लखनऊ। खेती को लाभदायक बनाने के लिए दो ही उपाय हैं, जिसमें पहला- उत्पादन को बढ़ाएँ व दूसरा- लागत खर्च को कम करें। कृषि में लागत बीज, पौध पोषण के लिए उर्वरक व पौध संरक्षण, रसायन और सिंचाई करने में आती है। खेत की तैयारी, फसल काल में निंराई-गुड़ाई, सिंचाई व फसल की कटाई आदि कृषि कार्यों में लगने वाली ऊर्जा की इकाइयों का भी कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है।
इनका उपयोग किया जाना जरूरी है, लेकिन सही समय पर सही तरीके से किए जाने पर इन पर लगने वाली ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इनका व्यर्थ व्यय रोककर व पूरी तरह या आंशिक रूप से इनके विकल्प ढूंढकर भी लागत को कम किया जा सकता है। इनसे किसानों को अधिक लाभ मिलने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकता है।
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पौध पोषण
पौध पोषण के लिए बाजार से खरीदे गए नत्रजन, फास्फोरस और पोटाशयुक्त उर्वरक उपयोग में लाए जाते हैं। लेकिन फसल को जितनी मात्रा में रासायनिक उर्वरक दिया जाता है, उसका 33-38 प्रतिशत ही पौधों को मिल पाता है। बाकी का सिंचाई जल के साथ नाइट्रेट्स के रूप में रिसकर या कम नमी की अवस्था में गैस के रूप में वातावरण में चला जाता है। इसी तरह फास्फोरस का 20 प्रतिशत एवं पोटाश का 40 से 50 प्रतिशत अंश ही उस फसल को मिल पाता है। फास्फोरस का 80 प्रतिशत अंश तक काली चिकनी मिट्टी के कणों के साथ बँधकर पौधों को मिल नहीं पाता है।
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इन उर्वरकों की मात्रा को कम करने एवं उपयोग क्षमता को बढ़ाने में जीवांश खाद जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद आदि का प्रयोग लाभदायक होता है। ये जैविक खाद किसान अपने स्तर पर भी तैयार कर सकते हैं। इनके अलावा अखाद्य तेलों जैसे नीम, करंज आदि की खली का उपयोग किया जा सकता है। इन खलियों के चूरे की परत यूरिया के दाने पर चढ़ाकर यूरिया के नत्रजन को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।
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नत्रजन वाले उर्वरकों की निर्भरता को कम करने के लिए जीवाणु कल्चर राइजोबियम या एजेक्टोबेक्टर का उपयोग, गेहूँ, जुवार, मक्का, कपास आदि फसलों के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में चना, गेहूँ, उड़द, अरहर, चौला आदि का उपयोग लाभदायक पाया गया है। ये दलहनवर्गीय फसलें वातावरण की नत्रजन को लेकर न सिर्फ अपने उपयोग में लाती है, बल्कि अपनी जड़ों में स्थिर नत्रजन का लाभ साथ लगाई गई अंतरवर्ती को भी पहुँचाती हैं। फास्फोरस की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए फास्फोरस को घोल कर उपयोग किया जाना चाहिए।
अपने यहाँ अभी भी गोबर का उपयोग उपले या कंडे बनाकर ईंधन के रूप में किया जाता है। यदि इसे गोबर गैस में परिवर्तित कर सकें तो ईंधन की समस्या हल होने के साथ ही बेहतर गुणवत्ता का खाद भी प्राप्त हो जाता है। गाँव में पशुओं की संख्या के आधार पर गोबर गैसों के निर्माण, रखरखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी जा सकती है।
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गेहूँ की फसल की कटाई के बाद खेतों को आग लगाकर साफ किया जाता है। इससे भारी मात्रा में जीवांश जलकर नष्ट हो जाता है। इसे जलाने के बाद फसल की कटाई के तत्काल बाद मिट्टी पलटने के हल से खेत को जोतकर ढेलेदार अवस्था में छोड़ दिया जाना चाहिए, जिससे कटे हुए पौधों के डंठल, ठूँठ आदि निचली सतह में जाकर मिट्टी से दब जाएँ जो बारिश आने पर सड़कर खाद बन जाते हैं।
फसलों में सिंचाई जल की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए एक नाली छोड़कर एकांतर (अल्टरनेट) सिंचाई करना, स्प्रिंकलर (फुहार) सिंचाई, टपक सिंचाई आदि विधियों व साधनों का प्रयोग फसल की कतारों के बीच अवरोध परत (मलच) का उपयोग आदि तरीके काम में लाए जाने चाहिए।
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पौध संरक्षण
रोगों और कीड़ों का अधिक होना आधुनिक और लगातार कृषि की देन है। हमारा लक्ष्य फसलों को इनके द्वारा की जाने वाली हानि से बचाना है न कि नष्ट करना। कीट व रोगनाशक रसायनों का असर सिर्फ नुकसान करने वाले कीड़ों व रोगों पर न होकर लाभ पहुँचाने वाले कीड़ों व रोगों पर भी होता है।
इनके नियंत्रण के लिए स्वच्छ कृषि, परजीवी व शिकारी कीड़ों व कीड़ों को हानि पहुँचाने वाले कवकों (फफूँदों) व वायरस का प्रयोग असरकारक पाया गया है। इनके अलावा नीम, करंज, हींग, लहसुन, अल्कोहल आदि के उपयोग, अंतरवर्ती फसल, प्रपंची फसल फेरोमेन, ट्रेप, प्रकाश प्रपंच आदि साधनों के उपयोग से रसायनों के उपयोग पर खर्च होने वाली राशि में कमी की जा सकती है। कीटनाशी रसायन अंतिम विकल्प के रूप में काम में लाएँ।
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स्वयं तैयार करें बीज
आजकल संकर बीजों का चलन काफी है। इन्हें हर साल बाजार से खरीदना पड़ता है। इनकी उत्पादन क्षमता सामान्य किस्मों की अपेक्षा अधिक होती है, परंतु अनेक फसलों और सब्जियों में पौध प्रजनकों द्वारा ऐसी किस्में भी तैयार कर ली गई हैं, जो संकर किस्मों के लगभग समान (करीब 8-10 प्रश कम) उत्पादन देती है।
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इनका बीज एक बार खरीदकर पाँच-सात साल तक अगली फसल के लिए किसान स्वयं अपने खेत पर बीज तैयार कर सकते हैं। इस तरह इन पर खर्च होने वाली राशि में 40 से 60 प्रतिशत तक कमी की जा सकती है। अपने खेत पर उगाई जाने वाली बीज फसल को पर्याप्त खाद, सिंचाई व पौध संरक्षण देकर न सिर्फ अपनी जरूरत का बीज तैयार हो जाता है, बल्कि बीज फसल की अधिक उपज से कुछ आय बीज बेचने से भी मिल जाती है।
इन बीजों को छानबीन कर कचरा, कटे अविकसित बीज अलग करके इन्हें राइजोबियम या एजेटोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर सही समय पर सही दूरी व गहराई पर बोकर प्रति इकाई पर्याप्त पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।