ओडिशा: स्थानीय मछुआरे और ग्रामीण चिल्का झील में दुनिया की पहली फिशिंग कैट गणना में कर रहे मदद

चिल्का डेवलपमेंट अथॉरिटी चिल्का में मछली पकड़ने वाली बिल्लियों की हिफाजत के लिए पंचवर्षीय कार्य योजना पर काम कर रहा है। मछली पकड़ने वाली बिल्ली को आईयूसीएन रेड लिस्ट में लुप्तप्राय प्रजातियों के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जिसका मतलब है कि यह विलुप्त होने के एक बड़े खतरे का सामना कर रही है।
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ओडिशा के चिल्का झील में पाई जाने वाली दुनिया की पहली मछली पकड़ने वाली बिल्लियों की गणना की जा रही है, चिल्का डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 176 मछली पकड़ने वाली बिल्लियों की सूचना दी है। दो दिन पहले 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर बिल्ली के गणना की रिपोर्ट जारी की थी। चिल्का डेवलपमेंट अथॉरिटी ने द फिशिंग कैट प्रोजेक्ट के सहयोग से यह गणना की है।

यह हालिया गणना मछली पकड़ने वाली बिल्ली के लिए दुनिया का पहला ऐसा जनसंख्या अनुमान है जो संरक्षित एरिया नेटवर्क के बाहर आयोजित किया गया था। बिल्लियों की गणना दो चरणों में की गयी थी। पहले चरण का आयोजन 2021 में चिल्का और उसके आसपास के क्षेत्रों के उत्तर और उत्तर-पूर्वी खंड में मौजूद 115 वर्ग किलोमीटर दलदली जमीन पर किया गया था। दूसरे चरण का आयोजन इस वर्ष परीकुड की तरफ चिल्का झील के तटीय द्वीपों के किनारे किया गया, जो एक खारे पानी का झील है।

चिल्का विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुशांत नंदा ने बताया, “दोनों चरणों को मिलाकर, कुल 150 कैमरा ट्रैप तैनात किए गए थे और हर ट्रैप 30 दिनों तक मैदान में रहे। इसके बाद, डेटा का विश्लेषण करने के लिए स्थानीय रूप से स्पष्ट कैप्चर रीकैप्चर विधि का उपयोग किया गया।” अधिकारी ने आगे बताया, “यह हकीकत में जज्बे की भागीदारी थी क्योंकि स्थानीय मछुआरे और चिल्का के ग्रामीण इस अभियान के प्राथमिक भागीदार थे। उनके समर्थन के बिना, इस विश्व स्तर पर खतरे से जूझ रही बिल्ली पर संरक्षित क्षेत्रों के बाहर दुनिया का पहला ऐसा जनसंख्या अनुमान संभव नहीं होता।”

द फिशिंग कैट प्रोजेक्ट जो फिशिंग कैट पर दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला संरक्षण और अनुसंधान प्रोजेक्ट है, इस प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक पार्थ डे ने बताया, ,”ग्रामीणों के अलावा, दस स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों ने भी इस अभियान के दौरान स्वेच्छा से हिस्सा लिया। चिल्का वन्यजीव प्रभाग के कर्मचारियों ने सक्रिय रूप से सहायता की और जनसंख्या आकलन में हिस्सा लिया। इस मायावी और खतरे में पड़ी प्रजातियों के अध्ययन के लिए कई स्टॉकहोल्डर्स को शामिल करने का ऐसा भागीदारी प्रयास एक अद्भुत मिसाल कायम करता है।”

खत्म होने की कगार पर मछली पकड़ने वाली बिल्लियां

फिशिंग कैट (Prionailurus viverrinus) दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की एक मध्यम आकार की जंगली बिल्ली है। इसे आईयूसीएन रेड लिस्ट में ‘लुप्तप्राय’ के रूप में दर्ज किया गया है, जिसका मतलब है कि यह जंगली बिल्ली विलुप्त होने के एक उच्च खतरे का सामना कर रही है। लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के आर्टिकल IV के परिशिष्ट भाग II पर मछली पकड़ने वाली बिल्ली को सूचीबद्ध किया गया है, जो इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है।

