बागवानी फसलों से कमाई करनी है तो सर्दियों में ये काम ज़रूर कर लें किसान

सर्दी का मौसम बागवानी फसलों के लिए ख़ास ध्यान देने का समय होता है, क्योंकि इस समय जैसी देखभाल की जाएगी, आगे वैसा ही उत्पादन मिलेगा।
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उत्तर भारत में जाड़े के मौसम में वातावरण में बहुत परिवर्तन देखने को मिलता है। कभी कभी तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। कभी कभी कई कई दिन तक कोहरा छाया रहता है। सूरज की रोशनी देखने को नहीं मिलती है। जिन फल फसलों में दूध जैसे स्राव बहते हैं, वे जाड़े के मौसम में कुछ ज़्यादा ही प्रभावित होते हैं, क्योंकि जाड़े में अत्यधिक कम तापक्रम की वजह से बढ़ता स्राव पेड़, पौधे को अंदर ठीक से नहीं बढ़ने देता है जिसकी वजह से पौधे पीले होकर बीमार जैसे दिखने लगते है।

इस तरह के वातावरण में बागवान यह जानना चाहते हैं कि क्या करें और क्या न करें जिससे कम से कम नुकसान हो और ज़्यादा मुनाफा हो।

आम के नए पुराने बागों की देखभाल

जाड़े के मौसम में आम के नए बागों के पौधों को पाले से बचाना काफी ज़रूरी है। जनवरी में नर्सरी में लगे पौधों को पाले से सुरक्षा के लिए घास फूस या पुआल से बने छप्पर से ढककर छोटे पौधों को बचाना चाहिए। पाले से बचाव के लिए बाग में समय-समय पर हल्की सिंचाई भी करते रहना चाहिए। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई भी करते रहना चाहिए।

आम के बड़े पेड़ों में जिसमें बौर आने वाले हैं उनका विशेष ध्यान रखना ज़रूरी है। उन्हीं पर फलोत्पादन निर्भर करेगा। जनवरी के प्रथम सप्ताह में आने वाले बौर में फल नहीं लगते और ये अक्सर गुच्छे का रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए ऐसे बौर को काटकर नष्ट कर देना चाहिए। आम में उर्वरक देने का यह सही समय जून से लेकर 15 सितंबर तक है। इस समय 10 वर्ष या 10 वर्ष से बड़े आम के पेड़ों में नाइट्रोजन 500 ग्राम, फास्फोरस 500 ग्राम तथा पोटाश 750 ग्राम प्रति पौधा तत्व के रूप में प्रयोग करें। इन्हें मिट्टी में मिलाकर हल्की सिंचाई कर दें। बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई का कार्य करें।

दिसंबर के अंत में बाग की ऊपरी सतह की बहुत हल्की गुड़ाई करके खरपतवार मुक्त करने के बाद आम के बाग में मीलीबग (गुजिया) के बचाव के लिए आम के तने पर पॉलीथीन की 2.5 से लेकर 3 फुट चौड़ी पट्टी बांध दें और 250 ग्राम प्रति वृक्ष की दर से क्लोरपॉयरीफॉस धूल प्रति पेड़ कैनोपी के अनुसार पेड़ के चारों ओर की मिट्‌टी में मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, भूमि की सतह पर परभक्षी ब्यूवेरिया बेसियाना (2 ग्राम प्रति लीटर, 1×10 पावर 7 बीजाणु प्रति मिलीलीटर अथवा 5 प्रतिशत नीम बीज के गिरी सतत्‌ का प्रयोग प्रौढ़ कीटों को मारने के लिए करें।

फरवरी में पेड़ के चारों तरफ खूब अच्छी तरह से निराई गुड़ाई करें। मैंगो हॉपर (फुदका )के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की 1 मिली लीटर दवा को प्रति दो लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और चूर्णिल आसिता रोग से बचाव के लिए केराथेन नामक फफुंदनाशक की 1 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फरवरी के अंतिम सप्ताह में अवश्य करें।

तापमान कम होने की वजह से यदि मंजर कम निकल रहा हो तो कैराथेन नामक फफूंद नाशक के स्थान पर घुलनशील गंधक की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से वातावरण का तापमान कुछ बढ़ जाता है जिसकी वजह से मंजर भी खुलकर आता है और उसमें पावडरी मिल्ड्यू रोग भी नहीं लगता है।

