जीएम फूड रेग्युलेशन ड्राफ्ट पर लोगों से प्रक्रिक्रिया की समय सीमा 15 जनवरी से बढ़ाकर 5 फरवरी कर दी गई है। लोगों के भारी विरोध और मांग के बाद FSSAI ने तारीख को आगे बढ़ाय़ा है, जनिए क्या पूरा मुद्दा
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। भारत में बीटी कॉटन को छोड़कर देश में किसी भी आनुवांशिक संशोधित फसल को मंजूरी नहीं मिली है। लेकिन हो सकता है आने वाले दिनों में भारत में जीएम खाद्य पदार्थ बिकने लगे। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण ने जीएम फूड को रेग्युलेट (विनियमित) करने के लिए एक ड्राफ्ट मसौदा तैयार किया है। लेकिन जीएम फसल और फूड का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक ये रेगुलेट करने के लिए नहीं बल्कि देश में उसके प्रवेश के लिए पास देने का तरीका है।
“देश में जीएम फसलों को इजाजत नहीं मिल रही है। देश प्राकृतिक और जैविक खेती या अऩ्य रुपों में जहर मुक्त खेती की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में फूड, बीज और खाद का काम करने वाली कंपनियां और कॉरपोरेट एक अलग रास्ते से देश में जीएम को लाने की कोशिश कर रहे हैं वो रास्ता जीएम फूड है।” जतन ट्रस्ट के निदेशक कपिल भाई शाह ने कहा। बड़ोदरा में रहने वाले शाह उन लोगों में शामिल हों जो पिछले कई वर्षों से देश में जीएम फसल, जीएम खाद्य पदार्थों का विरोध कर रहे हैं। उनके मुताबिक अनुवांशिक रुप से विकसित फसलें और खाद्य पदार्थ लोगों की सेहत, मिट्टी, जलवायु के लिए हानिकारक हैं। जैसा कि बीटी कॉटन के मामले में हो रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता और अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) की संस्थापक संयोजक कविता कुरग्रंथी ने ने इस मुद्दे पर सरकार से सवाल करते हुए पूछा है, “जीएम खाद्य पदार्थों की अनुमति नहीं है। फिर वे अवैध जीएम खाद्य पदार्थों के आने पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? खाद्य सुरक्षा प्राथमिक कर्तव्य होने के बावजूद वे खतरनाक खाद्य पदार्थों पर नकेल कसते क्यों नहीं हैं??! #NoGMfoods
Remember that even though @fssaiindia told SC that no GM foods have been permitted by it in India, it only asked for non-GM-origin and GM-Free certification for 19 food crops, and did not apply the rule to processed food products! #UnreliableRegulator #NoGMFoods @mansukhmandviya pic.twitter.com/f2LLgScr4Z
— Kavitha Kuruganti (@kkuruganti) January 11, 2022
भारत में जीएम फूड पर कानूनी प्रतिबंध हैं लेकिन विदेश से आने वाले कई उत्पादों में जीएम के अंश होने की बात जन सरोकार रखने वाले लोग लगातार करते रहे हैं। जीएम फूड का मुद्दा 17 नवंबर 2021 ने फिर तूल पकड़ा जब भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण ने इसे विनियमित करने के लिए एक ड्राफ्ट मसौदा जारी किया और आम लोगों की उस पर राय मांगी, राय देने की आखिरी सीमा 15 जनवरी 2022 थी। जीएफ फूड का विरोध करने वालों के मुताबिक पहले तो जीएम फूड भारत में आना ही नहीं चाहिए, दूसरा मसौदे में कई खामिया हैं और तीसरा कि लोगों से प्रतिक्रिया के लिए जो समय दिया गया है वो काफी कम है और मसौदा स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं कराया गया। लोगों की मांग पर प्राधिकरण ने प्रतिक्रिया देने की तारीख 15 जनवरी से बढ़ाकर 5 फरवरी कर दी है।
जीएम फ्री इंडिया के तहत सामाजिक कार्यकर्ता और वैज्ञानिकों का एक वर्ग लगातार इसका विरोध कर रहा है। लाखों लोग एफएसएसएआई (fssai) से अलग-अलग माध्यमों से इसे रोकने और ड्राफ्ट नियमों पर अपना एतराज जता रहे हैँ। कपिल भाई शाह के मुताबिक इसके विरोध में खत भेजे जा रहे हैं उसमें से सिर्फ गुजरात से 30 हजार लोगों ने अपना नाम जोड़ा है। वहीं 11 जनवरी को जीएम फ्री इंडिया अभियान के तहत सोशल मीडिया खासकर ट्वीटर पर आवाज उठाई गई। चेंज डॉट ओरजी पर 15600 से ज्यादा लोगों ने ऑनलाइन पीटिशन फाइल की थी। साथ ही कई वेबिनार और दूसरे माध्यमों से जागरुक लोग अपनी आवाज़ उठा रहे हैं।
जीएम मुक्त भारत अभियान का हिस्सा और पंजाब-हरियाणा में प्राकृतिक खेती को बढ़ावे देने में लगे संगठन खेती विरासत मिशन की ओर से आयोजित जीएम फूड देश कई राज्यों के जानकार लोगों ने अपनी राय रखी। बेविनार में शामिल हुए हरियाणा महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर प्रो. राजेंद्र चौधरी, जो नौकरी छोड़कर अब हरियाणा में कुदरती खेती पर काम कर रहे जीएम फसलों और फूड के नुकसान गिनाए।
“भारत में ये कहकर जीएम फूड लाया जा रहा है कि अमेरिका में ऐसा हो रहा लेकिन भारत में ज्यादातर चीजें खुले में बिकती हैं। अमेरिका जैसे देश में ज्यादातर खाद्य वस्तुएं प्रोसेस्ड (प्रसंस्कृत) होकर बिकती हैं, उस पर लेबलिंग होती है। जो अमेरिका में रहा है उसे आप यहां क्यों लाना चाहते हो?” राजेंद्र चौधरी ने पहला सवाल किया।
उनका दूसरा सवाल ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में जीएफ फूड की लेबलिंग को लेकर था, वो कहते हैं, ” सरकार का मसौदा ही कहता है कि दशमलव शून्य एक (0.1) फीसदी जीएम की पहचान हो सकती है, लेकिन उन्होंने कहा, उससे 100 गुना ज्यादा यानि एक फीसदी होगा जो बताना होगा कि जीएम फूड है। अगर वैज्ञानिक 0.01 फीसदी पर चेक करते हैं फिर 100 गुना जीएम बिना बताए लोगों को क्यों खिलाना चाहते हैं?”
