पशुओं में जेर रुकना एक बड़ी समस्या

लखनऊ

दिति बाजपेई, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पशुओं में ब्याने के लगभग चार से पांच घंटे में जेर स्वयं बाहर निकल आती है लेकिन कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि ब्याने के बाद पशुओं में कई घंटों तक जेर नहीं निकलती और बच्चेदानी के अंदर कई प्रकार के बीमारियां हो जाती हैं। इससे दुग्ध उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ता है। ब्याने के आठ घंटे तक खुद नहीं निकलती तभी इसे जेर का रूकना माना जाता है।

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लक्षण

  • बच्चेदानी से बाहर जेर का लटकना।
  • जेर के टुकड़े गर्भाशय के अंदर होने पर हाथ डालकर देखे जा सकते है।
  • पेट पर बार-बार पैर मारना तथा पशु को दर्द होना।
  • बुखार होना और पशु का खाना न खाना।
  • दूध उत्पादन में कमी।
  • बच्चेदानी के बाहर बदबू आना।
  • समय ज्यादा होने पर मवाद का बाहर निकलना।
  • जेर रूकने के कारण बेचैन होना।
  • पशु का बार-बार बैठना और उठना।
  • पशु का सुस्त होना।

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उपचार

  • जेर न निकलने पर बच्चेदानी में हाथ डालकर देख लेना चाहिए। यदि जेर आसानी से निकल जाए तो उसे निकाल देना चाहिए, ज्यादा बल नहीं लगाना चाहिए क्योंकि गर्भाशय में अनेक विकार उत्पन्न कर देता है।
  • इस्ट्रोजन हारमोन पशु की मांशपेशियों में देना चाहिए।
  • टेट्रासाइक्लीन, आक्सीटेट्रासाइक्लीन, क्लोरटेट्रासाइक्लीन या फ्यूरासिन बच्चेदानी में पांच दिन तक लगातार डालें।
  • यदि जेर का भाग बाहर निकला हुआ है तो उसमें कोई वस्तु जैसे ईंट बांधने से भी कई बार बाहर निकल जाता है।
  • जेर के बाहर निकल जाने पर बच्चेदानी की सफाई करना अत्यधिक आवश्यक होता है। इसके लाल दवा (पौटेशियम परमैगनेट) का घोल पानी में बनाकर बच्चेदानी की सफाई कर देना चाहिए।
  • जेर रूकने से पशु की दूध की मात्रा में कमी हो जाती है इसलिए खनिज पदार्थ जैसे कैल्शियम, फास्फोरस आदि उचित मात्रा में पशु को देना चाहिए।
  • जेर रुकने से मैट्राइटिस या गर्भाशय में सूजन आ जाती है जिसका उचित इलाज करना चाहिए विशेष जानकारी के लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए

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