ध्यान रखने योग्य बात है कि इन्हीं दिनों पौधों पर फूल आते हैं और यदि किसी भी कीटनाशक का प्रयोग फूलों पर किया गया तो परागण करने वाले कीट बाग में नही आयेंगे जिसकी वजह से संपूर्ण परागण न होने से कम फल लगेंगे। फरवरी में छोटे आम के पौधों के ऊपर से छप्पर हटा दें।

लीची की देखभाल

आम के बाग के प्रबंधन के लिए बताए गए उपाय लीची के बाग के प्रबंधन के लिए भी किए जा सकते हैं। जनवरी में पाले से सुरक्षा के प्रबंध अवश्य करें। फरवरी में लीची में फूल आते समय सिंचाई न करें, क्योंकि इससे फूलों के गिरने की आशंका होती है। फूल आने से पहले और बाद में पानी की समुचित व्यवस्था करें। चूर्णिल आसिता रोग के प्रकोप से बचने के लिए लीची में संस्तुत रसायनों का प्रयोग करें। कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट की आधी मात्रा यानी 1.5 किग्रा. प्रति पौधा फरवरी में प्रयोग करें। लीची के नवरोपित बागों की सिंचाई करें। बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई का कार्य करें।

नींबू वर्गीय फल फसलों की देखभाल

जनवरी में एक-दो सिंचाई करें और पाले से बचाने के हर संभव उपाय करें। मूलवृन्त तैयार करने के लिए बीज की बुआई पॉलिथीन में करें। वयस्क नींबू के प्रति पौधा में 500 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 400 ग्राम पोटाश के तत्व का प्रयोग 50 किग्रा. गोबर की खाद के साथ करके हल्की सिंचाई कर दें। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का काम करें। फरवरी में फूल आने से कुछ दिन पहले सिंचाई न करें अन्यथा सभी फूल झड़ सकते हैं। अगर फूलों या फलों में गिरने की समस्या अधिक हो तो 2-4, डी ,1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फल लगते समय पर्याप्त मात्रा में नमी बनाए रखें। नए पौधे तैयार करने के लिए फरवरी मे अंत में कलिकायन (बडिंग) की जा सकती है।

केले की फसल की देखभाल

जनवरी के पहले और तीसरे सप्ताह में सिंचाई करें ताकि पाले से बचाव हो सके। पाले से बचाव के लिए किसी पलवार (मल्च) का प्रयोग करें और बागों में सायंकाल में धुआं भी करें। पौधों को यदि सहारा न दिया हो तो बांस के डंडे से सहारा प्रदान करें। फरवरी के प्रथम और तृतीय सप्ताह में सिंचाई करें। केवल एक तलवारी पत्ती (भूस्तारी) को छोड़कर पौधे के आधार से निकलने वाली अन्य पत्तियों को काट दें। नाइट्रोजन की 60 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य करें।

पपीते के पौधे की देखभाल

पपीते को पाला अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। इसलिए जनवरी में पाले से बचाने के लिए पर्याप्त प्रबंध करें। पौधों को पुआल से ढक दें और समय पर सिंचाई करते रहें। पुआल को फरवरी के अंत में हटा दें। 25 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस और 100 ग्राम पोटाश का प्रयोग फरवरी में प्रति पौधा की दर से करें। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य करें। पपीते के नवरोपित बागों की सिंचाई करें।

बेर के पौधों की देखभाल

बेर का पेड़ सामान्यतः मज़बूत होता है, इसमें चूर्णिल आसिता रोग अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। इससे बचने के लिए फरवरी में केराथेन नामक फफुंदनाशक की 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा यही छिड़काव करें। फरवरी के अंत में किसान बेर के पौधे भी लगा सकते हैं। फरवरी में बेर की अगेती किस्में पकने लगती हैं। फलों को अच्छी दशा में बनाए रखने के लिए, तुड़ाई सुबह या शाम को ही करनी चाहिए। तुड़ाई के समय फलों को उनके रंग और आकार के आधार पर छांटकर श्रेणीकृत किया जाना चाहिए। छंटाई के बाद फलों को कपड़े की चादरों, जूट के बोरो में, नाइलोन की जालीदार थैलियों, बॉस की टोकरियों, लकड़ी अथवा गत्तों के डिब्बों में रखकर बाजार भेजा जा सकता है। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य करें।