जीएफ फसलों के नुकसान गिनाते हुए चौधरी ने कहा, “किसी भी चीज के तीन तरह के प्रभाव होते हैं, तुरंत का प्रभाव, कम अवधि वाला प्रभाव और दीर्घ अवधि का प्रभाव जिसे क्रॉनिक इफेक्ट कहते हैं, जीएम फूड का क्रॉनिक इफेक्ट क्या होगा ऐसा कोई शोध नहीं है और जो शोध हैं वो आम लोगों के बीच नहीं है।” वो ये भी कहते हैं कि जीएम फूड सामान्य नहीं है तभी तो जीएम फूड को रेग्युलेट करने की कई राज्यों में अलग व्यवस्था है। जैविक खेती में जीएम बीज मान्य नहीं है, यानि जीएम के कुछ विशेष खतरे हैं।
कपिल भाई शाह गांव कनेक्शन को फोन पर जीएम फूड के दुष्प्रभाव गिनाते हैं, “मनुष्यों के ऊपर तो ज्यादा प्रयोग नहीं हुए हैं लेकिन चूहों और लैब एनिमल के ऊपर जो प्रयोग हुए हैं उनमें कहीं न कहीं एलर्जी, कोशिशाओं की खराबी, अंगों को क्षति पहुंचना, बच्चों की मृत्युदर, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, एंटी बॉयोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता, समेत कई तरह की दिक्कतें पाई गई हैं।”
शाह के मुताबिक शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले टॉक्सिन 3-4 माध्यमों से शरीर पहुंचते हैं। इनमें एक है बीटी टॉक्सिन जो, जीएम की बीटी फसल से आता है, जिससे एलर्जी है। दूसरा अवांछनीय, जो हमारे ध्यान में न आए, वैज्ञानिक जब अनुवांशिक मॉडिफिकेशन करते हैं तो अपना काम हुआ या नहीं ये देखता है, लेकिन शरीर के अंदर सजीव डीएनए के और भी अनजान बदलाव होते हैं, जो उससे भी टॉक्सिसिटी सकती है। तीसरा है हर्बीसाइड टॉलरेंट (शाकनाशी सहिष्णुता) ऐसी फसलों में हर्बीसाइड के अंश आते हैं। इस तरह तीन-चार रास्तों जो जहर शरीर में आ सकता आता है, लैब एनिमल में उसके नुकसान के साक्ष्य मिले हैं।
किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने जीएफ फूड को लेकर सवाल किया, साथ ही उन्होंने मसौदे पर लोगों की प्रतिक्रिया की समय सीमा 15 जनवरी से बढ़ाकर आगे करने की मांग की है। टिकैट ने लिखा, “GM फ़ूड क्यों लाना चाहता है एफएसएसआईआई? किसके फायदे के लिए? सभी के बीच GM पदार्थों को लेकर गंभीर चिंता है। एफएसएसआईआई आपकी ज़िम्मेदारी है कि स्थानीय भाषाओं में विनियमों का मसौदा तैयार करें,अपने प्रस्तावों पर व्यापक विचार-विमर्श करें। 15 जनवरी से आगे समय सीमा बढ़ाएं।”
मुंबई में रहने वाली पोषण विशेषज्ञ रुजिता दिवाकर ने जीएम फूड के ड्राफ्ट मसौदे के खिलाफ ऑनलाइन पिटिशन पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, “जबकि दुनिया भर के देश जीएमओ उत्पादों के संबंध में कानूनों और विनियमों को सख्त कर रहे हैं, हमारे देश कमजोर होने की संभावना है। मैं जीएम को भारतीय रसोई में प्रवेश करने से रोकने के लिए याचिका पर हस्ताक्षर कर रही हूं।”
जीएफ फूड का विरोध कर रहे लोगों ने सरकार और एफएसएसआईआई से जनता, उपभोक्ता आदि के फीडबैक के लिए 15 जनवरी, 2022की तारीख को 90 दिन बढ़ाने की मांग की है।
कपिल शाह कहते हैं, “15 जनवरी की तारीख काफी नही हैं। इसे बढ़ाया जाना चाहिए। डाफ्ट को स्थानीय भाषाओं में भी जारी करना चाहिए। अलावा हमारी जो प्रमुख मांग ह कि ये पूरा रेग्युलेशन निरस्त किया जाए और कठोर नियम बनाए जाएं। क्योंकि ये लोगों की खुराक का सवाल है।”
Future is about diversity and nutrition and not GMOs . Do not bring harm . Let us cherish our food heritage . Let us support our farmers #NoGMFoods @fssaiindia @PMOIndia @nstomar @RujutaDiwekar pic.twitter.com/U9L9ceHKhx
