आम के बाग में मंजर आने से पहले दिसम्बर माह में बाग का प्रबंधन कैसे करें? यह एक महत्त्वपूर्ण सवाल है; क्योंकि अभी किया हुआ बाग का प्रबंधन ही तय करेगा की पेड़ पर कितने फल लगेंगे और इसकी गुणवत्ता कैसी होगी।
आम को फलों का राजा कहते हैं। भारत में आम की खेती 2258 हज़ार हेक्टेयर में होती है, जिससे कुल 21822 हज़ार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। भारत में आम की उत्पादकता 9.7 टन/ हेक्टेयर है।
आम की खेती से तभी फायदा होता है, जब आप शुरू से बाग की देखभाल करेंगे। एक भी कृषि कार्य या गतिविधि में देरी से बागवान को भारी नुकसान होता है और लाभहीन उद्यम हो कर रह जाता है।
इन सिफारिशों को अपनाने से निश्चित रूप से फल उत्पादकों को अपनी उत्पादों की उत्पादकता, गुणवत्ता के साथ-साथ शुद्ध रिटर्न में वृद्धि करने में मदद मिलेगी।
जहाँ कहीं भी डाई-बैक रोग के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं, इस रोग के रोकने के लिए ज़रूरी है कि जहाँ तक टहनी सूख गई है, उसके आगे 5-10 सेमी हरे हिस्से तक टहनी की कटाई-छंटाई करके उसी दिन कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें और 10-15 दिन के अंतराल पर एक छिड़काव फिर करें।
आम के पेड़ में गमोसिस भी एक बड़ी समस्या है इसके नियंत्रण के लिए सतह को साफ करें और प्रभावित हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएँ या प्रति पेड़ 200-400 ग्राम कॉपर सल्फेट मुख्य तने पर लगाएँ। गुम्मा व्याधि का संक्रमण होने पर एनएए (200 पीपीएम), (2 ग्राम प्रति 10 लीटर) या (90 मिली प्रति 200 लीटर) का छिड़काव करें।
इस साल आम के बागों में पर्याप्त नमी है, इसलिए सिंचाई की ज़रूरत नहीं है। दिसम्बर माह में बाग की हल्की जुताई करें और बाग से खरपतवार निकाल दें, जिससे मिज कीट, फल मक्खी, गुजिया कीट और जाले वाले कीट की अवस्थाएँ नष्ट हो जाएँ। कुछ तो गुड़ाई करते समय ही मर जाती हैं, कुछ परजीवी और परभक्षी कीड़ों या दूसरे जीवों का शिकार हो जाती हैं और कुछ ज़मीन से ऊपर आने पर अधिक सर्दी या ताप की वजह से मर जाती हैं।
पहले आम में मिली बग को कम महत्व का कीट समझा जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह कीट आम का एक ख़ास कीट हो गया है। अगर इसका समय पर सही प्रबंध नहीं किया गया तो आम उत्पादक किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस महीने के अंत तक मिली बग के नियंत्रण के लिए आम के पेड़ की बैंडिंग की व्यवस्था करें, 25-30 सेमी की चौड़ाई वाली एक अल्केथेन शीट (400 गेज) को 30-40 सेमी की ऊंचाई पर पेड़ के तने के चारों ओर लपेटा जाना चाहिए। इस शीट को दोनों छोर पर बांधा जाना चाहिए और पेड़ पर चढ़ने के लिए मिलीबग कीट को रोकने के लिए निचले सिरे पर ग्रीस लगाया जाना चाहिए।
मिली बग कीट के नियंत्रण के लिए पेड़ के नीचे मिट्टी में कार्बोसल्फान 1 मिली प्रति 100 लीटर पानी या क्लोरपायरीफॉस ग्रेन्यूल्स (250 ग्राम प्रति पेड़) का छिड़काव या बुरकाव करना चाहिए। फसल अवशेषों को हटा दिया जाना चाहिए और जला दिया जाना चाहिए। खेत को खरपतवार और मलबे से दूर होना चाहिए।
फसल सुरक्षा के विभिन्न उत्पाद मिलीबग के खिलाफ सीमित प्रभावशीलता होते हैं क्योंकि इसकी दरारें, और उसके शरीर को मोम द्वारा कवर करने की वजह मुख्य कारण है। इसलिए प्रणालीगत कीटनाशकों का उपयोग भारी संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। प्रोफोफोस 50 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर (या) डिक्लोरवोस 76 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर (या) एसीफेट 75 एसपी 2 ग्राम प्रति लीटर या क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से कीट कम होते हैं।
दिसम्बर महीने में छाल खाने वाले और मुख्य तने में छेद ( ट्रंक बोरिंग) करने वाले कीड़ों को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है। पहले छेदों को पहचानें और उस क्षेत्र को साफ करें और इन छेदों में डायक्लोरवोस या मोनोक्रोटोफॉस (1 मिलीलीटर दवा प्रति 2 लीटर पानी) लगाएँ । कीटनाशक डालने के बाद इन छिद्रों को वैक्स या गीली मिट्टी से बंद (प्लग) कर देना चाहिए।
अगर गमोसिस के लक्षण दिखाई देते हैं, तो सतह को साफ करें और प्रभावित हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएँ। जनवरी माह में कभी कभी बौर जल्दी निकल आते है, जितना हो सके तोड़ देना चाहिए। इससे गुम्मा रोग का प्रकोप कम हो जाता है। बौर निकलने के समय पुष्प मिज कीट का प्रकोप दिखते ही क्विनालफास (1 मि.ली. प्रति लीटर) या डायमेथोएट (1.5 मि.ली. प्रति लीटर) पानी में घोल कर छिड़काव किया जाना चाहिए।