मछली पकड़ने वाली बिल्ली रात का जानवर है और इस जानवर का पता लगाना आसान काम नहीं है। मादा बिल्ली का वजन लगभग 8-10 किलोग्राम होता है और नर बिल्ली का वजन लगभग 10-15 किलोग्राम होता है। यह उथली गीली जमीन के किनारे से मछली का पता लगाती है, उसके बाद मछली के पीछे गोता लगाती है और अपने नुकीले पंजों से उसको पकड़ती है।

गाँव रेडियो में बिल्लियों की कहानी सुनिए

नंदा ने बताया, “मछली पकड़ने वाली बिल्लियां जंगल के पास के गांवों से मवेशियों और मुर्गी का भी शिकार करती हैं और लोगों से मुसीबत मोल ले लेती हैं। चिल्का झील में काफी मात्रा में मछलियों की मौजूदगी और मानव निवास से दूरी ने चिल्का को मछली पकड़ने वाली बिल्लियों के लिए उपयुक्त आवास बना दिया है।”

मुख्य रूप से गीली जमीन के तबाह होने के कारण, जो उनका निवास स्थान है मछली पकड़ने वाली बिल्लियों को विश्व स्तर पर खतरा है। टियासा आध्या, सह-संस्थापक, द फिशिंग कैट प्रोजेक्ट ने बताया,”एशिया में जमीन का गीला पन खतरनाक तरीके से तेजी से खत्म हो रहा है और उनकी वर्तमान स्थिति पर मुनासिब डेटा या कई देशों में आधारभूत डेटा भी नहीं है। कई गीली जमीन की प्रजातियों की स्थिति का अभी तक अध्ययन नहीं किया गया है और खतरा बहुत ज्यादा है।”

उन्होंने आगे बताया, “मछली पकड़ने वाली बिल्ली जैसी विशेष प्रजातियों को ट्रैक करना हमें इस बात की तरफ इशारा करता है कि इन इकोलॉजिकल सिस्टम के साथ क्या हो रहा है, जो जलवायु परिवर्तन और सूखे के खिलाफ सुरक्षा उपाय हैं।”

फिशिंग कैट के लिए पंचवर्षीय संरक्षण योजना

साल की शुरुआत में, चिल्का विकास प्राधिकरण ने चिल्का में मछली पकड़ने वाली बिल्लियों के संरक्षण के लिए पंचवर्षीय कार्य योजना अपनाने की अपनी मंशा जाहिर की थी। नंदा ने बताया, “टीएफसीपी के सहयोग से, हम जल्द ही एक फिशिंग कैट एक्शन प्लान साझा करने जा रहे हैं जो कि सोशियो-इकोलॉजिकल होगा। हमने पहले ही बिल्ली और उसकी सह प्रजातियों पर एक साल की लंबा गश्त और निगरानी कार्यक्रम शुरू कर दिया है।”

अधिकारी ने आगे बताया, “इसकी स्कैलिंग के साथ, हम गीली जमीन के बदलाव को रोकने के लिए टिकाऊ और पारंपरिक रूप से कटाई वाले गिली जमीन के उत्पादों को बढ़ावा देंगे, एक रेस्क्यू और पुनर्वास केंद्र स्थापित करेंगे, छोटे पैमाने पर अनुभवात्मक और शिक्षाप्रद गिली जमीन पर्यटन को बढ़ावा देंगे, आवास बहाली कार्यक्रमों के साथ-साथ शिक्षा कार्यक्रमों को भी अपनाएंगे।”

हेमंत राउत, जो पर्यावरणविद् और गहिरमाथा समुद्री कछुए और मैंग्रोव संरक्षण सोसायटी के अध्यक्ष हैं ने बताया, “मछली पकड़ने वाली बिल्ली अपना अधिकांश जीवन पानी के करीब घने वनस्पतियों में बिताती है और वह एक माहिर तैराक है। मछली पकड़ने वाली बिल्ली के सामने एक बड़ा खतरा गिली जमीनों की तबाही है, जो उसका पसंदीदा आवास है।”

राउत ने बताया, “चिल्का झील के जलाशय सर्दियों में इरावदी डॉल्फिन और प्रवासी पक्षियों के लिए मशहूर है। लेकिन दुख की बात है कि मछली पकड़ने वाली बिल्ली, एक कम ज्ञात प्रजाति जो इस रामसर स्थल पर निवास करती है, डॉल्फिन जैसी स्थिति का आनंद नहीं लेती है।”

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अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी

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