अनुसार अपनी फसल और पशुपालन का प्रबंधन कर सकते हैं। इससे न केवल उनकी उपज में वृद्धि होगी, बल्कि फसल और पशुओं को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकेगा।

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