पन्ना (मध्यप्रदेश)। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश के जंगलों में बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनके बीच इलाके में आधिपत्य को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। बाघों के बीच होने वाली इस टेरिटोरियल फाइट में कई बार बाघ बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में एक बाघ की फोटो वायरल हुई है, जिसके माथे पर घाव है।
6 वर्षीय युवा बाघ पी-243 आपसी संघर्ष या फिर शिकार करते समय जख्मी हुआ है। यह वही प्रसिद्ध नर बाघ है, जिसने अपने चार अनाथ शावकों की परवरिश की है, जिनकी मां बाघिन पी-213(32) की मौत मई 2021 में हो गई थी। पिछले दिनों पर्यटकों ने जब इस जख्मी बाघ की तस्वीर ली तब पता चला कि वह जख्मी है। इस जख्मी युवा नर बाघ का टाइगर प्रबंधन द्वारा समुचित इलाज न कराए जाने से पर्यटकों व वन्यजीव प्रेमियों ने चिंता जाहिर की है।
सोशल मीडिया में बाघ की वायरल हुई फोटो तथा उठ रहे सवालों की ओर पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का ध्यान दिलाए जाने पर उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि जहां भी बाघों की अधिक है, वहां उनके बीच आपसी संघर्ष होना स्वाभाविक है। और इलाज देकर वो प्रकृति के सिस्टम को प्रभावित नहीं करना चाहते।
शर्मा ने कहा, “जंगल का नियम है “सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट”, यानी जो फिट और ताकतवर है वहीं रह सकता है। जो अनफिट व कमजोर है उसे या तो मरना पड़ता है या फिर उस इलाके को छोड़कर भागना पड़ता है। घायल बाघ को दवाई देकर उपचार करके उसे बचाने का तात्पर्य यह होगा कि हम प्रकृति के विरुद्ध जा रहे हैं। बाघ को उपचार कर बचाने से प्रत्यक्ष लाभ यह होगा कि बाघों की संख्या स्थिर रहेगी परंतु हानि यह है कि युवा बाघ इलाके की तलाश में बाहर चले जाएंगे। असुरक्षित इलाकों में जाने से कई बार वे हादसों का शिकार हो जाते हैं।”
शर्मा के मुताबिक अपने एरिया से बाहर जाने पर बाघ अक्सर हादसों का शिकार हो जाते हैं, जैसा कुछ महीने पहले ही पन्ना के ही युवा नर बाघ पी-234 (31) हीरा के साथ पडोसी जिले सतना के वन परिक्षेत्र सिंहपुर अंतर्गत अमदरी बीट के जंगल में हुआ।
उत्तम कुमार शर्मा ने आगे कहा, “टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र बाघों के रहवास हेतु सबसे उपयुक्त और सुरक्षित स्थान होता है। लेकिन सीमित वन क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों की एक निश्चित संख्या ही रह सकती है। धारण क्षमता से अधिक संख्या होने पर अतिरिक्त बाघों को अपने लिए बाहर जाकर इलाके की खोज करनी होती है। इन परिस्थितियों में यदि हमने प्रकृति के विरुद्ध जाकर घायल व कमजोर बाघों को बचाया तो कोर क्षेत्र में वृद्ध बाघों की संख्या अधिक हो जाने से शावकों की जन्मदर व संख्या धीरे-धीरे कम होना प्रारंभ हो जाएगी। इतना ही नहीं अच्छा और मजबूत “जीन” कोर क्षेत्र से बाहर चला जाएगा।”
मैनेजमेंट पर सवाल
हालांकि वन्य जीव विशेषज्ञ बाघों को इलाज पर इससे अलग-अलग राय रखते हैं। राज्य वन प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य श्यामेन्द्र सिंह बिन्नी राजा ने इस तर्क से असहमति जताई और कहा कि पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारी बता रहे कि उनके यहां 70 बाघ हैं। तो इन बाघों को प्राकृतिक ढंग से रखने की उनके पास क्या व्यवस्था है? श्यामेन्द्र सिंह के मुताबिक पार्क प्रबंधन मैनेजमेंट नहीं कर रहा, बाघों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है जो उचित नहीं है।
वो गांव कनेक्शन से कहते हैं, “देश की आजादी के समय 1947 में देश में 40 हजार बाघ थे। तब कश्मीर से कन्याकुमारी तक जंगल आपस में जुड़े हुए थे, लेकिन अब कोरिडोर खत्म हो गए हैं। ऐसे में बाघों को प्राकृतिक माहौल में रख पाना कठिन हो गया है। इसलिए घायल हुए बाघ का इलाज कराना जरूरी है या फिर कॉरीडोर सुरक्षित करें व बाघों के लिए प्राकृतिक हैविटेट की व्यवस्था करें तभी बाघों को बिना मानवीय हस्तक्षेप व इलाज के जंगल में प्राकृतिक ढंग से रख पाना संभव होगा।”
बहुत अच्छा होता है बाघ का हीलिंग सिस्टम
देश के सुप्रसिद्ध बाघ विशेषज्ञ व “द राइज एंड फॉल ऑफ द एमराल्ड टाइगर्स” के लेखक रघु चुंडावत ने गांव कनेक्शन से फोन पर कहा, “बाघों का हीलिंग सिस्टम बहुत ही बढ़िया होता है। छोटी-मोटी चोटें जनरली रिकवर हो जाती हैं, इलाज की जरूरत नहीं होती। लेकिन टीटमेंट की जरूरत वहां होती है जहां वह पहुंच नहीं सकता, यही वजह है कि बाघ हमेशा यह कोशिश करता है कि उसकी पीठ में चोट ना लगे।”
वो आगे कहते हैं, “युवा नर बाघ पी- 234 के माथे पर जहां चोट लगी है वहां बाघ का पंजा पहुंच सकता है, इसलिए घाव ठीक हो जाएगा। घाव में मैगेट भी नहीं पडे। पीठ में चोट लगने से वह मक्खियां आदि नहीं भगा सकता, जिससे संक्रमण की संभावना रहती है।”