— Usha Soolapani (@UshaSoolapani) January 11, 2022
“खाद्य उद्योग के भीतर, आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य उत्पादों के आयात पर जोर दिया जा रहा है। उन्हें पोल्ट्री उद्योग में पहले से ही पोल्ट्री में फ़ीड के रूप में आनुवंशिक रूप से संशोधित सोया पेश करने की अनुमति मिल गई है, “उषा सूलापानी, एक तिरुवनंतपुरम स्थित चावल कार्यकर्ता, और एक पर्यावरण संगठन, थानल के सह-संस्थापक, ने गांव कनेक्शन अंग्रेजी को बताया।
वो आगे कहती हैं, “जीएम भोजन की खपत न केवल किसी के स्वास्थ्य पर बल्कि पर्यावरण पर भी असर डालती है, हमें इस बात की चिंता है कि अगर देश में सस्ते जीएम खाद्य पदार्थों को अनुमति दी जाती है, तो इसका स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।” सूलापानी ने आगे कहा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पहले FSSAI कैटल फीड के मामले में अपने नियम कानून लागू करना चाहती लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि वो सिर्फ फूड के लिए उत्तरदायी हैं फीड के लिए नहीं।
जीएम फूड का विरोध कर रहे लोगों का ये भी कहना है कि जीएम फूड को लेकर जो मसौदा तैयार किया गया उसमें आम लोगों, जानकारों, उपभोक्ताओं, जैव वैज्ञानिकों से पहले खाद्य इंडस्ट्री (Mofpi ने सीआईआई, FICCI, ICC) की सलाह ली गई है जो अपने आप में एक सवाल है। इसके अलावा उन्हें चिंता है अगर एक बार अनुमति मिल गई जो जीएम उसकी आगे मॉनिटरिंग कैसे होगी? जवाब देही क्या होगी, जीएम फूड के लोगों पर प्रभाव पर नजर कैसे रखी जाएंगी।
जीएम फसलों के अब तक के नतीजे क्या कहते हैं?
जीएम फूड और जीएफ फसलों के हिमायतियों का ये भी मानना है कि दुनिया में बढ़ती आबादी का पेट भरने, तकनीकी का इस्तेमाल कर खेती में ज्यादा उपज लेने के लिए जीएम एक विकल्प हैं लेकिन कपिल भाई शाह इसे पूरी तरह खारिज करते हैं।
“जनसंख्या बढ़ रही है तो क्या देश में अनाज की कमी है। हमारे गोदाम धान-गेहूं से भरे हुए हैं। फिर देश में भुखमरी उतनी है। देश में एक तरफ अनाज सड़ रहा है, दूसरी तरफ भुखमरी है। 20 साल से जीएम फसल चल रही हैं, कहीं कोई उदाहरण ऐसा आया कि जिसमें उत्पादकता बढ़ी हो।”
भारत में बीटी कॉटन (जीएम क्रॉप) की शुरुआत 2002 से हुई लेकिन उसका विरोध 1999 से जारी था। इसके बाद 2009-10 में बीटी बैंगन लाने की कोशिश हुई, और 2014-15 में जीएम सरसों हर्बीसाइड टॉलरेंट लाने की कोशिश हुई लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते अनुमति नहीं, देश में अभी सिर्फ बीटी कॉटन की खेती होती है,जिसका कुल कपास की खेती के करीब 90 फीसदी हिस्से पर कब्जा है। सामाजिक कार्यकर्ता उसके दुष्परिणाम भी गिनाते हैं।
शाह कहते हैं, “अमेरिका में यूनाईटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर ने 2014 में रिपोर्ट दी है कि जीएम फसल से उत्पादन बढ़ी नहीं है। भारत सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा है कि किसानों की आत्महत्या की वजह एक वजह बीटी कॉटन है। बीटी कॉटन आने से खेती की लागत बढ़ी है। कुछ साल उत्पादकता बढ़ी, लेकिन बाद में कम हो गई। इसलिए समझना चाहिए कि देश में बीटी कॉटन का 20 साल का अनुभव है, बताए उस वक्त के कौन से दावे बात सच साबित हुई है।”
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