स्ट्रॉबेरी के पौधों की देखभाल

स्ट्राबेरी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसकी खेती यूपी, बिहार के लगभग सभी जिलों में हो रही है।

जनवरी के महीने में स्ट्रॉबेरी के खेत में निराई-गुड़ाई करें। यदि पलवार न बिछाई गई तो वांछित पलवार जैसे पुआल या पॉलिथीन का प्रयोग करें। फलों में उच्च गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए फरवरी के शुरू में जिब्रेलिक अम्ल (75 पी.पी.एम.) का छिड़काव करें तथा समय पर सिंचाई करते रहें। पत्तियों पर यदि धब्बे दिखाई पड़ें तो डाईथेन-एम-45 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) या बाविस्टीन (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। फरवरी में स्ट्रॉबेरी की फसल तैयार हो जाती है। इसे तोड़कर, 250 ग्राम के पैकेट में पैक कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें।

अमरूद की देखभाल

जनवरी में अमरूद के बागों में फलों की तुड़ाई का कार्य जारी रखें। तुड़ाई का सबसे अच्छा समय सुबह का होता है। फलों को उनकी किस्मों के अनुसार अधिकतम आकार तथा परिपक्व हरे रंग पर तोड़ना चाहिए। इस समय फलों से एक सुखद सुगंध भी आती है। सुनिश्चित करें कि अत्यधिक पके फलों को तोड़े गए अन्य फलों के साथ मिश्रित नहीं किया जाए। प्रत्येक फल को अखबार से पैक करने से फलों का रंग और भंडारण क्षमता बेहतर होती है। फलों को पैक करते समय उन्हें एक-दूसरे से रगड़ने पर होने वाली खरोंच से भी बचाना चाहिए।

इसके लिए आवश्यक है कि बक्से के आकार के अनुसार ही उनमें रखे जाने वाले फलों की संख्या निर्धारित हो। जनवरी में पत्तियों पर कत्थई रंग आना सूक्ष्म तत्वों की कमी के कारण होता है। अतः कॉपर सल्फेट तथा जिंक सल्फेट की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

आंवला के पेड़ों की देखभाल

उत्तरी भारत में, आंवला के फलों की तुड़ाई जनवरी-फरवरी तक जारी रह सकती है। इसलिए इन क्षेत्रों में इस दौरान फलों से लदे वृक्षों को बाँस-बल्ली की सहायता से सहारा देने की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि शाखाओं को टूटने से रोका जा सके। इसलिए बिक्री की उचित व्यवस्था करें। इस दौरान फलों का भी विकास होता है, सिंचाई की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

परंतु ध्यान रहे कि तुड़ाई से 15 दिनों पूर्व सिंचाई रोक दी जाए, ताकि फल समय से तैयार हो सकें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो, उन क्षेत्रों में बसंत के आगमन के साथ ही पौध रोपण का कार्य फरवरी के दूसरे पखवाड़े से प्रारंभ किया जा सकता है, जोकि मार्च तक जारी रखा जा सकता है। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु में पाले की आशंका हो, वहां गंधक के अम्ल (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव पूरे वृक्ष पर किया जाना चाहिए। जरुरत पड़े तो छिड़काव को दोहराएं। फरवरी में फूल आने का समय होता है जो नई पत्तियों के साथ आते हैं, इस समय सिंचाई न करें।

आंवला के बाग में गुड़ाई करें और थाले बनाएँ। आंवला के एक वर्ष के पौधे के लिए 10 कि.ग्रा. गोबर/कम्पोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होगा। 10 वर्ष या इससे ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढ़ाकर 100 कि.ग्रा. गोबर/कम्पोस्ट खाद, 1 किग्रा. नाइट्रोजन, 500 ग्राम फॉस्फेट व 750 ग्राम पोटाश हो जाएगी। उक्त मात्रा से पूरा फास्फोरस, आधी नाइट्रोजन और आधी पोटाश की मात्रा का प्रयोग जनवरी से करें। बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का कार्य करें।

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