क्या कहती है एनटीसीए की गाइडलाइन
बाघ अभयारण्यों व संरक्षित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने जो गाइडलाइन निर्धारित की है उसके मुताबिक बाघ जैसे वन्य जीवों के प्राकृतिक रहवास स्थलों में संतुलन को कायम रखने तथा उनके लिए उपयुक्त परिस्थितियों को बढ़ावा देने के लिए न्यूनतम मानव हस्तक्षेप जरूरी है।
“सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट’ के द्वारा प्राकृतिक तरीके से वृद्ध व कमजोर आबादी का उन्मूलन होता है। इसलिए वृद्ध, कमजोर व घायल जंगली बाघों को कृत्रिम भोजन देकर प्राकृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।
ऐसा करने से मानव वह वन्यजीवों के बीच संघर्ष के हालात बन सकते हैं। वृद्ध व अक्षम जंगली बाघों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए कृत्रिम आहार देना वन्य जीव संरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है, इसलिए ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ विशेष परिस्थितियों में जब किसी वृद्ध या घायल बाघ से मानव बाघ संघर्ष के हालात बने, तो इन परिस्थितियों में ऐसे बाघों को किसी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर में पुनर्वास किया जाना चाहिए।
पहले बाघों का किया जाता रहा है उपचार
मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना, छतरपुर व दमोह जिले के 1598 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसका कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर व बफर क्षेत्र 1022 वर्ग किलोमीटर है। वर्ष 2009 में यह टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई थी।
कान्हा, बांधवगढ़ व पेंच टाइगर रिजर्व से संस्थापक बाघ व बाघिनों को यहां लाया गया। इस योजना को यहां चमत्कारिक सफलता मिली और पन्ना टाइगर रिजर्व फिर बाघों से आबाद हो गया। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पूर्व में यहां बाघों की जहां चौबीसों घंटे सघन मॉनिटरिंग की जाती रही है, वहीं जख्मी होने या अन्य कोई समस्या आने पर ट्रेंकुलाइज कर उनका उपचार भी किया जाता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं, “पूर्व में यहां बाघ खोजने पर भी देखने को नहीं मिलते थे लेकिन अब एक ही सफारी यात्रा में पर्यटकों को कई बाघ दिख जाते हैं।”
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि यह सच है कि पूर्व में घायल बाघों का उपचार किया जाता था। लेकिन उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए यह जरूरी था, ताकि बाघों को बचाया जा सके। लेकिन अब हालात दूसरे हैं।
उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, “हम घायल बाघ पी-243 पर नजर रख रहे हैं लेकिन उसे कृत्रिम रूप से किसी भी प्रकार का इलाज नहीं दिया जा रहा। हम इंतजार कर रहे हैं कि बाघ का घाव प्राकृतिक रूप से भर जाए।”
जंगल में सम्मानजनक मौत या फिर कैदी जैसा जीवन
पन्ना टाइगर रिजर्व के नर बाघ पी-243 के जख्मी होने पर यह बहस शुरू हो गई है कि उसका एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवाओं से उपचार किया जाना चाहिए या प्राकृतिक रूप से जंगल में विचरण करते हुए घाव के ठीक होने का इंतजार करना चाहिए? क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि खुले जंगल में पले बढ़े जंगली बाघ को जंगल में ही सम्मान पूर्वक रहने देना है या फिर उसे बचाने के जोश व उत्साह में उसे कैदी जैसा जीवन जीने को विवश करना है, इस पर विचार किया जाना आवश्यक हो गया है।
वे कहते हैं, “घायल बाघ का दवाओं से उपचार करने का मतलब उसके नैसर्गिक जीवन में खलल डालना तथा उसे सीमित दायरे (चिड़ियाघर) में रहने को मजबूर करना है। ऐसी स्थिति में यदि कोई बाघ अपनी प्राकृतिक जीवन शैली में घायल होता है (मानवीय दखलंदाजी से नहीं) तो क्या उसका इलाज दवाओं से किया जाना चाहिए?”
केन बेतवा लिंक का बाघों के रहवास पर असर होगा?
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) व वन विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि बाघों को प्राकृतिक माहौल में बिना मानवीय हस्तक्षेप के इन्हें रखा जाए, तो क्या बाघों को रहने के लिए इतनी जगह है कि वे प्राकृतिक माहौल में रह सकें?
राज्य वन प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य श्यामेन्द्र सिंह बिन्नी राजा कहते हैं, “केन-बेतवा लिंक परियोजना से 100 वर्ग किलोमीटर जंगल जो बाघों का रहवास है, डूब जाएगा तथा 90 वर्ग किलोमीटर जंगल छतरपुर जिले का अलग-थलग हो जाएगा। ऐसी स्थिति में शेष बचे लगभग 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्या 70 बाघ प्राकृतिक ढंग से रह पाएंगे? बाघ आपस में लड़ेंगे और खत्म हो जाएंगे।